आस्तीन के सांप और इंडिया के “यूज़फुल इडियट्स”

 

जुनैद , पहलु खान , अख़लाक़ , गौरी लंकेश तो महीनो भर सुर्ख़ियों में छाते हैं लेकिन प्रशांत पुजारी को कोई नहीं पूछता। अब आपको पता चला कि कठुआ और हाथरस पर फ़िल्मी अदाकाराओं के पेट में दर्द क्यों होता है मंदसौर और बाड़मेर पर क्यों नहीं होता ? रोहिंगिया मुसलमानों पर सेक्युलरों को दर्द क्यों होता है लेकिन पकिस्तान से आये हुए प्रताड़ित हिन्दू शरणार्थियों को जबरदस्ती वापिस भेजने पर किसी की आह नहीं निकलती ? सेना पर पत्थर फेंकने वालों के खिलाफ पेलेट गईं चलाने की मनाही क्यों होती है और उन पर से केस क्यों वापिस हो जाते है ?

बँगाल में और केरल में हिन्दुओं की हत्यायों पर चर्चा क्यों नहीं होती और अलवर का आदतन गौतस्कर रक्बर खान क्यों पूरा सिस्टम हिला देता है ? ईसाई चर्चों और मदरसों में बलात्कारों की ख़बरें कैसे छुप जातीं हैं और सिर्फ हिन्दुओं की ख़बरें कैसे हफ़्तों तक चलायी जातीं हैं ? रात में हुई घटना में सुबह पीड़ित की जाति कैसे छप जाती है ? इसके लिए मीडिया और देशद्रोही ताकतें जितनी जिम्मेदार हैं उतने ही है हमारे बीच में फैले हुए आस्तीन के साँप भी जिम्मेदार हैं जो अपनी उदारवादी मानसिकता दिखाने के फेर में इन षड्यंत्रकारियों के साथ खड़े हो कर उनका मनोबल बढ़ाते हैं .

यूरी बेज़मैनोव रूस का एक जासूस था जिसे इन्दिरा गाँधी की सरकार के दौरान केजीबी के एजेंट के रूप में भारत भेजा गए था। इंदिरा गाँधी तक को इस बात की भनक नहीं थी कि दुभाषिये के रूप में ये जासूस है। एक अमेरिकन टीवी को अपने इंटरवयू में बेज़मैनोव बताता है कि उसकी टीम को भारत में  “यूज़फुल इंडियन इडियट्स” का ब्रैनवॉश करके वामपंथी आइडियोलॉजी वाला गैंग तैयार करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी थी।

उन्हें रसूखदार व्यक्तियों, भारतीय मीडिया से जुड़े व्यक्तियों, फिल्मकारों , शिक्षा जगत से जुड़े बुद्धिजीवियों, अहंकारी और सनकी व्यक्तियों जिनके कोई आदर्श और नीतियाँ न हों ऐसे लोगों को भर्ती करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था।

उदाहरण के लिए , सुमित्रा नन्दन पंत जिन्होंने ” Rhapsody To Lenin” लिखी थी , इस कारण उन्हें रशिया आमंत्रित किया गया , जिसका पूरा खर्च रूस की सरकार ने वहन किया था। केजीबी के कार्यों में एक मुख्य कार्य मेहमानों को हमेशा नशे में धुत्त रखना होता था। जैसे ही कोई मेहमान मास्को एयरपोर्ट पर उतरता था उसे मेहमानों के लिए बनाये गए विशिष्ट कक्ष में ले जाया जाता था और दोस्ती के नाम पर एक जाम होता था। एक गिलास वोदका फिर दूसरा गिलास वोदका और कुछ ही समय में मेहमान को दुनिया गुलाबी नज़र आने लगती थी। और 10-15 दिन जब तक मेहमान रशिया में रहता था तब तक उन्हें इसी हालत में रखा जाता था।

आगे यूरी बेज़मैनोव बताता है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेस्सरों ,वामपंथी और वामपंथ की तरफ झुकाव रखने वाली पार्टियों , लेखकों, कवियों, भारतीय मीडिया , समाचार पत्रों, नक्सलवादियों और माओवादियों को आज़ादी के बाद से ही रूस वामपंथी आइडियोलॉजी को भारत में फ़ैलाने के लिए फंडिंग करता चला आ रहा है।

अपने अभियान के पहले चरण में उन्होंने जेएनयू और डीयू के प्रोफेसरों से दोस्ती की। दुसरे चरण में ये इन प्रोफेसरों को इंडो सोवियत फ्रेंडशिप सोसाइटी की बैठक में बुलाते थे। इन मीटिंग्स का पूरा खर्च सोवियत सरकार वहन करती थी। इन प्रोफेसरों को यकीं दिलाया जाता था कि वे बहुत गंभीर और विलक्षण किस्म के बुद्धिजीवी हैं। जबकि असल भावना इसके बिलकुल विपरीत होती थी। उन्हें बुलाया इसलिए जाता था क्योंकिवे ” यूज़फुल इडियट्स” होते थे और वे सोवियत संघ द्वारा पढ़ाई गयी पट्टी को बहुत एकाग्र चित से कंठस्थ करके भारत आते थे और फिर अपने द्वारा पढ़ाये जाने वाले हर विद्यार्थी को वामपंथ की वही पट्टी दशकों तक पढ़ाते थे।

बेज़मैनोव के अनुसार भारत के वामपंथ, लेफ्टविंग मीडिया छदमबुद्धिजीवियों, लेखकों और पत्रकारों को इस समय पाकिस्तान की आई इस आई (ISI) पोषित और संचालित कर रही है। जो लोग सोवियत और आईएसआई की विचारधारा को आगे बढ़ाते हैं उन्हें मीडिया के शोर और फ़र्ज़ी जनमत के आधार पर महत्वपूर्ण पदों पर बिठा दिया जाता है। और जो इनकी विचारधारा का समर्थन नहीं करते उनकी या तो हत्या कर दी जाती है या चरित्र हनन करके उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा जाता।

किसी दिन बेज़मैनोव की आत्मा को भारत के के खिलाफ इन षड्यंत्रों ने जगा दिया और वे इनसे दरकिनार होने के लिए भूमिगत हो गए। भारत सरकार ने उनकी गुमशुदगी के विज्ञापन छपवाए जिससे जब वे मिल जाएँ तो उन्हें रूस सरकार के सुपुर्द कर दिया जाए। लेकिन बेज़मैनोव को मालूम था की यदि वे पकडे गए तो रूस की सरकार उन्हें मरवा देगी इसलिए वे चुप कर कनाडा चले गए जहाँ उन्होंने कुछ टीवी इंटरव्यू दिए जिनमे से एक का अंश यह है।

बेज़मैनोव का मानना था कि यदि भारत में स्थिति सुधारनी है तो आज इसी वक़्त से शिक्षा प्रणाली और व्यवस्था बदलनी होगी तब कहीं अगले 20-25 सालों में बदलाव आना शुरू होगा। परन्तु जैसा कि उन्हें अंदेशा था रूस की सरकार ने उन्हें ज्यादा मुंह खोलने का मौका नहीं दिया और हत्या करवा दी।

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