हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
गुरु बिनु होइ न ज्ञान

गुरु बिनु होइ न ज्ञान

by वीरेन्द्र याज्ञिक
in अध्यात्म, जुलाई -२०१३, संस्कृति, सामाजिक
0

सनातन वैदिक संस्कृति तथा जीवन पद्धति की समृद्ध परम्परा मेंगुरु का स्थान सर्वोच्च है। गुरु में दो अक्षर हैं ‘गु’ जिसका अर्थ है अन्धकार तथा ‘रु’ का अर्थ है प्रकाश! अर्थात गुरु वह तत्व है जो अन्धकार को मिटाता है और प्रकाश को फैलाता है। अज्ञान को मिटाता है और ज्ञान की ज्योति को जलाता है, इसी गुरु को प्रणाम करते हुए शिष्य कहता है-

अज्ञान तिमिरोधस्य ज्ञानाजनं शलाकया।
चक्षुरुन्मीलित येन तस्मै श्री गुरुवे नम:॥

गुरु वह ऊर्जावान, प्रज्ञावान महापुरुष है जो शिष्य की आंख में ज्ञान के अंजन की शलाका से अज्ञान के अन्धकार को दूर करते हैं और शिष्य के जीवन को धन्य करते हैं।

भारतीय मनीषा में गुरु की महिमा का गुणगान करते हुए कहा गया है कि गुरु शिष्य को जीवन की दृष्टि प्रदान करते हैं, उसे जीवन जीने की कला सिखाते हैं और उसे समाज तथा परमात्मा से जोड़ते हैं। गुरु व्यक्ति को जड़ता से मुक्त करके उसे गति प्रदान करते हैं तथा शिष्य के अन्दर मानवीय गुणों का विकास करके उसके जीवन को सुन्दर, निर्दोष और पवित्र बनाकर सफलता के चरम शिखर पर पहुंचाते हैं, गुरु सुख की सृष्टि करते हैं, इसलिए शिष्य प्रार्थना करता है और उनसे उनकी कृपा की याचना करते हुए कहता है-

ब्रह्मानंद परम सुखदं केवल ज्ञानमूर्ति
द्वदातीत गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्य
एकं नित्यं विमल मचलं सर्वधीसाक्षिभूतं
भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुतं नमामि

ब्रह्म के आनन्द स्वरूप, परम सुख प्रदान करने वाले ज्ञान की मूर्ति और सभी प्रकार के सांसारिक द्वंद्व से रहित, आकाश जैसे अनन्त विस्तार से विभूषित, अद्वितीय, नित्य, विमल और अचल भाव से अतीत, तीनों प्रकार अर्थात आधिभौतिक, आधिदैहिक तथा आध्यात्मिक गुणों से रहित, निरंजन ऐसे सद्गुरु को मैं प्रणाम करता हूं।

श्रीमद् आदि शंकरचार्य ने गुरु की बड़ी ही भावपूर्ण अभ्यर्थना की है। अपनी प्रार्थना में वे कहते हैं कि सद्गुरु अनुपमेय है, उसकी किसी से तुलना नहीं की जा सकती, वे कहते हैं कि सद्गुरु अतुलनीय है और उसके दर्शन, स्पर्श भाव से ही सद्गति प्राप्त होती है।

‘दृष्टान्तौ नैव दृष्टस्त्रिभुवनजठरे सद्गुरूर्ज्ञानदा
स्पर्शश्वेतंत्र कल्प: स नयति यद हो स्वर्णतामश्म
न स्पर्शत्व तथापि श्रितचरणेयुगे सद्गुरू स्वीयशि
स्वीयं साम्यं विद्यते भवति निरुपमस्तेवालौकि:

तीनों लोकों में ऐसी कोई वस्तु नहीं है जिसकी तुलना सद्गुरु से की जा सके। कुछ सीमा तक लोहे को सोना बनाने वाले पारसमणि से सद्गुरु की तुलना की जा सकती है, परन्तु वह भी अधूरी है। पारसमणि लोहे को सोना तो बनाती है किन्तु अपने जैसा फिर भी नहीं बनाती। गुरु तो शिष्य को अपने गुरुत्व प्रदान करता है और इसलिए शिष्य को अपनी प्रतिमूर्ति के रूप में निर्मित करने वाला गुरु अनुपम है।

