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सत्यं, शिवं, सुंदरम्

सत्यं, शिवं, सुंदरम्

by अमोल पेडणेकर
in नवंबर -२०१३, संपादकीय
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ब्रह्म सत्य है, पवित्र है, सुंदर है। ब्रह्म का ही दूसरा रूप है यह सृष्टि। इसलिए सृष्टि का हर रूप भी उतना ही सत्य, पवित्र और सुंदर है। इस सृष्टि के पांच तत्व हैं। हमारे मनीषियों ने इन्हें पृथ्वी, आप, तेज, वायु और आकाश के रूप में परिभाषित किया है। इन तत्वों से ही मनुष्य की निर्मिति हुई है। इसलिए ये पांचों तत्व शिव हैं, पवित्र हैं, पूजनीय हैं। ॠग्वेद के सूक्त पंचतत्वों की महानता गाते नहीं अघाते। हर तत्व को उन्होंने देवता स्वरूप माना है। निसर्ग सूक्त की ध्वनि तो हमेशा कानों में गूंजती रहती है-

पृथ्वी सुगंधां, सरसस्तथापः
स्पर्शश्च वायुः ज्वलनं सतेजः
नभः सशब्दं, महतां सहैव,
कुर्यन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ।

इसीलिए सृष्टि की आराधना का अर्थ है उससे एकाकार होना। आकाश जैसा विशाल मन रखना, धरती जैसा सुगंधित बनना, वायु जैसा प्रवाही होना, जल जैसा निरपेक्ष बनना, सूर्य जैसा प्रखर होना- स्वयं प्रकाशित होना और दूसरों को आलोक बांटना। ये मनुष्य की अलग-अलग अवस्थाएं हैं। सदियों से हमारे ॠषि-मुनि इसी की शिक्षा देते रहे हैं। ये नदियां, ये पहाड़, ये तारे, ये पेड़-पौधें, ये जीव-जन्तु सब हमारे संगी-साथी हैं। प्रकृति ने हमें यह सौगात दी है। उनके प्रति रागी बनें, वीतरागी नहीं। उनकी रक्षा हो अध्यात्म भाव से। इसीलिए इस दीपावली विशेषांक को हमने सृष्टि को समर्पित किया है- पहाड़ों, नदियों, वृक्षों, पशु-पक्षियों जैसे हमारे सहोदरों को। हिमालय के एवरेस्ट व कैलाश शिखरों, मानसरोवर और नर्मदा को।

इस संदर्भ में इस अंक का विशेष आकर्षण है भवन निर्माता सुरेश हावरे का एवरेस्ट के बेस कैम्प तक का पदभ्रमण। किसी उद्यमी द्वारा इस तरह का साहस करना और उस रोमांच को शब्दबद्ध करना अपने आप में अनोखा है। उनकी टीम जब बेस कैम्प पहुंची तब पहली टीम एवरेस्ट पर कदम रखकर वहां लौटी और ‘जय शिवाजी’ के निनाद से परिसर गूंज उठा, जो भावविभोर कर देने वाला प्रसंग है। इसी तरह प्रसिद्ध चित्रकार प्रकाश जोशी की कलम से उतरा कैलास-मानसरोवर का परिभ्रमण साहस और आध्यात्मिक तपस्या को उजागर करता है। इसी कड़ी में है नर्मदा। यह देश की एकमात्र नदी है, जिसकी परिक्रमा की जाती है। प्रसिद्ध चित्रकार- लेखक अमृतलाल वेगड़ ने कुल 33 वर्षों में नर्मदा की ही नहीं, उसकी सहायक नदियों की भी परिक्रमा की। नदियों की संस्कृति के कई अनछुए पहलुओं को, उसके सौंदर्य को उन्होंने अपनी सशक्त कलम से उभारा है। नर्मदा की यह सौंदर्य यात्रा है। नर्मदा का यह एक पहलू है, लेकिन वर्तमान पहलू को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। नर्मदा आंदोलन, विभिन्न परियोजनाओं के बाद बनी नर्मदा की वर्तमान स्थिति पर युवा पत्रकार अनिल सौमित्र का सर्वस्पर्शी लेखाजोखा भी है। साहित्य में भी हमने विविधता बरती है। सलाम बिन रजाक की बौद्ध परिवेश पर वैशिष्ट्यपूर्ण कहानी, वर्तमान में दो रूपों में जीने वाले व्यक्ति की प्रवीण सिंह चावड़ा की गुजराती और चिकित्सा व्यवस्था से पीड़ित व्यक्ति की सुशील कुमार फुल्ल की हिमाचली कहानी मन को भावविभोर कर देने वाली हैं। कविताओं में देश के श्रेष्ठ कवियों के शब्द व भाव सौंदर्य का आभास होगा। इस अंक का एक और आकर्षण है बाल विभाग। ज्ञान-विज्ञान, सामान्य ज्ञान, बोधप्रद कथाओं, शिशु गीतों से परिपूर्ण यह विभाग है। कुल मिलाकर विभिन्न क्षेत्रों में जो सत्य है, पवित्र है, सुंदर है इसे पिरोने की कोशिश है। यह अंतर्यात्रा हम सभी के मन में अवश्य दीप जलाएगी, प्रकाश रश्मियां बिखेरेगी।

तिमिर से तेज की ओर जाने का यह मार्ग है। यह मार्ग प्रकाशित रहे यही दीपावली का अर्थ है। हरेक के मन में विवेक के दीप जलें तो तम का नाश हो। दीप का तभी अर्थ है जब उसमें अपनेपन का स्नेह हो, मन की बाती हो, तन की लौ हो। तात्पर्य यह कि जो कुछ है, सब समाज के लिए है; राष्ट्र के लिए है। इसके बिना जीवन का अर्थ ही क्या होगा? अंतस का अंधियारा मिटेगा, तभी बाहर उजियारा होगा। हमारे मनीषियों ने अमावस्या के दिन इसलिए दीवाली रखी कि हम दीप जलाकर उजाले को उत्सव के रूप में देखें। परिवर्तन की बयार देखें। परिवर्तन को आमंत्रण देना होता है, वह बिन बुलाये नहीं आता। जब बिन बुलाये आता है तब सर्वनाश कर देता है। विदेशियों के इस देश पर आक्रमण बिन बुलाये हुए। स्वाधीनता को बुलाकर हम अपने घर ले आए। देश के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस फर्क को समझने की आज नितांत आवश्यकता है।

हमारे सभी ग्राहकों, विज्ञापनदाताओं, वितरकों, प्रतिनिधियों तथा हितचिंतकों को दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं। यह दीपावली आप सभी के जीवन में शांति, स्वास्थ्य, समृद्धि लायें। देश के संदर्भ में यही मंगल कामना है कि देश में सुशासन आए, जन-जन खुशहाल हो, सर्व दूर सत्यं, शिवं और सुंदरम् का प्रकाश फैलें।
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Tags: environmentfive elementshindi vivekhindi vivek magazinenaturepanchtatvasatyam shivam sundaram

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