हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
हिन्दू चेतना के प्रचार प्रमुख – पंडित आनंद शंकर पंड्या

हिन्दू चेतना के प्रचार प्रमुख – पंडित आनंद शंकर पंड्या

by वीरेन्द्र याज्ञिक
in दिसंबर २०२१, व्यक्तित्व
0

हिन्दुत्व के लिए उनका सबसे बड़ा योगदान उनका हिन्दुत्व के प्रचार-प्रसार तथा जन जागरण के लिए करोड़ों की संख्या में समय-समय पर वितरित किए जाने वाले हस्त पत्रक (हैंड बिल), पत्रक, पुस्तिकाएं तथा समाचार पत्रों में विज्ञापन का रहा है। उन्होंने विगत पचास वर्षों में अपने आलेखों, पत्रकों तथा साक्षात्कार से न केवल भारत में बल्कि विदेशों में, विशेष रूप से अमेरिका तथा यूरोपीय देशों में भी भारतवंशियों को जागृत करने तथा उन्हें हिन्दुत्व के प्रति जोड़ने का अप्रतिम कार्य किया।

10 नवम्बर को लगभग रात्री के 9 बजे थे। मेरे परम मित्र मनीष मंजुल का फोन आता है। दूसरी ओर से कह रहे थे ‘मैं अभी-अभी नासिक से मुंबई पहुुंचा हूं, किन्तु एक बहुत बुरी खबर के साथ कि हम सबके श्रद्धेय, पितामहतुल्य श्री आनंद शंकरजी पंड्या इस संसार में नहीं रहे और थोड़ी देर पहले ही उनका शरीर शांत हो गया है। यह समाचार हतप्रभ और स्तब्ध कर देने वाला था। हिन्दी के कवि कुंवर नारायण की पंक्तियां मन में घुमडने लगी-

कुछ घटता चला जाता है मुझ में

उनके न रहने से जो थे मेरे साथ

मैं क्या कह सकता हूं उनके बारे में अब

कुछ भी कहना एक धीमी मौत सहना है।

व्यथित मन से विधि के विधान को स्वीकार किया। आदरणीय आनंद शंकर ने अपने सौ वर्षों के जीवन काल में जिस प्रकार हिन्दु, हिन्दुत्व और हिन्दुस्थान की मुखर साधना की थी, वह वाणी आज मौन हो गयी थी। उन्होंने संपूर्ण जीवन हिन्दु समाज के लिए समर्पित कर दिया था। अपने जीवन के अंतिम समय तक वे केवल हिन्दु समाज के उत्कर्ष और उसमें आत्मविश्वास जागृत करने के लिए अपने लेखों, पत्रों, पत्रकों द्वारा निरंतर कार्यरत रहे। ऐसे विलक्षण महापुरुष का संसार से विदा होना वास्तव में समाज की अपूरणीय क्षति है, जिसकी भरपाई होना बहुत कठिन है।

दूसरे दिन प्रातःकाल 10 बजे उनके पार्थिव शरीर का दादर स्थित स्मशान गृह में, जहां वंदनीय बाबासाबह आंबेडकर की चैत्यभूमि है, अंतिम संस्कार संपन्न हुआ और उसी के साथ एक युग का अंत हो गया। विगत पचास वर्षों से आनंद शंकर हिन्दु समाज की निष्काम, निस्वार्थ और निस्पृह सेवा के ध्वजवाहक बने हुए थे और समाज को हिन्दुत्व की चेतना के अमर प्रकाश से आलोकित करने का अलौकिक कार्य कर रहे थे। उनका विश्वास था कि यदि हिन्दुस्थान में रहनेवाले 84% हिन्दुओं में जीवन पद्धति, परंपरा और मूल्यों तथा हिन्दुत्व के प्रति अटल और अडिग विश्वास पैदा हो जाए तो हिन्दुस्थान विश्व का सबसे अधिक शक्तिशाली देश बनकर विश्व का नेतृत्व करने की क्षमता रखता है। जन-जन तक पहुंचाने के लिए पत्र, पत्रक, विज्ञापन, आलेखों के माध्यम से वे अपने जीवन के अंतिम वर्षों तक सक्रिय रहे। जिस समय दादर स्थित स्मशान में उनके पार्थिक शरीर का अग्नि संस्कार हो रहा था, उसी समय प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी का शोक संदेश मोबाइल की स्क्रीन पर आया।

