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के. एल. सहगल: पार्श्व गायन का पहला सितारा

के. एल. सहगल: पार्श्व गायन का पहला सितारा

by शशांक दुबे
in अप्रैल -२०२१, व्यक्तित्व
1

गायकों की दो पीढ़ियों के आदर्श सहगल को याद करना संगीत के एक ऐसे सेनानी को याद करना है, जिसके द्वारा कला की रेत पर छोड़े गए निशानों को आज भी हर पारखी देखता है, निहारता है और उस पर आगे चलने की युक्ति करता है।

रेडियो विविध भारती पर रफी, किशोर, मन्ना, मुकेश, तलत, हेमंत, महेंद्र जैसे सुरीले गायकों और लता, आशा, सुमन, शारदा सरीखी सुरीली गायिकाओं को सुनते-सुनते अचानक कहीं कोने से ‘ग़म दिये मुश्तकिल कितना नाजुक है दिल ये ना जाना’ जैसा नशे, वेदना और खरखराहट में डूबा गीत सुनने को मिल जाता है, तब हिन्दी सिनेमा का वह शुरुआती दौर याद आ जाता है, जब वह धीमे-धीमे अपनी शक्ल और रंग गढ़ रहा था, जब संगीत इसका अपरिहार्य अंग बनने की दिशा में ताज़ा ताज़ा कदम रख रहा था और जब नायक-सह-गायक की पीढ़ी इस फिल्म जगत से रुखसत हो रही थी। के एल सहगल सिनेमा के उसी परिवर्तनकारी दौर के अग्रज गायक हैं। एक ऐसे गायक जिनकी आवाज़ को जज़्ब कर हिन्दी सिनेमा के दो बहुत बड़े गायकों मुकेश और किशोर ने पार्श्व गायन की शुरुआत की, एक ऐसा गायक जिसे इस धरती के सबसे महान गायक मोहम्मद रफी साहब अपना गुरु मानते रहे हैं, एक ऐसा गायक जिसे दिवंगत होने के 74 साल बाद आज भी संगीत मर्मज्ञों द्वारा पूरे सम्मान के साथ याद किया जाता है।

जम्मू के एक पंजाबी परिवार में 11 अप्रैल 1904 को जन्मे कुंदन लाल सहगल के पिता जम्मू में महाराजा प्रताप सिंह की हुकूमत में तहसीलदार थे। मां धर्म-कर्म में आस्था रखने वाली संगीतप्रेमी स्त्री थी, अक्सर कुंदन को शबद-कीर्तनों में ले जाती। मां से मिले संगीत के संस्कारों का परिणाम यह हुआ कि छोटी उम्र में ही उन्होंने सितार बजाना सीख लिया। हालांकि सहगल संगीत को अपना करियर नहीं बनाना चाहते थे। उन्होंने परिवार को आर्थिक मदद देने के लिए स्कूल छोड़ रेलवे में टाइम कीपर की नौकरी कर ली। फिर रेमिंग्टन टाइपराइटर कंपनी में सेल्समैन बने। इस नौकरी का फायदा यह हुआ कि उन्हें खूब यात्राएं करने को मिलीं। ऐसी ही एक यात्रा में लाहौर में मेहरचंद जैन मिले, उनसे दोस्ती हुई और वे उन्हें कलकत्ता ले आए। वहां उन्होंने समारोहों में गाना शुरू किया और जल्द ही शहर के चर्चित गायक बन गए।

तीस के दशक में सहगल की मुलाक़ात आर सी बोराल से हुई और न्यू थिएटर्स में वे 200 रुपये महीना वेतन पर रख लिए गए। इस बीच ग्रामोफोन कंपनी ने उनसे पंजाबी में कुछ गीत रेकॉर्ड करवाए। उन्होंने अभिनय और गायन दोनों काम एकसाथ शुरू किए और ‘मोहब्बत के आंसू’, ‘सुबह का सितारा’ जैसी कुछ भूली बिसरी फिल्में भी कीं। फिर आई ‘यहूदी की लड़की’ (1934), जिसमें ‘लग गई चोट करेजवा में हाय रामा’ जैसा गीत गाकर वे छा गए। सहगल और उमा शशि की जोड़ी ‘चंडीदास’(1934) में खूब जमी और उनके द्वारा गाया गीत ‘प्रेम नगर मैं बनाऊंगी घर में’ बहुत लोकप्रिय हुआ। बरसों बाद शम्मी कपूर-कल्पना अभिनीत ‘प्रोफेसर’(1964) में जब ललिता पँवार बुजुर्ग बने शम्मी कपूर से मिलने का प्रोग्राम बनाती हैं तो मेकअप करते-करते यही गीत गुनगुनाती हैं।

