आतंकवादियों ने कश्मीर घाटी में फिर से 1990 का दशक दोहराने का दुस्साहस किया है। जिस तरह श्रीनगर के विद्यालय में पहचान पत्र देखकर मुसलमानों को अलग किया गया तथा एक हिंदू शिक्षक और वहां की सीख प्रिंसिपल को गोली मारी गई वह कश्मीर में जारी जेहादी आतंकवाद के उसी घिनौने रूप को सामने लाती है जिसका सामना जम्मू कश्मीर और भारत लंबे समय से करता रहा है। आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का हिट स्क्वायड कहलाने वाले संगठन टीआरएफ यानी द रेजिस्टेंस फ्रंट, जिसने इसकी जिम्मेदारी ली, उसने कहा है कि हमने छात्रों और उनके अभिभावकों को 15 अगस्त के स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम नहीं करने को कहा था। 15 अगस्त का कार्यक्रम नहीं होना चाहिए था। लेकिन शिक्षक दीपक चंद पटोली मंगोत्रिया तथा सुपिंदर कौर ने 15 अगस्त का कार्यक्रम आयोजित किया और बच्चों सहित उनके अभिभावकों को शामिल किया। इस बयान और उनके कृत्य से कल्पना की जा सकती है कि आतंकवादी कश्मीर घाटी में फिर से क्या संदेश देना चाहते हैं। हालांकि 15 अगस्त के कार्यक्रम में वहां के सारे शिक्षक शामिल हुए, यह भी संभव नहीं कि केवल एक हिंदू शिक्षक और एक सिख प्रिंसिपल के कहने से ही कार्यक्रम आयोजित हो गया होगा। किंतु आतंकवादियों ने मुसलमान शिक्षकों को नहीं मारा।7 अक्टूबर की इस घटना के पूर्व 5 अक्टूबर को 3 और 2 अक्टूबर को भी दो हत्याएं आतंकवादियों ने की थी और सब का कारण एक ही बताया है उन्होंने। वह कारण है, भारत राष्ट्र के प्रति निष्ठा रखना।
निश्चित रूप से 5 अक्टूबर को श्रीनगर की ही एक प्फार्मेसी के मालिक माखनलाल बिंदरू की इकबाल पार्क में उनके व्यावसायिक परिसर के अंदर आतंकवादियों द्वारा गोली मारकर हत्या की घटना से वहां रहने वाले तथा वापसी पर विचार करने वाले हिंदुओं में भय पैदा हुआ है कि हम अगर वहां रहे तो हमारी भी यही दशा हो सकती है। इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है कि कश्मीर पंडित बिंदरू, जो 1990 में आतंकवाद के चरम दौर में अपने समुदाय के अन्य लोगों के साथ कश्मीर से बाहर नहीं गए और जब माहौल बदल रहा है तो उनकी हत्या हो गई। वे अपनी फार्मेसी बिंदरू मेडिकेट का संचालन जारी रखने के लिए पत्नी के साथ श्रीनगर में ही थे। पिछले कुछ दिनें में घाटी में हिन्दुओं पर आतंकवादी हमले बड़े हैं। बिन्दरू के पहले ठेले पर गोलगप्पे बेचने परिवार का पेट पालने वाला बिहार का वीरेंद्र पासवान इनका शिकार हुआ। पिछले महीने ही कुलगाम जिले के वनपुह गांव में आतंकवादियों ने बंटू शर्मा को मौत के घाट उतार दिया था। इससे पहले राकेश पंडित, शंकर कुमार, आकाश मेहरा सभी आतंकवादियों के शिकार हुए।
आतंकवादी और उनको प्रायोजित करने वाला सीमा पार पाकिस्तान क्या चाहता है यह बताने की आवश्यकता नहीं। धारा 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर की स्थिति में आमूल बदलाव जिहादी आतंकवादियों तथा पाकिस्तान को सहन नहीं हो सकता। वे इस बदलाव को ध्वस्त करने के लिए जो कुछ भी कर सकते हैं करने की कोशिश कर रहे हैं। उनको लगता है कि अगर हमने हिंदुओं, सिखों की फिर से हत्या शुरू की तो पलायन कर गए पंडितों की वापसी का जो माहौल बना है तथा कानून में परिवर्तन के बाद भारत के अन्य जगहों से व्यवसाय और अन्य कार्यों के लिए गैर मुस्लिम समुदाय के लोग वहां आने लगे हैं उन पर सीधा आघात लगेगा। पाकिस्तान और आतंकवादी और इनके समर्थकों की सोच यही है कि अगर कश्मीर घाटी में एक ही समुदाय यानी मुस्लिम रहेंतो उनके लिए अलगाववाद भड़काना तथा पाकिस्तान के समर्थन में फिर से नारे लगवाना आदि आसान हो जाएगा। तो क्या वे अपने इस कुत्सित उद्देश्य में सफल होंगे?
