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 किसानों की मुस्कान   हमारा पुरस्कार है …. -गिरीशभाई शाह

 किसानों की मुस्कान  हमारा पुरस्कार है …. -गिरीशभाई शाह

by अमोल पेडणेकर
in ग्रामोदय दीपावली विशेषांक २०१६, संस्था परिचय, साक्षात्कार
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देश में लगभग ६ लाख गांव हैं| समस्त महाजन हर गांव का महज १० लाख रु. में विकास करने की योजना रखते हैं| जिसमें तालाब, गोचर, वृक्षारोपण जैसे विषयों का विकास होगा| इससे गांवों में जो खुशी आएगी, किसानों के चेहरे खिल उठेंगे वही समस्त महाजन के लिए सब से बड़ा पुरस्कार होगा|

समस्त महाजन संस्था का उद्देश्य क्या है?

समस्त महाजन संस्था का मुख्य उद्देश्य पशुओं की सुरक्षा करना है| ग्राम रचना की प्रमुख आधारशिला जल, जमीन, जानवर, जंगल है| इन चारों के आधार पर अपनी ग्राम संस्कृति बची हैै| आप किसी गांव की कल्पना बिना पानी, बिना जंगल, बिना जानवर और बिना जमीन के नहीं कर सकते| गांवों की कल्पना में यह सब शामिल है| गांवों में इन चारों की अत्यधिक जरूरत है| हम आज विकसित और अविकसित गांवों की बात करते हैं, यह बात मेरी समझ के बाहर है| क्योंकि हमारे यहां हजारों साल से गांवों की संस्कृति चल रही है| आज की आधुनिक सोच से कई गुना अच्छे काम हमारी ग्रामीण संस्कृति में किए गए हैं| हम अविकसित कहां थे? बिल्कुल नहीं थे| सिर्फ गांव की सोच इस जल, जंगल, जमीन, जानवर से बाहर आकर रास्ता, बिजली, टॉयलेट, बाथरुम पर हमारा फोकस हो गया है| हम अपनी मूल विचारधारा से भटक गए हैं| हमारी समस्त महाजन संस्था का मूल उद्देश्य यही है कि जल, जमीन, जंगल, जानवर की रक्षा की सोच को बढ़ावा दिया जाए और इसी के आधार पर गांवों का विकास किया जाए|

आदर्श ग्राम की व्याख्या आपकी दृष्टि से किस प्रकार है?

आदर्श ग्राम स्वयंपूर्ण, समर्थ और स्वावलंबी होना चाहिए| हमारे यहां की रुई विदेश जाएगी, उससे कपड़ा बनेगा और हमारे ही यहां बिकेगा, यह चक्र ठीक नहीं है| इस प्रकार के कई अन्य विषय हैं जो गांवों में ही तैयार होकर गांवों की जरूरत पूरी करने वाले होने आवश्यक हैं| आदर्श गांव की सही तस्वीर यह है कि उस गांव की सारी जरूरत उसी गांव में पूरी होनी चाहिए| पानी महत्वपूर्ण है| बारिश का पानी जमा कर उसे उपयोग में लाने की व्यवस्था होनी आवश्यक है| आज आज़ादी के ६९ साल बाद भी हमारे पिछड़े होने का कारण यह है कि हम अपनी ४ प्रमुख बातों जल, जंगल, जानवर, जमीन की रक्षा करने की बात भूल गए हैं|

 समस्त महाजन संस्था ने अपने कार्य का क्षेत्र गांव को ही क्यों चुना है?

शहर में सरकारी और अन्य सेवाकार्यों का सहयोग बहुत है| सरकार स्मार्ट सिटी की सोच का विस्तार कर रही है| पर स्मार्ट विलेज इस विषय पर गंभीर दिखाई नहीं देती, यह बात गत ७० सालों से निरंतर हो रही है| आज संपूर्ण देश के गांवों से लोग मुंबई या अन्य प्रमुख शहरों में जुट गए हैं| इसी के कारण यह समस्या निर्माण हो गई है| गांव में किसान की रोटी, कपड़ा, मकान की व्यवस्था होती तो आज शहरों में दिखाई देने वाली जानलेवा भीड़ नहीं होती| हमने गांव की आदर्श व्यवस्थाओं को तोड़ दिया है| यदि भारत के ६ लाख गांव स्वयंपूणर्र्र्र्र्र्र् हो जाए तो जो आज पर्यावरण, पशु, जमीन पानी को लेकर जो समस्या है वह समाप्त हो जाएगी| इस कारण हमारी सोच यह हुई कि गांव के विकास हेतु काम करें| वहां लोग आशा लेकर बैठे हैं| काम करते समय प्रेम से जुड़ते भी हैं| तुलना में देखे तो थोड़ा-सा काम करने पर उनकी बड़ी समस्या लंबे समय के लिए खत्म भी होती है| यह हमारा प्रत्यक्ष अनुभव है|

 देश के सामने जब भी कोई समस्या आई है तो उस समस्या के निवारण के लिए समस्त महाजन संस्था वहां पहुचती है| आपके भारतव्यापी कार्यो की जानकारी दीजिए?