“श्री आनंद शंकरजी पंड्या बहुमुखी प्रतिभा के धनी लेखक और जन चेतना की अभिव्यक्ति के प्रखर प्रवक्ता थे। उन्होंने भारत के इतिहास, लोकनीति और आध्यात्मिक चिंतन को बड़े ही प्रभावी ढंग से प्रचारित प्रसारित करने में भूमिका निभाई थी। वे भारत की आर्थिक प्रगति एवं विकास के लिए बहुत ही निष्ठा से कार्यरत थे। वे विश्व हिन्दु परिषद के माध्यम से हिन्दु समाज के जागरण के लिए काम कर रहे थे और निस्वार्थ भाव से समाज की सेवा में अंतिम क्षणों तक सक्रिय रहे। ऐसे सत्पुरुष के संसार से विदा होने पर मैं आहत हूं।”

इसी प्रकार से उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ का भी संदेश आया था-“विश्व हिन्दु परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष, प्रसिद्ध लेखक श्री आनंद शंकर पंड्याजी का निधन अत्यंत दुःखद है। जीवन पर्यन्त निःस्वार्थ भाव से समाज कल्याण के प्रति उनका समर्पण हमारे लिए सदैव पथ प्रदर्शक रहेगा। प्रभु श्रीराम दिवंगत आत्मा को अपने चरणों में स्थान प्रदान करें।”

प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी एवं उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ के आनंद शंकर पंड्या के व्यक्तित्व के प्रति उपर्युक्त भाव उनके विराट और राष्ट्र के प्रति उनके समर्पण भाव को दर्शाते हैं।

ऐसे पुण्यश्लोक पं. आनंद शंकर पंड्या वैसे तो मूल रूप से गुजरात के थे, किन्तु पीढ़ियों से वे मध्यप्रदेश और बाद में वाराणसी, उत्तर प्रदेश में बस गए। आनंद शंकर का जन्म मध्य प्रदेश के हटा गांव में 26 मई 1922 को हुआ था। माता रुक्मिणी देवी और स्वनामघन्य पिता रेवाशंकरजी के आप बड़े पुत्र थे। आपके छोटे भाईयों का नाम गोविंद शंकर और प्रताप शंकर था। प्रारंभिक शिक्षा आपने मध्यप्रदेश में ही पूर्ण की, बाद में आपका परिवार वाराणसी में आकर बस गया। वर्ष 1942 में आनंद शंकर पंड्या ने बनारस हिन्दु विश्व विद्यालय से बी.ए. की डिग्री प्राप्त की। वहां आपका परिवार बनारसी साड़ियों के व्यापार में लग गया था। जिस वर्ष आनंद शंकर पंड्या ने बी. ए. की डिग्री प्राप्त की थी उस वर्ष विशविद्यालय के उप कुलपति डा. राधाकृष्णन थे जो बाद में भारत के द्वितीय राष्ट्रपति बने। आनंद शंकर बताते थे कि डा. राधाकृष्णन प्रति रविवार विद्यार्थियों के लिए गीता पर व्याख्यान देते थे और उस व्याख्यान में बड़ी संख्या में विद्यार्थी भाग लेते थे। आनंद शंकर राधाकृष्णन के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित थे। उनका मानना था कि भारत की संस्कृति, संस्कार तथा जीवनमूल्यों में उनकी निष्ठा का बीजारोपण तो उनके माता-पिताश्री के द्वारा किया गया किन्तु उसका पल्लवन डा. राधाकृष्णन के विचारों और व्यक्तित्व को देखकर हुआ था। आनंद शंकर पंड्या की पूज्य माताश्री रुक्मणीबेन आजादी आंदोलन में बहुत सक्रिय रही थीं। उन्होंने आनंद शंकर पंड्या को तीन शिक्षाएं दी थीं, जिसका उन्होंने जीवन भर पालन किया। पहली ‘किसी के साथ अन्याय मत करो और न होने दो, उसका विरोध करो।’ दूसरा ‘समय नष्ट मत करो।’ और तीसरा ‘हमेशा समय सावधान रहो’। आनंद शंकर ने उक्त तीनों बातों का बड़ी ही निष्ठा से साथ जीवन पर्यंत पालन किया।

