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कांग्रेस ने स्वयं विवाद बढाया

कांग्रेस ने स्वयं विवाद बढाया

by हिंदी विवेक
in ट्रेंडींग, राजनीति
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मोटा मोटी इस बात पर सहमति है कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक हुई। बहस और विवाद इस पर है कि यह चूक किन कारणों से हुई? या फिर इसके लिए जिम्मेदार कौन है? मामला उच्चतम न्यायालय तक चला गया है। अगर थोड़ी भी गहराई से विचार करें तो पंजाब सरकार एवं कांग्रेस पार्टी ने बुद्धिमता से काम लिया होता तो यह इतने बड़े बवंडर और विवाद का विषय नहीं बनता। अगर पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी मामला सामने आते ही यह बयान देते कि प्रधानमंत्री देश के हैं और उनकी सुरक्षा हम सबकी जिम्मेदारी है इसलिए कहीं चूक हुई है तो हम उसकी जांच कराएंगे और इसके लिए जो भी दोषी पाया जाएगा उसे सजा मिलेगी तो फिर मामला इस तरह बदरूप नहीं होता। चूंकि कांग्रेस पार्टी ने राष्ट्रीय स्तर पर पहले मिनट से ही इसे नकारना आरंभ कर दिया इसलिए मामला बिगड़ता चला गया। कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने आरंभ में ही कह दिया कि प्रधानमंत्री जी की फिरोजपुर सभा के लिए 70 हजार कुर्सियां लगाई गई थी लेकिन 700 लोग नहीं आए।

यानी सभा में लोग नहीं थे तो उन्होंने सुरक्षा चूक का बहाना बनाकर रैली रद्द कर दिया। उसके बाद देश भर से कांग्रेस के लोगों ने ताबड़तोड़ ट्वीट और बयान देना शुरू कर दिया। ऐसा लगा जैसे इन सबके पास सुरक्षा व्यवस्था की पूरी जानकारी हो। युवा कांग्रेस के अध्यक्ष ने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से ही सवाल कर लिया कि मोदी जी हाउज द जोश। एक ने लिख दिया कि शुक्र करिए मोदी जी आप बच कर आ गए, किसान आपकी प्रतीक्षा कर रहे थे। न जाने क्या-क्या अनाप-शनाप लिखा गया। जब मुख्यमंत्री चन्नी सामने आए तो उन्होंने कहा कि हमने देर रात तक प्रधानमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लिया था। इसके साथ में यह भी कह गए कि हम पंजाबियों पर लाठी गोली नहीं चला सकते। इसके मायने बताने की आवश्यकता नहीं है।

देश के हर विवेकशील व्यक्ति के लिए यह हतप्रभ करने वाली स्थिति थी। चित्र और उपलब्ध वीडियो में साफ दिख रहा था कि प्रधानमंत्री का काफिला भटिंडा से हुसैनीवाला के रास्ते एक फ्लाईओवर पर रुका हुआ है। एसपीजी उनके मुख्य कार के चारों तरफ मोर्चा लिए खड़े हैं। इससे बड़ी सुरक्षा चूक और क्या हो सकती है? 

हमारा देश जिस राजनैतिक मनोस्थिति में पहुंच गया है उसमें नीर क्षीर विवेक से टिप्पणी करने का संस्कार धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है। न जाने कितने लोगों ने ट्वीट कर दिया, लिख दिया, बोल दिया कि मोदी जी 700 किसान मरे तो आप पर कोई असर नहीं हुआ और एक आपकी जान इतनी महत्वपूर्ण हो गई? यह भी कहा गया कि किसान एक वर्ष तक धरने पर बैठे रहे और आपने नोटिस तक नहीं लिया । यह सब ऐसे अनर्गल बातें थी जिनसे पूरा पूरा माहौल जुगुप्सापूर्ण बनता गया है। कृषि कानून विरोधी आंदोलन या धरने और प्रधानमंत्री की सुरक्षा चूक में कोई संबंध नहीं है। वैसे भी धरना के आरंभिक चरण में सरकार ने आंदोलनकारियों के प्रतिनिधियों से 11 दौर की वार्ता की थी। दूसरे, कभी भी बलपूर्वक धरना खत्म कराने का कोई कदम नहीं उठाया गया। कभी कोई ऐसी हिंसक कार्रवाई पुलिस प्रशासन की ओर से नहीं हुई जिससे धरने पर बैठे लोगों में से किसी को खरोच भी आए।

बात का बतंगड़ बनाने के लिए ये सारे तर्क दिए जा रहे हैं। हम भूल रहे हैं कि प्रधानमंत्री का पद स्थाई है ,व्यक्ति बदलता रहता है। कल किसी और प्रधानमंत्री के साथ ऐसा हो सकता है और उसमें अनहोनी भी संभव है। तो हम क्या इसी अनुसार तर्क देंगे? पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू अगले ही दिन सभा में प्रधानमंत्री का मजाक उड़ाने लगे और कहा कि हमारे किसान तो साल भर बैठे रहे और आपको इतनी देर में ही अपनी जान पर खतरा आ गया? रैली में लोग नहीं आए तो आपने सुरक्षा चूक का बहाना बना दिया। सत्तारूढ़ पार्टी के अध्यक्ष के इस तरह के बयान पर क्या कहा जा सकता है। हालांकि मामला बिगड़ने पर मुख्यमंत्री ने सुरक्षा चूक के आरोपों की जांच के लिए समिति भी गठित की। लेकिन जब मुख्यमंत्री, पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष तथा केंद्रीय नेतृत्व इस तरह का नकारात्मक स्टैंड ले चुका हो उसमें समिति के निष्कर्षों पर विश्वास कौन करेगा?