सहगल के करियर को एक नई ऊंचाई 1935 में मिली जब, उनकी ‘देवदास’ आई। इस फिल्म ने उन्हें बहुत बड़ा सितारा बना दिया। फिल्म के ‘बालम आन बसो मोरे मन में’ और ‘दुःख के अब दिन बीतत नाहीं’ को ज़बरदस्त सफलता मिली। वर्ष 1937 में ‘प्रेसिडेंट’ में सहगल द्वारा गाया गीत ‘इक बंगला बने न्यारा’ सर्वकालीन हिट गीत बन गया। आज भी घराकांक्षी लोग बात चलने पर इसी गीत को कोट करते हैं। सहगल ने गाने तो कम गाए, लेकिन जितने भी गाए सुपर हिट साबित हुए। 1938 में ‘स्ट्रीट सिंगर’ में उनका गाया गीत ‘बाबुल मोरा नैहर छूटो जाए’ ने लोगों के मर्म को छू लिया। इस गीत की सर्वकालिकता का इससे बड़ा प्रमाण और क्या होगा कि 32 साल बाद ‘पूरब और पश्चिम’ (1970) में अपने वतन से कटे मदन पुरी अपने ग्रामोफोन पर इसी गीत को बजाते हुए यादों की जुगाली करते रहते हैं। 1938 में ही प्रदर्शित ‘धरतीमाता’ में पंकज मलिक, उमा शशि और सहगल द्वारा गाया गीत ‘दुनिया रंग रंगीली बाबा’ अपने सूफियाना अंदाज़ के लिए अब भी याद किया जाता है। सहगल ने बंगाल में रहते हुए बंगाली भाषा पर भी मजबूत पकड़ बना ली और गुरुवर रवीन्द्रनाथ टैगोर के लिखे कुछ गीत भी गाए।

चालीस के दशक में सहगल ने मायानगरी बंबई की ओर कूच किया और ‘भक्त सूरदास’ (1942) व ‘तानसेन’ (1943) जैसी सफल फिल्में कीं। ‘तानसेन’ का राग दीपक में बना ‘दिया जलाओ’ अपने दौर के महत्वपूर्ण गीतों में माना जाता है। इसके बाद आई ‘माय सिस्टर’ (1944) में ‘दो नैना मतवारे’ और ‘ऐ कातिब ए तक़दीर मुझे इतना बता दे, क्या मैंने किया है’ को सुधी श्रोताओं की भरपूर सराहना मिली। गायक-नायक के रूप में सहगल का डंका अब भी बज रहा था, लेकिन स्वास्थ्य उनका साथ नहीं दे रहा था। लंबी बीमारी के बाद 18 जनवरी 1947 को इस महान गायक ने अपने पुश्तैनी शहर जालंधर में आखिरी सांस ली। जाते-जाते ‘शाहजहां’ (1946) में वे ‘जब दिल ही टूट गया, हम जी के क्या करेंगे’ और ‘गम दिये मुश्तकिल इतना नाजुक है दिल’ जैसे कभी न भुलाए जाने वाले गीत दे गए।

सहगल के काम की क्वालिटी और क्वांटिटी का अनुपात कितना था, यह समझने के लिए इतना ही जान लेना काफी है कि अपने लगभग डेढ़ दशक के करियर में उन्होंने कुल जमा 185 गीत गाए, जिनमें से हिन्दी फिल्मों में मात्र 110 गीत। इस संख्या के बावजूद बरसों रेडियो सिलोन पर पुरानी फिल्मों के गीतों के नियमित कार्यक्रम का समापन सहगल साहब के गीतों से ही हुआ करता था। गुणवत्ता और प्रभाविता में ऐसा रुतबा बहुत कम गायकों को नसीब हुआ है।

सहगल अपने दौर के तमाम उभरते गायकों के लिए एक रोल मॉडल थे। यही कारण था कि जब महान गायक मुकेश ने ‘पहली नज़र’ फिल्म में अपना पहला गीत ‘दिल जलता है तो जलने दे’ गाया तो अधिकांश श्रोता समझे कि यह सहगल ही गा रहे हैं। गीत की सफलता से मुकेश में आत्मविश्वास आया और जल्द ही उन्होंने अपनी एक मौलिक शैली बना ली। इसी प्रकार किशोर कुमार भी सहगल के बहुत बड़े प्रशंसक थे और उन्होंने भी अपना पहला गीत ‘मरने की दुआएं क्यूं मांगू’ (फिल्म: ‘जिद्दी’) सहगल की शैली में ही गाया था। उस दौर में ‘फरेब’ में ‘आ मुहोबत की बस्ती बसाएंगे हम’ में भी सहगल साहब का ही स्पर्श था। बाद में किशोर ने अपनी शैली विकसित की और आधुनिक सिने संगीत के प्रमुख गायक बने।

जब किशोर के बेटे अमित ने गायकी का पेशा अपनाना चाहा तो उन्होंने बेटे को यही गुरुमंत्र दिया कि जितना हो सके, सहगल के गानों अभ्यास करो। हालांकि अमित का मानना था कि सहगल साहब की शैली अब पुरानी पड़ चुकी है और उनके गाने सीख कर वे तत्कालीन सिने संगीत में अपनी उपस्थिति कैसे दर्ज करेंगे? तब किशोर ने उन्हें समझाया कि सहगल बहुत कठिन गायक है, यदि उन्हें साध लोगे तो सब सध जाएगा। पिता की सीख का अमित ने पालन किया और आगे चलकर वे भी एक कुशल पार्श्व गायक के रूप में स्थापित हुए। गायकों की दो पीढ़ियों के आदर्श सहगल को याद करना संगीत के एक ऐसे सेनानी को याद करना है, जिसके द्वारा कला की रेत पर छोड़े गए निशानों को आज भी हर पारखी देखता है, निहारता है और उस पर आगे चलने की युक्ति करता है।

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Comments 1

  1. Rajesh Shiralkar says:
    4 years ago

    Very true , Saighal Sahab is great star of Indian Music . Its very difficult to sing his song though you can feel you can sing easily. I am very much fan of Him, I have beautiful 2 LP records of Saighal Sahab.

    Very Happy to read with this article. Cant wright in Hindi , would love but don’t have keyboard .

    Reply

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