वाराणसी से आनंद शंकर का पूरा परिवार बाद में मुंबई में आकर हीरे जवाहरात का व्यापार करने लगा। ईश्वर की कृपा से पंड्या परिवार का हीरा व्यापार परवान चढने लगा और कुछ ही वर्षो में उनकी गिनती मुंबई में हीरे के अग्रणी व्यापारियों में होने लगी और वे मुंबई के हीरे व्यापारियों, कारोबारियों का नेतृत्व करने लगे। तथापि आनंद शंकर के मन में भारत की संस्कृति और संस्कार के प्रति श्रद्धा निरंतर बढ़ती जा रही थी। उसका कारण बताते हुए आनंद शंकरजी हमेशा कहते थे कि मेरे व्यक्तित्व को गढ़ने में मेरे माता-पिता की बहुत बडी भूमिका रही है। उनका मानना था कि माता-पिता के ऊंचे आदर्शों वाली शिक्षा ने मेरे जीवन की नींव बनाई जिसके कारण स्वामी विवेकानंद, महामना मालवीय, म. गांधी, विनोबा भावे, डाक्टर हेडगेवार, गुरुजी गोलवलकर, अशोक सिंहल, हेलेन किलर, जमनालाल बजाज तथा धीरुभाई अंबानी व नारायणमूर्ति जैसे उद्योगपतियों से बहुत कुछ सीखने को मिला।

हिन्दु समाज की स्थिति से आनंद शंकर प्रारंभ से ही बहुत विचलित रहा करते थे। वर्ष 1980 में एक बार वे दौलतराम कवेरी के साथ एक बैठक में भाग लेने के लिए गए थे, जिसमें विश्व हिन्दु परिषद के कोषाध्यक्ष सदाजीवत लालजी भी आए थे, उन्होंने उक्त बैठक में हिन्दु धर्म की महानता तथा उस पर छाए हुए संकट पर उनका मार्मिक संबोधन सुना और उसी समय उन्होंने वि.हि.प. के सक्रिय सदस्य के रूप में उसकी सदस्यता ग्रहण कर ली और वि.हि.प. के सेवार्थ अच्छी राशि की घोषणा कर दी। बाद में उनका परिचय वि.हि.प. के अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वनामघन्य अशोक सिंहल से हुआ। अशोक सिंहल में आनंद शंकर को हिन्दु, हिन्दुत्व और हिन्दुस्थान के उद्धारक का रूप दिखा और वे पूरी तरह से वि.हि.प. और अशोक सिंहल के प्रति समर्पित हो गए। उनका दृढ़ विश्वास था कि वि.हि.प. का कार्य भारत की आत्मा के जागरण का कार्य है। पंड्या बताते थे कि यह सब समझने में उनको 15 वर्ष लग गए। अपने एक लेख में आनंद शंकर ने अशोक सिंहल को भारत का महान कर्मयोगी ओर भक्तियोगी माना है, जिन्होंने देश के युवकों के सामने भारत माता के प्रति समर्पण, त्याग की अद्भुत भावना और कार्यकुशलता का आदर्श उपस्थित किया है।

