कालचक्र

“बियानी जी की आंखों से गंगा -जमुना बह रही थीं। वे बोले, भगवान अच्छे कर्मों का फल कैसे, कहां देंगे, यह तो हमें पता नहीं चलता। बेटा, कालचक्र में क्या कुछ निहित है कोई नहीं जानता…”

स्काइप पर अपने पुत्र विमलेश की कॉल देखकर बियानी जी के मुख पर चमक आ गई थी। जीवन की इस शाम में जब इंसान बिल्कुल अकेला हो तो ये आभासी दुनिया ही उसके जीवन में रंग भर देती है। विमलेश पिछले दस वर्षों से अमेरिका में रह रहा था। उसके और बच्चों के फोन ही बियानी जी के जीवन में आनंद का संचार करते थे। अक्सर विमलेश सब कामों को निबटाकर सोते समय पापा से लम्बी बात करता। उसकी पत्नी नीरा और बच्चे भी दादू को बहुत प्यार करते।

नीरा और विमलेश ने अभिवादन करते हुए हालचाल पूछे और फिर बातों में से बात निकलती गई। पुरानी बातों में यादों का दरिया बह उठा था।

विमलेश को अपना बचपन, दादा -दादी  याद आ रहे थे। उसे अचानक अपने गांव वाली कोठी की याद आ गई, जहां दादाजी और दादी जी रहते थे।

विमलेश बोला, वो गांव वाली कोठी कितनी अच्छी थी पापा। उसका गार्डन तो लाजवाब था।

बियानी जी याद करते हुए बोले, बेटा, तब दामोदर नाम का एक माली था। वही अपने गांव वाली कोठी के बगीचे की देखभाल करता था। उसकी लगन और परिश्रम का ही परिणाम था कि सारी कोठी गेंदा, गुलाब, चंपा, चमेली आदि फूलों से महकती थी। तरह – तरह के फूल और लताओं के कारण लोग उसे फूलों वाली कोठी कह कर पुकारा करते थे। कई बार तो अपने उस बगीचे को पुरस्कार भी मिले थे।

बियानी जी यादों में खोये हुए बोले जा रहे थे -माता जी, पिताजी अक्सर वहां रहा करते थे। दामोदर की पत्नी लीला भी घर आती थी, वह खाना बनाती थी।  लीला और दामोदर  माता जी, पिता जी का भी बहुत ख़याल रखते थे। दामोदर का स्वभाव बहुत अच्छा था। वह बड़ा ही विनम्र था। हम लोग अक्सर गांव जाते थे। माता जी- पिता जी के साथ लम्बा समय बिताते थे।

हां पापा, मुझे भी याद है। दादी तुलसी को रोज जल चढ़ाती और पूजा करती थीं, फिर लड्डू गोपाल की पूजा करके प्रसाद में मुझे भी लड्डू खिलाती थीं। दादा जी और दादी कितना प्यार करते थे। दामोदर काका मुझे घुमाने ले जाते थे और लीला काकी बहुत स्वादिष्ट खाना बनाकर खिलाती थी। विमलेश ने याद करते हुए कहा।

बियानी जी ने  पूछा, क्या तुम्हें याद है, जब तुम छोटे थे, तब तुम गांव में नदी में डूब रहे थे और उस समय अपनी जान पर खेल कर दामोदर ने ही तुम्हें बचाया था। मैं तो उसी दिन से उसका ऋणी हो गया था।

विमलेश ने कहा, जी  पापा, मुझे याद है। और हां …… उन्होंने इनाम के रुपये भी नहीं लिए थे।

बियानी जी बोले, ठीक कह रहे हो, उस समय मैंने दामोदर को इनाम स्वरूप बहुत से रुपये देने चाहे थे। पर उसने मना कर दिया था। बोला था, बच्चा तो आखिर बच्चा है, साहब आपका हो या मेरा। उसको बचाने का क्या इनाम लूं? यह तो मेरा कर्तव्य है।

