देश की स्वतंत्रता के बाद हिंदी को राजभाषा का तो दर्जा दे दिया गया परन्तु राजभाषा के नाते उसे जो गौरव सम्मान मिलना चाहिए था, वह नहीं दिया गया। भाषा राष्ट्र की पहचान और सम्मान होती है। यदि उसे हमारे ही देशवासी उचित सम्मान नहीं देंगे तो भला दुनिया में कौन देगा? बावजूद इसके आज दुनियाभर में हिंदी का डंका बज रहा है और वह दुनिया में अंग्रेजी को पछाड़कर सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा बन गई है।
लोकप्रियता, उपयोगिता एवं प्रासंगिकता के आधार पर ही भाषा सर्वमान्य होती है और अपनी काबिलियत के बल पर वह अपना विस्तार कर पाने में समर्थ होती है। इस मामले में भारत की हिंदी भाषा सबसे आगे है और तेजी से दुनिया की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा बनने का गौरव हासिल करने वाली है। देश की स्वतंत्रता के बाद हिंदी को राजभाषा का तो दर्जा दे दिया गया परन्तु राजभाषा के नाते उसे जो मान-सम्मान मिलना चाहिए था, वह नहीं दिया गया। भाषा राष्ट्र की पहचान और सम्मान होती है। यदि उसे हमारे ही देशवासी उचित सम्मान नहीं देंगे तो भला दुनिया में कौन देगा? बावजूद इसके आज दुनियाभर में हिंदी का डंका बज रहा है और वह दुनिया में अंग्रेजी को पछाड़कर सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा बन गई है।
राजभाषा हिंदी से अधिक अंग्रेजी को क्यों दी गई तरजीह?
आजादी के बाद 70 वर्षों से अधिक समय तक शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी ने हिंदी भाषा को लेकर हमेशा दोहरी नीति अपनाई। अंग्रेजी विदेशी भाषा होने के कारण उसे राजभाषा का दर्जा देना संभव नहीं था इसलिए कांग्रेस ने उसे काज की भाषा बना दिया। किसी को इस बात का भान ही नहीं रहा कि देश में हिंदी से अधिक तवज्जो अंग्रेजी को क्यों दी जा रही है? देशवासी अनेक प्रकार की समस्याओं से घिरे हुए थे इसलिए इस ओर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। परिणामत: आजादी के तुरंत बाद शासन-प्रशासन में अंग्रेजी भाषा में कामकाज शुरू हो गया और वह भी तब जब हमारे देश में अंग्रेजी जानने वालों की संख्या नगण्य थी। इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि आजादी के बाद आज भी नागरिकों को न्यायालयों में अपनी स्वदेशी भाषा में न्याय नहीं मिलता है। यह कैसा न्यायालय और कैसे न्यायाधीश है? जिन्हें इतनी भी समझ नहीं है कि विदेशी भाषा में कामकाज करना ही सर्वप्रथम अन्याय है।
गुलामी का प्रतीक है विदेशी अंग्रेजी भाषा
कहते हैं कोई भी देश तब तक गुलाम नहीं होता जब तक वह विदेशी मत, मजहब, वहां की संस्कृति, सभ्यता, भाषा-भूषा एवं भोजन को नहीं अपनाता। आज दुनिया में केवल 14 देशों में अंग्रेजी को आधिकारिक दर्जा प्राप्त है। वह सभी किसी समय अंग्रेजों के गुलाम रहे हैं। वह आज भी गुलामी मानसिकता में जी रहे हैं इसलिए वहां पर अंग्रेजी को अधिक मान्यता दी जाती है। कोई भी स्वाभिमानी देश और उसके नागरिक किसी भी हाल में विदेशी संस्कृति या भाषा को कभी स्वीकार नहीं कर सकते। इसका उत्तम उदाहरण जापान है। परमाणु हमला झेलने के बाद जापान ने युद्ध के मैदान में भले ही हार मान ली हो लेकिन मन से हार कभी नहीं मानी। उन्होंने अंग्रेजी संस्कृति व भाषा को स्वीकार नहीं किया। अपने जापानी भाषा में ही उन्होंने अध्ययन, शोध आदि कार्यक्रम चलाकर दुनिया की तीसरी आर्थिक महाशक्ति बन गए।
दूसरा सर्वश्रेष्ठ उदाहरण इजराइल है, जिसके अस्तित्व में आने के बाद मृतप्राय पड़ी हिब्रू भाषा को फिर से जीवंत किया गया। स्वभाषा के बल पर आज इजराइल स्वाभिमान के साथ दुनिया के सामने सिर ऊंचा करके खड़ा है। दूसरी ओर हम भारतीय हैं, जो अपने ही देशवासियों से अंग्रेजी में बात करके उन्हें नीचा दिखाते हैं और स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं।
