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राष्ट्र संगठन का वैचारिक अधिष्ठान-डॉ. हेडगेवार

राष्ट्र संगठन का वैचारिक अधिष्ठान-डॉ. हेडगेवार

by अमोल पेडणेकर
in अप्रैल -२०२१, विशेष, व्यक्तित्व
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डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी ने अपने लिए कहीं कोई घर नहीं बनवाया; संपूर्ण हिंदुस्थान उनका घर बन गया। उन्होंने अपनी मातृभूमि को परम वैभव तक ले जाने का संदेश राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माध्यम से दिया। आज विभिन्न क्षेत्रों में करोड़ों स्वयंसेवक उसी मार्ग पर चल रहे हैं।

जो महापुरुष इतिहास के अंग बन कर रह जाते हैं उनका मूल्यांकन करना कठिन कार्य नहीं है; परंतु जो अपने जीवन काल के बाद पीढ़ियों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं, वर्तमान एवं भविष्य के घटनाक्रमों में प्रासंगिक एवं प्रभावी बने रहते हैं ऐसे असामान्य व्यक्तित्व का मूल्यांकन भविष्य का इतिहास ही कर सकता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक परम पूजनीय डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का जीवन इसी श्रेणी में आता है।

स्वाधीनता आंदोलन में डॉ. हेडगेवार की भागीदारी थी, परंतु उनका चिंतन भारत की स्वतंत्रता के प्रश्न तक ही सीमित नहीं था। वे जीवन भर इन प्रश्नों का समाधान खोजते रहे कि प्राचीन भारतीय राष्ट्र का प्रभाव क्यों खत्म हो रहा है? और, भारत सबल एवं संगठित राष्ट्र कैसे बनाया जा सकता है? उनके चिंतन का निष्कर्ष यह था कि राष्ट्र के हित, पुनर्निर्माण एवं संगठन के लिए किया गया कार्य ईश्वरीय कार्य होता है। इसी भाव को लेकर उन्होंने 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज एक विशाल वटवृक्ष का रूप धारण कर चुका है, जिसकी शाखाएं, प्रशाखाएं राष्ट्र जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मौजूद हैं। वे इतनी विशाल रूप धारण कर गई हैं कि कई बार यह निर्णय करना कठिन हो जाता है कि इसमें मूल कौन है?

संघ के दैनंदिन शाखा तंत्र से संस्कार लेकर स्वयंसेवक समाज में जाते हैं। जिन्हें कल तक केवल कबड्डी, लाठी, कवायत सिखाई गई थी उनके भीतर इतनी शुद्ध प्रतिभा का प्रकटीकरण कैसे हो सकता है? इस पर विचार करें तो मालूम होता है, संघ की अपनी अनोखी चिंतन दृष्टि ही इस स्थिति का मुख्य कारण है। प्रचलित चिंतन दिशा से हट कर राष्ट्र के मूल में चिंतन की दिशा का विकास यह राष्ट्रीय   स्वयंसेवक संघ के निर्माता डॉ. हेडगेवार जी की विशेषता है। संघ में कहा जाता है कि डॉ. हेडगेवार जी ने अपने जीवन बीज को देशरूपी मिट्टी में मिला कर संघ को संस्कारित किया है। इसलिए संघ के वर्तमान कार्य में डॉ. हेडगेवार के मानस का प्रतिबिंब मिलता है। डॉ. हेडगेवार को जाने बिना संघ को समझना कठिन है।

आज अगर हम संघ के कार्य को देखेंगे तो डॉ. हेडगेवार का मानस क्या था, इसकी झलक हमें मिलती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा प्रारंभ करने से पहले डॉ. हेडगेवार जी स्पष्ट रूप से जानते थे कि संपूर्ण हिंदू समाज को संगठित करने का तरीका क्या है, और उसके परिणाम क्या होंगे। उनकी दूरदृष्टि अलौकिक थी। संघ स्थापना की घोषणा करने के अलावा उन्होंने दूसरा कुछ नहीं किया। केवल यह घोषित कर संघ की बैठक समाप्त कर दी कि आज से संपूर्ण हिंदू समाज को संगठित करने वाला यह संघ प्रारंभ हुआ है। डॉ. हेडगेवार जी की दृष्टि राष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान को पुनर्स्थापित करने की थी। इसीको उन्होंने ’हिंदू राष्ट्र’ की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक शब्दावली द्वारा अभिव्यक्त किया। उनका लक्ष्य राष्ट्रीयता का स्थायी एवं चिरंतन भाव प्रकट करना था। राष्ट्र एवं समाज विकास के प्रयासों में सबसे महत्वपूर्ण और जीवंत घटक व्यक्ति होता है। वहीं राष्ट्रीय परंपरा, पहचान, इतिहास और संस्कृति का संवाहक होता है। अतः डॉक्टर जी के सिद्धांतों एवं आदर्शवाद पर चलने वाला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ खड़ा हुआ।

