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परिवर्तन का लक्ष्य ‘परम वैभव!’

परिवर्तन का लक्ष्य ‘परम वैभव!’

by अमोल पेडणेकर
in जून -२०१४, राजनीति
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भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में अब तक के सब से प्रदीर्घ और सब से अधिक मतदाताओं के 16वीं लोकसभा के चुनाव का राष्ट्रीय उत्सव हाल में सम्पन्न हुआ। 16 मई को इसके परिणाम भी जनता के सामने आ चुके हैं। भारत की जनता ने भारतीय जनता पार्टी को भारी सफलता दिलाई है। इस परिणाम ने एक ही झटके में कई लोगों की हेकड़ी उतार दी है। सोनिया गांधी, राहुल गांधी से लेकर मायावती, मुलायम सिंह, लालू यादव, नितीश कुमार, शरद पवार तक अनेक विरोधियों के समक्ष तारे गिनने वाला निर्णय जनता ने दिया है। भारतीय जनता पार्टी और सहयोगी दलों के पक्ष में — सीटें देकर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। इसके पूर्व इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, विश्वनाथ प्रताप सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर चुनाव लड़े गए हैं। लेकिन इस बार के चुनाव में भाजपा के प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी का करिश्माई नेतृत्व काम आया है। उन्होंने अपनी नेतृत्व किमया से जनता के वोट भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में करने का चमत्कार किया है। मोदी का नेतृत्व राष्ट्रीय स्तर पर आते तक भाजपा की अवस्था व मोदी के राष्ट्रीय नेतृत्व स्वीकार करने के बाद देश के भाजपा कार्यकर्ताओं और मतदाताओं में संचारित उत्साह दोनों हमारे समक्ष हैं।

भारतीय लोकतंत्र को मजबूत बनाने वाली सामान्य जनता के रूप में जो मतदाता हैं उनका औचित्यपूर्ण उपयोग करने वाला नरेंद्र मोदी का नेतृत्व है। अंग्रेजी में इसे ारीीशी कहते हैं, जबकि भारतीय भाषाओं में हम ‘सामान्य जनता’ कहते हैं। ‘मासेस’ की अपेक्षा हमारा ‘जनता’ शब्द अधिक उचित और आदर बढ़ाने वाला है। देशहित, समाजहित, संस्कृति, शिक्षा, सम्पत्ति, जीवन स्तर के बारे में जनता की सामुदायिक भावना होती है। वह अच्छी भी होती है या अनिष्ट भी। इस समुदाय को हम जनता हैं और हमारी सामुदायिक भावना का मूल्य है इसका स्मरण हुआ कि उस अच्छी-बुरी भावना में एक शक्ति पैदा होती है। प्रभावी व कुशल नेतृत्व गुण रखने वाला नेता अपनी इच्छा के अनुसार जनता की भावनाओं को अच्छा या बुरा दोनों प्रकार का मोड़ दे सकता है। जनता के मनोविज्ञान के अनेक उदाहरण अपने देश में प्राचीन काल से मौजूद हैं। जनता का मनोविज्ञान जानने वाला नेता अपनी इच्छा के अनुसार जनता को सन्मार्ग की ओर ले जा सकता है। श्रीकृष्ण, शिवाजी, राणा प्रताप, लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी आदि महापुरुषों को जनता का मनोविज्ञान बेहतर ढंग से मालूम था। आज भारत हित की दृष्टि से मोदी वही परम्परा उचित ढंग से आगे बढ़ाते दिखाई दे रहे हैं।

पिछले दस वर्षों में देश में जो अराजकता रही उसे देखें तो देश को दिशा व नीति देने वाले नेतृत्व की आवश्यकता थी। मनमोहन सिंह अत्यंत ‘क्षीण’ नेतृत्व साबित हुए। इससे यह आशंका पैदा होती है कि उन्होंने सोनिया गांधी की ‘कठपुतली’ के रूप में ही कहीं दस साल तक तो देश की बागडौर नहीं सम्हाली? 2जी घोटाला, कोयला घोटाला जैसे भारतीय अर्थव्यवस्था को संकट में डालने वाले कई घोटाले कांग्रेसियों या उनके गुर्गों ने किए। महंगाई, बेरोजगारी, अपराधों में वृद्धि करने वाले मुद्दे तो सामान्य जनता के लिए समस्या और अस्वस्थता का कारण बने। आम जनता जब अनेक समस्याओं से जूझ रही थी तब अनेक कांग्रेस नेता विभिन्न भ्रष्टाचारों के जरिए ‘आत्मसमृद्धि’ की ओर बढ़ रहे थे। इस स्थिति में, कांग्रेस ने देश में एक तरह की निराशा के वातावरण को जन्म दिया और यह स्वर देशभर में उभरने लगा। ‘कांग्रेस हटाओ, देश बचाओ’ के लिए सशक्त विकल्प के रूप में सम्पूर्ण देश भाजपा के नेतृत्व की ओर देख रहा था। ऐसी स्थिति में भाजपा नरेंद्र मोदी के समर्थ नेतृत्व में आशा की किरण के रूप में देश के समक्ष उपस्थित हुई। संकट के समय देश की आवश्यकता के रूप में सामने आए नरेंद्र मोदी जन आकांक्षा का केंद्र बनकर उभरे। भाजपा के प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में उनका कथन समस्या की चीरफाड़ करने वाला तथा भीषण समस्या का विकल्प पेश करने वाला रहा। इससे भाजपा के कार्यकर्ताओं में जोरदार उत्साह का संचार हुआ। वही उत्साह ‘सुनामी’ में परिवर्तित होकर देश की राजनीति में प्रभावी परिणाम देने वाला साबित हुआ।

