जैव-कम्पोस्ट योग्य पॉलिमर

प्लास्टिक के विकल्प के रूप में कम्पोस्ट योग्य पॉलिमर पिछले कुछ वर्षों में सफलतापूर्वक विकसित किया गया है। यह पॉलिमर प्लास्टिक के सूक्ष्म टुकड़े करता है और जैविक संसाधनों में घुल मिलकर उनका कम्पोस्ट बना देता है। प्लास्टिक के खतरे से बचने का यह नया और आधुनिक तरीका है।

प्रौद्योगिकी के विकास और वैश्विक जनसंख्या में वृद्धि के साथ जीवन के हर क्षेत्र में प्लास्टिक सामग्री का व्यापक उपयोग होने लगा है। 20वीं सदी के आरंभ से ही प्लास्टिक बेहद आम सामग्री हो गई है और उसके बिना आधुनिक जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। प्लास्टिक के टिकाऊपन, हल्के वजन और कम लागत के कारण वह बहुत उपयोगी साबित हुआ है। बहरहाल, पॉलिइथिलीन, पॉलिप्रापलिन, पॉलिस्टाइरिन, पॉली (विनायल क्लोराइड) एवं पॉली (इथिलीन टेरेफ्थैलेट) जैसी परम्परागत प्लास्टिक का कम्पोस्ट नहीं बन सकता, और पर्यावरण में उसके बढ़ते ढेर से धरती के समक्ष संकट पैदा हो गया है।

लाखों टन प्लास्टिक कचरा माइक्रोप्लास्टिक टुकड़ों में विश्व के महासागरों में तैर रहा है! तैरती प्लास्टिक थैलियों में कछुए, समुद्री जीव एवं पंछी उलझ जाते हैं और प्लास्टिक कबाड़ खाकर मर जाते हैं, जो एक दुखद पहलू है। (संलग्न चित्र देखें)

प्लास्टिक में कोई निष्क्रिय एवं केमिकल एडिटिव नहीं है। कुछ अंतःस्रावी अवरोधक हैं, जो शरीर के ऊतकों में संक्रमित हो सकते हैं और खाद्य-शृंखला का हिस्सा बन सकते हैं। दूसरी चुनौती है स्रोतों का संरक्षण। यूरोपीय यूनियन में अभी भी कोई 50 फीसदी प्लास्टिक कचरा जमीन में दबा दिया जाता है। इस तरह, उसे नए उत्पादों में पुनर्चक्रित करने के बदले यह प्रक्रियागत कच्चा माल और उससे संभावित काफी ऊर्जा यूंही नष्ट हो जाती है। भारत में- चेन्नै महानगरपालिका के आयुक्त राजेश लखोनी का कहना है, “हर दिन शहर में जमा होनेवाले 3,400 टन प्लास्टिक में से 35 से 40 टन प्लास्टिक कबाड़ है, जिनमें अधिकतर प्लास्टिक की थैलियां ही होती हैं।”(1)

मुंबई के घरों में प्रति वर्ष औसतन प्लास्टिक के 1,000 थैलियों का इस्तेमाल होता है। पूरे महानगर के बारे में सोचें तो मुंबई में प्रति वर्ष 300 लाख प्लास्टिक थैलियों का उपयोग होता है।(2)

दुनियाभर में प्रति वर्ष लगभग 500 बिलियन से 1 ट्रिलियन प्लास्टिक थैलियों का इस्तेमाल किया जाता है। हिसाब करें तो यह प्रति मिनट एक मिलियन होता है और कुछ ही मिनटों में वह कूड़ेदान की भेंट चढ़ जाता है।

प्लास्टिक के निपटारे में लापरवाही के कारण उत्पन्न खतरे से निपटने की बेहद जरूरत है। कुछ कदम अवश्य उठाए गए हैं, फिर भी सभी स्तरों पर अन्य कदम उठाने की आवश्यकता है जैसे कि वैकल्पिक सामग्री की खोज, प्लास्टिक के उपयोग पर जनसाधारण में जागृति और निपटान के लिए कड़े नियम बनाना तथा उन्हें सख्ती से लागू करना। पहला काम है, शीघ्र विघटनयुक्त एवं कम्पोस्टयोग्य वैकल्पिक सामग्री का उत्पादन करना।