उत्तराखंड में बाढ़ आई, लोगों ने बिस्कुट लिए, ट्रक में लादे और उत्तराखंड में पहुंचाए| पर बिस्कुट बांटना यह समस्या का पूरा निदान नहीं हो सकता और संकटग्रस्त इंसान बिस्कुट कितने दिन खाएंगे| एक या दो दिन| कपड़े के बंटवारे में भी यही बात थी| वहां के वातावरण के अनुसार यह कपड़े नहीं होते हैं| इस निरीक्षण के बाद हमने पहले चार-पांच दिन में वहा गर्म भोजन के लंगर लगवाए| बाढ़ का पानी कम होने के बाद वहां के कुछ गांवों में घर बनवाने के लिए आवश्यक बातें या चीजें पहुंचा कर पुनर्निर्माण किया| साथ में एकाध महीने का राशन भी दे दिया| बद्रीनाथ तक संकटों का सामना करते हुए हमारे कार्यकर्ता पहुंचे, वहां रसद पहुंचाई| हमारे कार्यकर्ताओं का यह जोश देख कर वहां की सरकार ने हमें एक हेलिकॉप्टर दे दिया| उसके माध्यम से हमने जोशी मठ से बद्रीनाथ तक सारा सामान संकटग्रस्तों तक पहुंचाया| इसी प्रकार का योगदान कश्मीर में बाढ़ के समय समस्त महाजन संस्था ने किया है| वहां के गांव के लोगों को साथ लेकर वहां की गलियों में जमा कीचड़ हमने बुलडोजर लगा कर साफ किया| यह बात नेपाल भूंकप के समय हुई| कश्मीर की गलियों में हमने कीचड़ सफाई का कार्य जेसीबी लगा कर किया| नेपाल में ४२५ मकान बनाए| हम जहां भी कार्य करते हैं वहां के लोगों के सहयोग से उनको साथ लेकर कार्य करते हैं| इससे उन कार्यों को उनकी जरूरत के हिसाब से पूरा किया जाता है और उन लोगों को उस कार्य का महत्व भी समझ में आता है|

महाराष्ट्र में अकाल आया| इस समय हम क्या मदद कर सकते हैं तो हमारी सोच बनी कि जहां सरकार का काम पहुंचा नहीं है वहां काम करने का विचार किया| महाराष्ट्र में अनाज की तकलीफ नहीं थी| कपड़ों की कोई जरूरत नहीं थी| सरकार ने जानवरों के लिए शिविरों की व्यवस्था सही तरीके से की थी| गांव की समस्या लंबे समय तक हल करने की दृष्टि से हमने विचार किया| पानी की स्थायी व्यवस्था के लिए तालाब खुदवाने का काम शिरूर, पाटोदा ५ गांव में प्रारंभ किया, जो सूखाग्रस्त गांव थे| लोगों के पास काम भी नहीं था| अकाल की इस समस्या के निवारण के लिए लोगों को साथ लेंगे उन्हें मजदूरी देकर काम देंगे तो समस्या भी हल हो जाएगी और बेरोजगार गांव वालों को मजदूरी भी मिल जाएगी| गांव का तालाब है, गांव के लोग ही काम करने लगे| उन्हें दिन की मजदूरी २५०/- देने लगे| पहले दिन का अनुभव लेकर गांव के १०० के आसपास लोग इस कार्य से जुड़ गए| हमने पहले दिन २५०/- रुपये की मजदूरी दी| दूसरे दिन २५०/- रुपये का चारा दिया| तीसरे दिन २५० का अनाज दिया| आगे जब तक उस गांव में तालाब खुदाई का काम चलता रहा हमने स्थानीय गांव वालों को सहभागी किया| हम हर गांव में १० लाख खर्च करते थे| ४० दिन में तालाब खुदाई का काम पूरा करना था| लोग स्वाभिमान से जुड़ गए | मेरे गांव का तालाब हम खुदाई कर रहे हैं, यह भाव गांव वालों में निर्माण हो गया| अहिस्ता-अहिस्ता १२५ गांवों में हमने तालाब खुदाई का कार्य पूरा कर दिया| इसका परिणाम यह हुआ कि बारिश में तालाब लबालब भर गए| पानी का रिसाव जमीन में होने के कारण गांव के कुएं पानी से पूरी तरह से भर गए| गांव में एक संतुष्टि आ गई है| सातारा जिले के शिरूर-पाटोडा परीसर में १२५ गांवों में समस्त महाजन ने खुशिहाली लाने का काम किया है|

