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तमाम बुरे अनुभवों के बीच हमें सकारात्मक बनना है। 

तमाम बुरे अनुभवों के बीच हमें सकारात्मक बनना है। 

by अमोल पेडणेकर
in विशेष
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दिल्ली में एक सप्ताह और राजस्थान और महाराष्ट्र में 1 मई तक लॉकडाउन की घोषणा के साथ कुछ और राज्य भी इसी दिशा में आगे बढ़ेंगे। हाल ही में देश के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने सभी राज्यों को सूचित किया था कि लॉक डाउन अंतिम विकल्प हो। इसके बावजूद भी महाराष्ट्र जैसे औद्योगिक राज्य में यदि लॉकडाउन की वापसी हो रही है तो इसीलिए हो रही हैं कि और कोई उपाय नहीं रह गया था।  राज्यों को यह ध्यान रहे कि लॉकडाउन में न तो जरूरी सेवाएं बाधित होने पाएं और न ही औद्योगिक उत्पादन थमने पाए। उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आवश्यक वस्तुओं के साथ-साथ औद्योगिक उत्पाद एवं कच्चे माल की आवाजाही का तंत्र बिना किसी बाधा के काम करता रहे। यह ठीक नहीं कि महाराष्ट्र और दिल्ली से कामगारों की वापसी होती दिख रही है। यदि लॉकडाउन के कारण उद्योगों का पहिया थमा तो फिर से एक नई समस्या खड़ी हो जाएगी। ऐसे में यह आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है कि राज्य सरकारों की ओर से जनता को यह संदेश दिया जाए कि अबकी बार अलग तरह का लॉकडाउन है,  लॉकडाउन का अर्थव्यवस्था पर न्यूनतम असर हो। यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि यदि न चाहते हुए लॉकडाउन लगाना पड़ रहा है तो कोरोना संक्रमण के बेलगाम होने के साथ-साथ कुछ भूलों के कारण भी। जैसे जनवरी-फरवरी के बाद आम जनता ने बेफिक्री दिखाई, वैसे ही उन्हें दिशा देने या उनका नेतृत्व करने वालों ने भी।

हमारा छोटा-सा मित्र देश इजरायल कोरोना से मुक्त हो गया है, वहां इसके मामलों में 97 प्रतिशत की कमी आ गई है। चीन ने भी इस तिमाही में 18.3% की आर्थिक वृद्धि दर के साथ कोविड से मुक्त हो जाने की घोषणा की है। और  भारत पर निगाह डालिए कि यहां क्या हो रहा है? भविष्य मे विश्व गुरु बनने की चाहत रखने वाले  भारत  जिसकी पहचान आज बिना आक्सीजन से मरे लाशों से भरे समशान घाट पर हो रही है।  देश और सभी राज्यों के पास एक साल का मौका था। इस दौरान किसी भी आपात स्थिति के लिए स्वास्थ्य व्यवस्था को तैयार किया जा सकता था, लेकिन नहीं हुआ है । वर्तमान  हालात को देखकर लगता है कि हमारे सरकारने कोविड की लहरों को लेकर कोई आपात योजना नहीं बनाई है।  जनता अस्पतालों के बाहर मर रही है , वह अपने लोगों को अस्पताल में वेंटिलेटर , एंबुलेंस नहीं दिला पा रहा है। श्मशान में लकड़ी का रेट बढ़ गया है। लोग अपनों की मृत्यू  को लेकर चीख रहे हैं, चिल्ला रहे है ।इस हाल में हम अपने आप को आनेवाले भविष्य के  विश्व गुरु कहलाने के योग्य  हैं? जो राष्ट्र वैक्सीन की दुनिया का एकमात्र सुपर पावर होने पर गर्व कर रहा था, वह आज ऑक्सीजन की रणभूमि बन गया है। यह अब तक का सबसे बड़ा संकट है। कोविड-19 की वापसी इसकी पहली लहर से दोगुनी गंभीर है और इसके कारण संकट  गहरा होता जा रहा है।

