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वनवासियों के सच्चे हितैषी और रक्षक बिरसा मुंडा

वनवासियों के सच्चे हितैषी और रक्षक बिरसा मुंडा

by सुहास पाठक
in युवा, विशेष, व्यक्तित्व, सामाजिक
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भारत वर्षमे विभिन्न प्रांतो में लगभग 300 जनजातीया है, वे जब अपने संपूतों कीं गौरव गाथा को याद करते हैं तो एक स्वर्णीम नाम उभरता हैं बिरसा मुंडा जिसे जनजाती बंधु बडे प्यार और श्रद्धासे बिरसा भगवान के रुपमें नमन करते हैं |वनवासी समाजने एक नही अनेको रत्न दिये हैं देशको मणिपूर के जादोनांग, रानी गायदिल्युमाँ,राजस्थान के पुंजाभिल, आंध्रप्रदेश के अल्लूरी सीताराम राजु, बिहार झारखंडके तिलका माझी,सिध्दुकान्हु,जतरा भगत,केरल के पलसी राजा,तलक्कल चंदु,महाराष्ट्र के वीर नागोजी भांगरे,नाग्या कातकरी, असमके शंभुधन फुंगलोसा,कार्तिक उरांव,आदीपर किसे गर्व नही होगा?बिरसा मुंडा इन सबके प्रतीक हैं।

जन्म:- झारखंड के छोटानागपूर के उलिहतु गावमे 15 नवंबर 1875 को बिरसा का जन्म हुवा।पिता सुगना मुंडा माता करमी अत्यंत गरीब थे।मजदूरी करके पेट भरते थे।उनके दो भाई और दो बहनें थी। बिरसा का बचपन भी धुलमे खेलते हुवे,जंगल मे भेड़ बकरियोंको चराने के साथ साथ ,भगवान श्रीकृष्णा की तरह बंसुरी बजाते थे।पशु पक्षी भी एकाग्र हॊकर सूनते थे ओर आनंद मग्न हो जाते थे बिरसा नाचता गाता भी था।पर बिरसा असामान्य थे। घरकी गरीबीके कारण माता पिताने मौसी और मामा के घर पर रखा।

शिक्षा:- बालक बिरसा को उनके माता पिता पढ़ा लिखाकर बड़ा साहब बनाना चाहते थे।माता पिताने मामा के घर आयुबहातू मे रखा।जहाँ बिरसा ने भेड़ बकरियोंको चराते थे।साथ साथ शिक्षक जयपाल नाग से अक्षर ज्ञान और गणित की प्राथमिक शिक्षा पाई।वही पर वे ईसाई पादरीक़े संपर्क में आये।भोले भाले वनवासी बालकोंको पढ़ाई के नामपर एकत्र करते थे ,और ईसाई बनाते थे।यह अंग्रेजोंकी सोची समझी रणनीति थी।इन पाद्रियोंके माध्यमसे अभावग्रस्त भोले भाले वनवासियोंको ईसाई बनाते थे।और आम भारतवासी से अलग थलग करते थे। “फुट डालो और राज करो” यह नीतिसे अंग्रेजोने राज किया। स्वामी विवेकानन्दजीने कहा है,एक धर्मान्तरित व्यक्ति शत्रु बन जाता है,उसे अपने माता पिता,भाई बहन,सगे संबांधि पराये लगने लगते है,अपने लोग रीती रीवाज उसे अच्छे नही लगते वह अलग रहना शुरू करते है,यह दुःखद स्थिती होती है।

