हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
दान नहीं, बल्कि ‘दान का भाव’ है महत्वपूर्ण

दान नहीं, बल्कि ‘दान का भाव’ है महत्वपूर्ण

by रचना प्रियदर्शिनी
in सामाजिक, सितंबर- २०२१
0

दान तभी सार्थक है, जब वह नि:स्वार्थ भाव से किया जाये। अगर दान देते समय दानदाता के मन में उसके बदले कुछ पाने की लालसा है, भले ही वह पुण्य की लालसा ही क्यूं न हो, तो वह दान नहीं व्यापार है। अगर वह अपनी इच्छा के विरूद्ध केवल लोकोपचार की वजह से दिया जाये, तो वह दान नहीं दिखावा है। सही अर्थों में सच्चा दान वह है, जिसे देने में दानकर्ता को आनंद की अनूभूति हो, उसके मन में उदारता का भाव हो और प्राणीमात्र के प्रति उसमें प्रेम एवं दया का भाव हो।

भारतीय संस्कृति में वैदिक काल से ही दान करने की परंपरा चली आ रही है। दान का शाब्दिक अर्थ है- ‘देने की क्रिया’। दान अर्थात देने का भाव, अर्पण करने की निष्काम भावना। सभी धर्मों में दान क्रिया को मानव जीवन का परम कर्तव्य माना गया है। ऐसा माना जाता है कि एक हाथ से दिया गया दान हजारों हाथों से लौटकर आता है क्योंकि जो हम देते हैं, वही हम पाते हैं। हिंदू सनातन धर्म में पांच प्रकार के प्रमुख दानों का उल्लेख शामिल है- विद्या दान, भूमि दान, कन्या दान, गौ दान और अन्न दान।

भारतीय धर्मशास्त्रों में दान के मुख्यत: तीन प्रकार बताए गए हैं-:

सात्विक दान– पवित्र स्थान और उत्तम समय में इस भाव से दिया गया दान, जिसने दाता को यह महसूस न हो कि उसने याचक पर किसी प्रकार का उपकार किया है।

राजस दान- स्वयं के ऊपर किए गए किसी प्रकार के उपकार के बदले में अथवा किसी फल की आकांक्षा से अथवा विवशतावश किया गया दान।

तामस दान- अपवित्र स्थान एवं अनुचित समय में बिना सत्कार, अवज्ञापूर्वक एवं अयोग्य व्यक्ति को दिया गया दान।

इस्लाम धर्म में भी दान पुण्य का महत्व है, जिसे ’जकात’ कहा जाता है। इसके तहत आय का एक निश्चित हिस्सा फकीरों के लिए दान करने की बात कही गई है। सनातन धर्मावलंबी वैसे तो नियमित रूप से दान करते हैं, लेकिन श्राद्ध, संक्रांति, अमावस्या जैसे मौकों पर विशेषकर दान-पुण्य किया जाता है।

अन्य कई रूप भी हैं दान के

ऊपर जिन दान कार्यों का उल्लेख किया गया है, उनका उल्लेख तो हमारे शास्त्रों तथा धर्मग्रंथों में किया गया है, लेकिन इनके अलावा कई तरह के दान हैं, जिसे करके आप आत्म संतुष्टि प्राप्त कर सकते हैं। जैसे-

रक्त दान- मनुष्य और विज्ञान दोनों ने चाहे जितनी भी तरक्की कर ली हो, लेकिन अभी भी वह कई सारी चीजों को निर्मित करने में समर्थ नहीं है। उनमें से ही एक रक्त है। रक्त (लश्रेेव) यानी खून एक ऐसी चीज है, जिसे बनाया ही नहीं जा सकता। इसकी आपूर्ति का कोई विकल्प भी नहीं है। यह इंसान के शरीर में स्वत: बनता है। इसी वजह से रक्तदान को ’जीवनदान’ भी कहा गया है। अगर आप रक्तदान करने में सक्षम हो और कभी भी आपको मौका मिले, तो जरूर रक्तदान करें। इससे बढ़ कर कोई ’महादान’ नहीं। 18 से 65 साल के बीच और 45 किलो से ज्यादा वजन वाले व्यक्ति सालाना चार बार (प्रत्येक 3 महीने के अंतराल पर)  रक्तदान कर सकते हैं।

एक बार में एक स्वस्थ व्यक्ति द्वारा किया गया रक्तदान तीन लोगों की जान बचा सकता है। एक औसत व्यक्ति के शरीर में 10 यूनिट यानी (5-6 लीटर) रक्त होता है। रक्तदान में हमारे शरीर से केवल 1 यूनिट रक्त ही लिया जाता है। एक बार रक्तदान से आप 3 लोगों की जान बचा सकते हैं। ’ज नेगेटिव’ ब्लड ग्रुप यूनिवर्सल डोनर कहलाता है। इसे किसी भी ब्लड ग्रुप के व्यक्ति को दिया जा सकता है, लेकिन विडंबना यह है कि भारत में सिर्फ 7 प्रतिशत लोगों का ब्लड ग्रुप ’ज नेगेटिव’ है। एचआईवी (एड्स वायरस), हेपेटाइटिस, सिफलिस, टीबी पॉजिटिव लोग रक्तदान नहीं कर सकते हैं।