मैंने पूछा था- तुम्हारे घर में कौन- कौन हैं? उसने कहा था, मेरे माता-पिता, पत्नी और एक बेटा है। मैं और मेरी पत्नी हम दोनों काम करते हैं। घर का काम जैसे तैसे चल जाता है। माई – बापू की दवाई में कभी जब ज्यादा पैसा लग जाता है, तब हाथ कुछ तंग हो जाता है साहब।

ओह, इतनी गरीबी में भी सादगी और सच्चाई थी पापा। विमलेश ने कहा।

नीरा उठी और कहने लगी, आप लोग बात करिए, मैं विमलेश के लिए सूप बनाकर लाती हूं।

विमलेश ने कहा, ठीक है।

बियानी जी बात को आगे बढ़ते हुए बोले, हां, हम लोगों में से कोई उस कोठी में नहीं रहता था। बस तुम्हारे दादा, दादी जी अक्सर वहां जाकर रहते थे पर कोठी के बगीचे के फूल सदा ही महकते थे। कितना लगाव था दामोदर को बगीचे से। यदि कोई एक पत्ती भी तोड़ लेता तो उसे बहुत कष्ट होता। जब मैं और तुम्हारी मां दमयंती वहां जाते तो दमयंती बहुत से पुराने कपड़े साड़ी, स्वेटर, बर्तन आदि वहां ले जाती। वह जाकर दामोदर को सब दे देती और  कहती, दामोदर भैया, जो आपको और लीला को काम आए वो आप ले लो। अगर कुछ बचे तो गांव वालों में बांट दो। दामोदर और गांव वाले बहुत खुश हो जाते। लाख दुआएं देते। होली, दीवाली दमयंती नए कपड़े उनके लिए भेजती थी। छोटी- छोटी चीजों के बदले हमें मिलते थे अनेक आशीष। माता जी – पिता जी भी प्रसन्न हो जाते थे। माता जी तो हमेशा कहा करती थीं, कि जितना कमाओ, उसमें से कम से कम पांच-दस प्रतिशत तो पुण्य के काम में लगाओ। मानव जीवन मिला है तो पुण्य अवश्य करो। माता जी की ये शिक्षा मैंने जीवन भर मानी।

विमलेश ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, हां पापा, दादी की बातें तो मुझे भी याद है। वे सबकी हेल्प करती थीं और हमें भी हेल्प करने के लिए कहती थीं। पापा वहां बेल, अमरूद, आम के पेड़ भी तो थे।

हा, गर्मी के दिनों में दामोदर और उसकी पत्नी रोज कभी बेल का शर्बत, कभी आम का पना, कभी आमरस और कभी सत्तू बना कर पिलाया करते थे। दामोदर का बेटा पढ़ने में हमेशा से तेज था। एक बार मैं भी दामोदर के बेटे रमण से मिला था, उसका बारहवीं का रिज़ल्ट आया था। उसकी मार्कशीट देखकर मैं चकित रह गया था। नब्बे प्रतिशत अंक थे उसके। मैंने उससे पूछा था, आगे क्या करना चाहते हो?

बेचारा रुआंसा होकर बोला था, मेरे भाग्य में कहां डॉक्टर बनना है। चाहने से क्या होता है साहब? खाली झूठे सपने देखने से मेरा क्या लाभ होगा? मेरे पिता जी के पास इतने पैसे नहीं हैं कि वे मुझे मेडिकल की पढ़ाई पढ़ा सकें। मुझे तो अब खेत में ही काम करना होगा। आखिर कब तक पिता जी पर आश्रित रहूंगा। वे भी तो बूढ़े हो रहे हैं।

उसकी मजबूरी देखकर मेरा मन रो उठा था। भगवान ने उसे इतनी बुद्धि और योग्यता दी है फिर वह चंद रुपयों के लिए क्यों अपने सपनों को त्याग दे। मैंने तुरंत सोचा कि इस बच्चे की फीस मैं दूंगा। वह जितना पढ़ना चाहे पढ़े।