देशभर में पिछले चार माह में हुई सैंकड़ों सभाओें में लाखों की संख्या में लोग मोदी के विचार सुनने के लिए आते थे। इसका अर्थ यह है कि कांग्रेस के विरोध में और मोदी के समर्थन में एक जन-लहर इन सभाओं में परिलक्षित हो रही थी। इस लोकसभा चुनाव में भाजपा के विरोधी लगभग सभी दलों ने नरेंद्र मोदी के विरोध में साम्प्रदायिकता का भय जनता के मन में पैदा करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। राहुल गांधी ने गरीब- मजदूर जनता को रोजी-रोटी का वास्ता दिया। लेकिन राहुल गांधी के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था कि स्वाधीनता के बाद देश में दुःख और गरीबी निर्मूलन का बीड़ा कांग्रेस ने ही तो उठाया था! ‘गरीबी हटाओ’ के नारे दिए थे। इसमें पिछले 60 वर्षों में कांग्रेस क्यों विफल रही? देश की जाग्रत जनता इस बार कांग्रेस की बहानेबाजी में नहीं आई। गरीब जनता के मन में उभरे बुनियादी प्रश्नों के उत्तर राहुल गांधी के पास नहीं थे। सोनिया गांधी व उनके सहयोगी नेताओं ने पिछले गुजरात विधान सभा चुनावों के समय मोदी की ‘मौत के सौदागर’ कहकर नकारात्मक छवि बनाने की कोशिश की। आज वही व्यक्ति भारतीय जनता के हृदय सिंहासन पर आसाीन हैं। कांग्रेस ने भाजपा के के विरोध में भरपूर हवा बनाने की कोशिश की; लेकिन जनता ने भाजपा की विचारधारा व प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के पक्ष में अपना वजन रखा। जनता ने इस बात का भी ध्यान रखा कि हिंदू हितों की रक्षा करने वाली कांग्रेस की सरकार नहीं है। देशहित के साथ हिंदू समाज के हितों की रक्षा करने के लिए समाज जागरूक होने का चित्र आज परोक्ष रूप से दिखाई दे रहा है। इस चुनाव में कांग्रेस द्वारा उपस्थित साम्प्रदायिकता के मुद्दे को जनता ने साफ तौर पर नकार दिया है। भविष्य में रोजगार, शिक्षा, विकास, राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे अनेक महत्वपूर्ण मुद्दों पर आश्वस्त करने वाले नरेंद्र मोदी को जनता ने जनादेश दिया है।

तीसरे मोर्चे के बारे में कहना हो तो 11 दलों के गठबंधन से बने इस मोर्चे में प्रत्येक दल के नेता को प्रधान मंत्री बनने के सपने आ रहे थे। अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए एकजुट होने का प्रयास करने वाले इस स्वार्थी मोर्चे को नकार कर जनता ने अपने दायित्व का निर्वाह किया है ऐसा लगता है। जनता ने विश्वास के साथ दिल्ली की जिम्मेदारी ‘आप’ के अरविंद केजरीवाल को सौंपी थी। लेकिन प्रतिष्ठा का बहाना बनाकर केजरीवाल ने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। 49 दिन चली इस सरकार ने दिल्ली की जनता को भ्रमित करने का प्रयास किया। मोदी को रोकने का इरादा लेकर अब वे राष्ट्रीय राजनीति में उतरे; लेकिन उनका छिपा एजेंडा अस्थिरता निर्माण करना ही था। राजनैतिक स्थिरता को स्पष्ट मत देना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है, इसे जनता ने जान लिया। चुनाव प्रचार के दौरान लगातार चपत खाने वाले अरविंद केजरीवाल के मुंह पर परोक्ष रूप से जनता ने मानो चांटा ही जड़ दिया है।

