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अपराधियों का महिमा मंडन कब तक

अपराधियों का महिमा मंडन कब तक

by रामेन्द्र सिन्हा
in जनवरी- २०२२, विशेष, सामाजिक
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सुशांत सिंह राजपूत के मामले में एक तथाकथित बड़े चैनल ने मुख्य आरोपी को बैठाकर हास्यास्पद सवाल पूछे। कुछ ही दिन पहले दिल्ली दंगे के मुख्य आरोपियों में से एक को उसी टीवी चैनल ने स्थान दिया था। यही नहीं इसी टीवी चैनल ने कश्मीर में भारतीय सेना द्वारा मारे गए एक आतंकवादी के बारे में बताया था कि वह गणित का शिक्षक था। और भी कई घटनाएं बताकर उसके आतंकवादी होने के गुनाह पर लीपापोती करने का प्रयास किया। 

अपराध और अपराधियों या जिन्ना जैसों का महिमामंडन कोई नई बात नहीं है। उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण राजनीति का मुद्दा गरमाने के बाद कानपुर के दुर्दांत अपराधी विकास दुबे जैसा नाम रोल मॉडल के रूप में गिनाया जा रहा है। मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद, बीहड़ की दस्यु रही फूलनदेवी तो कभी अंडरवर्ल्ड का सरगना हाजी मस्तान, दाऊद इब्राहिम (डी कंपनी) और छोटा राजन तो कभी बिहार का शहाबुद्दीन, महाराष्ट्र का अरुण गवली, दक्षिण भारत का चंदन तस्कर वीरप्पन से लगायत निर्भयसिंह गुर्जर, माधोसिंह, मोहरसिंह, मलखानसिंह, युसूफ पटेल ये ऐसे तमाम आपराधिक चेहरे हैं, जिनका हर कालखंड में उस समय की राजनीति में पोषण किया गया, मीडिया में महिमामंडन और सिनेमा-वेब सिरीज में मिलते-जुलते रोल मॉडल खड़े किए गए।

एक राष्ट्रीय टीवी चैनल ने हाल ही में एक स्टोरी की। शीर्षक दिया,‘गरीबों के लिए मसीहा और दबंगों के लिए ‘डॉन’ थे शहाबुद्दीन, हेरा शहाब की शादी के बाद फिर से हो रही उनकी चर्चा’। सुशांत सिंह राजपूत के मामले में एक तथाकथित बड़े चैनल ने मुख्य आरोपी को बैठाकर हास्यास्पद सवाल पूछे। कुछ ही दिन पहले दिल्ली दंगे के मुख्य आरोपियों में से एक को उसी टीवी चैनल ने स्थान दिया था। यही नहीं इसी टीवी चैनल ने कश्मीर में भारतीय सेना द्वारा मारे गए एक आतंकवादी के बारे में बताया था कि वह गणित का शिक्षक था। और भी कई घटनाएं बताकर उसके आतंकवादी होने के गुनाह पर लीपापोती करने का प्रयास किया।

जब निर्भया के दोषियों को फांसी पर चढ़ाया गया था तो एक न्यूज चैनल और उसके पत्रकार ने अपराधियों की रात से लेकर सुबह फांसी पर चढ़ने तक की कहानी बताई थी, जिसमें वह यह भी बता रहा था कि किस तरह से फांसी वाली रात को किसने खाना खाया था, नही खाया था या उन्हे फांसी पर चढ़ाने ले जाते वक्त वे फूट- फूट कर रो रहे थे। 2017 में टाइम्स ऑफ इंडिया में सागरिका घोष का मुख़्तार अंसारी परिवार के महिमामंडन वाला लेख पढ़ लीजिए या किसी हरिशंकर तिवारी, रघुराज प्रताप सिंह के बारे में इन आरोपितों के इला़के में गए पत्रकारों की रिपोर्टिंग पढ़िए। सब इन्हें रोल मॉडल बना कर पेश करते हैं।