पेट्रोलियम से उत्पादित प्लास्टिक का जल्दी जैविक-विघटन नहीं होता और उसका सूक्ष्म जीवाणुओं के जरिए विघटन न होने से पर्यावरण में वह जमा होते जाता है तथा उसके दुष्परिणामों को हमें भुगतना पड़ता है। इसके विकल्प के रूप में (जैव) कम्पोस्ट में परिवर्तित होनेवाला पॉलिमर पिछले कुछ वर्षों में सफलतापूर्वक विकसित किया गया है और हाल के वर्षों में वह दुनियाभर में लोकप्रिय हो रहा है। ये पॉलिमर फौरन प्लास्टिक को सूक्ष्म टुकड़ों में परिवर्तित कर देता है, जो खुली आंखों से दिखाई तक नहीं देते। यही नहीं, वह जैवीय संसाधनों में घुलमिल जाता है अथवा सीओ-2 और पानी में तब्दील हो जाता है।

जैव-प्लास्टिकः

पॉलिमर एवं ईंधन जैसे पेट्रोलियम आधारित उत्पादों में और जैव आधारित पॉलिमर- यहां तक कि जीवन निर्माण में भी- सबसे महत्वपूर्ण घटक कार्बन होता है।

“जैव आधारित” अर्थात केवल नवीनीकरणीय कार्बन स्रोत।

जैव-विघटनयोग्य एवं कम्पोस्ट में परिवर्तन का अर्थः

विघटन का अर्थ है पर्यावरण की विशेष परिस्थितियों में किसी उत्पाद या सामग्री के रासायनिक ढांचे में उल्लेखनीय बदलाव आना, जिससे उसके कुछ गुणों का र्‍हास होना। यह जरूरी नहीं कि प्लास्टिक “प्राकृतिक रूप से उत्पन्न सूक्ष्म जीवों” से विघटित हो जाए।

इन दिनों पॉलिमर के विघटन को बढ़ावा देनेवाले मिश्रण, जिसे ऑक्सो-विघटनयोग्य मिश्रण कहा जाता है, दुनियाभर में बहुतायत से इस्तेमाल किए जा रहे हैं और माना जाता है कि वे वाणिज्यिक पॉलिमर को प्रभावी रूप से विघटित कर देते हैं। ऑक्सो-  विघटनयोग्य पॉलिमर उन्हें कहते हैं, जो गैर-जैविक-विघटनयोग्य परम्परागत पॉलिमर्स से उत्पादित होते हैं और उसमें ऐसे एक या अनेक मिश्रण मिलाए जाते हैं जिससे ओषजन, ताप और/अथवा प्रकाश के सम्पर्क में आने पर पॉलिमर को विघटनयोग्य बना देते हैं। इस मिश्रण में संक्रमण तत्व (कोबाल्ट, मैंगनीज, लौह, जस्ता) शामिल होते हैं जो ताप, हवा और/अथवा प्रकाश के सम्पर्क में आने पर ऑक्सीडेशन को बढ़ावा देते हैं और प्लास्टिक के विघटन की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है। यह जैवीय रूप में या घास में नहीं बदलता। ऑक्सो-प्लास्टिक के छोटे टुकड़े होते हैं, जो खुली आंखों से दिखाई तक नहीं देते।

जैविक-विघटन का अर्थ है ऐसा उत्पाद या सामग्री जो जैविक रूप से उपलब्ध बैक्टीरिया, फंगी आदि सूक्ष्म जीवों के जरिए समय के साथ विघटन कर देता है। इसमें ‘जहरीला तत्व’ नहीं रहता तथा जैविक विघटन के लिए समय भी नहीं लगता। कम्पोस्टयोग्य का अर्थ है ऐसा उत्पाद या सामग्री “जो कम्पोस्ट के स्थान पर जैविक विघटन की क्षमता रखता हो और चाहे वह दिखाई भी न दें, फिर भी कार्बन डायोक्साइड, पानी, अजैविक संयुगों में, जैविक रूप से ज्ञात कम्पोस्टयोग्य सामग्री (उदा. सेल्युलोज) में निरंतर गति से तब्दील कर दें।” सभी कम्पोस्टयोग्य सामग्री स्वभाव से ही जैव-विघटनयोग्य होती है।

