भारत की  लौह कन्या संजुक्ता पराशर

असम की ‘लौह कन्या’ संजुक्ता पराशर का नाम सुनते ही थर-थर कांपने लगते हैं उग्रवादी। उनके नाम से ही थर्रा जाते हैं देश के दुश्मन। आतंक और आतंकियों पर काली बनकर टूट पड़ती है असम की यह बहादुर बेटी।

पूर्वोत्तर के राज्य जितने सुंदर हैं उतने ही खतरनाक भी हैं। यहां की मस्त वादियां, घाटियां और जंगल पनाहगार हैं आतंक और मौत का नंगा नाच करने वाले उग्रवादियों के लिए। पिछले कुछ दशकों में यहां के सरहदी इलाकों में आम आदमी की जिंदगी सस्ती होती गई है।

पूर्वोत्तर राज्यों के उग्रवादी संगठन सामूहिक जातीय तथा सामुदायिक नरसंहार के लिए कुख्यात हैं। अब तक हजारों की संख्या में बेबस और निष्पाप नागरिक इन उग्रवादियों का निशाना बन चुके हैं, मौत के घाट उतारे जा चुके हैं। अपने कारनामों को अंजाम देने के बाद यह उग्रवादी बड़ी आसानी से यहा के जंगलों में जा छुपते थे।

अब तक ऐसा ही होता चला आ रहा था, पर अब यह सब इतना आसान नहीं रहा। पिछले सालों में, खासकर सरहदी इलाकों में बदलाव आया है। इस बदलाव की बयार को लाने वाली तूफान का नाम है डॉ. संजुक्ता पराशर। संजुक्ता के नाम से कांपने लगे हैं उग्रवादी। असम की सरहद पर सक्रिय उग्रवादी अपना ठिकाना बदलने को मजबूर हो गए हैं।

 कौन है डॉ. संजुक्ता पराशर?

असम कैडर से जुड़ी, वर्ष २००६ बैच की महिला आई.पी.एस. अधिकारी हैं डॉ. संजुक्ता पराशर।

अनुशासन, जज्बा, समर्पण तथा अदम्य साहस की जीती जागती मिसाल है संजुक्ता। वर्तमान में असम के सरहदी जिले सोनीतपुर की पुलिस अधीक्षक हैं।

यह जिला अंतरराज्यीय सरहद होने के कारण उग्रवादी गतिविधियों का केंद्र रहा है। डॉ.संजुक्ता आतंकवाद विरोधी अभियान की मुखिया हैं। वह अपनी बहादुरी के चलते कर्तव्य परायणता की मिसाल और उग्रवादियों के लिए काल बनकर उभरी हैं।

 संजुक्ता होने का मतलब

संजुक्ता यह नाम संस्कृत शब्द से निकलता है। संजुक्ता का अर्थ है – एकत्र। कहा भी जाता है कि संजुक्ता नाम के व्यक्ति समूह और परिवार में सभी को एकसाथ लाने की भूमिका निभाते हैं। (संजुक्ता शब्द ‘संयुक्त’ का बोली रूप है। बंगाल और असम में उच्चारण भेद के कारण ‘संयुक्ता’ संजुक्ता हो गया।) असम की यह बेटी अपने नाम को यथार्थ साबित करती नजर आ रही है। पूर्वोत्तर में पनपे उग्रवाद से आम जनता की उम्मीदें प्रशासन पर से टूटती नजर आ रही थीं। अपने हौसलों की बदौलत संजुक्ता ने फिर एक बार लोगों में उम्मीद जगाई है। सदैव सजग एवं सतर्क रहने वाली संजुक्ता ने युवा पीढ़ी को संदेश दिया है – हौसला हर हालत में ताकत देता है। एक उम्मीद का नाम बन गया है संजुक्ता। अदम्य साहस की धनी संजुक्ता हाथों में चूड़ियों की जगह जब एके४७ थाम कर अपनी टीम के साथ मैदान में उतरती हैं, तब उग्रवादियों को भागने का रास्ता और वक्त दोनों नहीं मिलता। जब-जब वह मैदान में उतरी तब तब साहस, शौर्य और निडरता की परिभाषा सामने आई है। असम की यह बेटी ‘लौह कन्या’ (आयरन लेडी) बन चुकी है पूरे देश के लिए एक रोल मॉडल।

ट्रैक रिकार्ड ः उग्रवादियों के साथ हुई मुठभेड़ एवं आतंकवादियों के साथ हुई झड़प संजुक्ता के मिजाज और उनकी बहादुरी को स्पष्ट करती है।