इसमें दो राय नहीं कि इन हमलों से स्थिति बिगाड़ने की कोशिश हुई है। जिस तरह के बयान जम्मू से लेकर दिल्ली तक तीन दशकों से रह रहे हिंदुओं की ओर से आ रहा है उसे देखते हुए यह मानने में कोई हर्ज नहीं है कि इन हत्याओं से भय पैदा हुआ है। श्रीनगर में आतंकवादी घटनाओं को अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां मिलती है। वहां विश्व भर की मीडिया के प्रतिनिधि हैं। अलगाववाद और आतंकवाद के समर्थक अलग-अलग वेष में वहां छिपे हैं। वे सोशल मीडिया से लेकर अन्य माध्यमों से इसे फैलाते और दुष्प्रचार करते हैं कि कश्मीर की यही सच्ची स्थिति है। लेकिन आतंकवादी, पाकिस्तान और इनके समर्थक, सहयोगी पहले की तरह अपने लक्ष्य में कतई सफल नहीं हो सकते। पिछले 2 वर्षों के अंदर के परिवर्तन पर नजर रखने वाले जानते हैं कि आज का जम्मू कश्मीर वह नहीं है जो पहले था। बिंदरू की हत्या के बाद उनकी डॉक्टर पुत्री ने जिस तरह मीडिया के सामने सार्वजनिक रूप से आतंकवादियों को चुनौती दी, छाती ठोक कर कहा कि हम कश्मीरी हिंदू पंडित हैं यहां रहेंगे वैसी स्थिति की कल्पना क्या कुछ वर्ष पहले की जा सकती थी? सिख प्रिंसिपल की हत्या के बाद जिस ढंग से श्रीनगर में ही आक्रोश प्रदर्शन हुआ वह भी पहले संभव नहीं था। इसके विपरीत अगर कोई आतंकवादी मारा जाता तो उसके जनाजे में हजारों की भीड़ निकलती, भारत विरोधी नारे लगाए जाते और सुरक्षा बल वहां मूकदर्शक बने रहते थे। तो यह सब बदलाव का द्योतक है। कश्मीर के इस बदलाव ने वहां हिंदुओं, सिखों सबके अंदर भीआत्मविश्वास पैदा किया है कि अब वहां पहले वाली स्थिति लौट कर नहीं आने वाली।
इसका संदेश कश्मीर के बाहर भी गया है। तभी तो लगातार कश्मीर आने वाले पर्यटकों , व्यवसायियों आदि की संख्या बढ़ रही है। मोटा ः मोटी आंकड़ा यह है कि जुलाई से लेकर सितंबर तक हर महीने औसत 10 से 12 लाख के बीच बाहरी लोग वहां आए हैं। इन सबसे वहां के माहौल पर अंतर पड़ा है। बरसों से ध्वस्त वहां की आर्थिक गतिविधियां पटरी पर लौट रही है। व्यवसायी भी वहां निवेश करने आने लगे हैं। जैसी जानकारी है करीब 26 हजार करोड़ रुपए के निवेश का एमओयू भी हस्ताक्षरित हुआ है। इनमेंराष्ट्रीय भावना के तहत कश्मीर को संपूर्ण देश के साथ एकाकार करने के लक्ष्य भी निवेश करने वाले व्यापारी हैं। जाहिर है, केंद्र सरकार और जम्मू कश्मीर प्रशासन को इस आत्मविश्वास को केवल कायम ही नहीं सुदृढ़ करना है।जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा है कि इस हमले से हर भारतीय का खून खौल रहा है। बेगुनाहों के खून के एक- एक कतरे का जब तक हिसाब नहीं ले लिया जाता तब तक हम चैन से नहीं बैठेंगे। मैं पीड़ित परिवारों को भरोसा देता हूं कि उनके एक-एक आंसू का हिसाब लिया जाएगा। दुख की इस घड़ी में जम्मू-कश्मीर प्रशासन और पूरे देश की संवेदनाएं मृतकों के स्वजन के साथ हैं। उन्होंने टीवी चैनलों से साक्षात्कार में कहा है कि एक हफ्ता का समय दीजिए आपको बदला हुआ कश्मीर दिखाई देगा। उपराज्यपाल का यह आत्मविश्वास भी भरोसा दिलाता है कि आतंकवादियों का नया खूनी खेल लंबे समय तक जारी नहीं रहेगा।
