पाकिस्तान की खुराफातें

पिछले कुछ महीनों की घटनाओं से इस समय देश में चिंता और क्रोध दोनों हैं। चिंता केंद्र सरकार की नीतियों को लेकर है और क्रोध पाकिस्तान की खुराफातों को लेकर है। पाकिस्तान के सीमा पर हमले, चीन की भारतीय सीमा में घुसपैठ, बांग्लादेश का आंखें तरारना, भूटान में भारत के प्रति नाराजी और चीन द्वारा उसका लाभ उठाना ये ऐसी बातें हैं जो हमारी विदेश नीति और कूटनीति की विफलता को उजागर करती हैं। चिंता की यही बात है। क्रोध की यह बात है कि पाकिस्तानी भारतीय भूमि में घुस कर एक जवान का सिर कलम कर ले जाते हैं, गश्ती दल पर हमला कर 6 जवानों की हत्या कर देते हैं, विभिन्न सेक्टरों में बार बार गोलाबारी करते हैं और हमारी सरकार है कि कुछ बयानबाजी कर और कुछ विरोध पत्र भेजकर शांत हो जाती हैं।

सरकार की कार्रवाइयों में कोई रोष या भारत की जनभावना दिखाई नहीं देती।
सरकारी कार्रवाई की विडम्बना देखिए कि एक ओर दुश्मन हम पर हमले करता है और दूसरी ओर हम उनकी जी-हुजूरी में लगे रहते हैं। मिसाल के तौर पर जब हमारे जवान का सिर कलम कर पाकिस्तानी ले गए थे, तब पाकिस्तान के कुछ राजनेता भारत में थे। हमारा सारा सरकारी महकमा पाकिस्तानी नेताओं की आवभगत में लगा हुआ था। जनाक्रोश की कोई परवाह न कर उनकी मेहमाननवाजी होती रही। उधर, चीन के साथ भी हमारा व्यवहार ऐसा ही रहा। लद्दाख में चीनी सैनिक दूर तक घुस आये, लेकिन हमने चुप्पी साध ली। कुछ बोले भी तो यह कि चीनी सैनिक अब लौट गए हैं। यह घटना हुई तब विदेश मंत्री खुर्शीद आलम चीन में थे। वहां उन्होंने मौन जरूर तोड़ा, लेकिन उसमें मात्र चीन के गुणगाण के अलावा कुछ नहीं था। यह राष्ट्रनिष्ठा है कि चाटुकारिता? क्यों यह चाटुकारिता? जनमानस में इससे गुस्सा नहीं उफनेगा तो और क्या होगा?

बात इससे भी आगे बढ़ चुकी है। केंद्रीय मंत्रिमंडल में आपसी समन्वय का स्तर शून्य तक पहुंच गया है। रक्षा मंत्री एंटनी एक कहते हैं, विदेश मंत्री खुर्शीद दूसरी बात कहते हैं और प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह तो कुछ बोलते ही नहीं। सरकार गूंगी हो गई है, बहरी हो गई है, दिशाहीन हो गई है। संवेदनशीलता भोथरी हो गई है। बहुत हो गया तो जनता के रोष को शांत करने के लिए बाद में शब्दों के तीर चलाते हैं। एनडीए के काल में हुए पाकिस्तानी हमलों के आंकड़ें गिनाते हैं। मानो एनडीए के काल में हुए हमलों से कम हमले होना सरकार की कोई उपलब्धि है! पाकिस्तान इसीका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लाभ उठाता है। हमले किसी के भी काल में हो, विदेश के हमले हैं और उसका करारा जवाब दिया ही जाना चाहिए, यह मामूली बात भी केंद्र के ध्यान में नहीं आती, यह एक त्रासदी है।