बिरसाने बुर्जु मिशनमे प्राथमिक शिक्षा लेने के बाद चाईबासाके लुथरू मिशनमे प्रवेश लिया।जहाँ उनकी शिखा याने चोटी काटी, इसका बिरसाके मनपर आघात हुवा।छात्रावास में भोजन के साथ गोमांस परोसा जाता था, बिरसाने इसे खाने के लिये मना करदीया।मुंडा परिवरमे विशेष कर जिस परिवरमे बचपन बीता वहा पर गायकी पूजा की जाती है।अत:बिरसाने गोमांस खाने के लिये मना कर दिया।बिरसाने ईसाईयों के षडयंत्रों को भाप लिया और तन,मनमे अंग्रेजों के प्रति घृणा की ज्वाला भड़क उठी।15 वर्ष के बिरसा ने पादरी नोटरट को कहा “टोपी टोपी एक है”याने अंग्रेज पादरी भी वैसे ही है जैसे कि भारतीयो पर अत्याचार करने वाले अंग्रेज अधिकारी।बिरसा अब चाईबासा में नही रहेगा।इस अटल संकल्प को लेकर लौटा बिरसा बदल गया था। 1891 मे चाईबासा लौटनेके बाद बिरसा बन्दगावमे आ गए।वहाँ वैष्णव सम्प्रदाय के आनन्द पाण्डे के संपर्क में आये।आनन्द पाण्डे उन्हें रामायण ,महभारत की कहानियां सुनाते थे।इसी समय बिरसा चैतन्य महाप्रभुके शिष्योंके भजन कीर्तन कार्यक्रम से प्रभावित होने लगे।फलत:बिरसा को इसमें अपने धर्म,संस्कृति की पहचान मिल गई।बिरसा ने मांस भक्षण त्याग दिया।वे जनेऊ पहनने लगे।उन्होंने नए पंथ की नींव डाली।जिसे बिरसाईयत पंथ कहा गया।आधिकाधिक लोग जुड़ने लगे।आगे चलकर एक जन आंदोलन खड़ा हो गया।

अब बिरसा ने अपने कार्यक्रम ,योजनाओं को ठोस रूप देना प्रारंभ किया।उन्होंने मुंडा युवकोंको एक संगठन खड़ा किया।सामाजिक सुधारोंके साथ साथ राजनीतिक शोषण के विरुद्ध जनमानस को कुरेदना शुरू किया।उन दिनों पादरी और अंग्रेज अधिकारियोंके इशारे पर जमींदार वनवासियोंके ऊपर अत्याचार करते थे।बिरसाने इस षड्यंत्रके खिलाफ जागृती पैदा की और आगे आने के लिए कहा।चलकद गांवमें दिये हुवे उनके भाषणके अंश। “अंग्रेज शासक और गोरे विदेशी पादरी फादर मिलकर इस देशको भ्रष्ट करनेमे लगे हुवे है।दोनोकी टोपियां एक है।लक्ष्य एक है।वे हमारे देशको गुलाम बनाना चाहते है।वे पहले हमारे धर्म कर्म को बदलकर ईसाई धर्म की स्थापना करते है।वे हमारी शिखा और जनेऊ की जगह क्रूस डालना सिखाते है।हमारा सनातन धर्म,हमारे पवित्र पूजा स्थल हमारे अखाड़े दिनोदिन उजड़ते जा रहे है।हमारा नाम,हमारी पोशाख ,हमारी पहचान खत्म होते जा रही है।यदि ऐसा होता रहा तो आदिवासी समाजका नाम इस दुनियासे हट जायेगा।

बिरसाके इस शंखनाद से जनजाति युवक जाग उठे।चलकद गांवमें एक आश्रम, एक आरोग्य केंद्र ओर एक क्रांति केंद्र बन गया।झुंड के झुंड लोग चलकद गांव की ओर बढ़ने लगे।विरोध के प्रथम चरण के रूपमें असहयोग आंदोलन शुरू किया।बिरसा धरतीके आभा (भगवानके) रूप में जाने लगें। एकाएक बिरसाके बढ़ते प्रभावसे ईसाई भौचक्के रह गए।वो अपने अंग्रेज आकाओके पास गए और कहा कि एक हिन्दू राजा बना है वह अंग्रेजोंके खिलाफ वनवासियोंको भड़का रहा है।तुरंत ब्रिटिश सरकारने गिरफ्तारी के आदेश दिए और पुलिस चलकद गांवमें पहुची लेकिन ग्रामीनोंके सशक्त विरोधके कारण उनको वापस जाना पड़ा। विशेष बैठक का आयोजन कर बिरसाके विद्रोह को कुचलनेका आदेश दिया। छल कपटसे 25 अगस्त 1995 को गिरफ्तार कर हजारीबाग जेलमे लाया गया।

