हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
सरकार का समर्थन पर वोट देने में अनिश्चितता

सरकार का समर्थन पर वोट देने में अनिश्चितता

by अवधेश कुमार
in ट्रेंडींग, राजनीति
0

उत्तर प्रदेश चुनाव पर भारत ही नहीं यहां रुचि रखने वाले विश्व की भी दृष्टि लगी हुई है। प्रदेश में चुनावी माहौल को देखने के लिए यात्रा कर रहे लोगों को इसका बिल्कुल आभास होगा। लेकिन इस दृष्टि से वर्तमान चुनाव को समझने वालों की संख्या न के बराबर है। पार्टियां चुनाव जीतने के लिए अवश्य जोर लगा रही हैं लेकिन उन्हें भी इसका शायद अनुमान नहीं होगा कि इसके परिणामों का विश्वव्यापी संदेश क्या जाएगा। चुनाव परिणामों का एक सर्वसामान्य विश्लेषण होता है कि सत्तारूढ़ पार्टी ने काम अच्छे किए इसलिए जीती या उनसे जनता नाखुश थी इसलिए पराजित हो गई। वैसे इनको ही व्यापक परिप्रेक्ष्य देखें तो काफी पहलू सामने आ जाते हैं। उत्तर प्रदेश की जमीनी हालत को निकट से देखने वाले निष्पक्ष विश्लेषक अवश्य मानेंगे की इस तरह का माहौल शायद ही किसी चुनाव में देखा गया होगा। मतदाताओं का बड़ा समूह निष्कर्ष नहीं निकाल पा रहा है कि उसे क्या चाहिए और क्या करना चाहिए। आपको शायद इस टिप्पणी पर हैरत हो लेकिन प्रदेश की लंबी यात्रा में मैंने लगातार यही महसूस किया है।

उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम प्रदेश में कहीं भी जाइए मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग कहे कि योगी सरकार ठीक है, आएगी भी योगी सरकार ही तो आम निष्कर्ष यही होगा कि भाजपा आसानी से जीत जाएगी। किंतु यहीं पर पेज खड़ा हो जाता है। योगी सरकार आने की कामना करते हुए भी बहुत सारे लेकिन मैं अपने यहां गैर भाजपा उम्मीदवार को वोट दे रहा हूं। इसके अलग-अलग कारण हैं। कहीं जातीय आधार है,कहीं वर्तमान विधायक के विरुद्ध असंतोष तो कहीं इन सबसे परे या इनके साथ अन्य कारण। कुछ लोगों को यह कहते सुनकर भी हैरत होती है कि भले हम लोग वोट नहीं देंगे लेकिन आएगी तो यही सरकार। जब उनसे प्रश्न करिए कि जब आप वोट नहीं दोगे तो सरकार कैसे आएगी तो वे कहते हैं कि एक क्षेत्र से क्या होने वाला है? फिर कहिए कि अगर ऐसा ही अलग-अलग क्षेत्रों में हो तो सरकार चली जाएगी तो उनका जवाब होता है कि ऐसा नहीं होगा।  दो-चार क्षेत्र की बात हो तो आप अपवाद मान सकते हैं लेकिन राज्यव्यापी यही प्रवृत्ति और मानसिकता हो तो इसका कारण समझना आसान नहीं है।

चुनाव की घोषणा होने तक ऐसा नहीं था। भाजपा ने चुनावी तैयारियां पहले आरंभ कर दी थी।सर्वे कराकर सांसदों, विधायकों ,नेताओं के साथ संवाद किया था। बूथ प्रबंधकों तक के साथ संवाद संपन्न किया था। जिन मुद्दों को भाजपा नेता उठा रहे थे विरोधी दलों के लिए उनका जवाब देना कठिन हो रहा था। सच यह है कि विरोधी दल भाजपा के विरुद्ध कोई बड़ा मुद्दा उठा नहीं पा रहे। टिकट बंटवारे के साथ स्थितियां बदलने लगी। अनेक जगहों में लोगों की प्रतिक्रिया एक ही है कि योगी सरकार तो ठीक है लेकिन हमारा विधायक बेकार है, कोई काम नहीं किया। कहीं लोग कहते हैं कि जीतने के बाद हमारा विधायक आया ही नहीं। यह बात समझ से परे है कि कोई विधायक जीतने के बाद अपने क्षेत्र में गया ही न हो। विधायकों के विरुद्ध ऐसा वातावरण क्यों बना है यह भी समझना मुश्किल है। लोगों के कोप भाजन बनने वालों में ऐसे लोग भी शामिल हैं जो छात्र जीवन से राजनीति में रहे हैं और हमेशा समाज के बीच में रहने का उनका रिकॉर्ड है। उनके बारे में भी क्षेत्र में यही धारणा है कि जीतने के बाद कभी आए ही नहीं। कैबिनेट मिनिस्टर स्तर के कई नेताओं के विरुद्ध और संतोष ऐसा है जिसकी कल्पना हम आसानी से नहीं कर सकते।

