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एक दिन अचानक

एक दिन अचानक

by सुशांत सुप्रिय
in अप्रैल २०२०, साहित्य
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“सुमी, लौट आओ! अब मैं तुम्हें पलकों पर बिठा कर रखूंगा। पुलक, मेरे लाल- तुम दोनों के बिना मैं अधूरा हूं। …समय के ताल में यादों के पत्थर डूब रहे हैं- गुड़ुप्, गुड़ुप् …”

 

एक शाम आप दफ़्तर से घर आते हैं… थके-मांदे। दरवाज़े पर लगा ताला आपको मुंह चिढ़ा रहा है। सुमी कहां गई होगी … ज़ेहन में ग़ुब्बारे-सा सवाल उभरता है। बिना बताए? और पुलक? आपका तीन साल का आंखों का तारा? आप जेब में हाथ डाल कर चाभी निकालते हैं। ताले की एक चाभी आपके पास भी रहती है। चाभी आज पत्थर-सी भारी क्यों लग रही है?

दरवाज़ा खोल कर आप भीतर आते हैं। वही जाने-पहचाने कमरे हैं। लगता है जैसे अभी रसोई के नल में से पानी गिरने की आवाज़ आएगी, बर्तन खड़केंगे और सुमी रसोई में से साड़ी के पल्लू से हाथ पोंछती हुई निकलेगी। कहेगी- बड़े थके हुए लग रहे हो आज। हां, आज कई मीटिंग्स थीं- आप कहेंगे। तुम हाथ-मुंह धो लो। मैं चाय बनाती हूं- वह कहेगी। पुलक बेड-रूम के फ़र्श पर पड़े आज के अख़बार पर आड़ी-तिरछी रेखाएं बना रहा होगा। आप उसे गोद में उठा कर चूम लेंगे। मेरे पापा- कह कर वह आपके गले में बांहें डाल देगा।

पर मकान आज सोया हुआ है। कहीं कोई आवाज़ नहीं। रसोई का नल ख़ामोश है। बर्तन बेसुध पड़े हैं। बेड-रूम में वीरानी छाई है।

आप फ़्रिज में से बोतल निकाल कर ठंडा पानी पिएंगे। एक अधूरी अंगड़ाई के बीच आप की निगाह डाइनिंग-टेबल पर पड़े काग़ज़ के एक टुकड़े पर जाएगी। आप लपक कर वह काग़ज़ उठाएंगे। सुमी के अक्षर हैं। पर आप से पढ़े क्यों नहीं जा रहे? अक्षर धुंधले क्यों लग रहे हैं? आंखों में पानी क्यों आ गया है? या शायद आपको चक्कर आ गया है।

… मैं पुलक को ले कर जा रही हूं। आपके जीवन से दूर। हमेशा के लिए।

आप लड़खड़ा कर कुर्सी पकड़ लेंगे। घड़ी की टिक्-टिक् आपके दिमाग़ में हथौड़े की तरह लग रही है।

क्यों? क्यों? क्यों?

कोई आपके ज़ेहन में शहर के घंटा-घर में लगा भारी-भरकम घंटा बजा रहा है।

यह अचानक रात क्यों हो गई है? चांद कहां चला गया है? आज आसमान में तारे क्यों नहीं हैं? नहीं। यह रात नहीं है? आपकी आंखों के आगे अंधेरा-सा छा गया है। आप लड़खड़ाते हुए क़दमों से जाएंगे और मेज़ की दराज़ से ब्लड-प्रेशर की दवाई निकालेंगे। आप की उंगलियां कांप रही हैं। दवाई फ़र्श पर गिर गई है। आप उसे नहीं ढूंढ पा रहे। दूसरी गोली लेकर आप उसे बिना पानी के निगल जाएँगे। और सिर पकड़ कर बिस्तर पर बैठ जाएंगे।

बाहर धुंध भरी रात है और आप नींद में चल रहे हैं। दूर कहीं से रेल-गाड़ी की सीटी की आवाज़ सुनाई दे रही है। अचानक आपकी आंखें खुल जाती हैं। आप बेड-रूम में नहीं हैं। सुमी कहां गई? पुलक कहां गया?

आप फ़ोन उठाते हैं। फ़ोन डेड है।

तुमने ऐसा क्यों किया, सुमी? छोटे-मोटे झगड़े किस घर में नहीं होते?

अब?

तनाव की तनी रस्सी पर यादों का नट नृत्य कर रहा है।

अब?

दीवार पर सरक रही एक पूंछ-कटी छिपकली आप ही को घूर रही है।

अब?

धुंध के उस पार एक गांव है। गांव में खपड़ैल का घर है। दरवाज़े पर केले के पेड़ हैं। बगल में चबूतरा है। पास ही पुआल का ढेर है। पुआल के ढेर पर एक बच्चा खेल रहा है।

दादाजी, आपको क्या हुआ है?

आंगन में दादाजी का शव पड़ा है। घर की महिलाएं विलाप कर रही हैं।

दादाजी, उठिए न।

अर्थी श्मशान की ओर जा रही है।

दादाजी, मुझे छोड़ कर मत जाइए। मुझे पहाड़ा कौन सिखाएगा? रोज़ एक पन्ना हिंदी और एक पन्ना अंग्रेज़ी का डिक्टेशन कौन देगा? गांव के पास बहती नदी में मछली पकड़ना कौन सिखाएगा? जलतरंग कौन बजाएगा?