1897 को बिरसा को रिहा किया गया। सभी लोगोने फिरसे संघर्ष प्रारम्भ किया। गया मुंडाके नेतृत्वमे जमींदारोंकके खिलाफ,लगान न देना,मालगुजारिसे मुक्त,जंगलके अधिकार मुंडा को मिलने के लिए तथा अंग्रेज,मिशन देश छोड़ो के लिए मांग उठने लगी।ईसाई पाद्रियोंके खिलाफ घृणा और आक्रोश बढ़ता गया।बुर्जु मिशनपर धावा बोल दिया। रांची के जर्मन मिशनपर हमला बोल दिया।9 जनवरी 1900 के दिन बिरसाने जोजोहतु के निकट,डोम्बारी पहाड़ के ऊपर सभा का आयोजन किया।जिसमे हजोरो संख्यामे लोग महिमा के गीत गाते ,माथेपर चंदन का तिलक लगाकर ,हाथमे सफेद और लाल रंगकी पताका लिए वहाँ एकत्र हुवे।सफेद पताका शुद्धता,तथा स्वदेशी की प्रतीक थी।और लाल पताका शोषण और अत्यचारके विरुद्ध क्रान्ति की ।कमिशनर स्ट्रीटफील्ड को खबर मिली तो उसने पूरे पहाड़को घेर लिया।आन्दोलन कारीयोपर अंधाधुन्द गोलियां चलाई गई।इधर बंदूके थमी,उधर पत्थर और धनुष,हजारो के खुनसे पहाड़ी रंग गई।डोम्बारी पहाड़पर अंग्रेजोंके दमनचक्र की विभीषिका जलियांनवाला बागसे कम नही थी।

बिरसा को गिरफ्तार करने के लिए बीट एंड सर्च ऑपरेशन चलाया गया।उनकी गिरफ्तारीक़े लिए 500/- रूपएका इनाम घोषीत किया।बीरसाका पता लगानेके लिए बड़ी क्रुरतासे लोगोंका दमन,उत्पीडन किया गया। 1 फरवरी 1900 को गुप्तचरों और घरभेदीयोंकी मददसे बिरसाको गिरफ्तार किया।हथकडी पहनकर रांची जेल लाया गया।इनकी गिरफ्तारी की खबर दावानल की तरह फैल गई और पूरा क्षेत्र सुलग उठा। 9 जून 1900 के दिन स्वतन्त्रता के इस महानायक की रहस्यमय ढंग से मृत्यु हुई। कहा गया कि उन्हें हैजा हो गया था।लेकिन लोगोंकी धारणा है कि उन्हें जहर दे गया।चुपचाप एक नाले किनारे उनके शव को जला दिया गया। चर्च का धर्मान्तरण के द्वारा जनजाति संस्कृति को नष्ट करनेका कुचक्र चल रहा है।तो उसे बचानेका प्रयास भी कभी बंद नही हुवा है।दीप से दीप जलते रहे, तो काली रात का अंधेरा एक ना एक दिन अवश्य मिटेगा।

” जनजाति समाजके ऐसे हमारे महानायक के चरित्र से आज भी हमे अपने देश धर्म,संस्कृति की संवर्धन की प्रेरणा मिलती है। उनकी जयंती हमारे जनजाति समाजके आत्म गौरव का दिन है।आज हम अपने सभी वीरोंको याद करे ।इन सारे महापुरुषोने पूरे देश और समाज को जोडनेका कार्य किया है।आज आवश्यकता है कि इस पावन घड़ी में इस महान कार्य को आगे बढानेका संकल्प करें।…धरतीके आभा बिरसा मुंडा की जय। भारत माता की जय।
भारत सरकारका विशेष अभिनंदन!
15 नवंबर यह जनजाति गौरव दिन घोषित किया है।
” दुष्मनोने तुम्हे पकड़ा था।,
तुम्हारे हाथों में लोहे की जंजीर थी।
किन्तु तुम्हारे मन मे कोई चिंता नहीं,
तुमने देश के लिए प्राण दे दिये।
हम तुम्हे युगों तक नही भूलेंगे ।
हम आज तक तुम्हारे गीत गाते है।
हम तुम्हे युगों तक जोहार करेंगे।

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Tags: adivasibirsa mundadharti aabahindi vivekhindi vivek magazinerebeltribalulgulanvanvasi

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