भारत बोध के संघर्ष में मोदी का आंकलन

भारतीय सभ्यता लम्बे अरसे तक संघर्षों में फंसी रही, तो इसका एक कारण यह भी माना जाता है कि भारत ने सेमेटिक पंथो और भारतीय पंथों का कभी भी यथार्थ की खुरदुरी भूमि पर आकलन नहीं किया। हम अपनी उदात्तता का प्रक्षेपण अन्य पंथों पर करते रहे और उनके यथार्थ का सामना करने से अब भी बचते रहे हैं।

एक व्यक्ति का संकल्प राष्ट्र और सभ्यता के संघषर्र् में किस कदर महत्वपूर्ण बन सकता है, उसका सजीव लेखा-जोखा है ‘भारत बोध का संघर्ष-2019 का महासमर’। यह किताब न्यस्त स्वार्थों द्वारा स्थापित देश विरोधी आख्यानों और मानसिकता के खिलाफ तनकर खड़े होने वाले और उन्हें एक हद तक जमींदोज करने वाले व्यक्ति की कहानी है। एक ऐसे व्यक्ति के जो शत्रु के उपकरण और रणनीतियों को न केवल अच्छी तरह समझता है, बल्कि भारतीय मर्यादाओं में रहकर उनका उत्तर भी देता है। नई सदी में यह अहसास दिलाता है कि राष्ट्रीय मर्यादाएं और धरोहर समस्या नहीं, बल्कि सटीक समाधानों की कुंजी हैं।

यद्यपि यह किताब भारत में चल रहे सभ्यतागत संघर्ष के लिए एक छोटी समयावधि का चुनाव करती है, लेकिन जिस तीक्ष्णता और अंत:द़ृष्टि का अवलम्बन लेकर लेखक समसामयिक घटनाओं का विश्लेशण करता है, वह इस किताब को एक महत्वपूर्ण दस्तावेज बना देती हैं। भारत में सभ्यतागत आधार पर घटनाओं का विश्लेशण करने का नितांत अभाव रहा है। भारतीय सभ्यता लम्बे अरसे तक संघर्षों में फंसी रही, तो इसका एक कारण यह भी माना जाता है कि भारत ने सेमेटिक पंथो और भारतीय पंथों का कभी भी यथार्थ की खुरदुरी भूमि पर आकलन नहीं किया। हम अपनी उदात्तता का प्रक्षेपण अन्य पंथों पर करते रहे और उनके यथार्थ का सामना करने से अब भी बचते रहे हैं। प्रोफेसर कुलदीप चंद अग्निहोत्री की यह किताब इस कमी को पूरा करती है। साहस के साथ यथार्थ का विश्लेशण करने वाली जिस शैली को इस किताब में अपनाया गया है, वह पाठकों में भी साहस का संचार करती है।

इस पुस्तक का विमोचन धर्मशाला में राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा आयोजित पुस्तक मेले के दौरान किया गया था। उस दौरान कई विद्वानों ने इसे समसामयिक इतिहास को साभ्यतिक नजरिए से देखने-समझने की हिंदी की पहली पुस्तक बताया था। वास्तव में पन्द्रह वर्षो के कालखंड का विश्लेशण जिस भारतीय बोध के साथ किया गया है, वह इसे अनूठी किताब बना देती है। किताब में 2004-2018 तक का राजनीतिक लेखा-जोखा साभ्यतिक नजरिए से प्रस्तुत किया गया है। डॉ. अग्निहोत्री जहां देश भर में इस पुस्तक को हाथोंहाथ लिए जाने से गदगद दिखते हैं। वह कहते हैं कि किताब पिछले 15 वर्षों में समाचार पत्रों के लिए लिखे गए लेखों का संग्रह जैसा है।

परन्तु यह संग्रह नरेन्द्र मोदी को राजनीतिक व्यक्तित्व से इतर एक सभ्यतागत व्यक्तित्व बना देता है। नरेन्द्र मोदी 2019 के महासमर को जीत चुके हैं, लेकिन भारत बोध का यह संघर्ष अब भी चला हुआ है। इस संघर्ष में भारतीय पहचान को मिटाने के लिए आतुर शक्तियां किस तरह के हथकंडों को अपनाती है, किस तरह नैतिकता के सारे मानदंडों को दरकिनार कर जीतना चाहती है, इसकी एक झलक इस किताब में देखने को मिल जाती है। इसी कारण यह किताब अवश्य प़ढ़ी जाने वाली किताबों की श्रेणी में आ जाती है। आशा है प्रोफेसर कुलदीप चंद्र अग्निहोत्री आने वाले समय में विस्तृत समयावधि को लेकर नरेन्द्र मोदी की भूमिका का आकलन साभ्यतिक नजरिए से जरूर करेंगे। इससे सभ्यतागत संघर्ष नरेन्द्र मोदी की भूमिका के महत्वपूर्ण पहलुओं से हमारा परिचय हो सकेगा।

 

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