अक्सर लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि गोशाला-पांजरापोल की आधुनिक आदर्श व्यवस्था कैसे की जाए और उन्हें स्वावलंबी व आत्मनिर्भर कैसे बनाया जाए? जिससे उन्हें गोशाला संचालन में आसानी हो और सहजता से वह गोसेवा कर पाए। जिसमें सभी प्रकार की अत्याधुनिक सुख सुविधा भी मौजूद हो।
भारतभूमि में युगों-युगों से गोमाता की सेवा व पूजा की जाती रही है। गोमाता भारतीयों की श्रद्धा व आस्था का मानबिंदु है इसलिए आधुनिक समय में गोभक्तों द्वारा गोवंश के संरक्षण व संवर्धन हेतु गोशाला- पांजरापोल की स्थापना की जाती रही है। अक्सर लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि गोशाला-पांजरापोल की आधुनिक आदर्श व्यवस्था कैसे की जाए और उन्हें स्वावलंबी व आत्मनिर्भर कैसे बनाया जाए ? जिससे उन्हें गोशाला संचालन में आसानी हो और सहजता से वह गोसेवा कर पाए। जिसमें सभी प्रकार का अत्याधुनिक सुख सुविधा भी मौजूद हो।
व्यवस्था को योग्य तरीके से संचालित करने का मूलमंत्र
सबसे पहले देश के प्रतिष्ठित गोशालाओं एवं पिंजरापोल का दौरा करें और वहां के प्रबंधन व्यवस्था से लेकर संस्था द्वारा संचालित संसाधनों के कार्यप्रणाली का बारीकी से निरीक्षण व अध्ययन करें। इसके साथ ही व्यवहारिक कार्यों को समझना बेहद जरुरी है। अधिक जानकारी के लिए पुस्तकों और शोध पत्रों का अध्ययन करें। इसके अलावा बैठक, सेमिनार, संगोष्ठी और विचार – विमर्श के आयोजनों में शामिल होकर इस विषय में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। वैसे भी एक बार गोशाला-पांजरापोल का शुभारंभ हो जाता है तो गोमाता की कृपा से सारी व्यवस्थाएं स्वयं ही सुव्यवस्थित होने लगती हैं।
वैज्ञानिक प्रबंधन के अनुसार 20 पशुओं (निराश्रित गोशाला) पर 1 व्यक्ति की तैनाती की जानी चाहिए। वहीं दूसरी ओर डेरी पशुओं के मानक के अनुसार 10 पशुओं पर 1 व्यक्ति की तैनाती की जानी चाहिए, हालांकि समय-काल-परिस्थिति के अनुसार इसमें फेरबदल होता रहता है लेकिन 50 पशुओं पर एक कपल (2 व्यक्ति) होने चाहिए, जो इनकी देखरेख करने में सक्षम हो।
मौसम अनुकूल हरी घास एवं चारे की व्यवस्था
वैज्ञानिक विधि के अनुसार 100 किलो वजनी पशुओं को 5 किलोग्राम सूखा चारा दिए जाने का प्रावधान है, हालांकि वजन कम-अधिक होने पर उसके अनुपात में खुराक कम-ज्यादा दी जा सकती है। आमतौर पर 5 से 10 किलो के बीच प्रत्येक पशुओं को सूखे चारे की आवश्यकता होती है। साथ ही उन्हें अतिरिक्त रूप से 1 किलो दाने का मिश्रण दिया जाना चाहिए। जब मादा पशु गर्भधारण की अवस्था में हो तब उसकी मात्रा में बढोत्तरी की जानी चाहिए क्योंकि उस समय उसके शरीर को पोषक तत्वों की अधिक जरुरत होती है। पशु और उसके बच्चे की रक्षा हेतु इस बात पर ध्यान देना जरुरी है। इसके अलावा पशुओं को चराने के लिए गोचरभूमि सर्वश्रेष्ठ है अन्यथा ज्वार की सुखी घास, बाजरी, मक्की एवं गवार फली आदि चारे के रूप में दी जा सकती है। मवेशियों के चारे में स्थानीय घास-झाड़ियों के पत्ते चारे के रूप में दिया जा सकता है। मौसमी चारे में बरसीम, गन्ने की पतियां, स्थानीय झाड़ियों के पते से लेकर बहुवर्षीय घास जैसे नेपियर, सूडान आदि आसानी से मिल जाते है, इनका भी प्रयोग चारे के तौर पर किया जाना चाहिए। साथ ही इस विषय में चिकित्सकों एवं कृषि विज्ञान केन्द्रों से सलाह मशवरा भी किया जा सकता है। बता दे कि पशु कभी भी अपनी आवश्यकता से अधिक नहीं खाते है इसलिए सामान्यत: उनकी इच्छा भर खाने की व्यवस्था की जानी चाहिए। इसके लिए पहले से गैर सीजन घास का भंडारण तथा सीजन के अनुसार हरी घास के उत्पादन की व्यवस्था करना आवश्यक है।
पीने का साफ पानी उपलब्ध कराने के लिए प्रत्येक सप्ताह टैंक को चुने से पुताई करके स्वच्छ रखना चाहिए। इसके साथ फीडिंग स्टाल पर नमक के खंड को रखा जाना चाहिए ताकि वह समय-समय पर इसे चाटते रहे। पशुओं के स्वास्थ्य को उत्तम रखने के लिए ‘यूरिया-मोलासेस-लिक ब्लोक’ और नमक के खंड को चाटने हेतु रखा जाता है। इससे पशुओं को उर्जा मिलती है और पाचन तंत्र मजबूत होता है। शरीर ताकतवर व स्वस्थ रहता है।