डॉ. हेडगेवार ने अपने बीज विचारों से साफ कर दिया था कि गणवेश, खेलकूद एवं विभिन्न कार्यक्रमों के रूप में दिखने वाला संघ सिर्फ अर्धसैनिक संगठन अथवा हिंदू संरक्षक दल नहीं है, बल्कि वह एक वैचारिक आंदोलन है, जिसका लक्ष्य संपूर्ण हिन्दुओं को संगठित करना है। उन्होंने संघ के कार्य को राज्य सत्ता एवं राष्ट्र के किसी एक आयाम तक सीमित नहीं रखा; बल्कि संपूर्ण समाज और राष्ट्र के विकास को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य क्षेत्र बना दिया। इसके पीछे डॉक्टर जी का विचार था कि किसी एक उपलब्धि अथवा उद्देश्य की पूर्ति से संघ के संगठन कार्य में विराम नहीं लगना चाहिए। संघ संगठन को समाज और राष्ट्र जीवन से जोड़ कर उन्होंने संघ कार्य को जीवन का एकमात्र कार्य बनाने का आग्रह किया था।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में संघ के कार्यक्रम होते हैं। वहां एक व्यक्ति आदेश देता है ’संघ उत्तिष्ठ’। सब लोग खड़े हो जाते हैं। ’संघ उपविश’ का आदेश मिलते ही सब लोग बैठ जाते हैं। अनुशासन का प्रवाह संघ की शाखा से संस्कारित होकर आज देश के विभिन्न क्षेत्रों के विकास में अपना योगदान दे रहा है। ऐसे संस्कारों के साथ संघ अकेला बड़ा हो गया तो कौन सी बड़ी बात है? इतिहास में संघ के स्वयंसेवक यह लिखवा देना नहीं चाहते कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कारण देश का उद्धार हुआ है। संघ यह लिखवाना चाहता है कि इस देश में एक ऐसी पीढ़ी संघ के प्रयासों से निर्माण हुई है जिसने अपने देश को पूरी दुनिया का गुरु बनाने का निर्णय किया है। संघ सारे समाज में कर्तव्य का बोध जागृत करने की इच्छा रखता है। संघ का कार्य शब्द के द्वारा नहीं, जीवित संपर्क से फैल रहा है। संघ ने बौद्धिकता या शब्दाचार  पर नहीं, अपितु प्रत्यक्ष आचरण पर बल दिया है। इसलिए संघ का सूत्रवाक्य रहा है, एक दीप से जले दूसरा, ऐसे अगणित हुए।

शिक्षा, वनवासी, राजनीतिक, कर्मचारी संगठन, भारतीय संस्कृति-परंपरा, भारतीय भाषाओं में रूचि, पाठ्यपुस्तकों में सुधार, राम मंदिर का पुनर्निर्माण, भारत की शाश्वत महान हिंदू आध्यात्मिकता जैसे विभिन्न क्षेत्रों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने कार्य स्वतंत्र रूप में खड़े किए हैं। स्वयंसेवकों ने बड़े पैमाने पर कार्य का विस्तार विभिन्न क्षेत्रों में किया है। इतने विस्तार के बावजूद उन सभी उपक्रमों में एकसूत्रता दिखाई देती है। इन सभी कार्यों में संघ की विचारधारा दिखाई देती है। सभी पर संघ का नियंत्रण है ऐसी कोई बात नहीं है। यदि संघ का उन पर कोई प्रभाव है, तो वह है नैतिक। इस बारे में संघ का सूत्रवाक्य है, संघ कुछ नहीं करता, स्वयंसेवक सब कुछ करते हैं। स्वयंसेवकों द्वारा स्थापित इन संगठनों की प्रतिबद्धता संघ की विचारधारा के प्रति है।