अगर पंजाब सरकार और कांग्रेस पार्टी आरंभ में बुद्धि विवेक का परिचय देती तो  भाजपा को उस पर हमला करने, जवाब देने तथा जगह-जगह उनके नेताओं को प्रश्न उठाने का अवसर नहीं मिलता। उठाया भी जाता तो उसे इतना ज्यादा महत्व नहीं मिलता। जिस तरह की भाषा कांग्रेस के लोगों ने प्रयोग किया वह पार्टी की सोच और व्यवहार की दयनीय अवस्था को परिलक्षित करता है। 

1984 में प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की उनके ही सुरक्षा गार्डों ने गोलियों से भून दिया था। क्या कांग्रेस उसे भूल गई है? पंजाब की पृष्ठभूमि तथा स्थिति किसे पता नहीं है। जम्मू कश्मीर के बाद कोई प्रदेश यदि आतंकवाद और अलगाववादी हिंसा की दृष्टि से सबसे ज्यादा संवेदनशील है तो वह पंजाब ही। कृषि कानून विरोधी आंदोलन के दौरान हमने खालिस्तानी तत्वों की सक्रियता साफ देखी है। पाकिस्तान की सक्रियता तथा पंजाब में हाल में हुए विस्फोटों औरविस्फोटों की विफल की गई साजिशों में जो भी पकड़े गए उनने चिंताजनक जानकारियां दी है। कोई व्यक्ति आतंकवादी बनता है तो वह अपनी जान की परवाह नहीं करता। वह बड़ा से बड़ा जोखिम मोल लेकर दुस्साहसपूर्ण कार्रवाई करता है। अगर कोई अनहोनी हो जाती तो पंजाब सरकार और कांग्रेस क्या जवाब देती? इस पर किसी ने विचार किया है? इंदिरा गांधी की हत्या के बाद समूचे देश में शोक की लहर थी।

किसी भी पक्ष के नेता ने यह नहीं कहा कि इंदिरा गांधी ने स्वर्ण मंदिर कार्रवाई में इतने लोगों को मरवा दिया तो नहीं और एक जान के लिए इतनी हाय तौबा। इसी तरह श्रीपेरंबदूर में तमिल आतंकवादियों द्वारा आत्मघाती विस्फोट में राजीव गांधी की नृशंस हत्या पर भी देश ने संवेदनशील प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। किसी ने नहीं कहा कि शांति रक्षक दल द्वारा श्रीलंका में तमिलों के मारे जाने पर जब किसी ने छाती नहीं पिटा तो राजीव गांधी की हत्या पर ऐसी हाय तौबा क्यों? ऐसी प्रतिक्रियाएं तब देश सहन नहीं करता। जो भी ऐसी प्रतिक्रिया देता उसकी दुर्दशा आम जनता ही कर देती। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जीवित और सुरक्षित हैं लेकिन ये सारी प्रतिक्रियाएं इसी अनुरूप हैं जिनमें मामले की गंभीरता तो छोड़िए न्यूनतम शालीनता, संवेदनशीलता, मानवीयता और गरिमा तक का अभाव है। सुरक्षा चूक से कम दिल दहलाने वाला यह पहलू नहीं है।

एसपीजी ऐसे सभी संभावित हमलों से निपटने में सक्षम है। एसपीजी कानून के तहत उसे व्यापक अधिकार भी मिले हैं। अगर आप उसका ब्लू बुक पड़ेंगे तो इसका अंदाजा मिल जाएगा। प्रधानमंत्री जहां से गुजरते हैं वह पूरा क्षेत्र कानूनी तौर पर भी उसके नियंत्रण में आ जाता है। किंतु अभी तक ऐसी नौबत नहीं आई जब एसपीजी को अपने इन अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए प्रधानमंत्री की जीवन रक्षा करनी पड़ी हो। हां, पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चंद्रशेखर की एक रेल यात्रा में सन 2000 में एसपीजी को गोली अवश्य चलानी पड़ी थी जिसमें एक छात्र की मृत्यु हो गई थी ,क्योंकि वो सब उसी बोगी में जबरन चढ रहे थे जिसमें चंदशेखर यात्रा कर रहे थे। बठिंडा से हुसैनीवाला के बीच जो परिदृश्य थे उसमें एसपीजी के सामने यह नौबत आ सकती थी। अगर प्रधानमंत्री आगे जाना चाहते तो एसपीजी के पास हर हाल में रास्ता खाली कराने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता। एसपीजी के जवान गोलियां चला सकते थे। उसके बाद क्या होता है इसकी कल्पना करिए। यह राहत की बात है कि ऐसा नौबत नहीं आने दी गई। गैर जिम्मेवार प्रतिक्रियाएं देने वाले पूरे परिप्रेक्ष्य और सारे पहलुओं को समझें।

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