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अनुत्तरित प्रश्न

अनुत्तरित प्रश्न

by pallavi anwekar
in जनवरी -२०१४, सामाजिक
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दिल्ली! भारत की राजनैतिक राजधानी! राजनीतिक गहमा-गहमी के कारण हमेशा ही खबरों में रहनेवाली। परंतु पिछले कुछ समय से यह शहर और भी कुछ कारणों से चर्चा का विषय बना हुआ है। कारण है असुरक्षा। वहां की शीला दीक्षित सरकार को गिराने में भी असुरक्षा मुख्य मुद्दा था। बलात्कार, हत्या जैसे नृशंस कृत्य यहां सरेआम और लगभग हर दूसरे दिन हो रहे हैं। कानून का डर न होने से ये अपराध बढ़ रहे हैं यह तो एक पहलू है ही, परंतु दूसरा पहलू यह भी है अपराध करने वालों की आत्मा, उनका अपना विवेक भी उन्हें इन कृत्यों को करने से नहीं रोक पा रहा है॥

16 दिसम्बर 2012 को हुआ सामूहिक बलात्कार का मामला हो या आरुषि हत्याकांड दोनों ही मामले दिल्ली और उसके ही एक निकटवर्ती क्षेत्र से जुडे हैं। दोनों ने दिल्ली को शर्मसार किया है। 16 दिसम्बर के हादसे की शिकार युवति को एक साल के अंदर न्याय मिल गया। यह शायद इसलिये हुआ क्योंकि यह घटना सार्वजनिक रुप से पीडा देने वाली थी और इसके विरोध में हर संभव प्रदर्शन किये गये थे। अपराधियों को कठोतम सजा देने का दबाव हर तरफ से था।

दिल्ली के ही निकटवर्ती क्षेत्र नोएडा में 2008 में हुए आरुषि हत्याकांड के दोषियों को पिछले महीने सजा सुनाई गई। आरुषि के माता-पिता डॉ. राजेश तलवार और नूपुर तलवार को न्यायालय ने दोषी मानकर आजन्म कारावास की सजा सुनाई है। हालांकि तलवार दंपती और उनके रिश्तेदारों को यह मंजूर नहीं है और वे उच्च न्यायालय में इस निर्णय के विरोध में गुहार लगाने जा रहे हैं।

निर्णय तक पहुंचते-पहुंचते इस पूरे घटनाक्रम ने कई मोड लिये। पांच साल में सच को दबाने के लिये कई प्रयास किये गये परंतु मीडिया के निरंतर हस्तक्षेप के कारण न सिर्फ इस मामलें की परतें न्यायालय के सामने उजागर होती गई वरन पूरे देश में फैल गईं। मामला पारिवारिक था और तलवार दंपती ने इस बात की भरपूर कोशिश की कि उनपर किसी का भी शक न हो परंतु ऐसा हुआ नहीं। देर से सही परंतु उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

इस घटना की तफ्तीश सबसे पहले नोएडा पुलिस द्वारा की गई थी। तलवार दंपती ने उस समय कई सबूत मिटाने की कोशिश की जिसके कारण जांच का रुख बदलता गया और कानून को नतीजे तक पहुंचने में इतना समय लगा। 15 मई 2008 को घटी इस घटनाक्रम का सही-सही ब्यौरा तो कोई नहीं दे पाया परंतु इस केस की जांच कर रहे सीबीआई अधिकारी के. जी. एल. कौल के अनुसार राजेश तलवार ने ही आरुषि और हेमराज की हत्या की है क्योंकि उस समय पर और कोई भी घर पर मौजूद नहीं था। कौल ने सारा घटनाक्रम कुछ इस तरह बताया कि राजेश ने घर में कुछ अजीब आवजें सुनीं। वे पहले अपने घर के नौकर हेमराज के कमरे में गये परंतु हेमराज वहां नहीं था। उसके कमरे में रखी गोल्फ क्लब को राजेश ने अपने हाथ में लिया और आरुषि के कमरे की ओर बढ़े। दरवाजा खोलते ही उन्होंने आरुषि और हेमराज को ‘आपत्तिजनक‘ हालात में देखा। वे अपने गुस्से पर काबू नहीं रख पाये और उन्होंने पहला वार हेमराज के सिर पर किया। जैसे ही उन्होंने दूसरा वार किया हेमराज चोट लगने के कारण दूसरी ओर गिर गया और राजेश का वार आरुषि पर हुआ। ये दोनों ही वार इतने जोरदारे थे कि दोनों की मौत हो गई। शोर सुनकर राजेश की पत्नी और आरुषि की मां नूपुर तलवार कमरे आई। उन्होंने दोनों की नब्ज देखी जो कि लगभग मृत्यू का इशारा दे रही थी। अब तक दोनों ही पूरी घटना की भयानकता समझ चुके थे अत: दोनों ने हेमराज के शव को चादर में लपेटा और घर की छत पर ड़ाल दिया। आरुषि और हेमराज दोनों के ही गले किसी धारदार वस्तु से काटे गये थे जिससे दोनों की हत्या में समानता दिखे और जांच में कुछ नया मोड आये।

