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अपने बिछाए जाल में फंस गया ट्विटर

अपने बिछाए जाल में फंस गया ट्विटर

by आशीष अंशू
in जुलाई-२०२१, सामाजिक
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मकड़ी की तरह ट्विटर भारत में भी जाल बुनने में व्यस्त था। ऐसे ही जाल में उसने पहले अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को उलझा कर पटख़नी दी थी। जिससे उसका हौसला बुलंद हुआ। लेकिन, ट्विटर को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि 20 करोड़ की आबादी वाले देश नाइजीरिया ने अपने राष्ट्रपति मोहम्मद बुहारी के एक ट्वीट को हटाने के लिए, उसे अनिश्चित काल के लिए अपने देश में प्रतिबंधित कर दिया। अब वहां भारतीय कू एप्प को शुरू करने की अनुमति मिल गई है।

बीते तीन महीनों में माइक्रो ब्लॉगिंग साईट ट्विटर की गतिविधियों को देखने के बाद उसका नाम स्पाईडर रख देने की सलाह को ग़लत तो नहीं माना जाएगा। कई बार उसके बयानों से ऐसा लगा कि वह भारत विरोधी ताकतों के साथ मिलकर जाल बुनने के काम में लगा है। वह भारत की मोदी सरकार को सरकार मानने को तैयार नहीं है। उसे बार-बार नोटिस भेजा जा रहा है और वहां से सही जवाब नहीं आ रहा। पर, बकरी की अम्मा आख़िर कब तक खैर मनाएगी?

मकड़ी की तरह ट्विटर भारत में भी जाल बुनने में व्यस्त था। ऐसे ही जाल में उसने पहले अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को उलझा कर पटख़नी दी थी। जिससे उसका हौसला बुलंद हुआ। लेकिन, ट्विटर को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि 20 करोड़ की आबादी वाले देश नाइजीरिया ने अपने राष्ट्रपति मोहम्मद बुहारी के एक ट्वीट को हटाने के लिए, उसे अनिश्चित काल के लिए अपने देश में प्रतिबंधित कर दिया। अब वहां भारतीय कू एप्प को शुरू करने की अनुमति मिल गई है। नाइजीरिया की सरकार के इस रूख को देखकर ट्विटर फिर से एक बार वहां बातचीत की प्रक्रिया प्रारंभ करने की कोशिश में लगा है।

भारत के उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू का ब्लू टिक ट्विटर ने जून के प्रथम सप्ताह में हटा लिया था। उसे थोड़ी देर में ही अपनी भूल का अहसास हो गया। जब देश भर में इसके विरोध में सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया आने लगी। उसने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कुछ अखिल भारतीय अधिकारियों का ब्लू टिक भी कुछ घंटों के लिए हटाया था। ट्विटर को यह सब करते हुए जरुर जाल बुनने का आनंद आ रहा होगा लेकिन उसे इस बात का अहसास कहां होगा कि भविष्य में उसे अपने इसी बुने हुए जाल में फंसना है।

खोया इंटरमीडियरी प्लेटफॉर्म का दर्ज़ा

नए आईटी नियमों का पालन नहीं करने की वजह से ट्विटर ने 16 जून को देश में इंटरमीडियरी प्लेटफॉर्म का दर्जा खो दिया है। यानि, अब ट्विटर के ऊपर मौजूद सुरक्षा कवच हट गया है। भारतीय कानूनों की अनदेखी करने की वजह से इसके लिए वह खुद ही जिम्मेवार है। अब आगे से ट्विटर पर किए गए पोस्ट के लिए यदि किसी को आपत्ति है तो वह न्यायालय में उसे खींच कर ले जा सकता है। उसके ख़िलाफ़ थाने में शिकायत कर सकता है। पुलिस ट्विटर के अधिकारियों से पूछताछ कर सकती है।