यह प्रोजेक्ट पूरा होने पर समाज में एक जागृति आ गई| २०१६ में मराठवाडा परिसर में अकाल की मात्रा बढ़ गई| हमारे जो हितचिंतक हैं जो हमें सेवा कार्य के लिए सहयोग देते हैं उनकी राय थी कि हमें महाराष्ट्र के लिए कुछ करना चाहिए| हमने कहा कि ‘‘अभी काम करना है तो अल्पकालिक काम नहीं करेंगे| निरंतर १० साल तक चलने वाला और सूखे की समस्या को पूरी तरह निपटने वाला बड़ा काम करेंगे| आप सभी का सहयोग हो तो मैं इस काम में पूरी तैयारी से उतरना चाहता हूं| सभी लोगों ने मानसिक तैयारी की| हमने १० जेसीपी खरीदे| उन जेसीपी से काम शुरू किया| साथ में ४७ पोकलेन किराए से लिए और काम प्रारंभ किया| निरंतर ४६ गांवों में ४० दिन तक अविरत तालाब खुदाई का काम किया| परिणाम यह आ गया कि सारे तालाब लबालब हो गए| खेती अच्छी हुई| आज किसान प्रति एकड़ ३०,०००/- रूपये मुनाफा अपनी उपज से ले रहा है| एक किसान की कम से कम दस एकड़ जमीन होती है| तो आप हिसाब लगाए कि उन किसानों तक कितना पैसा पहुंचा है| हमारे प्रयासों में कुदरत भी सहयोग दे रही है| वहां पर बारिश भी अच्छी हुई है| सोयाबीन, गन्ना की उपज गांव में हो रही है| कुल गांवों में १०,००० एकड़ जमीन होगी तो उस परिसर में आप सोच लीजिए कि कितना फायदा हुआ है| लगभग ३० करोड़ रुपया उस परिसर में आया है| समस्त महाजन संस्था ने उस परिसर के विकास के लिए ३२ लाख खर्च किया है| ३२ लाख के सामने ३० करोड़ का आर्थिक व्यवहार बड़ा है| यह हमारे कार्य की उपलब्धि है|

आज आपको जो अनुभव यहां मिला है उसके आधार पर संपूर्ण देश की समस्या निवारण के लिए आपने कोई सोच बढ़ाई है?

हम गांव में स्वावलंबन लाने का कार्य देश के लिए करना चाहते हैं| प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना बनी है| उस योजना के अंतर्गत देश के ग्राम विकास के लिए ५५ हजार करोड़ रुपये लगाने वाले हैं| ५५ हजार करोड़ में ६ लाख गांव समृद्ध नहीं होंगे| कारण इन सब गांवों तक पहुंचने की व्यवस्था सरकार के पास नहीं है| पर स्वयंसेवी संगठनों (छॠज) के पास हो सकती है| हमारे पास है| ५५ हजार करोड़ की योजना के बावजूद भी गांव स्वावलंबी नहीं होंगे| क्योंकि सरकार के माध्यम से यह योजना गांवों तक पहुंचने तक बहुत छिद्रों से गुजरेगी|

समस्त महाजन की योजना यह है कि हमें सरकार का सहयोग मिलता है तो हम १००० पोकलेन खरीदेंगे| यह ५०० करोड़ में उपलब्ध होंगे| एक जिले में लगभग १००० तक गांव होते हैं, एक गांव का काम करने में २० से २५ दिन लगते हैं| १००० पोकलेन एक साथ १००० गावों का काम करेंगे तो एक महीने में पूरे जिले के ज्यादातर गांवों का काम हो जाएगा| जिसमें तालाब, नाले, कुएं खोदे जाएंगे या साफ किए जाएंगे| १००० पोकलेन मशीनें हम खरीदेंगे जो ५०० करोड़ में उपलब्ध होंगे| ४०० मशीनें चलानी है तो हमे डीजल चाहिए| ड्रायवर का वेतन चाहिए| हमारी योजना यह है कि मशीनें हम खरीदेंगे, डीजल गांव वाले यानी ग्राम पंचायत दे दे| अपने गांव का काम हो रहा है इस कारण गांव वाले भी सहयोग देने को तैयार है|