विमलेश ने कहा, पापा कितना अच्छा निर्णय लिया आपने उस समय।

बियानी जी बोले, इस निर्णय में तुम्हारी मां भी मेरे साथ थी और बहुत खुश थी।

जब मैंने दमयंती को यह सब बताया तो वह कहने लगी, इस बच्चे की पढ़ाई का खर्च हम लोग जरूर उठाएंगे। यदि हमारा धन किसी के काम न आ सका तो ऐसे धन का भी क्या लाभ है? खाली बैंक की शोभा बढ़ाना तो धन का उद्देश्य नहीं है।

दूसरे दिन मैंने दामोदर को बुलाया और कहा, दामोदर, मैं तुम्हारे बेटे रमण की पढ़ाई का पूरा खर्च उठाना चाहता हूं। मैं नहीं चाहता कि एक होनहार बालक पैसे के अभाव के कारण न पढ़ सके।

दामोदर ने मना किया, मैंने कहा दामोदर, इस बच्चे की फीस यदि मैं भर दूंगा तो उसमें बुराई क्या है? मैं तुमसे कभी फीस के रुपये वापस नहीं मांगूंगा। इसे मेरा प्रेम समझ कर रख लो।

दामोदर की आंखों से खुशी के आंसू बह रहे थे। उसने न जाने कितने आशीषों की वर्षा कर दी थी उस दिन। रमण ने जब यह सुना था, तब वह भी घर आया था, उसने सबके पैर छूए थे और बहुत धन्यवाद दिया।

कुछ दिन बाद रमण पढ़ने के लिए बाहर चला गया था, फिर उससे मेरी कभी मुलाकात नहीं हुई। मैं नियमित उसकी फीस भेजता रहा। डॉक्टर बनने के बाद रमण ने मुझे धन्यवाद देने के लिए फोन किया था। तभी दो -चार बार बात हुई। अब तक तो वह कहीं  सीनियर डॉक्टर हो गया होगा।

बात करते करते रात काफी हो गई थी। बियानी जी बोले, भई, हमारा तो दिन का समय है, पर तुम्हारे यहां तो रात के ग्यारह बज रहे हैं। चलो अब सो जाओ फिर बात करते हैं।

कॉल समाप्त हो गई। बियानी जी अपने काम में लग गए।

दूसरे दिन भी वे विमलेश की कॉल की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने सोचा विमलेश व्यस्त होगा।

वे रोज प्रतीक्षा करते पर सप्ताह पूरा निकल गया विमलेश का कॉल नहीं आया। उन्होंने उसे कॉल मिलाया तो स्विचऑफ़ आ रहा था। विमलेश एक दो दिन बाद अपने पिता जी से अवश्य बात करता था। इसलिए बियानी जी की चिंता बढ़ती जा रही थी।

अचानक विमलेश का स्काइप पर कॉल आया। बियानी जी की जान में जान आई।

पर जब उन्होंने विमलेश को पट्टी बांधे हुए, बिस्तर पर लेटे हुए देखा तो उनका तो खून ही सूख गया। बेटा इतनी दूर और वह भी इस हालत में। वे रुआंसे से हुए बोले, क्या हुआ बेटा?

विमलेश ने कहा,  पापा, जब आपसे बात हुई थी उसके दूसरे ही दिन मेरा एक्सीडेंट हो गया था। पर अब ठीक हूं।

एक्सीडेंट का नाम सुनकर तो बियानी जी के हाथ से पानी का गिलास ही छूट गया। टन्न से आवाज आई।

विमलेश ने कहा, पापा, आप इतने क्यों घबरा रहे हैं? अब मैं ठीक हूं। चिंता की कोई बात नहीं है। कल मुझे हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई है। प्लीज आप अपना ध्यान रखिएगा।

बियानी जी घबराते हुए बोले, मेरा मन पिछले एक सप्ताह से बहुत व्याकुल था। तुम लोगों से बात भी नहीं हुई थी। मैं बार- बार फोन कर रहा था पर तुम्हारा फोन स्विचऑफ़ आ रहा था। कम से कम एक्सीडेंट के बारे में मुझे बता तो देते।

विमलेश की पत्नी नीरा बोली, पापा आपको चिंता हो जाती, इसीलिए नहीं बताया था। इतनी दूर बैठकर आपकी तबियत खराब हो जाती, तो फिर क्या करते? पापा, यहां सब इनका ध्यान रख रहे हैं। कैलिफोर्निया हॉस्पिटल के डॉक्टर, नर्स सभी ने इनका बहुत ख़याल रखा। अब स्थिति काफी ठीक है। कृपया आप परेशान मत होइए।

बियानी जी की जान  में जान आई। वे संभलकर बैठ गए और पूछने लगे, बेटा एक्सीडेंट कैसे हो गया? कार में तुम्हारे साथ और कौन था?