21वीं सदी का यह भारत है। यह भारत वह भारत है जो आतंकियों से स्वयं की रक्षा के लिए सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक भी करता है। यह भारत परमाणु शक्तिसंपन्न भारत है, जो ब्रह्मोस जैसे प्रक्षेपास्त्र बनाता है। यह उन युवाओं की पीढ़ी का भारत है जो टीवी चैनलों पर रामायण, महाभारत, चाणक्य, छोटा भीम, जय हनुमान, बाहुबली जैसे नीति-मूल्यों से जुड़े कार्यक्रमों को देखते हुए बड़ी हुई है। प्रत्येक भारतीय के मन में भारत के प्रति सम्मान की प्रबल भावना है तथा वह मातृभूमि की सेवा करना चाहता है। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को एक प्रेरक के रूप में तथा अपनी भावनाओं के अनुरूप उचित मंच के रूप में देखते हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विचार हिंदुत्व का विचार है। इसका मतलब यह नहीं है कि संघ ने हिंदुत्व को खोज लिया है। हिंदुत्व तो अपने देश में परंपरा से चलता आया हुआ विचार है।  संघ इसी हिंदुत्व के आधार पर चलता है। देशभक्ति, पूर्वज गौरव और संस्कृति गौरव इसी हिंदुत्व के वैचारिक आधार पर संघ अपने विचार रखता है। यह बताते वक्त भाषा अलग-अलग होती है, माध्यम अलग-अलग होते हैं; पर विचार समान होता है। संघ मानता है कि ’हिंदुइज्म’ यह गलत शब्द है। जब ’इज्म’ शब्द आता है तो उसमें बंदिशें भी आती हैं। हिंदुत्व यह कोई ‘इज्म’ नहीं है। यह एक प्रक्रिया है, जो सदियों से चलती आई है। अन्य मतों एवं पंथों  के साथ तालमेल रखने वाला एकमात्र विचार हिंदुत्व है, और वह भारत का विचार है। कई लोग संघ को गैर-मुस्लिम मानते हैं, यह पूरी तरह से गलत है। हमारा देश हिंदू राष्ट्र है इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि मुस्लिम इसमें शामिल नहीं है। संघ का मानना है कि भारतीय मुसलमानों के पूर्वज हिंदू थे इसलिए हिंदू और मुसलमानों के पूर्वज समान है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हमेशा जोड़ने वाले पक्ष पर ध्यान देता है। भारत के मुसलमानों और ईसाइयों को इस तथ्य  और सत्य को सकारत्मक परिभाषा में समझाना चाहिए; ताकि हिंदू, मुस्लिम और ईसाइयों के बीच अच्छे संबंध विकसित हो जाए। इससे बाहरी विदेशी तत्वों द्वारा अलगाव की जो भावना मुस्लिमों में निर्माण करने का प्रयास हो रहा है वह विफल होगा। यही नहीं, यह समुदाय विदेशी षड्यंत्रकारियों और भारत विरोधी तत्वों का शिकार होने से बच जाएगा।

प्रचलित संस्कृति के नाम पर जो संस्कृति भारत की नहीं है उसे भारतीयों में स्थापित करने का षड्यंत्र होता है। इस षड्यंत्र के पीछे भारत का अहिंदूकरण करने की योजना होती है। इसलिए ये षड्यंत्रकारी उन बातों को नकारते हैं जो हिंदुत्व या हिंदू अस्मिता से जोड़ती हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इन बातों को चुनौती देता आया है। यदि हम भारतीय अपने हिंदू भाव का विस्मरण कर दें तो हम अपनी सांस्कृतिक दृष्टि खोते जाएंगे। फिर भारतीय संस्कृति क्या बची रहेगी? भारतीय जनसाधारण को साथ में लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के करोड़ों स्वयंसेवक इस षड्यंत्र के विरुद्ध दीवार बन कर खड़े हैं।