धुंध के उस पार सुमी हंस रही है। उसकी कलाई में पड़ी चूड़ियां खनक रही हैं। मुझे पकड़ो तो जानू। पुलक किलकता हुआ तितलियां पकड़ रहा है। यह धुंध क्यों नहीं छंट रही है?

सुमी, मुझे छोड़ कर मत जाओ। मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं।

आपको झपकी आ गई है। पिताजी आपको डिक्शनरी में से अंग्रेज़ी शब्दों के अर्थ और हिज्जे रटवा रहे हैं- बी ए टी बैट। बैट माने चमगादड़। एन आइ जी एच टी एम ए आर ई नाइटमेयर।      नाइटमेयर माने दु:स्वप्न …

दादाजी, दादी, पिता, मां- आपने जिन्हें चाहा, सब एक-एक करके आप से दूर चले गए। आप रो रहे हैं। पर आंखों में आंसुओं का समुद्र बहुत पहले सूख गया है। भीतर रिक्तता की आंधी सांय-सांय कर रही है।

आपको लगता है , सब आपकी ग़लती है। आप सुमी को ज़्यादा समय नहीं दे पाते थे। बात-बात पर उसे डांट-डपट देते थे। आपके ग़ुस्से का लावा उन्हें लील गया।

सुमी, लौट आओ! अब मैं तुम्हें पलकों पर बिठा कर रखूंगा। पुलक, मेरे लाल- तुम दोनों के बिना मैं अधूरा हूं। पानी में बुलबुले-से आपके मन में विचार उठ रहे हैं। समय के ताल में यादों के पत्थर डूब रहे हैं- गुड़ुप्, गुड़ुप् …

आप तेज ज्वर से पीड़ित हैं। सुमी आपके माथे पर ठंडे पानी की पट्टियां बदल रही हैं। नीम बेहोशी में आप कुछ बड़बड़ा रहे हैं। पुलक डर कर रो रहा है। कोई उन दोनों को आप से दूर लिए जा रहा है। आप उसे रोकना चाहते हैं। पर आपके हाथ-पैर जड़ हो चुके हैं। आप चिल्ला कर उन्हें आवाज़ देना चाहते हैं। पर आपके गले से कोई आवाज़ नहीं निकल रही। बुख़ार काफ़ी तेज़ है। आप ठंड से कांप रहे हैं। सुमी आपको कंबल ओढ़ा रही है। आपका सिर तेज दर्द से फटा जा रहा है। सुमी आपका सिर दबा रही है। पुलक आपके गाल चूम रहा है। पापा, उठो …

सूरज डूबने से पहले ही रात हो गई है। भुतहा अंधेरे में आप सड़क पर अकेले चले जा रहे हैं। आपके गंतव्य तक कोई बस नहीं जाती। आगे एक गूंगा जंगल है। अपने क़दमों की चाप से डर कर आप भागने लगे हैं। आप हांफ़ रहे हैं। हवा में सड़े हुए पत्तों की गंध है। आगे एक खंडहर में पीली रोशनी है। एक जाना-पहचाना नारी स्वर कोई भूला हुआ गीत गा रहा है। सुमी, सुमी। वहां वह रहस्यमयी आकृति किसकी है? आप उस ओर बढ़ते हैं। और तभी रोशनी बुझ जाती है। गीत थम जाता है। घुप्प अंधेरे के समुद्र में आप एक थके हुए तैराक-सा डूबने लगते हैं। सुमी, सुमी। आपकी भारी आवाज़ अंधेरे में गूंज रही है।

बाहर लगातार दरवाज़े की घंटी बज रही है। आप चौंक कर बिस्तर से उठते हैं। लड़खड़ाते हुए क़दम दरवाज़े तक पहुंचते हैं। कांपते हुए हाथ दरवाज़ा खोलते हैं। फूलों की ख़ुशबू लिए हवा का बासंती झोंका आता है।

अरे सुमी, तुम! शब्द आपके गले में फंस रहे हैं। बाहर सुमी खड़ी है। बगल में मां की उंगली पकड़े हुए पुलक है। सुमी के दूसरे हाथ में थैला है जिसमें सब्ज़ियां हैं।

नहीं, अभी रात नहीं हुई है। अभी बाहर उजाला है।

सुमी के भीतर आते ही आप उसे कस कर बांहों में भींच लेते हैं।

कहां चली गई थीं तुम?

आज एक अप्रैल है, जान- सुमी खिलखिलाते हुए कह रही है। आप कुछ नहीं सुन रहे। बस उसे और पुलक को बेतहाशा चूम रहे हैं।

बाहर कहीं कोयल कूक रही है। इस बार आप बच गए। पर याद रखिए, हर दिन एक अप्रैल नहीं होता। आप जिन्हें प्यार करते हैं, उनका ख़याल रखिए।

 

 

Tags: bibliophilebookbook loverbookwormboolshindi vivekhindi vivek magazinepoemspoetpoetrystorieswriter

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