अगर हम थोड़ी विनम्रता से सच स्वीकार कर लें तो विचार कर सकते हैं कि हम इस हालतक कैसे पहुंच गए? और इससे भी महत्वपूर्ण यह कि इस से उबरने का रास्ता क्या है? सितंबर के मध्य से जब भारत में कोविड के मामले कम होने लगे थे तब विश्व के दूसरे कई देश कोरोना संक्रमण की  दूसरी लहर से जूझ रहे थे । ऐसे समय मे भारत ने कोरोना पर जैसे जीत हासिल कर ली है, ऐसे माहौल में हम जीने लगे थे। यह सच है कि लोगों ने डर, सावधानी, मास्क आदि को भूलकर शादियां-पार्टियां शुरू कर दी थीं। उत्सव, कुंभ मेला, बड़े पैमाने पर चुनाव अभियान चल रहे थे। इसी के परिणाम स्वरूप अब  अस्पतालों से लेकर दवाखानों और श्मशानों के आगे लंबी कतारें हैं। अब आगे  रास्ता एक ही है। ज्यादा से ज्यादा लोगों को टीके लगाए जाएं। हमारी आबादी जितनी बड़ी है, और संक्रमण जिस तेजी से फैल रहा है उसके मद्देनजर वर्तमान में  टीकाकरण की रफ्तार धीमी है। लेकिन दूसरी लहर के लोगों की जान के साथ अर्थव्यवस्था की भी चिंता अचानक महत्वपूर्ण हो उठी है। राज्य के उद्यमी भयभीत हैं कि लॉकडाउन होने पर श्रमिक फिर अपने घर चले जाएंगे।  अब तक एक बात है कि इस बार श्रमिकों के घर लौटने का सिलसिला धीमा है।

लेकिन चिंता की बात यह है कि आखिर कोरोना वायरस पूरी तरह खत्म होगा या नहीं? नए टीके बनाने के दावे किए जा रहे हैं। लेकिन उसकी प्रमाणिकता साबित होने में अभी वक्त लगेगा। दूसरे वायरसों की तरह कोरोना वायरस भी अमर है? वह न सिर्फ सक्रिय है बल्कि गुणात्मक रूप से संक्रमित हो रहा है। कोरोना वायरस एक कमाल की चीज है। ये हजारों,  लाखों साल तक नहीं मरता। प्रकृति में कहीं सोया रहता है। इसकी कमजोरी है कि यह खुद प्रजनन नहीं कर सकता। लेकिन जैसे ही उसे कोई जिन्दा सेल या कोशिका मिलती है, ये उससे अपने साथ जोड़ लेता है। और तब प्रजनन करता है। यह जीवित हो उठता है और अपने वंश को आगे बढ़ाने लगता है। दुनिया में ऐसे कई सारे वायरस हैं। जैसे प्लेग, चेचक, एचआईवी, इन्फ्लूएन्जा, पोलियो आदि। इसी तरह दुनिया पर चेचक के  वायरस का हमला हुआ था। यह दुनिया का सबसे पुराने वायरसों में एक था। इसका इलाज तो नहीं मिला लेकिन इंसानों से उसका टीका जरूर खोज लिया। कोरोना संक्रमण की पहली लहर के दौरान सामाजिक, आर्थिक और आचार-व्यवहार के मामले में तमाम तकलीफदेह उदाहरण सामने आए। पर इसमें कोई दोराय नहीं कि आम हिन्दुस्तानी में दुख-दर्द सहकर आगे बढ़ने की अद्भुत क्षमता है। यह ठीक है कि कोरोना की पहली लहर  ने करारा आर्थिक झटका दिया है। पर यह भी तथ्य है कि भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से बाहर निकल आहिस्ता आहिस्ता आगे आगे बढ़ रही थी। ऐसे मे फिर कोरोना की  दुसरी भयंकर लहर का हमला हुआ है। हमारी दुनिया कोरोना के चंगुल से पूरी तरह कब  मुक्त हो जाएगी?  ऐसा कब संभव होगा?  इस सवाल का जवाब आज देना असंभव है, क्योंकि दुसरे लहर के कोरोना के कहर ने फिर से तेजी पकड़ ली है।

