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पाकिस्तान के शेखचिल्ली के सपने, तालिबान से कश्मीर जीतने की उम्मीद

पाकिस्तान के शेखचिल्ली के सपने, तालिबान से कश्मीर जीतने की उम्मीद

by हिंदी विवेक
in ट्रेंडींग, राजनीति
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सन 1947 के बाद से ही कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद की एक जड़ बना रहा हालांकि इसे विवादित कहना गलत ही होगा क्योंकि बंटवारे के समय से ही कश्मीर भारत का भाग हो गया था लेकिन पाकिस्तान की कोशिश लगातार यह रही कि वह कश्मीर को अपना हिस्सा बना लेगा। करीब 70 साल बाद भारत में नरेंद्र मोदी की सरकार आयी और कश्मीर को पूरी तरह से भारत अभिन्न अंग बना लिया गया लेकिन पाकिस्तान की लालसा अभी भी खत्म नहीं हो रही है। 
 
बंटवारे के बाद से पाकिस्तान ने जंग लड़ कर भी देख लिया था लेकिन उसे कश्मीर की मिट्टी भी नसीब नहीं हुई थी अब पाकिस्तान तालिबान से यह उम्मीद लगा रहा है कि वह उसकी कश्मीर को जीतने में मदद करेगा। इमरान सरकार की एक मंत्री ने यह दावा भी किया है कि तालिबान कश्मीर को जीतकर पाकिस्तान को सौंप देगा। हालांकि यह मुंगेरीलाल के सपने जैसी बात है लेकिन ठीक है अगर पाकिस्तान यही सोच कर खुश है तो वह भी ठीक है। पीटीआई की नेता नीलम इरशाद शेख ने एक टीवी इंटरव्यू में कहा कि तालिबान के शासन का पाकिस्तान समर्थन करता है और आने वाले समय में तालिबान कश्मीर को जीतकर पाकिस्तान को सौंप देगा। 
 
अफगानिस्तान में तालिबानी आतंकियों ने पूरी तरह से कब्जा कर लिया है हालांकि पूरी दुनिया में इसका विरोध हो रहा है जबकि पाकिस्तान तालिबानी आतंकियों का समर्थन कर रहा है और उन्हें मदद देने की भी बात कर रहा है। दरअसल पाकिस्तान सरकार को यह उम्मीद है कि अगर अफगानिस्तान में तालिबानी आतंकियों की सरकार बनती है तो वह उनके भरोसे ही भारत पर हमला कर सकते है जबकि पाकिस्तान को यह बात समझनी चाहिए कि भारत सैन्य ताकत इतनी है कि वह अफगानिस्तान और पाकिस्तान से एक साथ में युद्ध कर सकता है। 

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Tags: afghanistantalibantaliban kya haiterrorismterrorist

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Comments 1

  1. Shravan Kumar Shrivastava says:
    4 years ago

    इतिहास दोहराया जा रहा है , मोहम्मद गोरी एवं पृथ्वीराज चौहान प्रसंग हमें नहीं भूलना चाहिये। बीस वर्ष बाद तालिबान अंतत:अफगानिस्तान पर आधिपत्य में सफल हो गया है , और हम चोचल-मीडिया पर चोचलेबाजी में लगे हुये हैं। हम भारतीयों की ऐसी स्थिति बन चुकी है कि चार-छ व्यक्तियों के परिवार को संभालने के लिये ,अदालतों के चक्कर लगाते हैं , माँ को समझाते हैं तो पत्नी रूठ जाती है , बहन को समझाओ तो भाई रूठ जाता है , और हम प्रधानमंत्री को दोष देते रहते हैं , हम कुछ नहीं करेंगे पर सरकारों से सभी अपेक्षाऐं रखेंगे।
    यदि अभी भी नहीं संभले तो हिंदी-हिंदू और हिंदोस्तान का कोई नामलेवा नहीं बचेगा। आज के भारत में बौद्ध , ईसाई और मुसलमानों के पूर्वज सभी हिंदू थै , जो धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया बुद्ध से प्रारंभ हुई थी , ईसाइयत और इस्लाम उसी का विकसित रूप है।
    आने वाली सदी नहीं कुछ दशकों बाद हमारी अगली पीढ़ी भी श्रीवास्तव से शेख हो जाय तो आश्चर्य नहीं होगा।
    हम हिंदू हैं , अथवा हमारे पूर्वज ऐसे थे कहने से कुछ नहीं होगा , अपितू घर-घर और जन-जन के मन में भारतीय संस्कृति जगाने के संस्कार बचपन से ही कूट-कूट कर भरने होंगे , अन्यथा सब बकवास ही होगी।
    क्या हम अपने बच्चों को भी मदरसों की तरह किसी संस्कृत विद्यालय अथवा धार्मिक स्थल पर , रोज कुछ देर के लिये बैठाने का साहस कर पाऐंगे ?

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