नई शिक्षा नीति से मातृभाषा को मिलेगा सम्मान
मोदी सरकार द्वारा लाई गई नई शिक्षा नीति से स्वदेशी मातृभाषा को जीवनदान मिलेगा। इस पहल से अंग्रेजी के बोझ तले दबे छात्रों को बड़ी राहत मिली है इसलिए अभिभावकों ने मोदी सरकार के इस सराहनीय कदम की खुले दिल से प्रशंसा की है और केंद्र सरकार का आभार जताया है। नागरिकों ने नई शिक्षा नीति को वर्तमान समय में प्रासंगिक बताते हुए शिक्षा क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव होने की उम्मीद जताई है। साथ ही लोगों की मांग है कि शासन-प्रशासन, न्यायालय आदि सभी संस्थानों में अंग्रेजी में हो रहे कामकाज को प्रतिबंधित किया जाए और उसके स्थान पर राजभाषा हिंदी या स्थानीय मातृभाषा में कार्यप्रणाली सुनिश्चित की जाए। जिससे सरकारी योजनाओं सहित सभी सुविधाएं जनमानस तक आसानी से पहुंचे और लोग इसका सहजता से लाभ उठा पाएं।
स्वभाषा से होगा अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति का कल्याण
भाषा की पराधीनता से गुलामी की मानसिकता पनपने लगती है। स्वदेशी भाषा से जुड़ी एक बहुत बड़ी महान संस्कृति, बहुत बड़ा विचार और एक बहुत बड़ा सम्मान है, जिससे देश के अंतिम व्यक्ति का उत्थान होगा होगा और देशवासियों का स्वाभिमान जागृत होगा।
यदि राष्ट्रभाषा हिंदी और अन्य स्थानीय भाषा जैसे गुजराती, मराठी, मलयालम, कन्नड़, बंगाली आदि भाषाओं में भारत के बच्चों को विज्ञान, तकनीक और प्रबंधन की शिक्षा दी जाती है, तो एक गरीब का बेटा, एक किसान का बेटा, एक मजदूर का बेटा, खेती करने वाले आदमी का बेटा भी डॉक्टर, इंजीनियर या साइंटिस्ट बन पाएगा और उस दिन भारत के अंतिम आदमी का उत्थान हो पाएगा। इसी दृष्टिकोण से भारत में नई शिक्षा नीति देश में लागू की गई है, जिससे निश्चित रूप से राष्ट्र भाषा हिंदी सहित स्थानीय क्षेत्रीय भाषाओं का विकास होगा।
वैश्विक मंच पर मोदी जी डंके की चोट पर देते हैं हिंदी में भाषण
अनेक भाषा और बोलियां हमारी ताकत है किन्तु देश में एक ऐसी भाषा होनी चाहिए जिसे सब लोग समझते हो। गुलामी के कालखंड में लम्बे समय तक लघुताग्रंथि पनपती रही परन्तु पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने यूएन में हिंदी में भाषण देकर हिंदी भाषा को गौरव प्रदान किया। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी डंके की चोट पर वैश्विक मंच पर भी हिंदी में भाषण देते हैं। भाषा ही व्यक्ति को अपने देश, संस्कृति और मूल के साथ जोड़ती है।
– अमित शाह, केन्द्रीय गृह मंत्री
व्यक्ति को पराधीन बनाती है विदेशी भाषा
क्या आप जानते हैं विदेशी और स्वदेशी भाषा में मुख्य अंतर क्या है? और उसका हमारे जीवन में क्या प्रभाव पड़ता है? क्या आप स्वदेशी भाषा के महत्व को जानते हैं? चलिए हम बताते हैं इनके बीच का अंतर। गांव देहात से कम पढ़ा लिखा लेकिन स्वभाषा में शिक्षित युवक जब शहरों में कमाने के लिए आता है, तो वह कुछ भी काम-धंधा करके अपना एक वजूद बनाता है और कुछ समय बाद वह स्वयं का व्यवसाय या बिजनेस खड़ा कर उसका मालिक बन जाता है। वही दूसरी ओर कान्वेंट विद्यालय या महाविद्यालय में पढ़ा-लिखा युवा स्वयं का उद्योग व्यवसाय करने के बजाय केवल नौकरी करने तक सीमित रह जाता है। यदि अंग्रेजी में शिक्षित युवा से आप पूछेंगे कि वह क्या बनना चाहता है, तो वह कहेगा कि मैं इस कंपनी में मैनेजर बन जाऊं, उस कंपनी में बड़ा अधिकारी बन जाऊं या ज्यादा से ज्यादा कहेगा कि मैं प्रधानमंत्री के कार्यालय में उच्च पद पर काम करना चाहूंगा लेकिन वह कभी स्वयं प्रधानमंत्री बनने, राजा बनने या कंपनी का मालिक बनने के बारे में नहीं सोच पाता।
