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पानी अर्थात जीवन

पानी अर्थात जीवन

by महेश अटाले
in जुलाई -२०१३, सामाजिक
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बारिश! भगवान का सबसे बड़ा चमत्कार। जल ही जीवन है । इस धरती के प्रत्येक सजीव में 90 प्रतिशत पानी होता है। मछलियां पानी के बिना एक मिनट भी जिन्दा नहीं रह सकतीं। रेगिस्तान का जहाज कहा जाने वाला ऊंट भी भले ही दो हफ्ते पानी न पिये, परन्तु वह पानी का संचय जरूर करता है।

हम अपने जीवन में कई बार इस चक्र को देखते हैं। ग्रीष्म ऋतु में जमीन के पानी का वाष्पीकरण होता है, जिससे बादल बनते हैं। इन बादलों में पानी का संचय बढ़ते ही वे काले घने हो जाते हैं और यही बादल बारिश के रूप में फिर से जमीन पर आ जाते हैं।

इस जल चक्र में पेड़ों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। पेड़ न सिर्फ जमीन के अन्दर पानी को रोके रखते हैं,बल्कि वे उसे वातावरण में छोड़ने का काम भी करते हैं। अतः जमीन के नीचे और ऊपर पानी का सन्तुलन बना रहता है। परन्तु मानव किसी दानव की तरह यह सोचने लगा है कि इस धरती का सारा पानी उसके लिए ही है और इसी वजह से वह पानी का गलत इस्तेमाल और संचय कर रहा है। वास्तव में इन सभी बहुमूल्य वस्तुओं पर सभी का हक है, चाहे वह कोई घास हो या कोई साधारण सा कीड़ा ।

इतने वर्षों से हमने पानी का जो नुकसान किया है, उसी के परिणाम आज हम भुगत रहे हैं। कई स्थानों पर पीने का पानी उपलब्ध नहीं है। नदियां, तालाब सूख गये हैं। सभी जगहों का तापमान बढ़ रहा है । ग्लोबल वार्मिंग और ग्रीन हाउस इफेक्ट जैसे शब्द पुराने लगने लगे हैं।
आज पानी की हर एक बूंद का सदुपयोग करना जरूरी है। बरसात शुरू हो चुकी है । बरसात के पानी को कुछ खास तरीके से बचाया जाये तो उसका फिर से उपयोग हो सकता है। इसे ही रेन वाटर हार्वेस्टिंग कहा जाता है। अब तक इस पद्धति में कई बदलाव और सुधार हुए हैं। आज मुंबई जैसे महानगर में नयी इमारतों को तभी मान्यता दी जाती है, जब वहां रेन वाटर हार्वेस्टिंग को अपनाया जाता है।

गांवों में खेतों के नजदीक बरसात के पहले चौड़े गड्ढे बनाकर उनको सभी ओर से गोबर तथा चिकनी मिट्टी का लेप लगाया जाता है और उसमें पानी का संग्रह किया जाता है । इस छोटे से तालाब का पानी बरसात के बाद भी लगभग 3-4 महीनों तक खेत को मिलता रहता है ।
अफ्रीका में पिछले 40 सालों से सूखा पड़ने के कारण बहुत नुकसान हुआ है। सहारा मरूस्थल में स्थित सूडान का उत्तरी हिस्सा सूखे की मिसाल है। पूरे साल में सिर्फ कुछ दिन होने वाली बारिश ही सूडान वासियों के लिए पानी का मुख्य स्त्रोत है। पानी की हर एक बूंद की कीमत सूडानवासी अच्छी तरह से जानते हैं।अमेरिका के वैज्ञानिकों ने वहां जमीन के अन्दर एक बड़ा सा तालाब खोजा और एक नयी कल्पना का जन्म हुआ। बरसात के पानी का संचय करने लिए यहां एक इमारत का निर्माण किया जा रहा है । 5 से भी अधिक मंजिलों वाली यह इमारत कुछ इस प्रकार से बनायी जा रही है कि इस पर गिरने वाली हर एक बूंद इसके तल में बने तालाब में जाएगी ही। इस तरह की एक दर्जन इमारतों का निर्माण वहां हो रहा है। इसकी मुख्य विशेषता यह है कि इसके निर्माण में पानी का इस्तेमाल नहीं हो रहा है। धातु और पुनर्प्रक्रिया से निर्मित प्लास्टिक से ही ये इमारतें बनायी जाएंगी। आगे जाकर इन पर सोलर पैनल लगाये जाएंगे जिससे बिजली का निर्माण भी हो सकेगा।

हमारे देश के गरीब लोग वर्षोें से बारिश का पानी विभिन्न तरीकों से जमा करते आ रहे हैं। जैसे छत का पानी टंकी में जमा करना या प्लास्टिक लगाकर उसमें पानी जमा करना आदि।

अपने देश में सबसे पुराना तरीका था जमीन पर मिट्टी से छोटी‡छोटी दरारें बनाना जिससे उनमें फंसा हुआ पानी पास के कुएं में इकट्ठा किया जा सकता था।

हड़प्पा शहर में तो पानी न सिर्फ जमा किया जाता था, बल्कि उसे बिना बिजली या साधनों के अलग‡अलग जगहों पर पहुंचाया भी जाता था। राजस्थान का मिट्टी से बना बन्द कुआं जिसे टंका कहते हैं, आज भी अपने रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए मशहूर है। जमीन में बनाये हुए कुएं को ऊपर से बन्द करके उसके चारों ओर पक्की मिट्टी का बांध बनाया जाता है जिससे आस-पास के परिसर में गिरने वाले वर्षा के जल को इस कुएं में इकट्ठा किया जा सके।

अगर शहर में रहने वाले लोगों ने भी अपने घर में लगे पौधों मेंडाले गये अतिरिक्त पानी का पुनर्प्रयोग करना शुरू किया तो भी काफी पानी बचाया जा सकता है।

आज जरूरत है अपने पानी को उल्टा पकड़ने की। पानी संचय करने के नये‡नये तरीके खोजने की। क्योंकि बूंद‡बूंद से ही महासागर का निर्माण होता है ।

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Tags: boardrinking waterhindi vivekhindi vivek magazinelakenatural water sourcesriverswaterwell

महेश अटाले

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