उग्रवादियों से हुए सीधे मुकाबलों के दौरान पिछले १५ महीनों में १६ खूंखार कुख्यात आतंकवादियों को मौत के घाट उतार दिया गया। ६४ उग्रवादियों की गर्दन दबोच कर उन्हें सलाखों के पीछे डाल दिया। आतंकवाद विरोधी अभियान चला रही डॉ. संजुक्ता पराशर ने इस अभियान को नया आयाम दिया। इस अभियान के तहत वर्ष २०१३ में १७२ बोडो आतंकवादियों को और २०१४ में १७५ को गिरफ्तार किया गया। केवल आतंकी ही नहीं बल्कि छापामारी और मुठभेड़ में वक्त-वक्त भारी मात्रा में हथियार और गोलाबारुद भी जब्त किया गया।

 असम में कौन हैं दुश्मन?

पूर्वोत्तर राज्य और खासकर असम में नैशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैण्ड (एन.डी.एफ.बी.) बोडो उग्रवादियों का प्रमुख संगठन है। इस संगठन का मकसद देश को तोड़ना है। यह राष्ट्र विघटनकारी संगठन है। इस संगठन का ध्येय बोडो बहुल इलाकों को असम से अलग कर आजाद बोडोलैण्ड, एक स्वतंत्र राष्ट्र की स्थापना करना है। इस संगठन ने हजारों भारतीयों को मौत के घाट उतार दिया है। यह रक्तपिपासू संगठन नरसंहार के लिए कुख्यात है। आंकड़ों के अनुसार इस संगठन के पास करीब १३००-१४०० आतंकी सदस्य हैं। पिछले दिनों ही इन्होंने सुरक्षा बलों पर भारी धावा बोला था। सेना के काफिले पर हुए हमले के बाद संजुक्ता पराशर के आतंकवाद विरोधी दस्ते ने अपनी कार्रवाई के दौरान इन बोडो आतंकवादियों की कमर तोड़ दी है।

बोडो उग्रवादियों की गतिविधियां अधिकतर ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तर और उत्तर पश्चिम क्षेत्र से संचालित की जा रही है। यह गुट असम के गोगाई, कोकराझार, दरभंगा, बारापेटा, धुबरी, नलबारी और सोनीतपुर में अधिक सक्रिय है।

 क्या है चुनौती?

उग्रवाद के खात्मे का कोई शार्टकट नहीं है। पुलिस अधीक्षक डॉ. संजुक्ता पराशर को अपनी सेवा और समर्पण से स्थानीय जनता का भरोसा जीत कर उनकी सोच बदलनी होगी। पूर्वोत्तर के जंगल तथा दुर्गम इलाके आतंकवादियों के खिलाफ चलाए जा रहे मिशन को और मुश्किल बना देते हैं। खराब मौसम और वक्त बेवक्त बारिश चुनौतियों को और बढ़ा देती है। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि स्थानीय जनता पुलिस और सुरक्षा बलों की जगह उग्रवादियों के लिए मुखबिरी का काम करती है। जिसके चलते कई बार उग्रवादियों की जगह पुलिस और सुरक्षा बलों को काफी नुकसान होता है।

पर संजुक्ता ने इन सब चुनौतियों के बावजूद अपने पक्के इरादों से झंडे गाडते हुए बता दिया कि आतंकियों से निपटने के लिए सेना ही नहीं पुलिस भी सक्षम है। अपनी दिलेरी से यह ‘आयरन लेड़ी’ बोडो के लिए काल बनी हुई हैं।

 आतंक ने आई.पी.एस. बनने की प्रेरणा दी

पूर्वोत्तर राज्यों में, खासकर असम में उग्रवाद की आयु भी लगभग संजुक्ता के उम्र के बराबर की ही है। कहना गलत न होगा कि गुवाहाटी की संजुक्ता ने असम के गंांव शहर की मिट्टी को लहू से लाल होते देखा है। वहां सामूहिक तथा जातीय हिंसा में बेगुनाहों को मरते देखा तड़पते देखा है, उनकी पीड़ा को महसूस किया है। सीधे तौर पर आतंकवाद ने उन्हें आई.पी.एस. बनने को प्रेरित किया।

 आई.ए.एस. नहीं आई.पी.एस. क्यों?