रक्तदान से जुड़े कई मिथक भी हैं। कई लोगों का मानना है कि शाकाहारी लोग रक्तदान नहीं कर सकते, जो गलत है। अगर एक शाकाहारी व्यक्ति शारीरिक रूप से स्वस्थ्य है, तो वह अवश्य रक्तदान कर सकता है। टैटू बनवाने और अंग छिदवाने वाले लोग भ्री रक्तदान कर सकते हैं, लेकिन थोड़े इंतजार के बाद। थकज की गाइडलाइन के अनुसार, रक्तदान के लिए टैटू बनवाने के बाद 6 घंटे और किसी पेशेवर से अंग छिदवाने के बाद 12 घंटे का इंतज़ार जरूरी है। इसके अलावा, दांत का इलाज करवाने के बाद भी 24 घंटे का इंतजार करना चाहिए।

रक्तदान करने से कम-से-कम 14 दिन पहले आपका किसी भी तरह के संक्रमण से मुक्त होना जरूरी है। अगर आप कोई खास दवाई ले रहे हैं, तो रक्तदान करने के सात दिन पहले दवाइयों का कोर्स पूरा करना बेहद जरूरी है। गर्भवती, स्तनपान कराने वाली, सत:प्रसृता या हाल में अबॉर्शन कराने वाली महिलाओं को रक्तदान करने से पहले आयरन चेक कराने की आवश्यकता है। मासिक धर्म के बाद भी महिलाओं को सप्ताह भर बाद इंतजार करने की जरूरत है।

अंग दान-  अंगदान एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा जैविक ऊतकों या अंगों को एक मृत या जीवित व्यक्ति से निकाल कर किसी दूसरे के शरीर में प्रत्यारोपित किया जाए। उस पूरी प्रक्रिया को हार्वेस्टिंग या सरल शब्दों में ’अंगदान’ कहा जाता है। अगर किसी बीमारी या आघात की वजह से किसी व्यक्ति के शरीर का कोई भी अंग ठीक ढंग से काम नहीं कर रहा हो, तो उसके पूरे शरीर की कार्यप्रणाली पर इसका असर पड़ता है। हर वर्ष लाखों लोगों की मृत्यु सिर्फ इसलिए हो जाती है, क्योंकि उन्हें कोई डोनर नहीं मिल पाता। इस परिस्थिति को अंगदान द्वारा बदला जा सकता है। मरने के बाद अगर हमारे अंग किसी के काम आ जाएं, तो इससे बड़ा दान कोई हो नहीं सकता। इसके जरिए आप मरने के बाद भी किसी को जीवनदान दे सकते हैं।

भारत में लोगों के बीच जागरूकता की कमी के कारण अंगदान का प्रतिशत उतना अधिक नहीं है, जितना होना चाहिए। भारत में फिलहाल लिवर, किडनी, हार्ट और कुछ मामलों में पैंक्रियाज ट्रांसप्लांट की सुविधा मौजूद है। दूसरे अंदरूनी अंग जैसे- आंखें, फेफड़े, अग्नाशय, छोटी आंत, हड्डियां, त्वचा, नसें, कोशिकाएं, हार्टवॉल्ब वॉल्व और कार्टिलेज आदि भी दान किए जा सकते हैं।

18 साल से ज़्यादा उम्र का कोई भी स्वस्थ्य व्यक्ति अपनी इच्छा से अंगदान कर सकता है लेकिन कैंसर, डायबीटिज, एचआईवी से पीड़ित व्यक्ति, सेप्सिस या इंट्रावेनस दवाओं का इस्तेमाल करनेवाले लोग अंगदान नहीं कर सकते। कोई भी व्यक्ति स्वइच्छा से अपनी प्राकृतिक मृत्यु (ब्रेन स्टेम/कार्डियक) के बाद अपने अंगों को दान करने की घोषणा कर सकता है। इस कैटेगरी में ब्रेन डेड लोगों को भी शामिल किया जा सकता है। ऐसे में यह उसके परिजनों का दायित्व बनता है कि वे उसकी इच्छापूर्ति करे। ब्रेन डेथ होने या व्यक्ति की मृत्यु होने के 24 से 48 घंटों के भीतर अंग प्रत्यारोपण हो जाना चाहिए, अन्यथा वे प्रभावी नहीं रह जाते।

सब दानों में ज्ञान का दान ही श्रेष्ठ दान है।

– मनुस्मृति

दान, भोग और नाश- धन की तीन गतियां हैं. जो न देता है और न ही भोगता है, उसके धन का अंतत: नाश ही होता है।