उत्तर प्रदेश की जमीनी सच्चाई आज यही है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी और प्रदेश में आदित्यनाथ योगी सरकार के विरुद्ध माहौल नहीं है। लोग कहते हैं कि नहीं सरकार तो अच्छी है। हालांकि छोटे छोटे छोटे मुद्दे सरकार के विरुद्ध उठते हैं लेकिन व्यापक स्तर पर सरकार के विरुद्ध जाने वाले बड़े मुद्दे और आक्रोश कहीं नहीं दिखते। लोग जगह-जगह कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ सरकार ने कानून व्यवस्था बिल्कुल ठीक कर दिया है। अपराधी अब पहले की तरह तंग नहीं करते। कई जगह लोग यह भी आशंका प्रकट करते हैं कि अगर दूसरी सरकार यानी समाजवादी पार्टी आ गई सत्ता में तो गुंडागर्दी और अपराध बढ़ जाएगा। इसके साथ-साथ कोरना काल में गरीबों तक राशन पहुंचाने से लेकर श्रमिकों के खाते आदि में पैसे आने का भी सकारात्मक वातावरण है। और हिंदुत्व तो लोगों के जेहन में है ही।

काशी के पुनर्निर्माण की प्रशंसा ज्यादातर लोग करते हैं। कई जगह ऐसी भी प्रतिक्रिया मिलती है कि अगर केंद्र और प्रदेश में मोदी और योगी सरकार नहीं होती तो अयोध्या में मंदिर नहीं बनता। अलग-अलग क्षेत्रों में लव जिहाद या धर्म परिवर्तन संबंधी कानून में परिवर्तन को भी लोग अच्छा कहते हैं। हालांकि इसका विरोध भी करने वाले हैं। मेडिकल कॉलेज खोलने से लेकर एक्सप्रेसवे और अन्य हाईवे के निर्माण की भी बात लोग करते हैं। जीर्ण- शीर्ण पड़े धर्म स्थलों में सरकार की मदद आदि से निर्माण और देखरेख की व्यवस्था की भी स्थानीय स्तरों पर कहीं-कहीं प्रशंसा सुनने को मिलती है। कुछ क्षेत्रों में जहां मुस्लिम आबादी ज्यादा है और तनाव का वातावरण रहा है वहां लोग भाजपा को चाहते भी हैं। तो यह सकारात्मक पक्ष भाजपा के लिए है। किंतु यही माहौल वोट देने के मामले में महसूस नहीं होता।

जमीनी स्तर पर देखने से पता चलता है कि लोगों के बड़े समूह में सरकार को लेकर सकारात्मक सोच और सहानुभूति को अपने पक्ष में मतदान कराने की सामूहिक मानसिकता बदलने के लिए भाजपा को जितना कुछ करना चाहिए उसमें कमी है। इसके कुछ कारण दिखाई देते हैं। विधायकों के विरुद्ध असंतोष आम लोगों के साथ पार्टी के अंदर ही है। पार्टी के कार्यकर्ता -नेता औपचारिक तौर पर काम करते हैं लेकिन उत्साह से जिताने की मानसिकता कई जगह नहीं दिखाई दी है। पार्टी का कार्यकर्ता और नेता पूरे मन से काम नहीं करेंगे तो माहौल होते हुए भी चुनाव जीतना कठिन होता है क्योंकि अंततः लोगों को पक्ष में मतदान करने और मतदान के दिन घरों से निकलकर मतदान केंद्र तक आने के सबसे बड़े प्रेरक तत्व यही होते हैं। विधायकों ने यह नारा दिया कि हम योगी सरकार वापस लाना है उसका थोड़ा बहुत असर भी हुआ होगा । लेकिन और विधायकों के विरोध और संतोष वाले क्षेत्रों में पार्टी कार्यकर्ता और नेता उस उस रूप में सक्रिय नहीं हो रहे जैसा  होना चाहिए। दूसरे ,2017 में हिंदुत्व के प्रबल भाव में जातीय और अन्य कारक कमजोर पड़ गए थे।