आतंकवाद के संदर्भ में कुछ बातें बिल्कुल साफ दिख रही है।आतंकवादियों के लिए बड़े हथियार मंगाना ,उनको रखना या लेकर निकलना संभव नहीं रह गया है। आपको आधुनिक बड़े हथियारों के साथ हमले की घटनाएं कश्मीर घाटी में नहीं दिखेंगी। बारूदी सुरंगे भी अब न के बराबर हैं। वे या तो हाथगोले फेंकते हैं या फिर छोटे रिवाल्वर में साइलेंसर लगाकर हत्या कर रहे हैं। जाहिर है, रिवाल्वर या हथगोला सीमा पार ड्रोन सेआ रहे हैं जिनके बारे में काफी बातें हो चुकी है। ड्रोन से हथियार जम्मू कश्मीर में आ रहे हैं और पंजाब में भी। काफी संख्या में ड्रोन पकड़े जाते हैं लेकिन कुछ बच के निकल गए तो आतंकवादियों के पास छोटे हथियार पहुंच जाते हैं। यह बड़ा बदलाव है और उम्मीद करिए कि आने वाले समय में ड्रोन से छोटे हथियारों का पहुंचना भी रुकेगा। दूसरे, आतंकवादियों द्वारा हत्या या हमले के बाद सुरक्षाबलों के एनकाउंटर का जिस स्तर पर पहले विरोध होता था, सुरक्षा ऑपरेशन के रास्ते बाधा डाली जाती थी ,सोशल मीडिया से बाहर निकलने का प्रचार होता था वह सब नहीं दिख रहा।
हुर्रियत सहित अलगाववादियों तथा पाकिस्तान समर्थकों द्वारा अब किसी तरह आतंकवादियों या आतंकवाद के समर्थन में बयान देना संभव नहीं रहा है। मुस्लिम समुदाय में जो पहले भड़काने और उकसाने से गलतफहमी में आते थे उनमें भी धीरे-धीरे यह समझ पैदा हुई है कि जम्मू कश्मीर के पीछे अलगाववादियों आतंकवादी और पाकिस्तान का इरादा उनके हित में नहीं है। उन्हें भी परिवर्तन का लाभ मिला है। न केवल उनको अपने राजनीतिक आर्थिक अधिकारों का व्यवहारी का अनुभव हुआ है बल्कि सुरक्षा स्थिति में भी उनकी सोच में बदलाव लाया है। आतंकवादियों की घुसपैठ अवश्य हो रही है लेकिन वे बड़ी वारदात करने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं। अफगानिस्तान में तालिबानों के शासन में वापसी के पश्चात विश्व भर के जिहादी आतंकवादियों का हौसला बुलंद हुआ है और जिनके रडार पर कश्मीर हैं वे उत्साहित होकर अपनी कोशिशें कर रहे हैं। अफगानिस्तान में अनस हककानी द्वारा महमूद गजनवी के मजार पर जाना और ट्वीट में सोमनाथ मंदिर पर हमले की चर्चा का भी एक संदेश जम्मू कश्मीर सहित भारत में घात लगाए बैठे आतंकवादियों और उनके समर्थकों के बीच पहुंचा होगा।
बावजूद कम से कम इस समय उनको तीन दशक पूर्व की तरह जम्मू-कश्मीर की जनांकिकी में अहिंसा के भय से बदलाव करा देना बिल्कुल संभव नहीं है। इस वर्ष आतंकवाद आरंभ होने से लेकर पिछले तीन दशक से ज्यादा समय में सबसे कम घटनाएं हुई है। निस्संदेह, इस वर्ष 25 निर्दोष नागरिक आतंकवादियों के हाथों जान गवा चुके हैं। एक भी नागरिक की जान जाना हमारे लिए चिंता का विषय होना चाहिए लेकिन इनमें से कोई ऐसा हमला नहीं है जिसे कह सकें कि सीधे सुरक्षाबलों को चुनौती देकर उन्होंने पहले की तरह हिंसा में सफलता पाई है। तो हमें हौसला रखना चाहिए कि आगे बढ़ चुका कश्मीर अब पीछे नहीं लौटेगा। जिस तरह बिंदरू की बेटी ने छाती ठोक कर चुनौती दी उससे कश्मीर के अंदर रह रहे या पलायन कर चुके हिंदुओं – सिखों को भी प्रेरणा लेनी चाहिए। पूरा देश इन सबके साथ है। आतंकवादी सफल नहीं होंगे। उनका काम तमाम होगा। जम्मू और कश्मीर बिल्कुल सामान्य स्थिति में लौटेगा तथा वहां हर वर्ग और समुदाय के लोग कानून और संविधान की सीमाओं के अंदर अपनी हर तरह की गतिविधियां चला सकते हैं।