एयर कंडीशन की ठंडक और खुशगवार जिंदगी संजुक्ता को प्रभावित न कर सकी। साहस और सौंदर्य की धनी संजुक्ता ने चुनाव का अधिकार रहने के बावजूद आई.ए.एस. की नौकरी को दरकिनार करते हुए आई.पी.एस. बनने का चयन किया। आई.पी.एस. का चुनाव कर संजुक्ता ने लौहे जैसे अपने मजबूत इरादे का परिचय दिया। मानो जैसे वह इसी मौके के इंतजार में थी। संजुक्ताने आई.ए.एस. बनकर सुबह ९ से शाम ५ वाली आरामदेह नौकरी से इंकार कर खाकी को अपनाया और अपने ‘मर्दानी’ होने का सबूत दिया। संजुक्ता ने अपने कर्म से अपने खास होने का सबूत दिया। आज उनकी अपनी पहचान है।

 त्याग और कुर्बानी

अपने मिशन पर फोकस और अपने कर्तव्य के प्रति एकनिष्ठ डॉ.संजुक्ता का कहना है कि उनकी हिम्मत हर डर पर भारी है। हिम्मत हो तो किसी से नहीं लगता डर। इीरळप ुळींह इशर्रीींू डॉ.संजुक्ता को आज सारा देश सलाम कर रहा है। अपने कर्म को अपना धर्म मानने वाली संजुक्ता ने अपने संघर्ष में कभी समझौता नहीं किया। भरा-पूरा परिवार होने के बावजूद वह अपने आई.ए.एस. ऑफिसर पति से दो महीनों में कभी एक-आध बार ही मिल पाती हैं। उनके बेटे की देखभाल उन्होंने अपनी मां के जिम्मे सौंप दी है। माता-पिता अपनी बेटी के शौर्य और सेवा के कार्यों से गौरवान्वित अनुभव करते हैं।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से एम.फिल. करने के पहले डॉ.संजुक्ता ने इंद्रप्रस्थ कॉलेज से पोलिटिकल सायंस में ग्रेज्युएशन किया था। उनके मार्क्स कम होने के कारण इंद्रप्रस्थ कॉलेज ने शुरुआती दौर में संजुक्ता को प्रवेश देने से मना कर दिया था। अपनी लगन और मेहनत के चलते डॉ. संजुक्ता ने पहले ही प्रयत्न में यूपीएससी क्वॉलिफाय किया और वह भी मेरिट में। सन २००६ के यूपीएससी परीक्षा में संजुक्ता ८५वें नंबर पर रहीं।

 सोनीतपुर से पहले जोरहट में भी किया कमाल

सोनीतपुर की पुलिस अधीेक्षक बनने से पहले डॉ.संजुक्ता २०११ से २०१४ तक जोरहट में नियुक्त थीं। जोरहट में अपनी नियुक्ति के दौरान उन्होंने मनचलों और गुंडों की नाक में नकेल कस दी थी। आम लोगों की भीड़ के बीच सिविल ड्रेस में घूमने वाली पुलिस अधीक्षक डॉ.संजुक्ता ने सरेआम कानून को हाथ में लेने वालों को नाक रगड़वा दी।

 रोल मॉडल

सोनीतपुर पुलिस अधीक्षक संजुक्ता पराशर युवा पीढ़ी को प्रोत्साहित करती हैं। वह साहस और शक्ति का प्रतीक बन चुकी हैं। आज हजारों ने उन्हें रोल मॉडल मान कर उनका अनुसरण करने की इच्छा जताई है। डॉ.संजुक्ता की राह इतनी आसान नहीं है। इतनी अदम्य साहसी संजुक्ता बनने के लिए दिन का चैन, रात का सकून त्याग करने की हिम्मत और हौसला चाहिए। केवल वर्दी का रौब नहीं पर वर्दी के भीतर एक नेक इंसान भी है। संजुक्ता, जो आम जनता के दर्द, पीड़ा, स्नेह, सम्मान को महसूस करती है। उग्रवादियों के सीने को छलनी करने वाली, हेल्मेट लगाकर चलने वाले चालकों को ईनाम देती नजर आती हैं। दिन-रात जंगलों की खाक छान कर आतंकियों को भूनने वाली संजुक्ता कई दफा पूरा दिन रिलीफ कैम्प में गुजारते देखी जा सकती है।

डॉ.संजुक्ता पराशर की दिलेरी, हौसले व इंसानियत ने भीड़ में आम और वर्दी में बहुत खास एक अपनी पहचान व रूतबा कायम कर महिलाओं को बेचारी की श्रेणी से निकाल कर बराबरी में ला खड़ा कर दिया है।

 मूरत ममता, प्रचंड क्षमता

 प्रमाणित विधायक, सौजन्य विनायक

 अखंड सहनशीलता

 आज का युग तेरा है परिणीता

 ‘संजुक्ता’ तुझ पर है भारत गर्विता॥

 

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