हमारे खरीदे हुए १५ पोकलेन की सहायता से दशहरे से हमारा काम प्रारंभ हो रहा है| आने वाले समय में हितचिंतको से अच्छा सहयोग मिलता है तो हम इस वर्ष में १०० पोकलेन खरीदने की बात सोच रहे हैं, जिससे एक वर्ष में हम २ जिलों को सूखामुक्त जिला बनाने की योजना रखते हैं|

 आज यह कार्य समस्त महाजन की सोच से हो रहा है| इस कार्य के विस्तार के लिए क्या हर राज्य की सरकार से संवाद हो रहा है?

हां, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री मा. देवेंद्र फडणवीस से इस विषय के संदर्भ में वार्ता हुई है| उन्होंने डीजल का खर्चा उठाने की बात मान्य कर ली है| नए काम की हमने जो रूपरेखा बनाई है, उसमें हमने कहा कि लोगों के दान से पोकलेन वगैरह वाहन हम खरीदेंगे, जो गांव वाले डीजल देंगे उन गांवों का काम हम करेंगे| गांव ग्राम पंचायत के माध्यम से सरकार से डीजल का पैसा लेंगे, जिससे डीजल के कारण काम में रुकावट नहीं आएगी|

 सेवा कार्यों में धन की व्यवस्था अत्यंत महत्वपूर्ण बात होती है| यह धन की व्यवस्था समस्त महाजन संस्था किस प्रकार करती है?

समस्त महाजन लगातार १४ वर्षों से सामाजिक क्षेत्र में अपना सेवाभावी योगदान दे रही है| इन १४ वर्षों में समस्त महाजन संस्था ने दानदाताओं का विश्‍वास संपादन किया है| जैन समाज, डायमंड उद्योग और समाज के विभिन्न वर्गों से जुड़े कुल १ लाख के आसपास दानदाता समस्त महाजन से जुड़े हुए हैं| हर एक को कुछ ना कुछ सेवा करने की इच्छा होती है| वह समय के अभाव के कारण खुद कहीं जाकर सेवा नहीं कर सकता तो वह उनका पैसा सेवाकार्यों के लिए समस्त महाजन को देता है| अतः हमारी जिम्मेदारी बनती है कि उनका पैसा सही जगह सेवा कार्यों में लगे| समस्त महाजन संस्था एक माध्यम है जो समाज के धनी लोग और समाज के बीच समन्वय कराती है|

सेवा भाव से जुड़े हजारोे कार्यकर्ता समस्त महाजन के पास है| जो पूरे देश में फैले हुए हैं| आज हम दस मशीनों के साथ काम कर रहे हैं| कल अगर सरकार कहती है कि हम आपको ५०० करोड़ का योगदान देते हैं, १००० पोकलेन मशीनों के साथ काम में लगो तो भी हमारी व्यवस्था है| आज महाराष्ट्र के जिन गांवों को हमने कभी नक्शे में भी नहीं देखा था वहां हमारे कार्यकर्ताओं ने पहुंच कर १ महीना रुक कर काम पूरा किया है|

 महाराष्ट्र में अकाल की स्थिति होने के कारण सहायता हेतु सैंकड़ों संस्थाएं कार्य कर रही थीं| सभी ने समाज को आर्थिक योगदान का आवाहन किया था| लोगों से लिया हुआ यह पैसा इन संस्थाओं के माध्यम से सही काम तक पहुंचता है, आपकी इस विषय संदर्भ में राय क्या है?

किसानों का हित खेती अच्छी हो इस बात में है, खेती के लिए पानी चाहिए| हम चाहते हैं कि इस वर्ष महाराष्ट्र में जिन-जिन संस्थाओं ने पानी, अकाल, सहायता के लिए काम किया है उनकी एक समन्वय बैठक बुलानी आवश्यक है| काम सभी को करना है पर सभी में एक समन्वय होना जरूरी है, जिससे इस सकारात्मक काम की दिशा तय हो जाएगी| इस विषय के संदर्भ में मा. मोहनजी भागवत और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री देवेंद्र फडणवीसजी से मेरी बात हुई है| समन्वय से कॉमन मिनिमम प्रोग्राम (उचझ) तय होनी आवश्यक है| स्टैण्डर्ड ऑपरेटिंग प्रोसेस (डजझ) भी तय हो जानी आवश्यक है| हम सब साथ में बैठ कर समन्वय करते हैं| एक (डजझ) तैयार करके (उचझ) के साथ काम करते हैं|

 समस्त महाजन द्वारा किये जानेवाले कार्यों के लिये आर्थिक नियोजन कैसे होता है?