गुरु अपने शिष्य के आन्तरिक गुणों का विकास करके उसे सफलता के शिखर तक पहुंचाता है। यह परम्परा अनादिकाल से अब तक चली आ रही है। यह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में परिलक्षित होती है। आध्यात्म के क्षेत्र में श्रीमद्भगवत गोविन्दपाद के शिष्य शंकर थे, जो बाद में आदि शंकराचार्य के नाम से प्रसिद्ध हुए। भक्त गोविन्दपाद के पावन सान्निध्य में शंकर ने वेदान्त की शिक्षा प्राप्त की अथवा अपने महान व्यक्तित्व एवं कृतित्व से हिंदू धर्म की पुनर्स्थापना की। शंकर से शंकराचार्य बनने तक की यात्रा में जिस सद्गुरु ने अपनी भूमिका का निर्वाह किया था, उन्हीं भगवत् गोविन्दपाद की कृपा एवं प्रेरणा से शंकराचार्य ने बारह वर्ष की छोटी सी अवस्था में अनेक भाष्यों की रचना की थी और केवल बत्तीस वर्ष की छोटी सी अवस्था में उन्होंने भारत में आध्यात्मिक क्रान्ति का सृजन करके हिंदू धर्म की पुनर्स्थापना की और सम्पूर्ण हिंदू समाज को उसके वास्तविक स्वरूप से अवगत कराया। पण्डित दीन दयाल उपाध्याय ने आचार्य शंकर को आधुनिक हिंदू धर्म का अधिष्ठाता तथा जनक के रूप में निरूपित किया है। आचार्य शंकर पर पण्डित जी की लिखी पुस्तक ‘जगद्गुरु शंकराचार्य’ अद्वितीय पुस्तक है। पण्डित जी ने लिखा है- ‘‘भारतीय राष्ट्र जीवन में भगवान कृष्ण के पश्चात शंकरचार्य का ही आर्विभाव राष्ट्र की मूलभूत एकता को व्यावहारिक स्वरूप देने में समर्थ हुआ। जिस प्रकार भगवान कृष्ण ने गीता के ज्ञान द्वारा भिन्न-भिन्न विचार धाराओं में एकात्मता स्थापित करके भारत के सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक जीवन को नव चेतना प्रदान की थी, उसी प्रकार से शंकराचार्य ने भी भारत वेदांत के अनेक में एक के अपने प्राचीन सनातन सिद्धांत को देश के भौतिक, नैतिक, आध्यात्मिक, सामाजिक क्षेत्रों में स्थापित करके हिंदू समाज पर महान उपकार किया था। आज सम्पूर्ण विश्व शंकराचार्य को हिंदू धर्म के उद्धारक के रूप में जानता है, किन्तु उसके पीछे जिस महान सद्गुरु की कृपा काम कर रही थी, वे थे श्री भगवत गोविन्दपाद जिन्होंने शंकर को शंकराचार्य के रूप में स्थापित किया था।’’ इसी प्रकार से आज से 150 वर्ष पहले बंगाल में नरेन्द्र नाथ दत्त को स्वामी विवेकानंद बनाने वाले स्वामी राम कृष्ण परमहंस सद्गुरु के श्रेष्ठतम उदाहरण हैं। ये रामकृष्ण परमहंस ही थे, जिन्होंने बालक नरेन्द्र नाथ दत्त की प्रतिभा को प्रथम दृष्टि में ही पहचान लिया था और नरेन्द्र ने भी श्री रामकृष्ण में अपने मार्गदर्शक को जान लिया था। रामकृष्ण के शिष्यत्व में नरेन्द्र ने अपनी आध्यात्मिक अभ्युदय की यात्रा को प्रारम्भ किया और उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में भारत के योद्धा संन्यासी के रूप में उन्होंने सम्पूर्ण विश्व में भारत के वेदांत की धर्म ध्वजा फहरायी। अमेरिका में जब उनसे उनके व्यक्तित्व और कर्तृत्व के बारे में प्रश्न किये जाते तो उनका एक ही जवाब होता था कि यह सब उनके सद्गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस की कृपा का प्रभाव तथा प्रताप है। सद्गुरु के सम्बन्ध में स्वामी के निम्न विचार दृष्टव्य हैं।