आनंद शंकर पंड्या बताते थे कि उनके जीवन को सर्वाधिक प्रभावित रामायण और गीता जैसे विश्व के सर्वश्रेष्ठ ग्रंथों ने किया। ग्रंथों में दी गई शिक्षा के अनुसार ही उन्होंने अपने जीवन को जीने का प्रयत्न किया और सामाजिक, पारिवारिक तथा व्यावसायिक स्तर पर सफलता प्राप्त की। रामायण के उदात्त चरित्रों का उन्होंने अपने परिवार में सिंचन किया और उसका परिणाम है कि आर्थिक तथा सामाजिक दृष्टि से उपलब्धियों के शिखर पर और आधुनिकता के परिवेश में रहने के बावजूद अभी भी उनका संपूर्ण परिवार-संयुक्त परिवार की भारतीय परंपरा का बड़ी ही श्रद्धा के साथ निर्वाह कर रहा है। परिवार में पूरी तरह सामंजस्य और परस्पर प्रेम और स्नेह का भाव है। यद्यपि आपके एक सुपुत्र पं.ज्योति शंकर अमेरिका में है किन्तु फिर भी उनका मन पूरी तरह से भारतीय परंपराओं और मूल्यों से ओतप्रोत है। आज के युग में इस तरह के परिवार हम सबके लिए एक उदाहरण है। सामाजिक दृष्टि से प. आनंद शंकर ने उपलब्धियों के आकाश को छुआ। वे वर्षों तक विश्व हिन्दु परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे और हिन्दुत्व के लिए सतत सक्रिय रहे। हिन्दुत्व के लिए उनका सबसे बड़ा योगदान उनका हिन्दुत्व के प्रचार-प्रसार तथा जन जागरण के लिए करोड़ों की संख्या में समय-समय पर वितरित किए जाने वाले हस्त पत्रक (हैंड बिल), पत्रक, पुस्तिकाएं तथा समाचार पत्रों में विज्ञापन का रहा है। उन्होंने विगत पचास वर्षों में अपने आलेखों, पत्रकों तथा साक्षात्कारों से न केवल भारत में बल्कि विदेशों में, विशेष रूप से अमेरिका तथा यूरोपीय देशों में भी भारतवंशियों को जागृत करने तथा उन्हें हिन्दुत्व के प्रति जोड़ने का अप्रतिम कार्य किया है, जिसके लिए हिन्दु समाज सदैव उनके प्रति कृतज्ञ रहेगा। इसी क्रम में वर्ष 2000 में वंदे मातरत् गीत के 125 वर्ष पूर्ण हुए थे। संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता मोरोपंत पिंगले की इच्छा थी कि इस शुभ अवसर पर मुंबई में एक वृहद कार्यक्रम होना चाहिए, इस दृष्टि से वंदे मातरम् शकतोत्तर रौप्य महोत्सव समिति का गठन हुआ और आनंद शंकर उस समिति के अध्यक्ष तथा सतीश सिन्नरकर उसके सचिव मनोनीत हुए। बाद में समिति वंदे मातरम् फाउंडेशन के रूप में कार्य करने लगी। इसी वंदे मातरम् फाउंडेशन के तत्वावधान में सन 2008 को पंडित आनंद शंकर का बडे ही धूमधाम से 85 वां जन्म दिवस षण्मुखानंद हाल में आयोजित किया गया था, जिसमें देश के शीर्षस्थ संत महात्मा, रा.स्व.संघ के प.पू. सरसंघचालक माननीय सुदर्शनजी तथा राजनीतिक, सामाजिक, उद्योग क्षेत्र के गणमान्य लोग उपस्थित थे। वह कार्यक्रम अद्भुत तथा अविस्मरणीय था।