हमारे पास दानदाताओं की लंबी श्रृंखला है| हम समय-समय पर उन्हें अपनी जरूरतों के बारे में बताते रहते हैं| और वे हमें उस हिसाब से मदद करते हैं| कई बार लोग सीधे मुझे पैसे दे देते हैं या कई बार  मुझसे दिशा निर्देश लेते हैं कि किस तरह से दान दिया जा सकता है|

आनेवाले दस वर्षों में समस्त महाजन संस्था भारतीय गांवों का किस प्रकार का स्वरूप देखना चाहती है?

माननीय प्रधान मंत्री जी के जन्मदिन पर हमने मा. प्रधान मंत्री जी को खुला पत्र लिखा है, जो एक अंग्रेजी अखबार में प्रकाशित हुआ है| इस पत्र में आने वाले समय में भारत के गांवों की रचना कैसी होनी चाहिए इस विषय पर हमारे विचार स्पष्ट किए हैं| एक अच्छी बात है कि आज ७० वर्षों में पहली बार हम भारतीयों को देश के हित में संपूर्ण समर्पण देने वाला प्रधान मंत्री मिला है| जो देश के सभी क्षेत्र के हित में काम कर रहा है| अगले दस साल में भारत का हर गांव स्वावलंबी हो यह मेरी सोच है और वह सोच लेकर कुछ सुझाव वाली बातें मैंने पत्र में लिखी हैं|

देश में लगभग ६ लाख गांव हैं| हर गांव को हम समस्त महाजन वाले १० लाख रु. में गांव का विकास करने की योजना रखते हैं| १० जिले एक साल में करने की ताकद रखते हैं| जिसमें तालाब, गोचर, वृक्षारोपण जैसे विषयों का विकास होगा|

 समस्त महाजन को अब तक कौन-कौन से पुरस्कार प्राप्त हुए हैं?

हम पुरस्कारों के लोभ से काम नहीं करते, ना ही उनकी कतार में खड़े होते हैं, ना पुरस्कारों के लिए केंद्र सरकार, राज्य सरकार, अथवा अन्य संस्थाओं के पास अर्जी करते हैं| हमारा पूरा ध्यान ग्राम विकास पर देते हैं| भारत सरकार की तरफ से इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार हमें २००५ में सबसे पहले मिला था| उसके बाद महाराष्ट्र सरकार ने वनश्री पुरस्कार दे दिया था| तब विलासराव देशमुख मुख्यमंत्री थे| उसके बाद अनेक सामाजिक संस्थाओं ने सम्मानित किया है| अभी-अभी अमिर खान की संस्था के माध्यम से हमारी समस्त महाजन संस्था को मा. मुख्यमंत्री मा. देवेंद्र फडणवीस जी के हाथों पुरस्कार प्रदान किया गया है| लेकिन एक बात बताऊं-‘समस्त महाजन के सेवा कार्यों से गांव के किसान के मन से आत्महत्या का विषय समाप्त होकर जिंदगी जीने का विचार पनपता है तो किसानों के चेहरे पर तब दिखाई देने वाली खुशी हमारा सबसे बड़ा पुरस्कार है|’

 भविष्य की योजनाएं क्या हैं?

गुजरात के तिवरा पोल २४२ हैं| उनकी ७२,००० उनकी जमीन है| उसका हमें विकास करना है| शिक्षा के क्षेत्र में १०,००० विद्यार्थियों को मूल्य आधारित शिक्षा देने का प्रकल्प हम तय कर रहे हैं| अगले साल प्रथम चरण में १००० विद्यार्थी इस शिक्षा पद्धति से जुड़ जायेंगे| संपूर्ण भारत की गो सेवा के संदर्भ में सरकार के साथ मिलकर हम गौ-सेवा, गौ-प्रकल्प, गौ-उद्योग से जुड़ी अपनी सोच संपूर्ण भारत के किसानों तक पहुंचाने का प्रकल्प तैयार कर रहे हैं|

 

 

Tags: august2021educationhindivivekinformativesansthaparichaysocial

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