
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज है। बीजेपी के राष्ट्रीय नेता हर दिन पश्चिम बंगाल का दौरा कर रहे हैं और ममता सरकार के कारनामों का काला चिट्ठा भी जनता के सामने खोल रहे हैं हालांकि ममता सरकार की तरफ से भी जवाबी कार्यवाही लगातार जारी है। विधानसभा चुनाव की नज़दीकियों को देखते हुए दल बदल की राजनीति भी तेजी पर है। TMC के नेता बीजेपी में और बीजेपी के कुछ नेता टीएमसी में अपना उज्जवल राजनीतिक भविष्य देख रहे हैं हालांकि पश्चिम बंगाल में विधानसभा का ऊंट किस करवट बैठेगा यह अभी से कहना मुश्किल है।
पिछले काफी समय से कांग्रेस की हालत लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा चुनाव में भी बिगड़ती जा रही है। कांग्रेस की हालत किसी भी राज्य में अकेले चुनाव लड़ने की अब नहीं रह गई है। नतीजा वह हमेशा गठबंधन साथी की तलाश में रहती है। पश्चिम बंगाल चुनाव में भी कांग्रेस ने लेफ्ट के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया है यानी पश्चिम बंगाल में अब त्रिकोणी लड़ाई देखने को मिल सकती है।
कांग्रेस का गठबंधन सिर्फ चुनाव तक ही सीमित रहता है और अगर यह गठबंधन चुनाव हारता है तो यह एक दूसरे पर आरोप लगाते हुए गठबंधन तोड़ देते हैं इसका उदाहरण उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में देखने को मिल चुका है। इससे पहले पश्चिम बंगाल में 2016 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस और लेफ्ट ने एक साथ मिलकर चुनाव लड़ा था लेकिन हार के बाद दोनों फिर से अलग हो गए जबकि लोकसभा चुनाव में 2019 के लोकसभा चुनाव में दोनों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था।
सन 2011 में पश्चिम बंगाल में जब से तृणमूल कांग्रेस सत्ता में आई उसके पहले तक पश्चिम बंगाल को लेफ्ट पार्टी का गढ़ माना जाता था लेकिन विकास कार्यों के ना होने की वजह से धीरे-धीरे जनता का मोह लेफ्ट से भंग होता गया। अब लेफ्ट की हालत इस स्तर पर पहुंची है कि वह अपना अस्तित्व बचाने पर जुटी हुई है। फिलहाल के लिए बंगाल में कांग्रेस और लेफ्ट मुख्य विपक्षी दल है जबकि टीएमसी पिछले दो बार से सत्ता में है। कांग्रेस और लेफ्ट मिलकर एक बार फिर से टीएमसी और बीजेपी को मात देकर सत्ता में वापसी करना चाहते हैं लेकिन यह इतना आसान नहीं होगा। भारतीय जनता पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री मोदी सहित तमाम नेता विकास कार्यों का लोहा मनवा रहे हैं और भ्रष्टाचार रहित सरकार देने की बात कह रहे है। वहीं तृणमूल कांग्रेस की तरफ से ममता बनर्जी एक बार फिर से सेवा का अवसर मांग रही है और पिछली बार के मुकाबले ज्यादा विकास करने की बात कर रही है।
पश्चिम बंगाल में गठबंधन को लेकर अभी यह कह पाना मुश्किल है कि किस पार्टी का ज्यादा नुकसान होगा लेकिन अगर सभी पार्टियों को धार्मिक चश्मे से देखें तो बीजेपी और कांग्रेस का हिंदू वोट है जबकि तृणमूल कांग्रेस और लेफ्ट के पास मुस्लिम वोट हैं। इसलिए टीएमसी और लेफ्ट फिर एक दूसरे का वोट काटने का काम करेंगे। वहीं पिछले चुनाव में बीजेपी को भारी बढ़त मिली थी जिसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि पश्चिम बंगाल में कमल खिल सकता है।
पश्चिम बंगाल की विधानसभा चुनाव पर नजर डालें तो साल 2016 के विधानसभा चुनाव में कुल 293 सीटों पर चुनाव लड़े गए थे जिसमें से तृणमूल कांग्रेस के खाते में 211 सीटें आयी थी जबकि कांग्रेस के खाते में 44 सीटें, लेफ्ट को 32 सीट और बीजेपी को सिर्फ 3 सीटों पर संतोष करना पड़ा था लेकिन पिछले 5 सालों में पश्चिम बंगाल में राजनीतिक समीकरण तेजी से बदलते नजर आ रहे हैं। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कुल 40 सीटों में से तृणमूल ने 22 सीटें जीती थी जबकि बीजेपी ने 18 और कांग्रेस 2 पर सिमट गई जबकि लेफ्ट लोकसभा में अपना खाता भी नहीं खोल पाया। लोकसभा चुनाव को अगर आधार बनाया जाए तो बीजेपी को बढ़त मिल रही है।
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने लेफ्ट का किला ध्वस्त कर सत्ता हासिल की थी और 10 साल तक उन्होंने पश्चिम बंगाल की बागडोर संभाली लेकिन इन 10 सालों में देश ने बहुत विकास किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश ने बहुत कुछ पाया। अगर युवाओं की बात करें तो प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें देश को देखने का एक नया नज़रिया ही दे दिया है जिसके बाद अब पश्चिम बंगाल की जनता बीजेपी को एक अवसर के तौर पर देख रही है और ऐसी उम्मीद जता रही है कि बीजेपी अगर सत्ता में आती है तो शायद पश्चिम बंगाल का भी भला हो जाए।
Dalali band kar do kutto