4 जनवरी को हर साल लुई ब्रेल दिवस मनाया जाता है क्योंकि यह दिन दृष्टिबाधितों के लिए बहुत ही खास है और लुई ब्रेल नामक व्यक्ति ने उस अक्षर को बनाया था जिसे छूकर पढ़ा जा सकता था। लुई ब्रेल ने दृष्टिहीन लोगों के लिए लिखने और पढ़ने के अक्षर की खोज की और उन्हे एक नई राह दिखायी थी उनके प्रयासों की वजह से ही आज लाखों दृष्टिबाधित लोग अपने पैरो पर खड़े हुए है। लुई ब्रेल के इस प्रयासों की वजह से ही उन्हे हर साल उनके जन्मदिन 4 जनवरी को याद किया जाता है और उनके जन्मदिन को लुई ब्रेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक करीब 4 करोड़ लोग देख नहीं सकते हैं और करीब 25 करोड़ से अधिक लोग अलग अलग कारणों से दृष्टि विकार के शिकार हैं। इन्हीं करोड़ों नेत्रहीन लोगों को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र की तरफ से 6 नवंबर 2018 को विश्व ब्रेल दिवस मनाने का फैसला लिया।
ब्रेल लिपि एक कूट भाषा है जिसको पढ़ने के लिए अक्षरों, वर्णों और नंबर को उभारा जाता है वैसे तो यह एक जटिल भाषा है जिसे दृष्टिहीन लोग पढ़ते है लेकिन ब्रेल लिपि के महत्व को आप इस बात से समझ सकते है कि इसके माध्यम से ही आज बड़े बड़े स्कूल चल रहे है जहां अपनी आंख की रोशनी गवां चुके लोगों को सहारा दिया जा रहा है। इस लिपि के माध्यम से कई कारखाने भी चलते है जहां इस प्रकार के लोग काम करते है और देश की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दे रहे है। ब्रेल लिपि के कोड्स से संगीत, गणित और कंप्यूटर प्रोग्रामिंग जैसे विषय भी तैयार किये गये है।
लुई ब्रेल का जन्म 4 जनवरी 1809 में फ्रांस के एक छोटे से गांव कुप्रे में एक साधारण परिवार में हुआ था। लुई ब्रेल जन्म से अंधे नहीं थे। वह तीन साल की उम्र से ही अपने पिता के साथ हाथ बटाते थे। लुई के पिता शाही घोड़ों पर रखने वाली काठी बनाते थे और लुई भी उनकी मदद करता था लेकिन अचानक से एक दिन लुई की आंख में एक लोहे के सूजे से चोट लग गयी। तुरंत में आंख में जड़ी बूटी लगाकर उसका उपचार किया गया लेकिन वह ठीक होने की जगह और बिगड़ता गया। कुछ दिनों बाद लुई ने बताया कि उसकी दूसरी आंख से भी कम दिखाई दे रहा है। पारिवारिक स्थिति ठीक ना होने के कारण लुइस का इलाज नहीं हो सका और वह करीब 8 साल की उम्र तक पूरी तरह से दृष्टिहीन हो गये। भारत में 4 जनवरी 2009 को जब लुई ब्रेल का 200वीं जन्म शताब्दी मनाई गई उस मौके पर डाक टिकट भी जारी किया गया और उन्हे फिर से लोगों के बीच जीवित करने का प्रयास किया गया।
ब्रेल लिपि : ब्रेल लिपि का आविष्कार सन् 1821 में किया गया था। फ्रांसीसी लेखक लुई ब्रेल की कड़ी मेहनत की वजह से नेत्रहीन इस लिपि के माध्यम से कुछ उभरे हुए अक्षरों को छूकर उसे पढ़ सकते है। इस उभरी हुई आकृति के अक्षर, नंबर और विराम चिन्हों की पहचान होती है। आंखों की रोशनी खोने के बाद लुई ब्रेल का दाखिला एक दृष्टिहीन स्कूल में करवा दिया गया। जहां पहले से वेलेंटाइन होउ द्वारा बनायी गयी लिपि के द्वारा पढ़ाई होती थी लेकिन यह लिपि अधूरी थी। इस विद्यालय में एक फ्रांस सेना के अधिकारी प्रशिक्षण के लिए आये और उन्होंने सैनिकों को लिए अंधेरे में पढ़ी जाने वाली नाइट राइटिंग या सोनोग्राफी लिपि के बारे में बताया।
यह लिपि कागज पर उभरे अक्षरों के तौर पर होती थी और इसमें 12 बिंदुओं को 6-6 की दो लाइनों में रखा जाता था लेकिन इसमें कुछ त्रुटियां थी इसमें विराम चिन्ह, गणितीय चिन्ह और संख्या का जिक्र नहीं होता था। लुई ब्रेल ने इस लिपि की खामियों पर विचार किया और इसी लिपि को आधार बनाकर 12 बिन्दुओं की जगह 6 बिंदुओं के उपयोग से 64 अक्षर और विराम चिन्ह, गणितीय चिन्ह और संख्या का भी जिक्र इस लिपि में तैयार कर दिया। लुई ने मात्र 15 वर्ष की आयु में ही इस लिपि को तैयार किया था। सन 1824 में तैयार हुई यह लिपि आज पूरी दुनिया में इस्तेमाल हो रही है।