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संघ समर्पित किसनलाल मिगलानी

संघ समर्पित किसनलाल मिगलानी

by विशेष प्रतिनिधि
in अगस्त-२०१४, व्यक्तित्व
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किसनलाल मिगलानी उम्दा व्यक्तित्व के धनी हैं। उमर 64 वर्ष की है, पर हौसला युवाओं का है। उनके पूरे व्यक्तित्व में पंजाबी भाव झलकते हैं। बात करते वक्त चेहरे पर मुस्कान लाकर जोरदार आवाज में अपनी बात कहना उनका स्वभाव है। उनके सारे व्यक्तित्व से पंजाबी संस्कृति झलकती है। वह उनकी बातों के साथ कर्तृत्व में भी दिखाई देती है। भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद ग्वालियर में बसे किसनलाल मिगलानी ने शून्य से शिखर तक का प्रवास किया है। ऑटोस्पेअर पार्ट इंडस्ट्री में किसनलाल मिगलानी द्वारा स्थापित महाराष्ट्र मोटर कंपनी का बड़ा नाम है। बजाज कंपनी को स्पेअर पार्ट्स देनेवाले वेन्डर के रूप में उनकी अपने कार्य क्षेत्र में पहचान है। विभाजन के बाद ग्वालियार आने पर वहां की संघ शाखा में उनको अटल बिहारी वाजपेयी का सहवास प्राप्त हुआ। अपने जीवन के संघर्ष और सुनहरे पलों को किसनलाल मिगलानी कुछ इस प्रकार बताते हैं।

मेरा जन्म 1940 में पाकिस्तान में हुआ। मेरे पिताजी भगवान दास संस्कारी विचारों के थे। उन्हीं का असर मेरे संपूर्ण व्यक्तित्व पर अब तक रहा। विभाजन के पूर्व पाकिस्तान में मैं बाल स्वयंसेवक के नाते संघ की शाखा में रोज जाता था। मेरे घर के संस्कार और संघ संस्कार दोनों का गहरा असर मेरे मन-मस्तिष्क पर हो रहा था। परंतु समय कुछ अलग ही सोच रहा था। भारत-पाकिस्तान का विभाजन हुआ, इस स्थिति में हमें पाकिस्तान में हमारा सब कुछ छोड़ कर भारत आना पड़ा। हम अपनी संपत्ति, घर, खेती सब कुछ पाकिस्तान में छोड़ आए। हमारे पास थी, सिर्फ हमारी बची हुई जिन्दगी और हमारे परिवार के संस्कार।

भारत आने के बाद हमारा परिवार ग्वालियार में बस गया। परिवार चलाने के लिए कठोर संघर्ष हम सभी को करना पड़ रहा था। जैसे मैंने कहा कि, हम अपने साथ संस्कार भी लेकर आए थे। उन्हीं संस्कारों के बल पर मैं ग्वालियार में संघ शाखा से पुन: जुड़ गया। यह मेरी खुशकिस्मती थी कि अटल बिहारी वाजपेयी हमारी शाखा के नियमित स्वयंसेवक थे। त्रानेकर हमारे प्रचारक थे। उनके ही संस्कारों में मैंने अरुण अवस्था से युवा अवस्था तक का प्रवास किया। संघ कार्य में मन प्रसन्न रहता था। घर की समस्याओं पर संघ कार्य यह एक अच्छा उपाय मैंने ढूंढ लिया था। मुझे जैसे संघ कार्य का चस्का ही लग गया था। विभाजन के बाद अपना अस्तित्व सुधारने में लगे परिवार के लोग मुझे पागल ही कहते थे। जो कार्य हाथ में लिया उस कार्य को समर्पण भाव से करना ही मेरा स्वभाव था।

लेकिन हमारे प्रचारक त्रानेकर मेरी परिवारिक स्थिति पर ध्यान दे रहे थे। उन्होेंने ही मुझे अपने परिवार के लिए इसी समर्पण भाव से कार्य करने का आदेश दिया। मैने उनके आदेश को समझकर एक कम्पनी में सेल्समन और ड्रायवर की नौकरी संभाल ली। वह कम्पनी हिरा कोला सोडा बॉटल्स नाम से शीत पेयों की बिक्री करने वाली कम्पनी थी। मेरा मन ड्रायवर की नौकरी में सिर्फ गाड़ी चलाने में संतुष्ट नहीं था। मैंने साथ में सेल्समैन का भी कार्य करना भी शुरू किया। मुझ में लोगों से सम्पर्क रखने की एक खूबी थी। पहले वर्ष में ही मैंने पचास लाख रुपये का धंधा किया। दूसरे वर्ष में एक करोड़ पच्चीस लाख का बिजनेस किया। तीसरे वर्ष में एक करोड़े पचास लाख का बिजनेस दिया। उस समय यह रकम बहुत बड़ी थी। मेरे काम करने की पद्धति को देखकर कम्पनी के मालिक ने मेरा वेतन भी दस हजार के आसपास कर दिया। साथ में कमीशन भी मिलता था। लेकिन मेरा मन कुछ और ही सोच रहा था। मेरा कार्य मुझे मेरे अंदर की ऊर्जा का परिचय दे रहा था। मैेंने उसी समय खुद का व्यवसाय शुरू करने का निर्णय लिया। जब मैंने उस कम्पनी को अलविदा कहा तब मुझे कानपुेर रेल्वे स्टेशन पर छोड़ने के लिए तीन सौ डिस्ट्रुब्युटर्स और कम्ेपनी के मालिक भी आए थे।