पाकिस्तान को रोकना होगा। उसकी नकेल कसनी होगी। उसकी चीन के साथ घेराबंदी तोड़नी ही होगी। संसद में होहल्ले के बाद सेना को स्थानीय तौर पर निपटने के आदेश दिए जाने की खबरें आई हैं। दोनों ओर से गोलाबारी हो रही है। युद्धजन्य परिस्थिति पैदा हो गई है। 1948, 1965 और 1971 में लड़ाई के पूर्व ऐसा ही माहौल बना था। माना कि युद्धोन्माद की स्थिति दोनों देशों के लिए ठीक नहीं है। पाकिस्तान भी यह जानता है। नवाज शरीफ की सरकार भारत से मैत्री संबंधों की बात को लेकर ही चुनाव जीती है। इसलिए वहां की अवाम का दबाव उस पर बना है। इसलिए वह डगमगा गई लगता है। राष्ट्रसंघ के महासचिव बून पाकिस्तान आए, अमेरिका भी अपने मित्र को बचाने दौड़ने वाली है। पाकिस्तान छद्म युद्ध को अब कूटनीतिक युद्ध में परिवर्तित करने पर उतारू है। भारत को इससे कठोरता से जूझना होगा। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को दो टुक शब्दों में कह देना होगा कि वह पाकिस्तान को रोकें, अन्यथा हमें रोकना पड़ेगा। उतना माद्दा हमारी सेना में है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय में यह संदेश जाना जरूरी है कि पाकिस्तान के मामले में पूरा देश एक है।

पाकिस्तान सीधी लड़ाई कभी नहीं करना चाहेगा, क्योंकि तीन-तीन युद्धों के परिणाम उसने देखे हैं। इसीलिए वह अपनी भूमि से आतंकवाद निर्यात करता रहता है। उसका यह तर्क स्वीकार नहीं किया जा सकता कि सरकारी तंत्र ने कोई हमला नहीं किया है। लेकिन, उसकी भूमि से हुए हमलों की जिम्मेदारी भी उसी की है, इसे वह भी नहीं नकारता। यह भी बहाना बनाया जाता है कि यह उसकी गुप्तचरी विफलता है। यह वैसा ही सफेद झूठ है जैसा वे ओसामा बिन लादेन के मामले में बोलते थे। दाऊद के पाकिस्तान होने पर भी वैसे ही बयान दिए जाते रहे, लेकिन अब नवाब शरीफ के एक जिम्मेदार सहयोगी ने कहा कि ‘हां, दाऊद पाकिस्तान में जरूर था; लेकिन अब नहीं है। पता नहीं किस देश में चला गया।’ हाफिज सईद के बारे में भी इसी तरह के तर्क हैं कि केवल बयान देने से अपराध साबित नहीं होता। पाकिस्तान की न्यायपालिका सबूतों के अभाव में उसे छोड़ देती है। लेकिन, इस बात का उनके पास कोई जवाब नहीं होता कि उनके ही मित्र देश अमेरिका ने हाफिज पर दस लाख डॉलर का ईनाम क्यों रखा है और क्यों उसे आतंकवादी करार दिया है? इतने सारे सबूतों के बावजूद मुंबई हमलों के दोषियों पर अब तक क्यों कार्रवाई नहीं की गई? सारा विश्व समुदाय जानता है कि आतंकवादियों को पनाह पाकिस्तान ही देता है। उनके प्रशिक्षण शिविर आईएसआई की देखरेख में वहीं चलाए जाते हैं। लेकिन विश्व समुदाय के देश अपने राष्ट्रहित देखेंगे; भारत के लिए वे क्यों झगड़ा मोल लेंगे? जिसे नासूर हुआ है उसे ही तो शल्यक्रिया करनी होगी!

पाकिस्तान की सारी कोशिश अब भारत को बातचीत के मेज पर लाने की है। इसलिए वह मामले का अंतरराष्ट्रीयकरण करने पर तुला हुआ है। वार्ता से कोई इनकार नहीं हो सकता, लेकिन ये वार्ताएं सकारात्मक होनी चाहिए। वार्ता के पूर्व भारत को अपनी कठोर शर्तें रखनी चाहिए। यदि ऐसा न हो तो वार्ता के लिए वार्ता का कोई फल नहीं निकलेगा।
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