लोकसभा चुनाव में अब जनता के जनादेश के आधार पर भाजपा व सहयोगी दल सरकार बनाने वाले हैं। पिछले 25 वर्षों में विभिन्न अवसरों पर आई सरकारों की स्थिति पर गौर करें तो दिखाई देगा कि देश की जनता के समक्ष अत्यंत कटु अनुभव है। संयुक्त मोर्चा या राष्ट्रीय मोर्चा की सरकारें बैसाखियों का सहारा हटते ही धराशायी हो गई थीं। देवेगौड़ा और इंद्रकुमार गुजराल की सरकारें दो साल भी पूरी नहीं कर पाईं। अटलजी की एनडीए सरकार और मनमोहन सिंह की सरकारें स्थिर रह सकीं। सत्य यह है कि बड़े राष्ट्रीय दलों के नेतृत्व में जो सरकारें बनती हैं वे राजनीतिक स्थिरता प्रदान करने में सफल होती हैं। दुर्भाग्य से मनमोहन सिंह ने स्थिर सरकार तो दी लेकिन देश को अस्थिर बना दिया। इससे स्पष्ट होगा कि देश में स्थिर सरकार होने पर देश में स्थैर्य आता है ऐसा नहीं है। फिलहाल मनमोहन सिंह सरकार ने देश को जिस अस्थिरता की खाई में ढकेला है उसे देखें तो लगता है कि नरेंद्र मोदी सरकार को आरंभ से ही अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। भारतीय अर्थव्यवस्था में चैतन्य निर्माण करने के लिए उचित निर्णय करना जरूरी है। केंद्र की नई सरकार को बुनियादी सुधारों के लिए तेजी से कदम उठाने होंगे। प्रशासकीय ढांचा कार्यकुशल व तत्पर बनाना होगा। विलम्बित व रुकी हुई योजनाओं को तेजी से कार्यरत करना होगा। ईंधन क्षेत्र में सब्सिडी को तर्कसंगत बनाना होगा। इसके साथ ही मंत्रिमंडल स्तर पर उचित तालमेल व प्रशासकीय प्रतिबद्धता कायम करना जरूरी होगा। उम्मीद है कि नरेंद्र मोदी सरकार विकास दर बढ़ाने में सफल होगी और भारतीय जनता के जीवन स्तर में आई निराशा को चैतन्यपूर्ण बना सकेगी।

भारतीय स्वाधीनता के बाद अनेक सरकारें आईं लेकिन कष्टप्रद जीवन जीने वाले लोगों की संख्या में कोई कमी नहीं आई और उसमें इजाफा ही हुआ। सरकारें आईं गईं लेकिन जनता के जीवन में परिवर्तन लाने की गति धीमी ही रही। इसी कारण मतदान के बारे में उदासीनता की भावना लोगों के मन में निर्माण हुई। इस बार भाजपा के प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने ‘विकास पुरुष’ के रूप में भारतीय जनता में आशा का संचार किया है। भारतीय जनता को एक तरह का विश्वास प्राप्त हुआ है। मतदान में हुई वृद्धि इसीका परिणाम है। अपने सुख और समृद्धि की अपेक्षा रखने वाले करोड़ों लोगों ने भाजपा पर विश्वास प्रकट किया है। भाजपा को वोट देने पर अपने देश में, समाज में, व्यक्ति के जीवन में खुशहाली आएगी, शांति आएगी यह जनता की सामान्य अपेक्षा है। इसी कारण जनता ने परिवर्तन के रूप में भाजपा को भरपूर सफलता दिलाई है। सत्ता चलाने वालों को यह अवश्य ध्यान रखना होगा कि इस परिवर्तन की दिशा और आधार क्या है? केवल वर्तमान विजय का आनंद मनाने तक ही यह सीमित नहीं है। जब हम परिवर्तन की बात करते हैं तब वह राष्ट्र, समाज व व्यक्ति के जीवन में विवेकपूर्ण बदलाव करने वाला होना चाहिए। केवल सरकार बदलने के लिए नहीं, अपना जीवन स्तर बदलने के लिए इस बार मतदान हुआ है। यह चुनाव भारतीय जनता की अपेक्षाएं बढ़ाने वाला था। इसीके साथ भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, औद्योगिक, राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में गौरवास्पद परिवर्तन की उम्मीद भी है। पूरी दुनिया में भारत का नाम आदरपूर्वक लिया जाए यह हमारा सपना है। यह सपना डॉ. हेडगेवार समेत अन्य ने देखा है। इस परिवर्तन में उनके विचारों का भी अमूल्य योगदान है। क्या यह परिवर्तन भारत को ‘परम वैभव’ की ले जाने वाला सिद्ध होगा? इस प्रश्न का उत्तर भी शायद इसी परिवर्तन में छिपा होगा!
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