बीमार अपंग व दूध न देनेवाले गोवंश की आवासीय व्यवस्था
पशु शेड की इस तरह से डिजाईन बनाई जानी चाहिए। जिसमें एक शेड में ही चार विभाग बनाये जा सके। इसमें बीमार, अपंग एवं उम्र के अनुसार पशुओं को विभाजित करके रखा जा सके। मवेशियों के लिए अलग-अलग बाड़े बनाये जाने चाहिए। नियम अनुसार 120 वर्ग फिट प्रति बाड़े पशुओं के लिए आवश्यक है, हालांकि छोटे पशुओं के लिए 40 वर्ग फुट प्रति पशु की व्यवस्था की जानी चाहिए। एनीमल वेलफेयर के अनुसार भी इसी तरह की व्यवस्था करनी अपेक्षित है अन्यथा पशुओं की आबादी बढ़ने पर उन्हें जगह कम पड़ सकती है, जो अपराध की श्रेणी में आता है। इस बात का अवश्य ध्यान रखे।
दूध दोहन प्रणाली, वितरण और पशुओं से जुड़े नियम
गाय जब अपने बछड़े को दूध पिला ले उसके बाद ही उसके दूध का दोहन किया जाना चाहिए। संकलित दूध सबसे पहले वहां कार्यरत कर्मचारियों एवं उनके बच्चों को दिया जाना चाहिए। फिर गरीब बच्चों को दूध का वितरण किया जाना चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखे कि गोशाला-पिंजरापोल में 15-20% से अधिक दुधारू पशु नहीं होने चाहिए। दुधारू पशु अधिक होने पर उसे डेरी घोषित किये जाने का प्रावधान है। अवैध यातायात एवं तस्करों से बचाए हुए पशुओं को जब न्यायालय द्वारा गोशाला-पिंजरापोल को सुपुर्दगी दी जाती है तो स्वस्थ व दुधारू पशुओं को किसानों में बांट देना चाहिए और समय-समय पर उनके देखभाल की जानकारी लेनी चाहिए। किसी प्रकार के विवाद और व्यवस्था में कमी पाए जाने पर सुपुर्दगी के नियम अनुसार पशु को वापस लेकर किसी अन्य को दिया जा सकता है। गोशाला के स्टैंडर्ड फोर्मेट में 10% से अधिक दुधारू पशु नहीं होने चाहिए लेकिन एनीमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ़ इण्डिया ने इसे बढ़ाकर 20% कर दिया है। स्मरण रहे कि प्रबंधन के दृष्टिकोण से गोशाला और पिंजरापोल, दोनों की जिम्मेदारी अलग-अलग है।
गोशाला-पिंजरापोल को बनाए स्वावलंबी व आत्मनिर्भर
किसी भी व्यक्ति, संस्था या प्रकल्प को स्वावलंबी आत्मनिर्भर बनाये बिना प्रगति नहीं हो सकती इसलिए सर्वप्रथम स्वयं को मजबूत बनाना चाहिए। संस्थाओं को पशुओं के चारे में अधिक पैसा खर्च करना पड़ता है। इसका समाधान यह है कि वह चारे की व्यवस्था स्वयं करे। आसपास के गाँव में गोचर भूमि की खोजबीन कर उसका विकास करे। वृक्षारोपण कर गोचरभूमि को जंगल का स्वरूप प्रदान करे। वहीं पर खुदाई कर तालाब का निर्माण करे। इससे हमेशा के लिए चारा-पानी की समस्या खत्म हो जाएगी। गोशाला-पिंजरापोल के आसपास भी वृक्षारोपण कर लाभ लिया जा सकता है। इसके अलावा गोबर व्यवस्था प्रणाली विकसित करे, इससे गोबर के बदले चारा प्राप्त किया जा सकता है। जिससे किसानों को रसायन मुक्त जैविक खेती करने में मदद मिले। गोउत्पादों, गोबर गैस और उसकी कड़ीशनिंग प्रोसेस जैसी नई विधियों का प्रयोग, पंचगव्य औषधि आदि माध्यमों से अतिरिक्त कमाई की जा सकती है।
चलायें पशु ‘गोदनामा’ अभियान
पशुधन के महत्व को रेखांकित करने का समय आ गया है। पशुधन को बचाना क्यों आवश्यक है ? लोगों में इसके प्रति जागरूकता लाना बेहद जरुरी है। पशुओं के संवर्धन संरक्षण के लिए ‘पशु गोदनामा’ जैसे अभियान चलाये जा सकते है। पशुप्रेमी परिवारों से संपर्क कर उन्हें प्रतिदिन 50 रूपये के हिसाब से एक पशु को गोद लेने का आग्रह करे। बड़ी संख्या में पशुप्रेमी इस अभियान में शामिल होकर गौरवान्वित महसूस करेंगे और इस तरह संस्था को केवल एक परिवार से 18 हजार रूपये सालाना प्राप्त होंगे। इससे संस्था की आर्थिक शक्ति मजबूत होगी।
पशु चिकित्सक व स्वास्थ्य की व्यवस्था
जिस तरह मानव बार-बार बीमार पड़ते है, उसी तरह पशुओं में भी बीमारी का प्रमाण बढ़ता जा रहा है। पशुओं की सुरक्षा की दृष्टी से अनुभवी पशु चिकित्सकों की देखरेख में स्वास्थ्य परीक्षण एवं उनका समय-समय पर मार्गदर्शन लेना उचित रहेगा। इस बात का ध्यान रखे कि पशु चिकित्सक पशु प्रेमी हो और उसे एनीमल वेलफेयर के नियमों की भी जानकारी हो।