इससे पहले 4 अक्टूबर 2007 को गुजरात के तत्कालीन मुख्य मंत्री और इस समय के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी को देश के सर्वश्रेष्ठ मुख्य मंत्री के रूप में नामित किए जाने पर पं. आनंद शंकर की अध्यक्षता में यादगार कार्यक्रम संपन्न हुआ था। यह कार्यक्रम भी वंदेमातरम् फाउंडेशन द्वारा आयोजित था।

पंडित आनंद शंकर देश की युवापीढ़ी को संस्कारित तथा देश के प्रति समर्पित रहने की भावना को बढ़ावा देने के लिए देश की शिक्षा नीति पर निरंतर चर्चा करते रहते थे। उनका मानना था कि देश तभी आगे बढ़ेगा, जब वह अपने मूल हिन्दु जीवन मूल्यों को सही तरीके से समझ कर उसका अनुपालन करेगा। इस दृष्टि से वे हमेशा शिक्षा को व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण का बहुत ही प्रभावी उपकरण मानते थे और देश के आर्थिक सामाजिक तथा सांस्कृतिक विकास का सशक्त माध्यम के रूप में स्वीकार करते थे। इस दृष्टि से शिक्षा में कायाकल्प के लिए आनंद शंकर के मार्गदर्शन में भारत के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम की भविष्य दृष्टि-विजन 2020 को सही प्रकार से कार्यान्वित करने के लिए समर्थ ट्रस्ट की स्थापना की गई, जिसमें देश के अनेक शीर्षस्थ शिक्षाविदों तथा मूर्धन्य विद्वानों और विश्वविद्यालयों के कुलपतियों का समावेश है। इस समय यह ट्रस्ट राष्ट्रीय शिक्षा नीति को प्रभावी तौर पर लागू करने के लिए केन्द्र तथा राज्य सरकारों के साथ सहयोग करते हुए व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण के अपने विजन को साकार करने में लगा हुआ है। पं. आनंद शंकर पंड्या के भ्रात्रज प्रवीण शंकर इस ट्रस्ट के वरिष्ठ ट्रस्टी हैं, उनके सुपुत्र राजीव शंकर भी इस ट्रस्ट की गतिविधियों में अपनी सक्रिय भूमिका और परामर्श से इसे लाभान्वित करते है। इस ट्रस्ट के महामंत्री मनीष मंजुल हैं जो प्रशिक्षण और शिक्षण के विशेषज्ञ के रूप में जाने जाते है।

इस प्रकार पंडित आनंद शंकर पंड्या ने देश, समाज, संस्कृति तथा हिन्दु धर्म के लिए 99 वर्ष 5 महीने के अपनी जीवन यात्रा में उपलब्धियों के अनेक इतिहास रचे, जो आगे आनेवाली पीढ़ी के लिए आलोक स्तंभ के रूप में है। महाराज मनु का अद्भुत श्लोक है-

एत्देश प्रसूतस्य सकाशाद् जन्मनः।

स्वं स्वं चरित्रं शिक्षरेन पृथिव्यां सकल मानवाः॥

इस पुण्यभूमि भारत में उत्पन्न ऋषि-मुनियों, महापुरुषों ने अपने चरित्र चिंतन तथा अंतर्चेतना से संपूर्ण पृथ्वी को ज्ञान, शिक्षा प्रदान की है। उसी परंपरा के पंडित आनंद शंकर पंड्या जैसे राजर्षि इस इक्कीसवीं सदी की ऋषि परंपरा के प्रतिनिधि थे। उनकी परम चेतना को कोटि-कोटि प्रणाम।

 

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: ABVPbajrang dalhindi vivekhindi vivek magazinepandit anand shankar pandyarashtriya swayam sevak sanghrssvishwa hindu parishad

वीरेन्द्र याज्ञिक

Next Post
मोबाइल कंपनियों की बढ़ती मनमानी!

मोबाइल कंपनियों की बढ़ती मनमानी!

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0