…और मौत का भी गला भर आया

मुख्यमंत्री बनने के बाद भी ‘ड्रेस एवं एड्रेस’ न बदलने वाले मनोहर जी ने ‘मानवता’ नहीं छोड़ी। यह लिखने में जितना सरल लगता है, जीवन में उतारने में उतना ही कठिन है। परंतु मा. पर्रिकर जी ने ऐसा कर दिखाया।

समर्थ स्वामी रामदास ने अपने ग्रंथ दासबोध में पूरा एक अध्याय ‘मृत्यु’ इस विषय पर लिखा है। इसका अर्थ मृत्यु का हमारे जीवन में महत्व वाद-विवाद से परे है। जैसे ही मा.मनोहर पर्रीकर जी के मृत्यु(17/3/2019) की खबर प्राप्त हुई, मन में पहला विचार यही आया कि आज मौत का भी गला भर आया होगा।

यमदूत तो अनेक दिनों से उनका पिछा कर रहे थे। येनकेन प्रकारों से वे उन्हें ले जाने का प्रयत्न कर रहे थे। उस दिन उन्होंने अपना काम आखिर कर रही दिया। वे तो यमदूत ही थे, यम की आज्ञा का उन्होंने पालन करना ही था इसलिये इसमें उनका कोई दोष है, ऐसा कहना ठीक नही होगा।

इस धरती पर अनेक जीव जन्म लेते हैं और यथाकाल अपना जीवन पूर्ण कर कालगती को प्राप्त हो जाते हैं। परंतु कुछ लोग मात्र जीते ही नहीं है वे तो समाज में अपनी पात्रता, अपना कद बढाते जाते हैं। ऐसे लोगों की मृत्यु भी एक अलग अर्थ में एक ‘समारोह’ होता है। उस दिन शायद यम के दरबार में भी ‘आनंदोत्सव’ मनाया गया होगा, क्यों कि मृत्युलोक से एक कर्मयोगी यमलोक में प्रवेश कर रहा था।

25-30 वर्ष पूर्व एक तरुण खखढ सरीखी एक नामांकित संस्था से डिग्री लेकर बाहर निकलता है और नौकरी के लिये विदेश जाने की अपेक्षा वापस गोवा आता है। उस समय एक उपेक्षित दल का झंडा थामकर, अनेक साथियों को साथ लेकर संगठन खड़ा करता है और बाद में गोवा की सत्ता काबिज करता है और किसी सिनेमा की कथा के अनुसार आदर्श जीवन व्यतीत करता है। ये सब विलक्षण नही है तो क्या है?

मुख्यमंत्री बनने के बाद भी ‘ड्रेस एवं एड्रेस’ न बदलने वाले मनोहर जी ने ‘मानवता’ नही छोडी। यह लिखने में जितना सरल लगता है, जीवन में उतारने में उतना ही कठिन है। परंतु मा. पर्रिकर जी ने ऐसा कर दिखाया।

स्कूटर पर घूमने वाला और सबको सहजता से उपलब्ध मुख्यमंत्री यह जो नाम उन्होंने कमाया था उसे उन्होंने अपने जीवन भर निभाया। वह तो उनके जीवन का अविभाज्य घटक बन गया था, ऐसा कहने में कोई हर्ज नही है। “जीवन कार्यरत रहे एवं मृत्यु ही विश्रांति” यह कविता मा. मनोहरजी ने अपने जीवन में साकार कर दिखाई। ‘ व्यक्ति का काम बोलता है’ यह वचन और ऐसे अनेक वचन उनके जीवन का अविभाज्य अंग थी ऐसा ही कहना पड़ेगा। उनके बारे में बोलते समय मेरे शब्द भंडार के शब्द समाप्त हो जाते हैं परंतु लिखने वाले हाथ रुकते नहीं है।

आज मृत्यु भी उनकी आत्मा को ले जाते समय रोया होगा। इसके पहले जितने बार भी यमदूत उन्हे लेने आये होंगे, परममंगल भारतमाता ने उन्हे अवश्य हो रोका होगा। भारतमाता ने कहा होगा यह मेरा कामयाब बेटा है, इसे मत ले जाओं । परंतु नियति के आगे सारे ही बेबस हैं यही सच है….!!

श्री मनोहर पर्रिकर जी का सारा जीवन भारतमाता की सेवा में बात गया।
अंग्रेजी में एक कहावत है-
ts very easy,to give an example
BUT
Its very difficult, to secome an example.
try to be an example
मा. मनोहर जी ने ऐसा ही जीवन जिया। उनके जीवन को मै यह सुमनांजली अर्पण करता हूं। ईश्वर उनकी आत्मा को सद्ेगति दें।

Leave a Reply