मोदी सरकार आने से मै बहुत खुश हूं। मेरे आध्यात्मिक गुरु स्वामी समित्रानंद जी हैें। उनसे मैं हमेशा मिलते रहता हूं। उनसे मिलने पर मेरे मन की बात मैं उनके सामने रखता हूं। आठ-नौ महीने पहले उन से मिलने गया था। उस समय देश की पीड़ा के विषयों को लेकर मैं संभ्रम मेें था। देशभर में आंदोलन, लाठी चार्ज, बलात्कार, महंगाई, आदि घटनाएं मन को पीड़ा दे रही थीं। मैंने इसी संदर्भ में स्वामी जी से प्रश्न किया। देश की दशा ओर दिशा इतनी खराब है यह कब सुधरेगी? राम-राज कब आएगा? तब स्वामी समित्रानंद जी ने मुझे कहा था इस बार मोदी बहुमत से जीतेंगे और चौदह साल तक राज करेंगे। नरेंद्र मोदी भारत को राम-राज्य जैसा करेंगेे। बड़ी निष्ठा से देश की जनता की सेवा में अपना जीवन अर्पित करेंगे। नरेंद्र मोदी यह साक्षात भगवान द्वारा भेजा गया देवदूत हैं। जो कभी अपने बारे में सोचता नहीं है। उसे चिंता है तो देश के गरीबों की, किसानों की, जवानों की। स्वामी जी की बातें शब्दश: सच हो रही हैं। हमें पूरा विश्वास है कि राम राज्य आएगा ही।

आगे जबलपुर में मैंने अपना ऑेटोस्पेअर पार्ट का उद्योग शुरु किया। मैं हमेशा स्पेअर पार्ट खरीदने के लिए मुंबई आता था। मुंबई की गति को मैं महसूस करता था। इस मायानगरी में अपना भी एक स्थान होना चाहिए ऐसा विचार मेरे मन में आया। इसी इरादे से मुंबई में दो मुसलमान भाइयों से मैंने उद्योग में पाटर्नरशिप की। मेरे काम का तरीका देखकर साह और संघवी कम्पनी के मालिक संघवी ने मुझे उद्योग में बड़ा सहयोग दिया। इसी उद्योग के सिलसिले में मुंबई में वेद प्रकाश गोयल से मेरा परिचय हुआ। परिवारिक संबंध बढ़ते गए। अटल बिहारी वाजपेयी के मुंबई प्रवास में आने पर अक्सर उनके घर निवास करते थे। वेद प्रकाश गोयल से परिचय होने के बाद मेरे पुराने प्रिय मित्र अटल बिहारी वाजपेयी फिर मिल गए। तब तक राजनैतिक-सामाजिक, स्तर पर वे बहुत बड़े व्यक्ति हो गए थे। लेकिन हमारी मित्रता में इस बात से रुकावट कभी नहीं आई। परिचय बढ़ता गया, जब भी वे वेद प्रकाश गोयल के घर आते थे, तब-तब मैं वहां उनकी सेवा में होता था।

मैंने विभाजन का दुख झेला है। विभाजन की तीव्र वेदना महसूस की है। फिर भी मुसलमानों के प्रति द्वेष की भावना कभी भी मन में नहीं रही। मुंबई आते ही मेरे उद्योग की हिस्सेदारी मुसलमानों से ही रही। मेरे दो मुसलमान हिस्सेदार और मुझमें इतना स्नेह था कि हम एक दूसरे के परिवार का हिस्सा बन गए थे। मेरा ड्रायवर भी मुसलमान है। वह गत चालीस सालों से साये की तरह मेरे साथ है। हम दोनों में मित्रता का नाता है। मैंने उन्हें कभी भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ क्या है यह नहीं बताया। परंतु मेरे व्यवहार से वे संघ कार्य की भव्यता को महसूस कर रहे थे। अटल बिहारी वाजपेयी ने भी मेरे इस व्यवहार को देखकर कहा था, ये मुसलमान द्वेष करने से विश्वास पात्र नहीं होंगे। हमें उनसे आपसी लगाव से, व्यवहार से ही विश्वास बढ़ाना है। किसनलाल, आप छोटे स्वरूप में यही कर रहे हो।’ अटलजी के इस विचार से मेरा आत्मविश्वास और बढ़ गया। अटल बिहारी वाजपेयी जब-जब वेद प्रकाश गोयल के यहां उतरते थे तो उनकी सेवा का मौका जरुर लेता था।

एस. के. फिरोदिया बजाज के प्रमुख थे। उन्होंने बहत्तर डीलरों को इंटरव्यू के लिए बुलाया था। पर उन बहत्तर डीलरों में से उन्होंने सिर्फ मेरा ही चयन किया और मुझे बजाज की डीलरशिप दी। एस. के. फिरोदिया ने बजाज की डीलरशिप मुझे ही क्यों दे दी? मुझ पर ही इतनी बड़ी जिम्मेदारी क्यों दे दी? ऐसे विचार मन में आते थे। तब एक ही बात स्पष्ट होती थी। संघ संस्कार व्यवहार में भी असर दिखाता है। शायद एस. के. फिरोदिया ने मेरे अंदर के इस संस्कार को महसूस किया होगा। आज भी हम एस. के. फिरोदिया के पुत्रों से जुड़े हैं। आज हम बजाज टेम्पो के नंबर वन वेन्डर हैं। आज मैं अपने कार्य से निवृत्त हूं। मेरे परिवार के अन्य सदस्य उद्योग को सफलता से आगे बढ़ा रहे हैं। लेकिन पीछे मुड़ कर देखता हूं तो दिखता है कि पाकिस्तान से विस्थापित होकर आए हुए, पूरी तरह से ध्वस्त हो चुके परिवार का मैं एक सदस्य था। जब यह सोचता हूं कि मुझ में यह सब करने का विश्वास कैसे आया तो संघ विचारों को, संघ संस्कारों को सामने पाता हूं। मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक होने के नाते गर्व का अनुभव करता हूं।

 

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