हमें भी समझना होगा कि सोशल मीडिया पर फेक़ न्यूज़ एक बड़ी समस्या है। जिसकी वजह से कई बार विधि-व्यवस्था के बिगड़ने का ख़तरा भी रहता है। दिल्ली दंगे हों या फिर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हुए साम्प्रदायिक दंगे। उसके पीछे भी जांच-पड़ताल में अफ़वाहों की बड़ी भूमिका पाई गई। ऐसी ही एक झूठी खबर गाज़ियाबाद के लोनी में एक बुज़ुर्ग पर हुए हमले को लेकर फैलाई गई। जिसमें बताया गया कि लोनी में अब्दुल समद नाम के एक बुजुर्ग से जबरन ‘जय श्री राम’ बुलवाया गया, जबकि जान बूझकर आरोपितों में शामिल आरिफ, आदिल और मुशाहिद का नाम छुपाया गया। पुलिस की जांच में ये मामला सांप्रदायिक नहीं निकला। जिसके बाद ‘सेकुलर’ खेमे में घोर निराशा दिखी। फैक्ट-चेक कर बताने वाले पोर्टल आल्ट न्यूज का सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर खुद इस मामले में झूठी खबर फैलाता हुआ पकड़ा गया। जब फैक्ट चेकर ही झूठी खबर फैलाएंगे फिर आम आदमी तथ्यों के लिए किस पर विश्वास करेगा?

लोनी वाली सारी झूठी खबर ट्विटर पर ही फैलाई जा रही थी लेकिन उसने कोई कार्रवाई नहीं की। जबकि फैक्ट चेक वाले अपने मैकेनिज्म पर उसे बहुत भरोसा है। फिर भी हिंसा की वीडियो फेक नैरेटिव के साथ धड़ल्ले से ट्विटर पर चल रही थी। फैक्ट चेक का सारा मैकेनिज्म वहां फेल था। उल्लेखनीय है कि ट्विटर पर फेक न्यूज का सारा रायता वे लोग फैला रहे थे जिन्हें ट्विटर ने ब्लू टिक दे रखा है। लेकिन एक भी फेक पोस्ट पर ट्विटर ने मेनुपुलेटेड मीडिया का टैग नहीं लगाया। इस तरह कहा जा सकता है कि इस पूरे अपराध में ट्विटर की बराबर की भागीदारी थी।

सम्बित पात्रा के कांग्रेसी टूलकिट वाले ट्वीट पर मेनुपुलेटेड का टैग लगाते हुए उसने बिल्कुल देरी नहीं की थी। जबकि भारत की किसी संवैधानिक संस्था द्वारा उस मामले में कोई जांच नहीं हुई थी। ट्विटर का कोई अधिकार नहीं बनता था कि वह खुद जांच अधिकारी बनकर सम्बित पात्रा के 18 मई के कांग्रेसी टूलकिट वाले ट्विट पर मेनुपुलेटेड मीडिया टैग कर दे।

नफरत की मुकुल सिन्हा परंपरा

वायर, आल्ट न्यूज़ जैसी वेबसाइट संघ और भाजपा को बदनाम करने का कोई भी मौका नहीं चूकतीं। इसके लिए उन्हें यदि झूठी खबर का सहारा लेना पड़े या फिर कोई अफ़वाह भी उड़ानी पड़े तो भी वे तैयार नजर आती हैं। इस तरह की सारी ख़बरें लगातार ट्विटर पर ट्रेंड कर जाती हैं लेकिन उन पर कभी मेनुपुलेटेड मीडिया का टैग नहीं लगाया जाता।

आल्ट न्यूज़ के संस्थापकों में से एक प्रतीक सिन्हा के पिता मुकुल सिन्हा गुजरात में संघ और भाजपा से नफरत करने वालों के बीच बड़ा सम्मान पाते थे। तीस्ता सीतलवाड़ जब पूरी दुनिया में घूम-घूमकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संबंध में झूठ फैला रही थी। गुजरात में अधिवक्ता मुकुल सिन्हा ही थे जो उनके साथ खड़े थे और तीस्ता को दस्तावेज़ उपलब्ध करा रहे थे। प्रतीक सिन्हा संघ और भाजपा से नफरत की ‘मुकुल सिन्हा’ परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।