सबको मालूम है कि राममंदिर का निर्माणकार्य चल रहा है, ऐसे में बाबर का महिमामंडन करनेवाली ‘दी एम्पायर’ नाम की वेब सीरीज आती है। क्या यह संयोग है, या प्रयोग। राममंदिर सहित अनेक हिन्दू मंदिरों को तोड़नेवाला बाबर, तैमूर का वंशज था। ‘दी एम्पायर’ द्वारा बाबर को पुन: जीवित कर ‘कबीर खान’ जैसे मुसलमान निर्देशक सार्वजनिक रूप से ‘मुगल राष्ट्र निर्माता थे’ ऐसा झूठ बोलने का साहस कैसे करते हैं। ‘मुगल-ए-आजम’ से लेकर ‘दी एम्पायर’ तक इस्लामी आक्रमणकारियों का गुणगान कर उनका महिमामंडन किया गया है।

इसी प्रकार, अनेक वेब सिरीज और फिल्में गुंडों तथा उपद्रवियों का महिमामंडन करती हैं। उन्हें रॉबिनहुड और रोल मॉडल के रूप में चित्रित करती हैं। यह आपराधिक गतिविधियों को सही ठहराते हैं। लोग, विशेष रूप से युवा पीढ़ी, इस तरह के आख्यानों के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं। कुख्यात अपराधी चार्ल्स शोभराज पर फिल्म और वेब सीरीज दोनों बन चुकी हैं। उसे बिकिनी किलर के नाम से भी जाना जाता है। उसका यह नाम इसलिए पड़ा था, क्योंकि उसने जिन लड़कियों की हत्या की थी, उनकी लाश बिकिनी में मिली थी। नई ओटीटी सीरीज ‘द सर्पेंट’ के अधिकांश भाग में शोभराज को एक संगदिल, दानव प्रवृत्ति वाले इंसान के रूप दर्शाया गया है, लेकिन कई दृश्यों के माध्यम से उसके मानवीय पहलू को भी दर्शाने की कोशिश की गई है।

बॉयोपिक ‘संजू’ में राजकुमार हिरानी ने बेहद सफाई से संजय दत्त के अलावा अमूमन सभी को गलत दिखाया है चाहे वो सिस्टम हो, नेता हो, मंत्री हो, पुलिस हो, वकील हो, दोस्त हो या फिर समाज। इसका एक फायदा यह होता है कि अगर किसी अपराधी के आसपास की सभी चीजें गलत दिखाई जाएं तो अपराधी का अपराध छोटा दिखाई देने लगता है या फिर उससे सहानुभूति होने लगती है। हिरानी मुंबई बम धमाकों के गुनहगार टाइगर मेमन के लिए भी सहानुभूति बटोरते नजर आते हैं, जब फिल्म में कहा जाता है कि 1992 के मुंबई दंगों में टाइगर मेमन का दफ्तर जला दिया गया था इसलिए उसने 1993 के मुंबई बम धमाकों को अंजाम दिया। जबकि, मुंबई बम धमाकों में 257 लोगों की जान गई थी और 700 से अधिक लोग जख्मी हुए थे।

2013 में भोपाल में शहर के पांच प्रमुख सिनेमाघरों में किए गए एक सर्वेक्षण में 54 प्रतिशत लड़कों और 68 प्रतिशत लड़कियों ने माना था कि अपराध को बढ़ावा देने में फिल्में उत्प्रेरक का काम करती हैं। वहीं 90 प्रतिशत लड़कों और 78 प्रतिशत लड़कियों ने माना कि वर्तमान में बनने वाली फिल्में समाज पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही हैं। इन्ही सब कारणों से कभी कुख्यात गैंगस्टर काला जठेड़ी को वीआईपी ट्रीटमेंट देती पुलिस का वीडियो वाइरल होता है, वही काला जठेड़ी जिससे, मर्डर केस में फंसे नामचीन पहलवान सुशील कुमार ने खुद की जान को खतरा होने की बात कही थी। कभी, पुलिस वालों की शातिर अपराधी के साथ केक काटते, खातिरदारी करते फोटो वाइरल होती है।

औरंगजेब, अकबर, टीपू सुल्तान, रावण-कर्ण कितने महान!

