मूल को समझे बिना समाधान संभव नहीं

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इस्लाम को मानने वाले अधिकांश लोग भयावह ग़रीबी व भुखमरी में जी लेंगें पर मज़हब का ज़िहादी जुनून और ज़िद पाले रहेंगें। वे लड़ते रहेंगें, तब तक, जब तक उनके कथित शरीयत का क़ानून लागू न हो जाए, जब तक दुनिया का अंतिम व्यक्ति भी इस्लाम क़बूल न कर ले! वे लड़ते रहेंगें, क्योंकि उनका विस्तारवादी-वर्चस्ववादी कट्टर इस्लामी चिंतन उन्हें लड़ने की दिशा में उत्प्रेरित करता है।

भारत में आतंकवाद का पुनर्प्रवेश?

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धारा 370 को खत्म हुए कुछ ही वर्ष हुए हैं। अत: यह समझ लेना बड़ी भूल होगी कि कश्मीर से आतंकवाद समाप्त हो गया है। अगर अफगानिस्तान में 20 वर्षों के बाद पुन: तालिबानी कब्जा कर सकते हैं तो भारत में कश्मीर या अन्य राज्यों में भी पुन: आतंकवादी गतिविधियां हो ही सकती हैं। बानगी हम कश्मीर में देख ही चुके हैं।

तालिबान पर भारतीय नीति कारगर

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जो रूस एक समय तालिबान के साथ काम करने के बारे में बार-बार बयान दे रहा था, उनको मान्यता देने तक का संकेत दे चुका था उसकी ओर से कहा गया कि अभी मान्यता देने में जल्दबाजी नहीं की जानी चाहिए। यह भारत की विदेश नीति का ही परिणाम है कि वह मध्य एशिया में अपने सैनिकों की संख्या बढ़ा रहा है। उसे लग गया कि तालिबान के वहां होने से उनके यहां आतंकवाद का खतरा बढ़ सकता है।

ऑपरेशन ‘देवी शक्ति’

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यह नाम ‘ऑपरेशन देवी शक्ति’ इसलिए रखा गया क्योंकि जैसे ‘मां दुर्गा’ राक्षसों से बेगुनाहों की रक्षा करती हैं, उसी प्रकार इस मिशन का लक्ष्य बेकसूर नागरिकों को तालिबान के आतंकियों की हिंसा से रक्षा करना है। यह ऑपरेशन वायुसेना की भूमिका और तालिबानियों की निर्ममता पर एक साथ टिप्पणी है।

शरणार्थी संकट या षड्यंत्र?

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दुनिया सकते में है कि इस संकट का मुकाबला कैसे करें? लेकिन क्या सच में यह शरणार्थी संकट है या फिर एक गहरा षड्यंत्र? कुछ वर्षो बाद फिर किसी अन्य इस्लामिक देश में ऐसा ही कुछ घटनाक्रम हो, तो आश्चर्य मत कीजिएगा क्योंकि ऐसा ही होगा।

यही दृश्य उम्मीद की किरण है

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इस समय जिस तरह का जन प्रदर्शन अफगानिस्तान में हो रहा है, उसकी कल्पना शायद ही किसी को रही हो। ‘हमें काबुल से लेकर कई शहरों में आजादी चाहिए। अल्लाहू अकबर, हमें एक मुल्क चाहिए। हमें पाकिस्तान की कठपुतली सरकार नहीं चाहिए।’ ‘पाकिस्तान, अफगानिस्तान छोड़ो’ जैसे नारे लगते हुए दृश्य हमारे सामने आ रहे हैं। सोशल मीडिया पर वायरल कुछ वीडियो में लोगों को ‘राष्ट्रीय प्रतिरोध मोर्चा ज़िंदा रहो’ और पाकिस्तान विरोधी नारे लगाते हुए सुना जा सकता है।

बुर्का और बंदूक के बीच तड़पता अफगानिस्तान!

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अफगानिस्तान में तेजी से सब कुछ बदल रहा है इस बदलाव की ना तो किसी को उम्मीद थी और ना ही किसी ने ऐसा सोचा था कि एक दिन अफगानिस्तान आतंकियों के हाथों में आ जाएगा। वह लोग अपने आप को बहुत ही खुश नसीब मान रहे हैं जो वहां से…

अफगानिस्तान सरकार में प्रधानमंत्री से लेकर प्रवक्ता तक सभी आतंकी

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अफगानिस्तान पर तालिबानी आतंकियों ने पूरी तरह से कब्जा कर लिया और अब सरकार बनाने का काम भी करीब करीब पूरा हो चुका है जिसे संयुक्त राष्ट्र ने अभी तक आतंकियों की लिस्ट में शामिल किया था वह लोग अब अफगानिस्तान की सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाए जा रहे है।…

तालिबान और भारत के तथाकथित सेक्युलर

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कल्पना कीजिए अगर किसी हिन्दू संगठन ने ऐसा किया होता तो देश के सेक्युलर बुद्धिजीवियों ने कैसा रुदन मचा दिया होता? आज इन बुद्धिजीवियों और तुष्टिकरण की राजनीति के झंडावरदारों को अफगानी महिलाओं और बच्चों पर हो रहा बर्बर अत्याचार नजर नहीं आ रहा है क्योंकि वहां उनकी सेलेक्टिव सेक्युलरिज्म की थ्योरी फिट बैठती है।

अफगानिस्तान की हलचल का भारत पर प्रभाव

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अफगानिस्तान में तालिबान का वर्चस्व स्थापित हो चुका है। राष्ट्रपति अशरफ गनी, उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह और उनके सहयोगी देश छोड़कर चले गए हैं।

भारत को बचना होगा तालिबानी सोच से

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अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों में भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ अफगानिस्तान के लोग शरणार्थी बनकर जा सकते हैं। क्योंकि पाकिस्तान की हालत किसी से छुपी नही है और चीन सांस्कृतिक दृष्टि से और सीमाओं की दूरी की दृष्टि से अफगानिस्तान से इतना दूर है कि वहां जाना अफगानिस्तान के लोगों को नहीं सुहाएगा। ऐसे में उन्हें भारत आना ही सबसे आसान लगेगा।

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