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बेअदबी, बर्बरता और वहशीपन

बेअदबी, बर्बरता और वहशीपन

by अमिय भूषण
in अध्यात्म, विशेष, सामाजिक
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कपूरथला बेअदबी जाँच की रिपोर्ट आ चुकी है। मृतक मानसिक विक्षिप्त था। वही षड्यंत्रकर्ता ग्रंथी के तार सीमा पार से जुड़े पाये गए है। मृतक आश्रय की तलाश में भटकता हुआ गुरुद्वारे चला आया था। बदले में उसे उन्मादियों ने नृशंस मौत दी।उसके शरीर पर तलवार द्वारा दिये गए करीब तीस घाव थे।

इस बीच पहले बेअदबी और अब ब्लास्ट की चर्चा जोरों पर है।राजनीत के बयानबीर भी अपने फार्म में आ गए है।आम आदमी पार्टी के मुखिया केजरीवाल इसे कुछ लोगों द्वारा पंजाब की शांति भंग की कोशिश भर मान रहे है।आखिर पंजाब को सुलगा कौन रहा है?बरहाल महजबी क्रूरता की बेइन्तहाई का सिलसिला बेशर्मी और स्यापा का नजीर बन रहा है।ये सबक गुरुओं वाले पंजाब के लिए नया नही है।बात अगर हालिया अमृतसर हरिमंदिर साहेब प्रकरण की करे तो यह एक नवयुवक के द्वारा की गई बेवकूफाना हरकत के बाद हुई है।

युवक ने मंदिर गर्भगृह में लगे बैरिकेड को फांद नंगे पांव ग्रंथ साहिब दरबार में घुसने की कोशिश की थी।जिसकी परिणती हिंसक भीड़ द्वारा उसकी नृशंस हत्या के रूप में सामने है।वही इस बीच एक और हृदयविदारक दुर्घटना कपूरथला के निजामपुर गाँव में घटित हुई।जहाँ पर एक मानसिक विक्षिप्त युवक को मार डाला गया।ग्रंथी के मुताबिक आरोपी युवक पवित्र ध्वज निशान साहेब के अपमान की कथित नीयत से गुरुद्वारे घुसा था।ऐसे में ग्रंथी ने इसे पुलिस बुलाकर सौंपने की जगह इसका वीडियों सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया।जिसकी परिणती हिंसक भीड़ द्वारा किया गया तालिबानी न्यायिक कृत्य के रूप में सामने है।वही अब इन घटनाओं पर बयानों का सिलसिला जारी है।

इस बीच पंजाब सरकार एसआईटी जाँच गठन कर चुकी है वही पंजाब भाजपा सीबीआई जाँच की माँग तक कर चुकी है।जबकी कांग्रेस पोस्टर बॉय नवजोत सिंह सिद्धू तो दो कदम आगे का इरादा जता चुके है।उन्होंने बेअदबी के हर दोषी को सरेराह फाँसी की वकालत की है।वही अकाल तख्त हरमंदिर साहिब अमृतसर के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह का बयान भी आ चुका है।वे ऐसी घटनाओ पर दुख व्यक्त न कर इसके लिए सरकार और संभावित काल्पनिक षड्यंत्रकारी शक्तियों को जिम्मेदार बता रहे है।बात अगर विभिन्न राजनैतिक दलों की हो तो आसन्न पंजाब चुनाव के मद्देनजर इनके बेहद सधे हुए बयान आने जारी है।इसी क्रम में आरएसएस जैसी सामाजिक सांस्कृतिक संगठन की ओर से भी वक्तव्य जारी हुआ है।यह वक्तव्य संघ की पुरानी नीति के अनुरूप है।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदू सिख एकता का पुराना हिमायती रहा है।इसके लिए वो कटिबद्ध भी है।जहाँ सभी ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए आगे ऐसी घटना ना हो ऐसा विश्वास व्यक्त किया है।

वही गुरु के द्वार पर होने वाले ऐसे वहशीपन पर ये चुप्पी निश्चित ही दुखद एवं दुर्भाग्यपूर्ण है। इस बीच कैप्टन अमरिंदर सिंह का बयान नक्कारखाने मे तूती की आवाज साबित हो रही है।पंजाब सरकार के पुराने कैप्टन ने कहा की बेअदबी के नाम ऐसे नृशंस हत्याओं की छूट नही दी जा सकती है।ऐसे में बेअदबी के मायनों को जानना बुझना बेहद जरूरी है।अगर इसे सिखी मान्यताओं के हवाले से समझे तो यह पवित्र पुस्तक,गुरु और प्रतीक चिन्हों से जुड़ा मसला है।आप यहाँ साम्प्रदायिक मान्यताओं के इतर ना तो कोई व्यवहार और ना ही टिप्पणी कर सकते है। इन पर प्रश्न भी नही खड़ा किया जा सकता है।अगर आपके आचरण या व्यवहार से ऐसी कोई बात निकलती है तो निश्चित ही आप दोषी ठहराये जाएंगे।आप दंड और कोप के भागी भी हो सकते है।किन्ही विशेष परिस्थिति में बेअदबी के लिए अकाल तख्त की ओर से स्पष्टीकरण बुलावा भी भेजा जा सकता है।