मातृभाषा में न बोलने वालों को आनी चाहिए शर्म
भारतीय युवक संस्कार संपन्न भारतीय की भांति यदि अपनी मातृभाषा पढ़ या बोल नहीं सकता तो उसे शर्म आनी चाहिए। भारतीय बच्चों और उनके माता-पिता में अपनी मातृभाषाओं को पढ़ने के बारे में जो लापरवाही देखी जाती है, वह अक्षम्य है। मातृभाषा का अनादर मां के अनादर के बराबर है। यदि हमें पिछले 50 वर्षों में देशी भाषाओं द्वारा शिक्षा दी गई होती तो आज हम कैसी स्थिति में होते? हमारे पास एक आजाद भारत होता। हमारे पास अपने शिक्षित लोग होते जो अपनी ही मातृभूमि में विदेशी जैसे ना रहे होते बल्कि जिनका बोलना जनता के हृदय पर प्रभाव डालता।
– म. गांधी
इससे स्पष्ट होता है कि विदेशी भाषा हमें पराधीन बनाती है और गुलामी की मानसिकता से जकड़ी रखती है इसलिए दुनिया के सभी विकसित देशों ने अपने मातृभाषा को ही राष्ट्र भाषा बनाकर उसे सर्वाधिक महत्व दिया। जिस तरह अमेरिका में अंग्रेजी, रूस में रशियन, चीन में चीनी, फ़्रांस में फ्रेंच और जापान में जापानी भाषा में ही सारे कामकाज किए जाते हैं, उसी तरह हिन्दुस्तान में हिंदी को सर्वाधिक महत्व देना होगा तभी हमारा देश दुनिया की विकसित शक्तिशाली देशों की सूची में अग्रसर हो पाएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दे रहे हैं हिंदी भाषा को बढ़ावा
देश दुनिया में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पूरे दमखम से हिंदी सहित अन्य क्षेत्रीय मातृभाषा को बढ़ावा दे रहे हैं। उनकी इस पहल से हिंदी भाषियों एवं अन्य समुदायों के मन में अपनी मातृभाषा के प्रति चेतना व जाग्रति आई है और उनका विश्वास प्रबल हुआ है। संयुक्त राष्ट्र संघ में भी उन्होंने हिंदी में भाषण देकर राजभाषा का डंका बजाया है और उम्मीद है कि बहुत जल्द ही हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की अधिकारिक भाषा का दर्जा भी प्राप्त हो जाएगा। वे जहां कही भी जाते हैं हिंदी में ही संवाद करते हैं। भारत की राष्ट्रीय एकता की प्रतीक एवं जनसंपर्क की प्रभावी भाषा होने के कारण मोदी जी हिंदी को ही प्राथमिकता देते हैं।
मातृभाषा में शिक्षा नए भारत की रखेगी नींव
भविष्य में हम कितना आगे जाएंगे, कितनी ऊंचाई प्राप्त करेंगे, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि हम अपने युवाओं को वर्तमान में कैसी शिक्षा और कैसी दिशा दे रहे हैं? भारत की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति राष्ट्र निर्माण के महायज्ञ में बड़ा योगदान देगी। नई शिक्षा नीति युवाओं को विश्वास दिलाती है कि देश अब पूरी तरह से उनके साथ हैं, उनके हौसलों के साथ है। देश के लक्ष्यों का ध्यान रखना जरुरी है ताकि भविष्य के लिए नई पीढ़ी को तैयार किया जा सके। यह नीति भारत की नींव रखेगी। मातृभाषा में पढ़ाई का सबसे ज्यादा लाभ देश के गरीब, मिडिल क्लास छात्रों, दलितों व आदिवासियों को होगा। मातृभाषा में पढ़ाई से गरीबों के बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ेगा।
– नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री
हिंदी को प्रसारित करने में सोशल मीडिया प्लेटफार्म की भूमिका
हिंदी को विश्व में प्रचारित-प्रसारित करने में केवल भारतियों ने ही अपना योगदान नहीं दिया है बल्कि विदेशी मल्टीनेशनल कंपनियों सहित सोशल मीडिया प्लेटफार्म ने भी अहम् भूमिका निभाई है। आने वाले समय में हिंदी के महत्व को देखते हुए तकनीकी कम्पनियां भी हिंदी को बढ़ावा दे रही है। इंटरनेट सहित सूचना प्रोद्योगिकी में हिंदी का प्रयोग बढ़ता ही जा रहा है। राजभाषा विभाग की ओर से हिंदी भाषा को लेकर उल्लखनीय कार्य किए जा रहे हैं।