एक फिल्म आई थी जोधा-अकबर! उसकी झूठी कहानी सुपरहिट भी हो गई थी। अकबर की सच्चाई अल-बदाऊंनी (1540-1615) ने मुन्तखाब-उत-तवारीख (र्चीपींरज्ञहरलर्-ीीं-ढरुरीळज्ञह) में उजागर की है: जब विजय के बाद दूसरे दिन बादशाह पानीपत आया तो उसने मरे हुए सैनिकों के सिरों की मीनार बनाई! (पृष्ठ 10)। अकबर के शासनकाल से ही हरम का विधिवत आरम्भ हुआ। अकबर के हरम में 5000 औरतें थीं। अलबदायूंनी ने लिखा है कि आगरा के सरदार शेख बादाह की बहू थी, जिसका शौहर जिंदा था, मगर अकबर की नज़र उस पर गई तो वह उस पर फ़िदा हो गया और उसने उस लड़की का तलाक करवाकर अपने हरम का हिस्सा बनाया। इससे पहले अकबर के असंख्य निकाह हो चुके थे।

रावण को ब्राह्मण बताकर उसका महिमामंडन करना एक आम बात हो चुकी है। कुछ साल पहले अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष ने रावण को प्रकांड विद्वान बताते हुए भगवान राम को केवल एक क्षत्रिय राजा बताया था। उन्होंने कहा था, ब्राह्मण महासभा रावण के हर वर्ष होने वाले पुतला दहन का विरोध करेगी। कुछ ही माह पहले एक द्विभाषीय फिल्म ‘भवई’(पहले ‘रावणलीला’) प्रदर्शित हुई। प्रयास, क्षेपक के जरिए रावण का महिमा मंडन ही था। जबकि, रावण ब्राह्मण कतई नहीं था। वह एक ऋषि और राक्षसी की सन्तान होने के कारण वर्णसंकर था। उसने स्वयं राक्षस धर्म अपनाया था। उसने मनुस्मृति में बताए सभी महापातक किए थे जिससे ब्राह्मणत्व का लेश भी खत्म हो जाता है। पिछले साल सैफ अली खान ने 2022 में प्रदर्शित होने वाली फिल्म ‘आदिपुरुष’ में लंकेश के अपने चरित्र के बारे में खुलासा किया था कि निर्देशक ने फिल्म में रावण को मानव बनाने की कोशिश की है। उन्होंने यह भी कहा कि फिल्म रावण द्वारा सीता के अपहरण को जायज ठहराएगी। इस पर जब बवाल मचा तो सैफ ने माफी भी मांगी। इसी प्रकार, रामधारी सिंह दिनकर के खंडकाव्य रश्मिरथी में कर्ण के चरित्र को बहुत ज्यादा सकारात्मक रूप में दिखाया गया है इतना कि लोगों को यह भ्रम हो गया कि कर्ण पांडवों से ज्यादा महान था तथा अर्जुन से ज्यादा श्रेष्ठ योद्धा था जबकि सत्य इससे बिल्कुल विपरीत है। इसमें कोई भी विवाद नहीं है कि कर्ण एक श्रेष्ठ योद्धा तथा महादानी था। महारथी कहलाने की सम्पूर्ण योग्यताएं उसमें थीं। धनुर्विद्या उसकी विशेषता थी मगर वह गदा युद्ध, मल्ल, माया, भल्ल्युद्ध की कलाओं के अतिरिक्त व्यूहरचना, भेदनीति में भी पारंगत था। फिर भी, कर्ण अजेय नहीं था। कर्ण का अर्जुन से श्रेष्ठ होना तो बहुत दूर की कौड़ी है, वह अर्जुन के अतिरिक्त अनेकों बार अन्य योद्धाओं एवं महारथियों से परास्त हुआ तथा अधिकांश युद्धों में उसके पराजित होने तथा प्राण बचा कर पलायन कर जाने के प्रमाण ‘महाभारत’ में हैं।

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