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इंडिया गेट अमर जवान ज्योति का युद्ध स्मारक में विलय

The Union Minister for Defence, Shri Rajnath Singh along with the Minister of State for AYUSH (Independent Charge) and Defence, Shri Shripad Yesso Naik, the Chief of Defence Staff & Secretary Department of Military Affairs, General Bipin Rawat, the Chief of the Army Staff, General M.M. Naravane, the Chief of Naval Staff, Admiral Karambir Singh and the Chief of the Air Staff, Air Chief Marshal R.K.S. Bhadauria paying homage to the fallen heroes at the National War Memorial, on the occasion of the 21st anniversary of Kargil Vijay Diwas, in New Delhi on July 26, 2020.

इंडिया गेट अमर जवान ज्योति का युद्ध स्मारक में विलय

by अवधेश कुमार
in विशेष
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अमर जवान ज्योति को इंडिया गेट से राष्ट्रीय युद्ध स्मारक स्थानांतरित करने का दृश्य पूरे देश ने देखा। सैन्य परेड ,गार्ड ऑफ ऑनर से सुसज्जित भव्य समारोह में इंडिया गेट की अमर ज्योति को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की अमर ज्योति के साथ मिला दिया गया। नरेंद्र मोदी सरकार के इस निर्णय के साथ इसका विरोध होना शुरू हुआ था। हालांकि विरोध और विवाद करने वालों में ऐसे लोग भी शामिल थे, जिन्होंने जानबूझकर या अनजाने में यह बोला और लिखा कि अमर जवान ज्योति बुझा दी जाएगी। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी इनमें शामिल है। यह बात समझ से परे है कि आखिर इस तरह की अफवाह कैसे फैलाई जा सकती है? विलय यानी मिलाने और बुझाने में जमीन आसमान का अंतर है।

एक ज्योति से दूसरी ज्योति को जलाना और अमर जवान की सामूहिक ज्योति के साथ उसको समाहित करना बुझाना नहीं होता। वास्तव में अगर राजनीति न हो तो यह कदम किसी दृष्टि से विरोध और विवाद का नहीं है। कोई भी सरकार हमारे देश की रक्षा या सम्मान की खातिर अपनी जान गंवाने वाले वीर बलिदानियों के सम्मान को कम नहीं कर सकती है। जैसा हम जानते हैं अमर जवान ज्योति 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में बलिदान देने वालों वाले 3843 वीर सैनिकों की स्मृति को जीवित रखने के लिए जलाई गई थी। स्वातंत्र्योत्तर भारत के सैन्य इतिहास में वह ऐसा स्वर्णिम अध्याय है जिसे भारत कभी भी भुला नहीं सकता। लेकिन क्या इंडिया गेट ही अमर जवान ज्योति के लिए उपयुक्त जगह था?

यह ध्यान रखिए कि अंग्रेजों ने 1931 में इंडिया गेट का निर्माण प्रथम विश्वयुद्ध और उससे पहले के युद्धों में मारे गए 84 हजार जवानों की स्मृति  में किया था। वह सब भारतीय जवान थे जो ब्रिटिश सेना में शामिल होकर युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। इस तरह यह अंग्रेजों द्वारा निर्मित युद्ध स्मारक है। ऐसा नहीं है कि अंग्रेजों ने जो भी भवन या स्मारक बनाए उन सबको नष्ट कर दिया जाए या उनकी स्मृतियों को खत्म कर दिया जाए। उन सबको खत्म कर उनकी जगह नए सिरे से सारे निर्माण संभव नहीं और न यह व्यवहारिक और उपयुक्त ही है। इस कारण इंडिया गेट है और रहेगा। किंतु उपनिवेश काल के गौरव प्रतीकों की जगह अपने गौरव प्रतीक विकसित होने ही चाहिए। विश्व के सारे प्रमुख देशों ने ऐसा किया है। वैसे भी वहां अमर जवान ज्योति 1971 के वीर शहीदों की याद में तब लगाया गया जब हमारे पास युद्ध स्मारक नहीं था ।

जब युद्ध स्मारक बन गया तो अमर जवान ज्योति के अलग से अन्यत्र होने का कोई कारण नहीं। यह उचित भी नहीं। राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में 26,642 नाम अंकित है। 1947 से लेकर भारत की रक्षा में जितने जवान वीरगति को प्राप्त हुए सभी के नाम इसमें अंकित हैं। वहां 1947-48 का युद्ध, गोवा ऑपरेशन, 1962 ऑपरेशन, 1965 वॉर, 1971 वॉर, कारगिल वॉर से लेकर हाल ही में गलवान में जान गंवाने वाले जवानों, आतंकवाद से संघर्ष करते हुए शहीद हुए जवानों के नाम खुदे हैं। इसमें ऐसी व्यवस्था है कि आगे भी ऐसे शहीदों के नाम अंकित किए जाएंगे। अमर जवान ज्योति को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के अमर जवान ज्योति में मिला देने का विरोध करने वाले और इसे एक विशेष विचारधारा को थोपने की बात करने वाले ऐसे कई तथ्यों को नजरअंदाज कर रहे हैं।

