रोहिंग्याओं की  नासूर बनती घुसपैठ

म्यांमार के रोहिंग्याओं के आतंक के कारण जिस तरह म्यांमार परेशान है, उसी तरह उनकी घुसपैठ से भारत भी त्रस्त है। भारत के दुश्मनों की शह पर इन्हें जानबूझकर भारत में घुसाया जाता है, ताकि वे शरणार्थी का रूप लेकर जिहाद के अपने असली मकसद को अमली जामा पहना सके।

रोहिंग्याओं का मसला है क्या? क्या ये हकीकत में म्यांमार में अल्पसंख्यकों पर जुल्म ढहाने का मामला है या फिर ये महज म्यामांर की बीमारी को भारत पर थोप देने का मामला है। क्या हमारे पास पहले से समस्याएं काफी नहीं हैं?

भारत में शरण हासिल करना रोहिंग्याओं का इकलौता मकसद नहीं है। बहुत सी घटनाएं हैं, जो भारत में रोहिंग्याओं की उपस्थिति पर सवाल पैदा करती हैं। सिमी और इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादी उमर सिद्दिकी और हैदर अली के मुताबिक सात जुलाई 2013 को बौद्ध गया के महाबोधी मंदिर में विदेशी पर्यटकों पर जो आतंकवादी हमला किया गया था वह म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों पर कथित अत्याचारों का बदला लेने के लिए था। यही वह गुट था, जिसने 27 अक्टूबर 2013 को गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या के लिए पटना के गांधी मैदान में बम धमाके किए थे। छह लोग मारे गए और सौ के करीब लोग इस कायराना हमले में घायल हुए।

अप्रैल 2018 में सीरिया में अल कायदा के लिए काम कर रहा ब्रिटिश रोहिंग्या आतंकवादी  समीऊ रहमान भारत भेजा गया। इसे भारत रोहिंग्या मुस्लिमों के लिए लड़ने के वास्ते युवाओं की भर्ती करने और प्रेरित करने के लिए भेजा गया। रहमान के खिलाफ आरोपपत्र में एनआईए ने कहा कि यह भारत के खिलाफ अल कायदा की साजिश थी। रहमान के संपर्क पश्चिम बंगाल, झारखंड, दिल्ली और कई अन्य राज्यों में पाए गए।

2017 सितंबर में दिल्ली पुलिस को सूचना मिली कि राजू भाई नाम का शख्स आतंकवादी हमलों की साजिश रच रहा है। बाद में इस बात का खुलासा हुआ कि राजू भाई और कोई नहीं रहमान था जो कि सीरिया के अल नुसरा गुट से जुड़ा हुआ था। रहमान को हथियारों की ट्रेनिंग मिली थी और वह अल कायदा के संपर्क में था। वह सीरियाई सेना के खिलाफ भी लड़ चुका था।

अगस्त 2019 में पुलिस ने रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय के तीन लोगों को उठाया। इनसे जम्मू शहर के चन्नी हिम्मत क्षेत्र की एक झुग्गी से बरामद किए गए तीस लाख रुपये के बारे में पूछताछ की गई। जांच में पता चला कि ये रकम दो बांग्लादेशी नागरिकों इस्माइल और नूर आलम की थी। दोनों ही जम्मू में पिछले छह माह से बिना किसी वैध दस्तावेज के रह रहे थे। जांच में ये भी पता चला कि ये पैसा कुछ देशद्रोही घटनाओं के लिए आया था।

पाकिस्तन के जिहादी आतंकवादी गुटों और रोहिंग्याओं के बीच में एक जैविक संबंध भी है, जिसका सिलसिला कुछ दशक पीछे तक जाता है। बांग्लादेश को बेस के तौर पर इस्तेमाल कर रहे इन आतंकवादियों के भारतीय जिहादियों से भी संबंध थे। इन्होंने म्यांमार के अंदर भी हमलों को अंजाम दिया।

स्वीडिश पत्रकार बर्टिल लिंटनर तीन दशक से भी अधिक समय से म्यांमार को कवर कर रहे हैं। उनका कहना है कि म्यांमार में मौजूद मुस्लिम आतंकवादी गुट को अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी के नाम से जाना जाता था। पहले इनका नाम हरकाह अल यकीन था। ये तंजीम अगस्त 2017 में उत्तरी रखाईन राज्य में पुलिस और सेना की तीस चौकियों पर हमले के लिए जिम्मेदार थी। एआरएस के विदेशी आतंकवादी गुटों से भी संबंध थे। हालांकि विदेशी तंजीमें बाद में इससे साफ तौर पर मुकर गईं।

रोहिंग्याओं का आईएसआई कनेक्शन

रोहिंग्याओं का एक गुमनाम सा आतंकवादी संगठन अका-मुल-मुजाहिदीन (एएमएम) है। इस पर 2015 में म्यामांर की सीमा की अग्रिम चौकियों पर हमले का आरोप है। इसने न सिर्फ हाफिज सईद के लश्कर ए तैयबा से संबंध बनाए, बल्कि जैश ए मोहम्मद की जम्मू-कश्मीर इकाई तक पहुंच बना ली थी।

इस तरह की भी सूचनाएं हैं कि रोहिंग्या आतंकवादी गुट कश्मीर में पाकिस्तानी चरमपंथियों के साथ मिलकर लड़ रहे हैं। पिछले साल ही जेईएम के कमांडर आदिल पठान के साथ रोहिंग्या आतंकवादियों का बड़ा नेता छोटा बर्मी भी मुठभेड़ में मारा गया था। इससे पूर्व बर्मी पाकिस्तान में हाफिज सईद के साथ मंच पर भी नजर आ चुका था।

