राम मंदिर निर्माण को रोकने की और भी कोशिशें होंगी!

राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण को हमेशा से रोकने की कोशिश करने वाले लोगों ने एक बार फिर से इसका असफल प्रयास किया है। रामभक्तों पर गोलियां चलाने वाले लोगों ने अब मंदिर निर्माण को लेकर झूठा आरोप लगाना शुरू किया है और उनकी कोशिश है कि मंदिर निर्माण को रोका जा सके या फिर इसमें कार्यरत लोगों को बदनाम किया जा सके। यह राजनीति हिन्दुओं को आपस में विभाजित करने के लिए की जा रही है जिससे संगठित लोगों को आपस में विभाजित कर अपना राजनीतिक उल्लू सीधा किया जा सके। 
देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस की वामपंथी विचारधारा से सभी लोग वाकिफ है लेकिन अब इसी विचारधारा पर समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी और लेफ्ट भी आगे बढ़ रहा है। इनका सिर्फ एक ही मकसद है कि हिंदुओं के बीच फूट डालो और राज करो, क्योंकि मुगल और अंग्रेज भी यही रणनीति पर काम करते थे उन्हे यह भलिभांति पता था कि अगर सभी हिन्दू एक हो गये तो इन्हे तोड़ना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन होगा। इसलिए उन्होने भी अलग अलग राजाओं को प्रलोभन और भय के माध्यम से आपस में तोड़ दिया और फिर एक एक कर पूरे देश को जीत लिया। 
 
उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भी इस तरह की गिरी हुई हरकत की जा रही है क्योंकि पिछले परिणाम से विपक्षी अभी भी डरे हुए है और उन्हे ऐसी उम्मीद है कि इस बार भी हिन्दू एक हो गये तो फिर से वह सत्ता से दूर हो जायेंगे। योगी सरकार की साफ सुथरी राजनीति और विकास के बाद अब विपक्ष को डर लगने लगा है इसलिए वह इस तरह के हथकंडों को आजमा रही है। 
 
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने जिस भूमि को खरीदा है वह सपा के ही नेता सुल्तान अंसारी की है जिसे उन्होने सन 2011 में 2 करोड़ में खरीदा था और अब वह भूमि श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को बेंच दी। इस सौदे के बाद सपा के पूर्व मंत्री तेज नारायण पांडे ने इस घोटाले के जिन्न को जन्म दिया। सूत्रों की मानें तो यह भी कहा जा रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और तेज नारायण पांडे के सुल्तान अंसारी से रिश्ते अच्छे है जिसके चलते इस तरह के घोटाले वाले नाटक को जन्म दिया गया है। मंदिर के लिए खरीदी गई जमीन को लेकर यह झूठ फैलाया गया कि इस जमीन के दाम 15 मिनट में 2 करोड़ से 18.5 करोड़ रुपये कर दी गयी जबकि असली सच्चाई इससे बिल्कुल ही अलग है। 
 
आप को बता दें कि सुल्तान सहित कुछ लोगों ने इस जमीन को सन 2011 में 2 करोड़ में खरीदा था लेकिन उसकी कीमत उन्होंने नहीं दी थी जिसके लिए मंदिर ट्रस्ट को बेचने से पहले उन्होने 2 करोड़ की रकम जमीन के असली मालिक को दिया और अपने नाम पर बैनामा कराया लेकिन ठीक उसी दिन अंसारी ने यह जमीन मंदिर ट्रस्ट को बेंच दिया जिसकी कीमत 18.5 करोड़ थी। अब आप इस पूरे मामले को समझे कि यह जमीन 2 करोड़ से 18.5 करोड़ 15 मिनट में नहीं बल्कि 10 साल में हुई है जबकि विरोधी दल इसे 15 मिनट बता सभी को गुमराह कर रहे है। अगर जमीन के इतिहास को देखें तो 2010 के बाद से इसको कई लोगों के नाम पर ट्रांसफर किया गया। हर तीन साल में एग्रीमेंट के मुताबिक नाम बदलता गया। सन 2010 से पहले यह फिरोज खान के नाम पर थी फिर यह बबलू पाठक और सुल्तान अंसारी के नाम पर हुई। 
 
इस जमीन को एग्रीमेंट के साथ साथ अलग अलग नामों पर दर्ज किया गया लेकिन पैसे कभी भी किसी को नहीं मिले इसलिए बैनामा नहीं हुआ। राम मंदिर ट्रस्ट ने जब जमीन को खरीदने का फैसला लिया तब इस जमीन का बैनामा अंसारी के नाम पर हुआ लेकिन समय के साथ साथ जमीन की कीमत बढ़ती गयी और अंत में यह 2 करोड़ से 18.5 करोड़ तक पहुंच गयी। जानकारों की मानें तो यह कीमत भी अभी वर्तमान कीमत से कम है। 
सुप्रीम कोर्ट के राम मंदिर के फैसले के बाद समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी सहित कई दलों ने इसका खुल कर विरोध किया था। किसी ने मस्जिद को बनाने की बात कही थी तो किसी ने राम के अस्तित्व को नकार दिया था। कई लोगों ने मंदिर की जगह अस्पताल बनाने की भी सलाह दी थी ऐसे में इनसे कुछ और उम्मीद नहीं की जा सकती है। समाजवादी सरकार को तो कभी वैसे भी नहीं भूला जा सकता क्योंकि इन्होने तो राम भक्तों पर गोलियां चलवाई थी। राम मंदिर कई दलों की आंखों में खटक रहा है और यह लोग अंतिम समय तक यह प्रयास करेंगे कि इसे पूरा ना होने दिया जाए। 

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