भाजपा नेतृत्व हिंदुत्व को भी उस रूप में मुद्दा नहीं बना पाई है। इस कारण जातीय समीकरण जगह-जगह चुनाव के बारे में अनिश्चय की स्थिति पैदा कर रहे हैं। कई जगह जो कहते हैं कि हमको योगी सरकार चाहिए वे भी जातीय आधार पर दूसरी पार्टी और उम्मीदवार को वोट देने की बात करते हैं। अखिलेश यादव ने सपा गठबंधन के अंदर काफी जगह जातीय समीकरणों का ध्यान रखते हुए टिकट बंटवारा किया। पूर्व सरकार में यादव समुदाय के एक बड़े समूह के विरुद्ध आक्रोश का ध्यान रखते हुए उन्होंने सजातीय को कम मात्रा में टिकट दिया। अखिलेश यादव ने इससे समाजवादी सरकार में गुंडागर्दी और अपराध की आशंका को कम करने की रणनीति अपनाई। इसका भी थोड़ा असर है।पहले बसपा लग रही थी बिल्कुल चुनाव नहीं लड़ रही और उसके मतदाताओं का बड़ा समूह सपा को हराने की मानसिकता में भाजपा के पक्ष में मतदान करेगा। मायावती ने इस तरह टिकट का बंटवारा किया कि कई जगह जातीय समीकरण भाजपा की चिंता बढ़ाने वाले बन गए हैं। यह जानते हुए भी कि बसपा सरकार नहीं आ रही अनेक जगह जातीय आधार पर वे मतदाता बसपा को वोट देने की बात करते मिले जो भाजपा के माने जाते थे। भाजपा नेतृत्व जानता है कि इस चुनाव में देश और विदेश में उसके विरोधी किस तरह सक्रिय हैं।

वह हर हाल में यह संदेश देना चाहते हैं कि मतदाताओं ने हिंदुत्व की नीति को नकार दिया है ताकि इसके बाद सरकार पर आक्रामक होने का उनका आधार बड़ा हो सके एवं इसके विरुद्ध अभियानों को प्रभावी बनाया जाए। बावजूद पार्टी के अंदर और बाहर समर्थकों तथा आम मतदाताओं के बीच भाजपा जिस मात्रा में यह भावना पैदा होनी चाहिए कि चुनाव करो या मरो का है उसमें भी कमी है। भाजपा बसपा के मतदाताओं के अंदर यह संदेश देने में सफल नहीं हो पा रही कि वह पार्टी तो सत्ता में नहीं आने वाली और आपका मत आपके ज्यादा विरोधी को सत्ता में ला देगा। जिन्हें चाहिए योगी सरकार वे दूसरे को वोट दे दें तो इसे क्या कहा जाएगा? उत्तर प्रदेश के मतदाताओं को यह समझना होगा कि अगर आप योगी सरकार को नहीं चाहते हैं तो उसके विरुद्ध वोट दीजिए लेकिन चाहते हैं तो उसके उम्मीदवार को वोट दीजिए।

हम चाहे कुछ और मतदान करते समय कुछ और कर दें तो या विवेकशील मतदाताओं की भूमिका नहीं मानी जाएगी। यह बात भी सही है कि कानून – व्यवस्था और हिंदुत्व को प्रदेश के कोने-कोने में प्रबल मुद्दे के रूप में स्थापित करने में भाजपा अभी पीछे है। कई जगह मतदाता कहते हैं अगर यह सरकार चली गई तो फिर कानून व्यवस्था बिगड़ जाएगी एवं हिंदुत्व कमजोर होगा । इस तरह का पूरा चुनावी वातावरण उत्तर प्रदेश का है। अगर योगी सरकार वापस आती है तो ज्यादातर विधायकों के इसमें भूमिका 9 के बराबर होगी। इसमें इन दो मुद्दों के साथ उनकी और नरेंद्र मोदी की छवि की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। विधायकों से असंतुष्ट होते हुए भी लोग कहते हैं कि हम तो योगी और मोदी के नाम पर वोट दे रहे हैं। या कितना काम करेगा अभी कहना कठिन है। कारण सपा के साफ-साफ भाजपा विरोधी मतदाता आक्रामक एकजुटता में हैं और उनके अंदर अनिश्चय का कोई भाव नहीं। सारी बातें भुलाकर हुए केवल भाजपा को हराने की भावना से काम कर रहे हैं।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: BJPelection2022hindi vivekup electionuttar pradeshvotervoting

अवधेश कुमार

Next Post
‘हिजाब विवाद’ ने ली बजरंग दल कार्यकर्ता की जान

'हिजाब विवाद' ने ली बजरंग दल कार्यकर्ता की जान

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0