विदेशी ताक़तें बना रही रोहिंग्याओं का भारत में रास्ता

हमने देखा कि रोहिंग्याओं के क्या आतंकी संबंध हैं। वैश्विक आतंकवाद के परिदृश्य में कौन किसका सगा है। अब हम ये देखेंगे कि रोहिंग्याओं को भारत कैसे लाया गया। इस चौकड़ी की असली कहानी बस ये थी कि इन्हें मुसीबतजदा, सताए हुए और शरणार्थी के तौर पर पेश किया जाए। साथ ही ये भी कि ऐसी किसी कोशिश पर भारत सरकार के किसी भी जवाबी कदम को नृशंस और असंवैधानिक करार दिया जा सके। और इसके लिए ये हर नए मामले के साथ संविधान की परिभाषाओं की मनमानी व्याख्या बना डालते हैं।

भारत में सिविल सोसाइटी एवं मानवाधिकार एनजीओ, तथाकथित एक्टिविस्ट और अर्बन नक्सल, जो कि आतंकवादियों को बचाने की दुकान चलाते हैं, वे रोहिंग्याओं को बसाने-बचाने में लगे हैं। ये विध्वंसक चौकड़ी भारत से रोहिंग्याओं के प्रत्यर्पण को संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 51 सी, जो सभी को आजादी एवं समान अधिकारों की गारंटी देते हैं, का उल्लंघन बता रही हैं। उनका दावा है कि यह भी रोहिंग्याओं का प्रत्यर्पण नॉन रिफाउलमेंट के सिद्धांत के भी खिलाफ है। इस सिद्धांत के तहत शरणार्थियों को उन देशों को वापस प्रत्यर्पित करने पर रोक है, जहां उनकी जान को खतरा है। इसे व्यापक स्तर पर परंपरागत अंतरराष्ट्रीय कानून का दर्जा हासिल है। हकीकत यह है कि जब आप तथ्यों के आलोक में चीजों को देखेंगे तो ये दावे और दलीलें निराधार साबित हो जाती हैं।

पहला आधार तो यही है कि चालीस हजार या इससे भी ज्यादा रोहिंग्याओं ने भारत में शरण ली है। लेकिन यह आधार पूरी तरह फर्जी है क्योंकि इनमें से कोई भी भारतीय सीमा कानूनों के तहत दाखिल नहीं हुआ है। हर रोहिंग्या ने भारत में छिपकर घुसपैठ की है, कानून की आंखों में धूल झोकी है और अब ये बराबरी का दर्जा चाहते हैं। ये भारत के प्रति शत्रुभाव रखने वाली हर ताकत से हाथ मिलाकर मानव तस्करी के नेटवर्क के जरिये आए हैं। यह किसी बड़ी साजिश की ओर इशारा करता है।

संयुक्त राष्ट्र में शरणार्थियों के उच्चायुक्त (यूएनएचआरसी) ने 2016 में रोहिंग्याओं को शरणार्थी के तौर पर पहचान पत्र प्रदान किए। ये विध्वंसक चौकड़ी इस बात को जी-जान से साबित करने में जुटी है कि ये पहचानपत्र किसी भी सूरत में भारतीय कानूनों से ऊपर हैं। विध्वंसक चौकड़ी के गैंग में शामिल बहुत से एक्टिविस्ट, पत्रकार और वकील इन रोहिंग्याओं के भारत में स्थायी निवास की पैरोकारी कर रहे हैं। ये यूएनएचआरसी के इन फर्जी पहचानपत्रों को ही अपने दावे के हक में इस्तेमाल कर रहे हैं। जबकि हकीकत यह है कि किसी भी विदेशी एजेंसी को भारत में किसी भी व्यक्ति की नागरिकता या शरणार्थी होने का पहचानपत्र जारी करने का अधिकार नहीं है। यही क्यों जम्मू-कश्मीर में संविधान का अनुच्छेद 370 खत्म होने के पूर्व तत्कालीन सरकारों ने अवैध रूप से घुसपैठ करने वाले इन रोहिंग्याओं को पाकिस्तान सीमा के निकट अति संवेदनशील इलाकों में बस जाने के लिए परमिट जारी कर दिए गए।

रोहिंग्याओं भारत के सामने वैसी ही चुनौती पेश की है, जैसी आक्रांताओं ने की थी। वो जो जानबूझकर कानून के प्रशासन की इज्जत नहीं करते। लुक-छिपकर भारत की धरती पर घुसपैठ करते हैं और उसी भारतीय संविधान के तहत सुरक्षा चाहते हैं।

यह बिल्कुल वैसा ही है जैसा यूरोपीय देशों में हो रहा है। फ्रांस, जर्मनी, बेल्जियम और ब्रिटेन जैसे देशों में इसी तरह की घुसपैठ हो रही है। यहां ये लोग गैर-कानूनी तौर पर दाखिल होते हैं और नए देश के कानून व प्रशासन की कोई इज्जत नहीं करते। और फिर उसी कानून के तहत तमाम तरह की सुरक्षा चाहते हैं। भारत में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिए ऐसी ही समस्या हैं। इन घुसपैठियों के हमलों की तादाद में दिन प्रतिदिन बढ़ोतरी हो रही है। रोहिंग्याओं की घुसपैठ को भी सख्ती से रोका जाना चाहिए।

 

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