अयोध्या रामजन्मभूमि शिलान्यास कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा गुरु गोविंद सिह रचित रामायण की चर्चा आई थी।जिसके बाद अकाल तख्त द्वारा इसे खारिज करते हुए उन्हें प्रस्तुत होने का निर्देश जारी किया गया।वही इस कार्यक्रम में शरीक हुए पटना साहिब के जत्थेदार इकबाल सिंह को बेअदबी का दोषी करार दे दिया गया था।जबकि पटना साहिब सिखों के पाँच तख्तों मे से एक है।यहाँ के ग्रंथी किसी मायने में कमतर नहीं है।दरसल इस पूरे प्रकरण का संबंध जत्थेदार का प्रधानमंत्री के बयानो से सहमति और अपने वक्तव्य में सिख गुरुओं के हिंदू पहचान का मुद्दा था।जत्थेदार इकबाल सिंह ने अपने भाषण मे गुरु नानक को वेदपाठी वंशी और गुरु गोविंद सिंह को लव कुश व रामजी के वंश में जन्म लिया गुरु बताया था।जिसकी परिणती उन्हें पदमुक्ति और धर्ममुक्ति अर्थात तनखैया घोषणा के रूप में मिली।ये एकलौता मामला नहीं है।सिख इतिहास के सबसे बड़े राजा रंजीत सिंह को मोरा मुस्लिम के घर जाने की सजा मिली थी।

केपीएस गिल और पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल कुलदीप बरार अपनी देश सेवा के लिए पंथ से निकाले फेके गए थे।जबकी देश के पूर्व गृह मंत्री बूटा सिंह और पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ऑपरेशन ब्लूस्टार के नाते तनखैया घोषित किये जा चुके है।वही पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री सुरजीत बरनाला बेअदबी के आरोपों में रस्सियों से बांध सजा पा चुके है।ताजातरीन मामला पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह का है।अभी दो सप्ताह पहले ही पटियाला नरेश कैप्टन अमरिंदर भी सिखी से दर बदर किये जा चुके है।जहाँ तक आरोपो का सवाल है तो ये एक न्यायिक जांच से जुड़ा मसला है।जिसमें बेअदबी से जुड़े मामले मे दोषियों के सजा मे विलंब और हिंसक हो चले आंदोलन को खत्म कराने के लिए कैप्टन तनखैया घोषित किये गए है।जहाँ तक सिख समुदाय में बेअदबी की सीमाओं और तनखैया के निर्णयों का प्रश्न है तो इस पर अंतिम राय जत्थेदार ग्रंथी और एसजीपीसी की होती है।

दरसल सिखी का ये तौर तरीका अपने भारतीय पहचान से कही अधिक इस्लामिक रवायतों से प्रभावित है।वैसे भी ईश्वर की वेदांत आधारित मान्यताओ के इतर सिखी कही अधिक ईरानी तफब्बुफ और सूफ़ी इस्लाम के निकट है।जिसका जिक्र राष्ट्रकवि दिनकर अपनी कालजयी रचना संस्कृति के चार अध्याय में करते है।राष्ट्रकवि यहाँ पाश्चात्य लेखक के हवाले से सिख पंथ को सनातन भारत का अरबी टीका बताते है।मतलब की सिखी हिंदुस्तान के बजाय अरबी तौर तरीके तहजीबो के कही अधिक निकट है।ऐसे में बेअदबी से जुड़े प्रकरणों की पड़ताल बेहद जरूरी है।पहले भी 2015 मे बेअदबी को लेकर पंजाब सुलग चुका है।तब बंगारी गाँव के दीवारों पर अपमानजनक टिप्पणियाँ लिखी मिली थी।जिसके बाद हुए उग्र प्रदर्शनों मे दो लोग मारे गए थे।वही 2015 से अबतक 100 से अधिक मामले पंजाब में दर्ज किए गए है।इस बीच बेअदबी से जुड़े मामले भारत के पड़ोस से भी सुनने में आया है।