पापा, भगवान् की कृपा से मैं अकेला ही था। एक बड़ी  कार मोड़ से बहुत तेजी से आई और उसने हिट कर दिया। मेरे लीवर में चोट आई है, पर अब मैं काफी ठीक हूं। अब जान को कोई  खतरा नहीं है।

बियानी जी सब कुछ बड़े ध्यान से डरे -सहमे से सुन रहे थे। परेशान होते हुए बोले, लीवर में चोट आना तो परेशानी की बात है। क्या इंटरनल ब्लीडिंग हुई?

नीरा ने समझाते हुए कहा, जी पापा, ब्लीडिंग तो हुई, पर अधिक नहीं। समय पर विमलेश को हॉस्पिटल पहुंचा दिया गया था। तुरंत ही मेडिकल एड मिलने के कारण केस ज्यादा बिगड़ा नहीं। फिर डॉक्टर भी बहुत होशियार मिले।

विमलेश ने कहा, पापा, उस दिन हम लोग गांव की कोठी वाले दामोदर माली काका और उनके बेटे रमण की बात कर रहे थे न!

हां, तो क्या हुआ? बियानी जी ने पूछा।

पापा, आपको जानकार आश्चर्य होगा कि आज मैं उन्हीं के बेटे डॉक्टर रमण लाल के कारण ही जीवित हूं। उन्होंने ही मेरा ऑपरेशन किया था। मेरी स्थिति बहुत क्रिटिकल हो गई थी। डॉ रमण ने जब मेरे पेपर्स पर पिता के नाम के कॉलम में आपका नाम पढ़ा तो उन्होंने मुझे वही पूरी कहानी सुनाई जो आपने उस दिन सुनाई थी।

यह सुनते ही  बियानी जी की आंखों से अश्रु धारा फूट पड़ी थी। उन्होंने भगवान को लाख लाख धन्यवाद दिया। वे पहले ही अपनी पत्नी और छोटे बेटे को एक दुर्घटना में खो चुके थे। अब कुछ खोने का साहस उनमें नहीं था। अपने आप को संभालते हुए वे पुनः बोले, हां, विमलेश क्या कह रहे थे बेटा? दामोदर के बेटे डॉक्टर रमण लाल ने तुम्हारी जान बचाई है। धन्य है भगवान। तेरी लीला भी अपरम्पार है।

नीरा ने बताया,  पापा, डॉक्टर रमण बहुत होशियार डॉक्टर हैं। वे आपकी बहुत इज्जत करते हैं। आप तो उनके लिए भगवान जैसे हो। जब हमने उनसे फीस लेने की बात की तो उन्होंने कहा, बियानी सर ने मेरी जो सहायता की थी, मै तो आजीवन उसका कर्ज नहीं उतार सकूंगा। फीस लेने का तो सवाल ही नहीं उठता।

यह सुनते ही  बियानी जी की आंखों से आंसुओं की झड़ी लग गई थी। उन्होंने मन ही मन परमात्मा का आभार प्रकट किया।

विमलेश बोला, पापा, आज आपके बेटे की जान बचाकर डॉक्टर रमण ने आपका पूरा कर्ज उतार दिया है। मैं उनको जितना धन्यवाद कहूं, कम है।

बियानी जी की आंखों से गंगा -जमुना बह रही थीं। वे बोले, भगवान अच्छे कर्मों का फल कैसे, कहां देंगे, यह तो हमें पता नहीं चलता। बेटा, कालचक्र में क्या कुछ निहित है कोई नहीं जानता। बस हमें तो निष्काम भाव से नदियों, और वृक्षों की तरह सुकर्म करते रहना चाहिए। यही जीवन सार है ।

 

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