स्वर्ण सदी के ‘ट्रैजेडी-किंग’ दिलीप कुमार

        7 जुलाई 2021 की इस सुबह को बॉलीवुड और बॉलीवुड फ़िल्मों का हर चाहने वाला शायद कभी ना भुला पाएगा। अभिनय की तारीख़ बदलने वाले ‘ट्रेजेडी किंग’ दिलीप कुमार का निधन इस तारीख़ को भी उनके नाम कर गया।
सन 1944 में फ़िल्म ‘ज्वार भाटा’ से अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत करने वाले दिलीप कुमार का जन्म 11 दिसंबर 1922 में पेशावर, पाकिस्तान में रहने वाले लाला सरवर ख़ान और आएशा बेग़म के घर हुआ था।
          अपने दम पर कुछ कर दिखाने की सोच रखने वाले दिलीप कुमार के फ़िल्मी करियर की शुरुआत कुछ ख़ास नहीं रही क्योंकि फ़िल्म ‘ज्वार- भाटा’ की गिनती बहुत क़ामयाब फ़िल्मों में शामिल नहीं हो सकी।  लेकिन, यूसुफ खान उर्फ़ दिलीप कुमार के लिए अभिनय के ज़बरदस्त सफ़र की शुरुआत तो इस फ़िल्म से हो ही चुकी थी। इसके बाद आईं  फ़िल्म ‘प्रतिमा’ और ‘मिलन’ भी बॉक्स-ऑफिस पर बहुत अधिक सफ़लता दिलीप कुमार के नाम नहीं कर सकीं लेकिन उनके अभिनय की प्रशंषा होने लगी थी।
           और फ़िर उनकी पहली फ़िल्म के तीन साल बाद  1947 में आई, दिलीप कुमार और अभिनेत्री नूर जहाँ की  फ़िल्म ‘जुगनू’ ने बॉलीवुड के बॉक्स-ऑफिस में धमाल मचा दिया। ये फ़िल्म एक बहुत बड़ी ‘हिट’ साबित हुई और इसी के साथ भारतीय फ़िल्म इंडस्ट्री को मिला उसका नया सुपरस्टार। फ़िल्म इतनी क़ामयाब हुई कि इसके बाद उनकी  पाँच फ़िल्में एक के बाद एक लगातार रिलीज़ हुईं –  ‘घर की इज़्ज़त’, ‘शहीद’ और ‘मेला’,’अनोखा प्यार’ और ‘नदिया के पार’। इन सभी फ़िल्मों में दिलीप कुमार के बेहतरीन अभिनय का जनता को दीवाना बना दिया। ‘नदिया के पार’ वर्ष 1948 की सबसे अधिक कमाई करने वाली फ़िल्म बनी।    ज़बरदस्त अभिनय के साथ अब बॉक्स-ऑफिस पर भी क़ामयाब दिलीप कुमार ने सफ़लता के इस सफ़र में फ़िर कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा।  उनकी हर फ़िल्म अपनेआप में एक मिसाल बनती गई।
शहीद {1948} / नदिया के पार {1948}/ मेला {1948}/  ‘घर की इज़्ज़त’  {1948}/  ‘अनोखा प्यार’ {1948}/   बाबुल {1950}/ अंदाज़ {1949}/ दीदार {1951}/ फुटपाथ {1953} / आज़ाद {1955}/ देवदास {1956}/ नया दौर {1957}/ कोहिनूर {1960}
मुग़ल-ए-आज़म {1960}/ गंगा-जमुना {1961}/ लीडर {1964}/ राम और श्याम {1967}/ क्रान्ति {1981}/ शक्ति {1982}/ विधाता {1982}
दुनिया {1984}/ कर्मा {1986}/ सौदागर {1991} जैसी कई हिट फ़िल्में उन्होंने दीं।  सन 1988 में बनी फ़िल्म ‘किला’ उनकी अंतिम फ़िल्म थी।
            उनके पाँच दशक के फ़िल्मी करियर में दिलीप कुमार ने लगभग पैंसठ फ़िल्में कीं। पद्म भूषण, दादासाहेब फाल्के अवार्ड, पद्म विभूषण, और फ़िल्म फ़ेअर के साथ कई अवार्ड्स उन्होंने जीते।  सर्वाधिक  फ़िल्म फ़ेअर अवॉर्ड जीतने का कीर्तिमान स्थापित करने वाले दिलीप कुमार को भारतीय सिनेमा में ‘मेथड एक्टिंग’ का गुरु भी कहा जाता है।
          जब सफलता के चरम पर थे तब दिलीप कुमार ने 1966 में जानी मानी अदाकार सायरा बानो से विवाह किया। हालाँकि उन्होंने 1980 में आसमा बेग़म से भी विवाह किया था लेकिन लगभग एक वर्ष बाद ही उनसे तलाक़ भी ले लिया। जीवन के अंतिम क्षण तक वे सायरा बानो के साथ ही रहे।
           दिलीप कुमार केवल अपने दौर के ही नहीं बल्कि फ़िल्म जगत के सम्पूर्ण इतिहास में श्रेष्ठ अभिनेता माने जाते हैं। कई सुप्रसिद्ध अभिनेताओं के आदर्श रहे ‘ट्रैजेडी-किंग’ दिलीप कुमार का चले जाना भारतीय सिनेमा के  लिए एक स्वर्ण सदी का अंत है। लेकिन, ये भी निश्चित है कि उनकी फ़िल्में सदियों तक आने वाले हर अभिनयकर्ता के लिए प्रेरणास्रोत रहेंगी।

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