एक व्यक्ति से पूछा गया क़ि,“क्या कभी भगवान के दर्शन किए है?“ उसने कहा क़ि महाशय! प्रभु दर्शन का सौभाग्य तो प्राप्त नहीं हुआ पर इस संसार में मैंने अपनी मां को देखा है। उसे देख कर मैं यह सहज अंदाजा लगा सकता हूं कि वह याने प्रभु कितना दयालु, कृपालु, करूणावंत तथा वात्सल्य से ओतप्रोत होता होगा? यह सच है कि मानव के रूप में प्रभु दर्शन करने हों तो मां से बढ़ कर अन्य कोई शख्शियत प्रभु के करीब नहीं पहुंच पाती। मां धैर्य एवं अनुकम्पा की जीवंत मूर्ति है। तभी कहा है.. “माता पृथव्या मूर्तिस्तु अर्थात मनुस्मृति के अनुसार धैर्य एवं सहनशीलता में माता पृथ्वी की प्रतिमूर्ति है। माता के महत्त्व तथा गौरव को दिग्दर्शित करते हुए एक संस्कृत कवि ने कहा है-
“उपाध्यायान दशाचार्य, आचार्याणां शतंपिता।
सहस्त्र तु पितृन् माता, गौरवेणा तिरिच्यते॥”
गौरव की दृष्टि से उपाध्याय से दस गुणा श्रेष्ठ आचार्य का पद होता है और आचार्य से सौ गुणा गौरवशाली पिता का पद है एवं पिता से हजार गुणा गौरवशाली माता का पद है। माता का पद एवं गौरव इतना महत्त्वपूर्ण है। उसके त्याग की महिमा अपूर्व है।
पंजाब के प्रथम सिख नरेश हुए हैं- महाराजा रणजीत सिंह। उन्होंने ही सिख राज्य की स्थापना की थी। पंजाब, हिमाचल तथा कश्मीर के कुछ भाग को अपने अधिकार में लेकर उन्होंने प्रथम सिख राज्य की स्थापना की थी एवं वह उसके प्रथम शासक नरेश हुए।
नरेश होने के गौरव से वह इतने अभिभूत हुए कि उन्होंने अपनी जन्मदात्री मातुश्री से कहा, “मां! अब तेरा बेटा पंजाब का नरेश है। जो इच्छा हो, आज्ञा दे देना। उसका अक्षरशः पालन किया जाएगा। मां ने नरेश होने के अपने बेटे के अहम को भांप लिया।
उन्हें लगा कि बेटे को अपने वैभव का अभिमान हो गया है एवं अब वह माता-पिता के उपकारों तथा सेवा को तुच्छ समझने लगा है। बात मां को खटक गई एवं उन्होंने बेटे को अभिमान भाव से मुक्त करने की सोची या ठान ली।
जब यह बात हुई, उन दिनों माघ महीने की ठण्ड पड़ रही थी। माता ने एक पलंग पर पानी का छिड़काव कराया एवं उस पर गुलाब के पुष्पों की पंखुड़ियां बिछवा दीं। इसके बाद अपने नरेश पुत्र से कहा क़ि बेटा! इस पर सो जा। माता की आज्ञा थी, अतः महाराज रणजीत सिंह उस पलंग पर सो गए। वह सो तो गए, पर मारे सिहरन एवं ठिठुरन के करवटें बदलने लगे। मां दूर से यह सब देख रही थी। कुछ देर बाद बोली, बेटा! सो गए क्या? महाराज ने कहा, “मां तू तो नींद में सोने की बात कर रही है और मैं तो ठिठुरन तथा सिहरन के मारे बैचेन हो गया हूं। ऐसे में नींद कहां से आएगी मां? मां ने कहा, बेटे! बस इतनी सी देर में घबरा गए। मैं तो महीनों गीले में सो कर तुम्हें सूखे में सुलाती रही हूं।
महाराज रणजीत सिंह तुरंत पलंग से उठे, मां के पांव पड़े, एवं कहा, मां! तुमने ठीक वक्त पर मुझे सही शिक्षा दे दी। मैं अभिमान एवं अधिकार के मद में बौरा गया था। तुमने मेरी आंखें खोल दी, कि मां के उपकारों का बदला चुकाना बहुत कठिन है।
मां ने कहा, बेटे! बड़े-बूढे, इसीलिए कहते रहे हैं कि जीवन में तीन चीज कभी नहीं हो-1.छोटे बच्चों की मां कभी न मरे। 2. जवानी में पति कभी नहीं मरे। और 3. बुढापे में पत्नी न मरे। ये तीनों आर्य सत्य हैं जिन्हें नकारना असम्भव है।