पिछले वर्ष के लंबे लॉकडाउन ने देश की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है। अब अगर दोबारा लंबा लॉकडाउन लगा, तो हालात और दर्द भरी हो सकते हैं। भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है, कौन जाने? उधर, फैक्टरी मालिकों के चेहरों पर हवाइयां उड़ी हैं। उन्हें लगता है कि श्रमिकों के पलायन से उनका उत्पादन फिर से बाधित हो जाएगा। यही नहीं,  महंगाई, बेरोजगारी और बदहाली का दूसरा दौर हमारे दरवाजे खटखटा रहा है। सवाल उठता है कि ऐसे में क्या किया जाए? सरकार ने पाबंदियों के अलावा टीकाकरण अभियान तेज करने का फैसला किया है, पर इसकी अपनी सीमाएं हैं।  यदि कोरोना से बचना है, तो हमें मास्क, शारीरिक दूरी, स्वच्छता और संतुलित खान-पान का ख्याल रखना ही होगा। कोविड-19 का दूसरा प्रहार पहले से कहीं अधिक मारक है।  लोग आधिकारिक तौर पर इस संक्रमण के शिकार पाए गए।  महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात , दिल्ली,  पंजाब और छत्तीसगढ़ ने अपना पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया है।  पश्चिम बंगाल में अभी चुनाव चल रहे हैं। वहां सभी  राजनीतिक पक्षों की चुनावी रैलियाँ चल रही हैं। जिनमें भारी भीड़ कोरोना प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ाती दिखती है। इस बात का असर भविष्य मे कहर ना बरते। एक जानी-मानी विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित हुए एक अध्ययन में कहा गया है कि देश में जल्द ही देश में हर दिन औसतन मरीजों  की मौत हो सकती है। यह संख्या बढ़कर जून के पहले सप्ताह में और अधिक  होने की आशंका है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दूसरी लहर पहली लहर से ज्यादा खतरनाक है। रिपोर्ट  में सुझाव दिया गया है कि देश में टीकाकरण की रफ्तार तेज करने की जरूरत है और सभी वयस्क लोगों को जल्द से जल्द टीका लगाया जाना चाहिए।

हमें आगे की चुनौतियों के लिए खुद को तैयार रखना है। आनेवाले समय में निश्चित ही रोजगार को लेकर अनिश्चतता उत्पन्न होगी। बहुत सारे लोगों के सामने रोजगार का संकट होगा। आर्थिक चुनौतियां पहले से अधिक गंभीर  हों सकती है। यह हालात , हो सकता है  एक साल की हो, डेढ़ साल की हो, लेकिन, यह हमेशा नहीं रहेगा। अभी अपनी नियमित  जीवनशैली रुक सकती है।  प्रकृति हमें इशारा दे रही है कि आप सामान्य जीवनशैली पर जायें। अभी के हालात को ध्यान में रखते हुए हमें तय करना है कि जीवन सबसे महत्वपूर्ण है। इंसान को यह समझना है कि समय में बदलाव होता रहता है, कोई समय स्थायी नहीं रहता है। अभी संक्रमण से बचने के लिए हमें उपाय करना है। हम सब के लिए यह कठिनतम दौर है। हम जिंदगी के ऐसे मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं, जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की थी। इस बार कोरोना की रफ्तार और मारक क्षमता दोनों दोगुनी है। राहत की बात जरूर है कि हमारे देश में लोग तेजी से स्वस्थ भी हो रहे हैं। कई अन्य देशों की तुलना में स्वस्थ होने की दर भारत में बेहतर है। लेकिन यह बात सभी को स्पष्ट होनी चाहिएकि यह लड़ाई लंबी चलनी है। इस मामले में जरा सी भी लापरवाही न केवल आपको बल्कि आपके परिवार और पूरे समाज को संकट में डाल सकती है। देश में कोरोना की दूसरी लहर में  तेजी आने से हालात चिंताजनक होते जा रहे हैं, लेकिन हमें यह भी सोचने की जरूरत है कि आज तक कोई ऐसी बीमारी नहीं हुई, जो दुनिया को खत्म कर सके। इसीलिए, हमें अपने आप को  तमाम बुरे अनुभवों के बीच सकारात्मक बना कर रखना है।  यह एक छोटा सा दौर है, जो समय के साथबीत जायेगा।

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Comments 2

  1. PRASHANT says:
    4 years ago

    बहुत अच्छा। सकारात्मक लिखा है।
    Be Positive, Think Positive, Stay Korona Nagative.

    Reply
  2. Suneel dubey says:
    4 years ago

    Dhanywad
    Bahut sundar lekh hai samaj ko bhi apni jimmedari nibhani chahiye

    Reply

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