– भर्तृहरि

 अभय दान सबसे बड़ा दान है।

– स्वामी विवेकानंद

 सर्वोपरि दान, जो आप किसी मनुष्य को दे सकते हैं, वह शिक्षा और ज्ञान का दान है।

-स्वामी रामतीर्थ

सच्चा दान दो प्रकार का होता है- एक वह, जो श्रद्धावश दिया जाए और दूसरा वह, जो दयावश दिया जाए।

-रामचंद्र शुक्ल

प्रसन्नचित से दिया गया अल्प दान भी हजारों बार के दान की बराबरी करता है।

– जातक

 तुम्हारा बायां हाथ जो देता है, उसके बारे में दाएं हाथ को जानकारी नहीं होनी चाहिए।

– बाइबिल

कर्म दान- संसार में सबसे ज्यादा ईमानदार अगर कुछ है, तो वह कर्म है। मुनि, श्रावक, राजा या रंक, युवा हो या वृद्ध, कर्म किसी के साथ पक्षपात नहीं करता। जीव जैसा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल मिलता है। जीव और कर्म का अनादिकाल से सम्बन्ध चला आ रहा है। कोई इंसान कितना भी रईस या महान क्यों न हो, उसकी अंतिम परिणति उसके कर्मों के आधार पर ही निर्धारित होती है। अगर आप किसी की मदद करना चाहते हैं, तो कर्मदान के जरिये भी कर सकते हैं। मान लें, किसी व्यक्ति के पास ढेरों काम का अंबार है, तो आप उसे निपटाने में उसकी मदद कर सकते हैं। अगर कोई व्यक्ति किसी कार्य को करने में असमर्थ है और आप उसे करना जानते हैं, तो भी कर्मदान के जरिये उसकी सहायता कर सकते हैं अर्थात, कोशिश यह हो कि आपके द्वारा किए जाने वाले कर्म से किसी की मदद हो जाए, न कि उसका काम खराब हो।

समय दान- आज के समय में लोगों के पास अगर किसी चीज की सबसे ज्यादा कमी है, तो वह ’समय की कमी’ है। हर कोई जीवन की आपाधापी में इस कदर व्यस्त है कि अक्सर उसके पास अपने घर-परिवार के लिए भी समय नहीं होता। ऐसे में घर के बड़े-बुजुर्ग हो या मासूम बच्चे। उन सबकी ख्वाहिश होती है कि कोई उनके पास आकर बैठे, उनकी बातों को सुनें और उनके अनुभवों के बारे में जाने। पत्नियों को भी अपने पतियों से इसी बात की शिकायत होती है कि ’वो उन्हें वक्त नहीं देते’। दोस्तों और नाते-रिश्तेदारों के आपसी संबंध भी कई बार एक-दूसरे को पर्याप्त वक्त न देने की वजह से कमजोर पड़ जाते हैं। ऐसी स्थिति में अगर आप अपनी व्यस्त दिनचर्या में से थोड़ा-सा समय निकालकर किसी के साथ बैठकर दो घड़ी हंसते, बोलते या बतिया लेते हैं, तो इससे सामने वाले की शिकायत दूर हो जाएगी और आपके आपसी संबंध भी बेहतर होंगे।

श्रम/कौशल दान- एक पुराने फिल्म का गाना है कि ’दुनिया में आए हो, तो काम करो प्यारे… ’ बिना काम के आज के जमाने में रोजी-रोटी नहीं मिलती। श्रम दान वही व्यक्ति कर सकता है, जो श्रम का महत्व जानता है। अगर आपके पास किसी काम का हुनर है, तो आप उसका प्रशिक्षण दूसरों को देकर उन्हें स्वावलंबी बनने में मदद कर सकते हैं। इसके अलावा यदि आप एक प्लंबर हैं, तो रोज केवल एक घंटे के लिए स्वयं सेवा के जरिये कुछ अतिरिक्त सेवा करके अच्छा-खासा मूल्य प्राप्ति कर सकते हैं, जो आपके लिए एक अन्यथा भुगतान होगा।

दान तभी सार्थक है, जब वह नि:स्वार्थ भाव से किया जाए। अगर दान देते समय दानदाता के मन में उसके बदले कुछ पाने की लालसा है, भले ही वह पुण्य की लालसा ही क्यों न हो, तो वह दान नहीं व्यापार है। अगर वह अपनी इच्छा के विरूद्ध केवल लोकोपचार की वजह से दिया जाए, तो वह दान नहीं दिखावा है। सही अर्थों में सच्चा दान वह है, जिसे देने में दानकर्ता को आनंद की अनुभूति हो, उसके मन में उदारता का भाव हो और प्राणी मात्र के प्रति उसमें प्रेम एवं दया का भाव हो। कहने का तात्पर्य यह है कि दान उतना जरूरी नहीं है, जितना कि ’देने का भाव’।

Tags: hindi vivekhindi vivek magazinesubject

रचना प्रियदर्शिनी

Next Post
डॉक्टर रवि डोसी को मिला स्वर्ण पदक और अवार्ड।

डॉक्टर रवि डोसी को मिला स्वर्ण पदक और अवार्ड।

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0