जांच के दौरान तलवार दंपत्तीं हमेशा ही स्वयं को निर्दोष बताते रहे हैं। उसके दोस्त-रिश्तेदार भी न्यायालय के इस फैसले से सहमत नहीं हैं। परंतु जांच में सामने आये सबूतों और घरमें काम करनेवाली नौकरानी और कार चालक के बयानों से न्यायालय ने यही निर्णय दिया है कि आरुषि के माता-पिता ही दोषी हैं।

इस पूरी घटना को अभी तक एक हत्या, एक जुर्म के दृष्टिकोण से ही देखा गया। परंतु इस पूरी घटना के भावनिक और नैतिक पक्ष की ओर कितने लोगों का ध्यान गया है? आरुषि एक 14 वर्ष की दिल्ली पब्लिक स्कूल में पढ़नेवाली छात्रा थी। हेमराज, तलवार दंपत्ति के घर में काम करनेवाला 45 वर्ष का व्यक्ति था। आरुषि की आयु ,इन दोनों की आयु का अंतर, और उनके बीच संबंध होना एक बडा प्रश्नचिन्ह खडा करता है। इस घटना के पीछे छिपे कई प्रश्न अभी भी अनुत्तरित हैं।

तलवार दंपत्ती दोनों ही पेशे से डॉक्टर हैं और अपने काम में व्यस्त होते थें। क्या इस व्यस्तता के कारण उनका अपनी किशोरवयीन बेटी की ओर ध्यान नहीं था? आरुषि की उम्र और डॉ.राजेश तलवार ने उसे हेमराज के साथ जिस स्थिति में देखा वह किस बात की ओर इशारा करती है? आरुषि की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह कहा गया है कि उसके साथ कोई जबरजस्ती नहीं की गई थी। तो क्या इन संबंधों में उसकी मर्जी शामिल थी। अपनी बेटी के इन संबंधों से माता-पिता नावाकिफ कैसे हो सकते हैं जबकि वह व्यक्ति उनके ही घर का नौकर था।

क्या कभी भी उन्हें हेमराज के किसी भी कृत्य पर शक नहीं हुआ। अपनी बेटी और विश्वासपात्र नौकर के बीच का संबंध उनकी नजरों से कैसे चूक गया?

हत्या गंभीर परिणाम तक पहुंचने से पहले क्या तलवार दंपत्ती ने अपनी बेटी को समझाइश नहीं दी? या माता-पिता की गैर मौजूदगी का फायदा उठा कर उसके कदम बहकते चले गये। हत्या की रात को राजेश और नूपुर के घर में होने के बावजूद भी वे इस हद तक कैसे पहुंच गये? क्या उन्हें किसी भी बात का डर नहीं था? आज तलवार दंपत्ति अपनी इकलौती बेटी को खोकर स्वयं जेल में हैं।

‘ऑनर किलिंग’ की परिभाषा में आनेवाली इस जैसी कई घटनायें हैं। किशोरवयीन युवा और अपने काम में व्यस्त माता-पिता के बीच का संबंध आज समाज की दिशा तय कर सकता है। अल्पायु में ही सभी विषयों की जानकारी विभिन्न माध्यमों से प्राप्त करनेवाले युवाओं का उस ओर आकर्षण स्वाभाविक है परंतु उन पर नियंत्रण रखना आवश्यक है।

परिस्थिति और सामने दिख रहे दृश्य के कारण राजेश तलवार अपने आप पर नियंत्रण नहीं रख पाये। हो सकता है अपनी बेटी को मारना उनका उद्देश्य न हो और हेमराज के दूसरी ओर गिरने के कारण वार आरुषि पर हो गया हो। आज वे भले ही अपने आप को निर्दोष बता कर उच्च न्यायालय में अपील करने की बात कर रहे हैं परंतु अभी तक सामने आये सबूतों और बयानों से तो वे अपराधी ही साबित हुए है। उन पर हत्या और और सबूत मिटाने का मामला चलाया गया है जिसके लिये अब वे आजन्म कारावास की सजा भोगेंगे।

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