जैव-कम्पोस्टयोग्य पॉलिमर उसकी नई पीढ़ी का उत्पाद है, जो कम्पोस्ट के जरिए जैव-विघटनयोग्य है। उनका उत्पादन आम तौर पर स्टार्च (उदा. मका, आलू, टॉपिओका आदि), सेल्यूलोज, सोया प्रोटीन, लैक्टिक आम्ल आदि से किया जाता है, जो खतरनाक/जहीरीला उत्पाद नहीं है। इस पॉलिमर का अधिकतर हिस्सा बायोमास से बनाया जाता है।

बायो आधारित एवं कम्पोस्टयोग्य पॉलिमर के लाभः

* सीमित जीवाश्म स्रोतों पर निर्भरता कम करने में मदद करता है, क्योंकि जीवाश्म स्रोत आनेवाले दशकों में बहुत महंगे पड़नेवाले हैं। जीवाश्म स्रोत धीरे-धीरे घटते जा रहे हैं और उसके स्थान पर नवीनीकरणीय स्रोतों (वर्तमान में मुख्य रूप से मका एवं मीठे चुकंदर जैसी वार्षिक उपज अथवा कसावा एवं गन्ने की निरंतर होनेवाली उपज) का उपयोग किया जा रहा है।

* हरित गृहों के उत्सर्जन को घटाने अथवा कार्बन को निष्प्रभावी करने की उसकी अनोखी क्षमता होती है। पौधें बढ़ने के साथ ही वातावरण का कार्बन डायऑक्साइड शोषित कर लेते हैं। इस बायोमास का जैव-आधारित प्लास्टिक बनाने में उपयोग करने से वातावरण से हरित गृह गैस (सीओ-2) अस्थायी तौर पर हटाई जा सकती है। यदि सामग्री का पुनर्चक्रण किया गया तो कुछ अवधि तक कार्बन को रोका जा सकता है।

* उससे चक्र रोका जा सकता है और स्रोतों की क्षमता बढ़ाई जा सकती है। ‘यूज कास्केड’ स्थापित कर इस क्षमता को और प्रभावी रूप से बढ़ाया जा सकता है, जिसमें नवीनीकरणीय स्रोतों का ऊर्जा पुनर्निर्माण में उपयोग करने के पहले अन्य सामग्री एवं उत्पादों के निर्माण के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। यह दो तरह से होता हैः

  1. नवीनीकरणीय स्रोतों का बायोपॉलिमर उत्पादों के लिए उपयोग करने के साथ ही उनका कई बार यांत्रिक रूप से पुनर्चक्रण किया जा सकता है और उनके पूरे समय में नवीनीकरणीय ऊर्जा भी प्राप्त की जा सकती है; अथवा-
  2. नवीनीकरणीय स्रोतों का उपयोग बायोपॉलिमर उत्पादों के लिए करते समय उत्पाद के जीवन-चक्र के दौरान उनका जैवीय पुनर्चक्रण (कम्पोस्ट बनाना) करना तथा इस प्रक्रिया के दौरान मूल्यवान बायोमास/ह्यूमस का उत्पादन करना।

* यही नहीं, जैव-आधारित एवं कम्पोस्टयोग्य प्लास्टिक होने से जैव-कूड़ा जमीन में डालने से बचने में सहायता हो सकती है और इस तरह कचरा-प्रबंधन सक्षमता से हो सकता है। कुल मिलाकर, जैव-पॉलिमर से स्रोतों का अधिकतम उपयोग हो सकता है।

जैव-कम्पोस्टयोग्य पॉलिमर- आर्थिक पक्ष

जैव-कम्पोस्टयोग्य पॉलिमर की लागत परम्परागत प्लास्टिक के मुकाबले आम तौर पर अधिक है और इसी कारण उसके व्यापक उपयोग पर सीमा लगती है। लिहाजा, लगभग पिछले दशक से उत्पाद-क्षमता में उल्लेखनीय प्रगति हुई है।

जैव-आधारित प्लास्टिक

Leave a Reply