‘सच्चे गुरु वे हैं, जिनके द्वारा हमको अपना आध्यात्मिक जन्म प्राप्त हुआ है। वे ही वह साधक हैं, जिसमें से होकर आध्यात्मिक प्रवाह हम लोगों में प्रवाहित होता है। वे ही समग्र आध्यात्मिक जगत के साथ हम लोगों के संयोग सूत्र हैं। व्यक्ति विशेष पर अतिरिक्त विश्वास करने से दुर्बलता और अन्त: सार शून्य विधि: पूजा आ सकती है, किन्तु गुरु के प्रति प्रबल अनुराग से उन्नति अत्यन्त शीघ्र सम्भव है। वे हमारे अन्त: स्थित गुरु के साथ हमारा संयोग करा देते हैं। यदि तुम्हारा गुरु के भीतर यथार्थ सत्य श्रद्धा है तो उनकी आराधना करो, यही गुरुभक्ति तम्हें शीघ्र ही चरम अवस्था में पहुंचा देगी।’

स्वामीजी का मानना था कि बिना गुरु के किसी प्रकार की सिद्धि सम्भव नहीं है । गुरु ही वह तत्व है जो व्यक्ति के भीतर के चैतन्य का जागरण करता है और उसे अभिप्रेरित कर उसके व्यक्तित्व को निखारता है। ज्ञान की प्राप्ति केवल गुरु से ही होती है और उसके बिना सिद्धि सम्भव ही नहीं है। स्वामीजी का दृढ़ मत था ‘आध्यात्मिक गुरु के द्वारा सम्प्रेषित जो ज्ञान आत्मा को प्राप्त होता है उससे उच्चतर और पवित्र वस्तु कुछ और नहीं है। यदि मनुष्य पूर्ण योगी हो चुका है, तो वह स्वत: ही उसे प्राप्त हो जाता है, किन्तु पुस्तकों द्वारा तो उसे प्राप्त नहीं किया जा सकता। तुम दुनिया के चारों कोनों में हिमालय, आल्प्स, काकेशस पर्वत अथवा सहारा की मरुभूमि या समुद्र के तल में जाकर अपना सर पटको पर बिना गुरु मिले तुम्हें वह ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता।’

केवल 39 वर्ष 5 महीने और 24 दिन के जीवन में अपने गुरु स्वामी श्री रामकृष्ण परमहंस की कृपा से स्वामी विवेकानंद ने वह सबकुछ कर दिया जो सफल व्यक्ति कई जन्मों में भी नहीं कर सकता। उन्होंने अपने छोटे से जीवन काल में भारत के आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक वैभव को विश्व पटल पर स्थापित करके तत्कालिन पराजित आत्म चेतना से शून्य भारतीय समाज में आत्मविश्वास का संचार किया था। 1893 में शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद की अपार सफलता को वहां के ‘न्यू हेरॉल्ड’ समाचार पत्र ने इन शब्दों में व्यक्त किया था ‘‘धर्मों की संसद में सबसे महान व्यक्ति विवेकानंद हैं। उनका भाषण सुन लेने पर अनायास यह प्रश्न उठ रहा होता है कि ऐसे ज्ञानी (भारत) देश को सुधारने के लिए धर्म प्रचारक भेजने की बात मूर्खतापूर्ण है।’’ स्वामीजी के तेजस्वी व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उक्त समाचार पत्र ने उनको ‘तूफानी हिंदू’ कहा था। किन्तु इस सभी सफलता का श्रेय स्वामी ने अपने गुरु स्वामी रामकृष्ण को दिया था। भारत की सत्य सनातन संस्कृति में गुरु के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने तथा उनका पूजन करने के लिए प्रति वर्ष की आषाढ़ी पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहा जाता है। इस दिन गुरु के चरणों में शिष्य आशीर्वाद की कामना करते हुए उनको प्रणाम करता है।

ध्यान मूलं गुरूमूर्ति पूजा मूलं गुरोर्रपदम्।
मंत्र मूलं गुरुवाक्यं मोक्ष मूलं गुरुकृपा॥

ध्यान में गुरु का स्वरूप, पूजा गुरु चरणों की, गुरु का वाक्य या निर्देश ही जीवन का मन्त्र होता है तो गुरु की कृपा प्राप्त होती है और जीवन मुक्त होता है, आनन्द की सृष्टि होती है। यही जब जीवन का ध्येय बनता है तभी गुरु पूर्णिमा सार्थक हो जाती है।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: #gurupurnima #vyaspurnima24july2021gurupurnimahinduculturehindusanskriti

वीरेन्द्र याज्ञिक

Next Post
खुद में उलझा पाक

खुद में उलझा पाक

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0