रविशंकर प्रसाद की बातें

ट्विटर के इंटरमीडियरी प्लेटफॉर्म का दर्ज़ा ख़त्म होने के बाद केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर अपना पक्ष रखा। केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि इस बात को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं कि क्या ट्विटर कानूनी संरक्षण का हकदार है? हालांकि, मामले में सीधी बात यह है कि ट्विटर 26 मई से लागू हुई गाईडलाईन का पालन करने में नाक़ाम रहा है। इसके बाद भी उन्हें काफ़ी मौके दिए गए थे। फ़िर भी उन्होंने जानबूझकर गाईडलाईन न मानने का रास्ता चुना।

सच्चाई यह है कि ट्विटर का कानूनी संरक्षण ख़त्म हो जाने को लेकर केंद्र सरकार की तरफ़ से कोई आदेश जारी नहीं हुआ है। मंत्रालय की तरफ से जारी किए गए दिशा निर्देशों का पालन नहीं करने की वजह से ट्विटर ने भारत के अंदर अपना कानूनी संरक्षण वाला दर्ज़ा खो दिया है॥ ट्विटर का कानूनी संरक्षण तो 25 मई से ख़त्म है। मतलब मकड़ी ने जो जाल भारत में बुना था, धीरे-धीरे वह उसी में उलझने लगी। इसलिए मैनें लिखा, यह ट्विटर नहीं स्पाईडर है।

ट्विटर भारत विरोधी ताकतों के साथ ?

केंद्र सरकार की तरफ से सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को धारा 79 के तहत विशेष सुरक्षा हासिल है। सोशल मीडिया होने के नाते इसका लाभ ट्विटर को भी मिलता था। इस सुरक्षा की वजह से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से किसी तरह की हिंसा होती है या किसी तरह के षडयंत्र की जानकारी मिलती है तो उसके लिए कंपनी जिम्मेदार नहीं होती थी और इस मामले में होने वाले मुकद्दमे में कंपनी को पक्ष नहीं बनाया जा सकता था। इसलिए तमाम तरह के विवादों के बीच भी ट्विटर हमेशा भारत के अंदर चैन से रहा। पिछले तीन महीनों में उसने खुद अपने चैन को चुनौती दे दी।

नए आईटी नियम के अन्तर्गत केन्द्र सरकार ने आदेश जारी कर कहा था कि सोशल मीडिया कंपनी एक महीने के अंदर मुख्य अनुपालन अधिकारी (सीईओ) की नियुक्ति करें, जो सोशल मीडिया उपभोक्ताओं की शिकायतों को सुलझाए। सीईओ की नियुक्ति न होने पर सरकार ने धारा 79 के तहत सुरक्षा खत्म करने की चेतावनी पहले से ही दे रखी थी। ट्विटर ने इस बात की परवाह नहीं की और लोनी (गाज़ियाबाद) प्रकरण में 15 जून को ट्विटर के खिलाफ पहली एफआईआर उत्तर प्रदेश में दर्ज़ हो गई।

सरकार के ़फैसले के बाद ट्विटर अब अकेला ऐसा अमेरिकी प्लेटफॉर्म है, जिससे आईटी एक्ट की धारा 79 के तहत मिलने वाला कानूनी संरक्षण सरकार ने वापस ले लिया गया है, जबकि गूगल, फेसबुक, यूट्यूब, वॉट्सएप्प, इंस्टाग्राम जैसे अन्य प्लेटफॉर्म को अभी भी यह सुरक्षा हासिल है। इस तरह सोशल मीडिया की जमात में ट्विटर अलग-थलग पड़ गया है।

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