सच यह है कि इंडिया गेट पर 1971 में वीरगति को प्राप्त हुए जवानों के नाम अंकित नहीं है। इसके विपरीत राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में उन सारे जवानों के नाम लिखे हुए हैं। तो जहां जवानों के नाम लिखे हुए हैं वहां उस ज्योति का होना जरूरी है या जहां नहीं लिखे हैं वहां?  जहां भारत के लिए संघर्ष करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए सारे वीरों के नाम लिखे हैं उनकी सबकी स्मृतियां हैं उनके साथ इनका नाम होना सही है या इनको अलग से याद करना? इनका उत्तर आप स्वयं तलाश कर सकते हैं।

यह भी न भूलें कि वीर सैनिकों के सम्मान से संबंधित सारे कार्यक्रम अब राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में होते हैं। गार्ड ऑफ ऑनर वहां दिया जाता है। विदेशों से आने वाले नेता अब वही जाकर हमारे सैनिकों के प्रति सम्मान प्रकट करते हैं। यह एक स्थाई प्रोटोकॉल बन चुका है। विश्व के सारे प्रमुख देश अपने सैनिकों के सम्मान में राष्ट्रीय युद्ध स्मारक बना चुके हैं। भारत इससे लंबे समय तक वंचित था। इस कारण देश के अंदर और बाहर भी इसका पता नहीं चल पाता था कि आखिर भारत ने किन-किन युद्धों में किस तरह की शौर्य और वीरता का प्रदर्शन किया। वहां जाने वाले को भारत के  सैन्य इतिहास का सिंहावलोकन हो जाता है। इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति को देखने वाले ज्यादातर लोग यह नहीं जान पाते थे कि किनकी स्मृतियों में यह ज्वाला लगातार जल रही है। आखिर वहां नाम तो प्रथम विश्व युद्ध, अफगान युद्ध, बर्मा युद्ध आदि के शहीद सैनिकों के खुदे हुए हैं। जिन्हें जानकारी नहीं उनके मन में यही भाव पैदा होता था कि शायद यह अमर जवान ज्योति उन्हीं की स्मृति में जल रहा है। गहराई से देखा जाए तो हमारे सभी बलिदानी सैनिकों की स्मृतियों का इसके साथ एकीकरण हो गया।

 विरोध करने वालों से परे ज्यादातर पूर्व सैन्य अधिकारियों ने इसका समर्थन किया है। जब युद्ध स्मारक बनाने की घोषणा हुई तब भी विवाद खड़ा हुआ। युद्ध स्मारक के लोकार्पण के समय भी विवाद हुआ। अनेक प्रकार के अतिवादी विश्लेषण किए गए । लेकिन पूर्व सैन्य अधिकारियों एवं देश में सेना को महत्व को समझने वाले लोगों का समर्थन तब भी मिला और आज भी मिल रहा है। हर विषय को दलीय राजनीति और राजनीतिक विचारधारा के आईने में नहीं देखा जाना चाहिए। एक समय जो कदम उठाए गए वो उसके अनुसार उपयुक्त और सही थे। काल और परिस्थितियों के अनुसार अगर संशोधन और परिवर्तन की आवश्यकता हो तो करना पड़ता है या उससे बेहतर विकल्प उपलब्ध हो तो उन्हें अपनाना पड़ता है।

हमारी मानसिकता यह हो कि जो कुछ भी है उसमें किसी स्तर पर परिवर्तन संशोधन नहीं हो तो फिर हम जड़ हो जाएंगे और बेहतर विकल्प की ओर दृष्टि जाएगी ही नहीं। हमारे देश में ऐसा ज्यादातर मामलों में हो रहा है कि हम ऐसे किसी भी परिवर्तन और संशोधन को नई सकारात्मक दृष्टि से देखने की कोशिश नहीं करते। इस कारण आवश्यक और अच्छे परिवर्तन संशोधन भी विवाद के विषय बन जाते हैं। कायदे से इंडिया गेट की अमर जवान ज्योति को युद्ध स्मारक की अमर जवान ज्योति से मिला देने का स्वागत होना चाहिए । सम्मानजनक सैन्य समारोह के साथ विलय का यह पूरा कार्यक्रम संपन्न हुआ उससे बेहतर शायद ही कुछ हो सकता था। एक दीप से दूसरे दीप को जलाने की महान परंपरा का पालन किया गया। इसे किसी तरह की अतिवाद से जुड़ने की वजह सहज सकारात्मक दृष्टि से देखना ही उचित है। 

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Tags: amar jawan jyotiheritagehindi vivekhindi vivek magazineindia gateindian security forcesnational war memorialremembrance of martyrssocial heritage

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