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राष्ट्र निर्माण में वित्तीय संस्थानों की भूमिका

राष्ट्र निर्माण में वित्तीय संस्थानों की भूमिका

by सतीश सिंह
in अगस्त-२०२१, विशेष, सामाजिक
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निज़ी बैंक का मुख्य उद्देश्य मुनाफ़ा कमाना है, जबकि सरकारी बैंकों का उद्देश्य सामाजिक सरोकारों को पूरा करते हुए मुनाफ़ा कमाना है। इसी वजह से देश में समावेशी विकास की संकल्पना को साकार किया जा रहा है। हालांकि, बीते 73 सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था काफ़ी मज़बूत हुई है।

देश की अर्थव्यवस्था को मज़बूत बनाने में बैंकों की अहम् भूमिका रही है। लंबी गुलामी की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था खोखली हो गई थी। आज़ादी के समय देश में निज़ी बैंकों और साहूकारों का बोलबाला था, जो स़िर्फ अपने फ़ायदे के लिए काम करते थे। इसी वजह से वर्ष 1969 और वर्ष 1980 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया। वर्ष 1982 में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की, वर्ष 1990 में भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) की और वर्ष 1975 में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना की गई। इस दिशा में सहकारी बैंक, भूमि विकास बैंक आदि का भी गठन किया गया और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) की संकल्पना को खाद-पानी दिया गया।

आज़ादी के पहले देश में लगभग 1100 छोटे-बड़े बैंक कार्य कर रहे थे। भारत का सबसे बड़ा और सबसे पुराना बैंक जो अभी भी अस्तित्व में है, भारतीय स्टेट बैंक है। इसकी स्थापना वर्ष 1806 में बैंक ऑफ़ कलकत्ता के रूप में हुई और वर्ष 1809 में इसका नाम बदल कर बैंक ऑफ़ बंगाल कर दिया गया। बाद में इसे प्रेसीडेंसी बैंक के नाम से जाना गया। 1 जुलाई, 1955 को सरकार ने इसे भारतीय स्टेट बैंक नाम दिया और इस संदर्भ में संसद में एक विधेयक पारित किया गया, जिसे एसबीआई अधिनियम 1955 के नाम से जाना जाता है।

निज़ी बैंक का मुख्य उद्देश्य मुनाफ़ा कमाना है, जबकि सरकारी बैंकों का उद्देश्य सामाजिक सरोकारों को पूरा करते हुए मुनाफ़ा कमाना है। इसी वजह से देश में समावेशी विकास की संकल्पना को साकार किया जा रहा है। हालांकि, बीते 73 सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था काफ़ी मज़बूत हुई है। अब फ़िर से निज़ी बैंकों की ज़रूरत महसूस की जा रही है। इसलिए, हाल ही में केंद्र सरकार ने 2 सरकारी बैंकों यथा सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया और इंडियन ओवरसीज़ बैंक की निजीकरण की प्रक्रिया शुरू की है। बदले परिदृश्य में सरकारी बैंकों का समेकन भी किया गया है। मार्च 2017 में देश में 27 सरकारी बैंक थे, जिनकी संख्या अप्रैल 2020 में घटकर 12 रह गई।

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना नरसिंहम समिति की सिफ़ारिश के आधार पर वर्ष 1975 में अध्यादेश के ज़रिये की गई और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अधिनियम 1976 के आधार पर इसे संवैधानिक मान्यता दी गई। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र में कृषि, वाणिज्य, उद्योग और अन्य उत्पादन गतिविधियों में तेज़ी लाना और ग्रामीण क्षेत्रों में लघु और सीमांत कृषकों, कृषि श्रमिकों, छोटे उद्यमियों को उनकी आवश्यकता के अनुरूप वित्तीय सहयोग प्रदान करना है। इस बैंक का संचालन भारत सरकार, राज्य सरकारों और प्रायोजक बैंकों की मदद से किया जाता है। इन बैंकों में भारत सरकार, प्रायोजक बैंकों और संबंधित राज्यों की हिस्सेदारी क्रमशः 50, 35 और 15 प्रतिशत होती है। इन बैंकों का विनियमन नाबार्ड करता है। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को मज़बूती प्रदान करने के लिये सरकार ने तीन चरणों में इन बैंकों का समेकन किया। अब देश में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की संख्या घटकर लगभग 45 रह गई है, जो वर्ष 2005 में 196 थी।

नाबार्ड कृषि एवं ग्रामीण विकास हेतु वित्त प्रदान करने वाली शीर्ष वित्तीय संस्था है। कृषि के अतिरिक्त यह छोटे उद्योगों, कुटीर उद्योगों एवं अवसंरचना से जुड़ी परियोजनाओं के विकास के लिये कार्य करता है। यह एक सांविधिक निकाय है। नाबार्ड का उद्देश्य वित्तीय समावेशन की संकल्पना को साकार करना भी है। यह ज़िला स्तरीय ऋण योजनाएं तैयार करता है, ताकि वित्तीय संस्थान ग्रामीणों की वित्तीय जरूरतों को पूरा कर सकें।

सहकारी बैंक, सहकारी ऋण समितियों की मदद से किसानों, भूमिहीन किसानों और खेतीहर मज़दूरों को बिचौलियों व साहूकारों के शोषण से बचाने का काम ग्रामीण क्षेत्र में कर रहा है।  भारत में सहकारी आंदोलन की शुरुआत किसानों, कृषक मज़दूरों, कारीगरों आदि के सर्वांगीण विकास में मदद करने के उद्देश्य से की गई थी। सहकारी बैंक का इतिहास बहुत ही पुराना है। यह वर्ष 1904 में सहकारी समिति अधिनियम के पारित होने के बाद अस्तित्व में आया था। ग्रामीण भारत को मज़बूत करने में भूमि विकास बैंक की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह बैंक दीर्घकालीन ऋण ज़रुरतमंदों को उपलब्ध कराता है। इसे पूंजी राज्य सरकार, राष्ट्रीयकृत बैंक, सहकारी बैंक आदि उपलब्ध कराते हैं। भूमि विकास बैंक का मुख्य कार्य भूमि को बंधक रखकर ऋण देना है। इस बैंक से खेती-किसानी, कृषि मशीनरी, ट्रैक्टर, भूमि सुधार, पुराने ऋण की चुकौती आदि के लिए ऋण लिया जा सकता है।

सिडबी की स्थापना 2 अप्रैल, 1990 को भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक अधिनियम 1989 के तहत की गई थी। इस बैंक का कार्य सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों की वृद्धि के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना है। यह लघु उद्योगों के संवर्द्धन और विकासात्मक कार्यां के बीच समन्वय बनाने का कार्य भी करता है। ग्रामीण क्षेत्रों की अवसंरचना को मजबूत करने में शुरू से ही इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ऐसे वित्तीय संस्थान जो बैंक नहीं हैं, लेकिन, वे जमाराशि स्वीकार करते हैं तथा बैंक की तरह ऋण सुविधा प्रदान करते हैं को एनबीएफसी कहा जाता है। एनबीएफसी में केवल वित्तीय कंपनियां शामिल नहीं हैं। इसमें शामिल कंपनियां निवेश व बीमा, चिट फंड, व्यापार बैंकिंग, स्टॉक ब्रोकिंग, वैकल्पिक निवेश आदि का कारोबार करती है।

 

 

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