बाबरी ढांचे की 29वीं बरसी पर उसे बनाने की मांग उठी है। दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में छात्रों के समूह ने बाबरी विध्वंस को लेकर विरोध किया और उसे फिर से बनाने की मांग उठाई। 6 दिसंबर को बाबरी विध्वंस की बरसी थी जिसको लेकर पूरे देश में शौर्य दिवस मनाया गया लेकिन पहले से ही विवादों में रहने वाला जेएनयू विश्वविद्यालय एक बार फिर से हिन्दुओं के निशाने पर आ गया है। JNUSU छात्रसंघ की तरफ से रात में एक प्रोटेस्ट मार्च निकाला गया और यह मांग की गयी कि बाबरी ढांचे का फिर से निर्माण किया जाए। इस मार्च में जेएनयू और लेफ्ट के छात्रों ने हिस्सा लिया।
6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी ढांचे को तोड़ा गया था जिसके बाद से यह केस देश की सर्वोच्च अदालत में चला और अंत में 9 नवंबर 2019 को कोर्ट ने राम मंदिर के पक्ष में अपना फैसला सुना दिया। देश की सर्वोच्च अदालत के फैसले का सम्मान करते हुए राम मंदिर का निर्माण किया जा रहा है और मस्जिद के लिए भी जमीन निश्चित की गयी है लेकिन इन सब से अलग जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में बाबरी ढांचे के पक्ष में नारेबाजी हुई और इसे फिर से बनाने की मांग रखी गयी। इस प्रदर्शन के दौरान नारी बाजी की गयी और कहा गया, नहीं सहेंगे हाशिमपुरा, नहीं करेंगे दादरी, फिर बनाओ, फिर बनाओ बाबरी, JNUSU की तरफ से कहा गया कि स्लोगन के दौरान हमने हाशिमपुरा और दादरी का जिक्र किया है यह दोनों वही स्थान हैं जहां पर हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए थे। इस तरह ही अयोध्या में दंगे कर बाबरी ढांचे को तोड़ा गया है इसलिए इसे फिर से बनाकर दिया जाना चाहिए।
बाबरी विध्वंस की बरसी से दो दिन पहले विश्वविद्यालय प्रशासन के आदेश का उल्लंघन करते हुए छात्रसंघ की तरफ से ”राम के नाम” विवादित डाक्यूमेंट्री दिखाई थी जिस पर पहले ही विवाद हुआ था और अब बाबरी के विरोध में मार्च निकाला गया है। इस विरोध प्रदर्शन का सीधा अर्थ यह होता है कि जेएनयू का छात्रसंघ सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नहीं मानता है और मार्च निकालकर करोड़ो हिन्दुओं की भावनाओं को आहत कर रहा है। देश के विरोध और हिन्दुओं के विरोध की आवाज अक्सर JNU से ही निकलती है। आतंकी संगठनों के लिए प्यार भी यहीं से निकलता है आखिर ऐसा क्यों? देश का अन्न खाकर देश का विरोध क्यों होता है? देश विरोधी लोगों को लिए JNU अड्डा क्यों बनता जा रहा है। सरकार को ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ा कदम उठाना चाहिए।