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लाला लाजपत राय की आजादी में भूमिका

लाला लाजपत राय की आजादी में भूमिका

by हिंदी विवेक
in विशेष, व्यक्तित्व
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देश आज 28 जनवरी 2022 को लाला लाजपत राय की 157वीं जयंती मना रहा है। देश की आजादी के लिए उनका बलिदान आज भी देश के लाखों लोगों को प्रेरित करता है और उनकी प्रेरणा की वजह से ही हम आज करीब 150 साल बाद भी उन्हें याद करते हैं। लाला लाजपत राय की157वीं जयंती पर देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सहित तमाम लोगों ने उन्हें नमन किया। 28 जनवरी 1865 को पंजाब में जन्में लाला लाजपत राय एक अच्छे वकील, राजनेता और लेखक थे। 

लाला लाजपत राय की देश भक्ति और सेवा की वजह से ही उन्हे ‘पंजाब केसरी’ और लॉयन ऑफ पंजाब का नाम भी दिया गया था। देश को आजाद कराने के लिए उन्हें तमाम संगठनों की स्थापना की थी जिसमें हिंदू महासभा, हिन्दू सुधार आंदोलन, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन, हिसार कांग्रेस, हिसार बार काउंसिल सहित तमाम संगठन शामिल थे। 28 जनवरी 1865 को जन्में लाला जी की शिक्षा रोहतक और हिसार से ही पूरी हुई और फिर वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह देश सेवा की तरफ तेजी से झुकते चले गये और एक के बाद एक नए आंदोलन में शामिल होने लगे। इस दौरान ही उन्होंने तमाम संगठनों की स्थापना की जिसमें हिसार बार काउंसिल भी था। 

लालाजी पूरा जीवन देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते रहे और अंत में भी स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। वर्ष 1888 में मात्र 23 वर्ष की अवस्था में ही लालाजी ने कांग्रेस के सम्मेलन में भाग लिया। इस दौरान उनकी मुलाकात गांधी जी से हुई जहां वह गांधी जी से बहुत प्रभावित हुए और फिर धीरे धीरे उन्होंने अपने व्यवसाय को बंद कर दिया और पूरी तरह से आजादी की लड़ाई में कूद गये। गांधी जी के बताए मार्ग पर वह हमेशा चलते रहे और अंग्रेजी सरकार का विरोध किया। लाला जी एक कुशल वकील थे जिससे वह अंग्रेजी सरकार पर दबाव बनाने में सफल हो रहे थे और यह मांग कर रहे थे कि अब उनके देश को आजाद कर दिया जाए। लाला जी के लगातार दबाव के बाद अंग्रेजी सरकार ने उन्हें 1907 में उन्हें बर्मा की जेल में बंद कर दिया लेकिन जेल से वापस लौटने के बाद लालाजी का संकल्प और दृढ़ हो गया और वह गांधी जी के साथ मिलकर इस आंदोलन को और तेजी के साथ शुरु कर दिया। 

पंजाब केसरी लाला लाजपत राय ने स्वाधीनता की लड़ाई को बहुत जल्दी ही देश के कोने कोने में पहुंचा दिया और युवा वर्ग को भी इसमें जोड़ दिया जिससे आजादी की आग तेजी से देश में फैलने लगी। इस दौरान अंग्रेजों ने लाला जी पर हमले भी करवा दिए और उनकी गिरफ्तारी भी करवा दी। वर्ष 1928 में लाला जी ने एक भाषण को संबोधित करते हुए कहा कि ”मेरे शरीर पर पड़ी एक एक लाठी ब्रिटिश हुकूमत के ताबूत में एक एक कील का काम करेगी” अंग्रेजी सरकार ने 1926 में साइमन कमीशन की नियुक्ति की थी लेकिन इसे भारत में 1928 में भेजा गया इस दौरान देश में स्वतंत्रता आंदोलन तेजी पर था जिससे उसका विरोध शुरु हो गया।

देश में अलग अलग जगहों पर साइमन कमीशन का विरोध होने लगा। इसी दौरान लाहौर में लाला लाजपत राय भी एक विशाल रैली को संबोधित कर रहे थे जो साइमन कमीशन के लिए विरोध में हो रही थी। आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाने वाले लाला जी इस बार पुलिस के हाथ लग गये और पुलिस ने रैली पर लाठीचार्ज कर दिया जिससे लाला जी सहित हजारो कार्यकर्ता घायल हो गये। इस घटना में लाला लाजपत राय को गंभीर चोटें आयी और वह देश की स्वतंत्रता के लिए शहीद हो गये। 

पंजाब केसरी लालाजी की हत्या के बाद पूरे देश में  अंग्रेजों के खिलाफ एक लहर चल पड़ी और सभी जगहों पर आंदोलन होने लगे। देश में अलग अलग शहरों से आगजनी की घटनाएं सामने आने लगी। जहां भी अंग्रेज कमजोर पड़ते उन पर हमले हो जाते लेकिन इस दौरान कांग्रेस के नेताओं ने अहिंसा का पाठ पढ़ाया और क्रांतिकारियों को हमले करने से रोकने लगे लेकिन कुछ क्रांतिकारियों को यह बात पसंद नहीं आयी और उन्होंने लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने की ठान ली। महान क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने अंग्रेज पुलिस अधिकारी सांडर्स को 17 दिसंबर 1928 को गोली मार दी और लालाजी का बदला ले लिया, सांडर्स को गोली मारना इतना आसान नहीं था और इसकी सजा मौत होगी यह सभी को पता था लेकिन फिर भी देश के लिए बलिदान देने वाले भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने यह किया। लाला लाजपत का बदला पूरा हुआ लेकिन बाद में इन तीनों क्रांतिकारियों को फांसी दे दी गयी। 

लालाजी देश प्रेम के साथ साथ हिंदुत्व के भी बहुत प्रेमी थे। वह हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना हमेशा करते थे और यह चाहते थे कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र बने। हिंदुत्व की ताकत से वह देश को आगे बढ़ाना चाहते थे और शांति लाना चाहते थे। लाला लाजपत राय सभी से यह कहते थे कि हिन्दुओं को आपस में मिलजुल कर रहना चाहिए और कोई बैर नहीं रखना चाहिए। वह हिन्दुओं के बीच जाति और भेदभाव के खिलाफ थे और इसे खत्म करना चाहते थे लेकिन उसमें वह पूर्ण रूप से सफल नहीं हुए। हालांकि हिंदुओं को आपस में जोड़ने में उन्होने बड़ी भूमिका निभाई थी। 

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Tags: freedom fightergarm dalhindi vivekhindi vivek magazineindian freedom strugglelal bal pallala lajpat railion of punjabpunjab kesarisimon go back

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