पिछले कुछ वर्षों से संघ प्रसार माध्यमों का मुख्य केंद्र बनता जा रहा है। आज के वर्तमान में देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री से लेकर अनन्य महत्वपूर्ण स्थानों पर राष्ट्र को सामर्थ्यशाली बनाने के कार्य में संघ शाखा कि नींव से निकले स्वयंसेवक अपना योगदान दे रहे है। यह संतानबे वर्ष की लंबी मौन साधना नहीं थी, प्रत्यक्ष कृति भी थी। राजनीति के क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी का बढ़ता प्रभाव, अयोध्या आंदोलन को मिला यश, आपातकाल के दौरान स्वयंसेवकों द्वारा देशहित में किया गया समर्पित योगदान समाज के विभिन्न क्षेत्रों में चल रहे हजारों सेवा उपक्रम ये सब बातें ऐसी हैं जो संघ के विराट रूप और विचारधारा का दर्शन करवाती हैं। अब तक  97 वर्षों की लंबी साधना के फलस्वरूप जाति-भाषा, धनी-निर्धन और शिक्षित-अशिक्षित के भेद ऊपर उठ कर अखिल भारतीय भाव से समाज को पुन: पुनर्स्थापित करने का प्रयास संघ के माध्यम से हो रहा है। आज भारत के लोग यथार्थ को समझने लगे हैं। आज संघ विचारधारा देश में अत्यंत प्रभावी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अब भारत के सार्वजनिक, राजनैतिक, आध्यात्मिक मंचों पर केंद्र में खड़ा है। आज जब संघ कार्य अपने नब्बे दशक पूर्ण करके शतक की ओर बढ़ रहा है तब समाज एक ओर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के व्यक्ति निर्माण कार्य का आदर्शवाद देख रहा है तो दूसरी ओर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचार-दृष्टि की अचूकता और सार्थकता का प्रत्यय देश को आ रहा है। देश अनुभव कर रहा है, भविष्य की योजनाओं एवं प्रयासों का सूक्ष्म चिंतन तथा संघ कार्यकर्ताओं द्वारा दिया जाने वाला प्रेरणादायी योगदान, ये संघ की विशेषताएं हैं। भविष्य में भारत इसे और अधिक उत्कटता से समझने का प्रयास करेगा। महानता शारीरिक शक्ति में नहीं, नैतिक शक्ति में होती है। डॉ. हेडगेवार जी के पास नैतिक शक्ति का भंडार था। उन्होंने अपने लिए कोई घर खड़ा नहीं किया; संपूर्ण हिंदुस्तान उनका घर बन गया।

डॉक्टर जी का कहना था कि हिंदू समाज को हमें  संगठित करना है। इसमें अपना अलग संगठन नहीं खड़ा करना है। सिर्फ सबको संगठित करना है। राष्ट्र एवं समाज संगठित करने के कार्य के अलावा हमें अन्य कोई काम नहीं करना है। क्योंकि, ऐसा समाज खड़ा होने के बाद जो होना चाहिए वह अपने आप हो जाएगा। इसके लिए कुछ और नहीं करना पड़ेगा। देश के प्रत्येक गांव में, प्रत्येक गली में, मोहल्ले में अच्छे नागरिकों जैसा आचरण होना आवश्यक है। संघ की  योजना प्रत्येक गांव, प्रत्येक गली में अच्छे स्वयंसेवक निर्माण करने की है। यह योजना 1925 में संघ के रूप में डॉ. हेडगेवार जी ने   प्रारंभ की है। संघ बस इतना ही है और ज्यादा कुछ नहीं है। संघ का काम अनोखा काम है। डॉ. हेडगेवार के मार्ग पर स्वयंसेवक अपना काम करते रहते हैं। वे प्रचार प्रसिद्धि के पीछे भागते नहीं। संघ शक्ति जैसे-जैसे बढ़ती है, वैसे-वैसे उनका प्रभाव अपने आप बढ़ने लगता है। प्रसार माध्यमों का ध्यान संघ की ओर जाता है,  लोगों की चर्चा में संघ आता है, ऐसे में संघ को जानने का लोग प्रयास करते हैं। कोई भी काम बढ़ता है तो वह एक शक्ति का स्वरूप बन जाता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ क्या है? वह है डॉ. हेडगेवार द्वारा दी हुई कार्यप्रणाली। उसी कार्यप्रणाली पर चलने वाला, राष्ट्र के विकास में अपना सकारात्मक योगदान देने की मनीषा रखने वाला यह संगठन है। डॉ. हेडगेवार निर्मित संघ इतना ही है। जो आने वाले 3 सालों में अपने 100 साल पूरे करके भविष्य के भारत को विश्व गुरु बनाने के अपने कार्य की ओर मार्गक्रमण करने वाला है।

एक बार दत्तोपंत ठेंगडी जी संसद भवन गए थे, तो किसी ने उनसे पूछा, यहां कई लोकप्रिय नेता हैं, लेकिन डॉ. हेडगेवार जी की उपस्थिति कहां है? तब उत्तर आया, नेताओं की लोकप्रियता उनकी परछाई से नापी जानी चाहिए। अर्थात, उनका प्रभाव इस बात से आंका जाना चाहिए कि उनकी मृत्यु के बहुत वर्षों बाद भी उनकी मान्यताओं और उनके कार्यों का अनुसरण कितने लोग करते हैं? यदि इस परछाई को लंबाई के मापदंड पर देखा जाए तो डॉ. हेडगेवार जी यहां आपको सर्वाधिक ऊंचाई पर दिखाई देंगे। डॉक्टर जी ने अपनी मातृभूमि को परम वैभव तक ले जाने का संदेश राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माध्यम से दिया था। आज विभिन्न क्षेत्रों में करोड़ों स्वयंसेवक उसी मार्ग पर चल रहे हैं।

 

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