कबीरदास जयंती: ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय, औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होय

महान कवि और लेखक कबीरदास का जन्म जेष्ठ माह के शुक्ल पक्ष को हुआ था जो इस बार 24 जून 2021 को पड़ रहा है इसलिए हम इस बार 24 जून को करीबदास की 644वीं जयंती मनाएगें। करीबदास की कविताएं बहुत ही प्रसिद्ध हैं और उन्हे तमाम पाठ्यक्रमों में भी शामिल किया गया है। कबीर का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिसे हम बनारस भी कहते है वहां सन 1398 में हुआ था। कबीर 15वीं शताब्दी के महान कवियों में से एक थे जिनकी चर्चा आज तक की जाती है और उनके दोहे आज भी मशहूर हैं। कबीर की रचनाओं ने भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर पर प्रभावित किया उन्होंने कभी भी किसी धर्म को नहीं माना और एक धर्म सिर्फ ईश्वर को बताया। कबीर ने समाज में फैली बुराइयों और कुरीतियों को भी खत्म करने का बहुत प्रयास किया जिसमें वह कुछ हद तक सफल भी हुए उन्होने हमेशा अंधविश्वास और व्यक्ति पूजा का विरोध किया। 

 


कबीर का जन्म साधारण नहीं था और ना ही उनका व्यक्तित्व साधारण था। सही मायने में उनके असली माता पिता की जानकारी किसी के पास नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि जब नीमा और नीरू नाम की एक दंपत्ति बनारस जा रहे थे तभी उन्हें एक तालाब के पास कमल के फूल में लिपटे हुए मिले। नीमा और नीरू जुलाहा थे लेकिन कबीर की शिक्षा हिन्दी स्कूल से हुई जिससे उनकी हिन्दी काफी अच्छी थी। हालांकि ऐसा भी कहा जाता है कि कबीर की शिक्षा बहुत ज्यादा नहीं हुई थी लेकिन उन्होने अपने गुरु स्वामी रामानंद से बहुत कुछ सीख लिया और शास्त्रों का भी ज्ञान हो गया था।

 
 
कबीर ने अपने दोहों के माध्यम से जीवन को सुधारने की कोशिश की और इसके लिए बहुत ही सरल भाषा का इस्तेमाल भी किया। लोगों ने इनके दोहे को स्वीकार किया और बहुत सारे लोगों ने उसके आधार पर अपने जीवन में परिवर्तन भी लाए। कबीर के दोहों की बढ़ती प्रतिभा की वजह से उसे बाद में पाठ्यक्रम में भी शामिल कर दिया गया। कबीरदास ने सभी वर्गों के लिए कुछ ना कुछ जरूर लिखा है और सभी को अच्छी और अनमोल सीख दी है। कबीर हमेशा से यह चाहते थे कि समाज एक होकर रहे और सभी को सम्मान दिया जाए।  
 
 
प्राचीन समय से लेकर अभी तक ऐसा कहा जाता है कि जिसकी भी मृत्यु बनारस में होती है उसे स्वर्ग मिलता है उस समय भी यह कथा प्रचलित थी और बस्ती के करीब मगहर में मरने वाला नर्क में जाता है ऐसा कहा जाता था जिसे गलत साबित करने के लिए कबीर ने अपने जीवन के अंतिम समय में मगहर की तरफ रुख लिया और अपने अनुयायियों के साथ वह मगहर चले गये और अंतिम सांस भी मगहर में ही ली। कबीर की मृत्यु को लेकर यह कहा जाता है कि मृत्यु के पश्चात हिन्दू और मुसलमानों में उनके शरीर को जलाने और दफनाने को लेकर विवाद हुआ जिसके बाद आकाशवाणी हुई और जब उनके मृत शरीर से कफन हटाया गया तो वहां सिर्फ एक फूल मिला जिसे दोनों ने आपस में आधा आधा बांट लिया। 
कबीर के दोहे-
क्या मांगू कुछ थिर न रहाई, देखत नैन चला जग जाई।
एक लख पूत सवा लख नाती, उस रावण कै दिया न बाती।। 
 
पत्थर पूजे हरि मिले, तो मैं पूंजू पहाड़।
ताते तो चक्की भली, पीस खाए संसार।। 
 
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर।।
 
साईं इतना दीजिए, जामें कुटुंब समाय।
मैं भी भूखा ना रहूं, साधु न भूखा जाय।। 

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