बात अगर अफगानिस्तान की हो तो यहाँ हाल ही मे जलालाबाद से काबुल तक कई गुरुद्वारे लूटे गए है।ऐतिहासिक गुरुद्वारा गुरुनानक दरबार तक बंद कर दिया गया है।वही अक्टूबर के महीने में काबुल के अंदर गुरुद्वारे की पवित्रता भंग की गई।ऐसा ही कुछ पाकिस्तान में भी जारी है।नवंबर के महीने में सिंध के काशमोर जिला मे पवित्र गुरुग्रंथ साहेब के पन्ने फाड़े गए।सिख युवतियों के अपहरण बलात्कार और धर्मांतरण पश्चात बलात विवाह की घटनायें भी पाकिस्तान से सुनने को मिलती रहती है।वही अभी हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी की पहल और प्रयास से चर्चा में आये करतारपुर साहेब गुरुद्वारा भी इन दिनों बेअदबी  के कई घटनाओं का गवाह है।पहले एक पाकिस्तानी अभिनेत्री ने यहाँ अनुचित कृत्य व्यवहार किया।वही अब पाकिस्तान सरकार के संरक्षण में चल रही व्यवस्थापन कमिटी यहाँ सिख मान्यताओं की सरेआम धज्जि उड़ा रही है।

यहाँ प्रसाद के पैकेट पर सिगरेट का विज्ञापन है।वही प्रसाद का वितरण बीड़ी सिगरेट के कागज वाले दोनों में किया जा रहा है।किंतु इन घटनाओं पर बहुसंख्यक सिख समुदाय मौन है।कोई जत्था न तो पाकिस्तान अफगानिस्तान गया।वही किसी सिख संस्था ने भारत स्थित इन देशों के दूतावास घेराव की जहमत तक नहीं उठाई।जबकि इन्ही महीनों में बेअदबी के नाम पर ये देश में बबाल खड़ा करते रहे है।पहले गुरुद्वारे में पानी पीने आये सेना के जवान को गुरुदासपुर जिले के एक गुरुद्वारे में पीट पीट कर मार डाला गया।फिर बेअदबी के नाम पर एक दलित लखबीर को निहंग सिखों द्वारा सरेआम मार डाला गया।यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना किसान आंदोलन के सिंघु बॉडर पर हुई।इसके बाद पंजाब के गाँव मूंदड़ में खुले सिर गुरुग्रंथ उठाने के जुर्म में सरेआम चरणदास नामक ग्रामीण को सरेआम गोली मार दी गई।वास्तव में ये वहशीपन यह दर्शाता है की इन्हें क़ानून का डर नहीं है और न्याय व्यवस्था मे विश्वास भी नही है।

ये सिखी के तथाकथित रहनुमा गुरुओं के मार्ग से भटक तालिबान के राह पर बढ़ चुके है।वही इसका सबसे दुखद पहलू शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा इनका समर्थन स्वागत है। एसजीपीसी सिखों की सबसे बड़ी और प्रभावी संस्था है।जिसकी स्थापना सिख पंथ के प्रतीक एवं परमपराओं के संरक्षणार्थ की गई थी।किंतु अब ये परेशानी का सबब सी बनती जा रही है।वास्तव में इसपे भी लगाम की जरूरत है।यह वही संस्था है जो मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारे को अकाल तख्त का जत्थेदार बनाती है।निरंकारी प्रमुख बाबा ग़ुरूबचन सिंह की हत्या साजिशकर्ता देश के गुनहगार भिंडरावाले से सहानुभूति रखती है।वही पंजाब के सिख आतंकवाद के शिकार पैंतीस हजार हिंदुओं की नसलकुशी के लिए एक संवेदना तक नही व्यक्त कर पाती है।

यह सिख समुदाय के अंदर कई शाखा और धारा होने के बावजूद खुद को एकमात्र प्रतिनिधि के तौर पर पेश करती आयी है।जबकि इन सिरफिरे कुछेक तत खालसाईयो को छोड़ कर शेष सभी का इस देश की माटी और सनातन संस्कृति मे गहरा विश्वास है।ऐसे में सरकार को न केवल इस प्रकार के मामलों में सख्ती बरतनी चाहिए।अपितु एसजीपीसी के तालिबानीकरण को भी रोकना चाहिए।जबकी सामान्य सिख मतावलंबियों के विश्वास हेतु बेअदबी के लंबित मामलों का शीघ्र निस्तारण करना चाहिए।वही इस पर भी विचार करना चाहिए की आखिर पंजाब के सिख नेता आक्रमक ईसाई प्रचार पर मौन क्यों है!वही अफगान पाकिस्तान मे होने वाले सिख उत्पीड़न और बेअदबी की घटनाओं पर इन स्वघोषित पंथ प्रधानों की चुप्पी के कारण क्या है?कही इन घटनाओं के पीछे पंजाब में जोर पकड़ता खालिस्तानियों का रेफरेंडम 2020तो कारण नही है।वास्तव में राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में इसे नजरअंदाज नही किया जाना चाहिए।

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Tags: gurudwarahindi vivekhindi vivek magazinekapurthala lynchingmentally disablesikh community

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