गर्म खिचड़ी को किनारे-किनारे से खाते रहिये

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बात थोड़ी पुरानी है।2014 से पहले की।बात तब की जब कम्युनिस्ट आतंकियों ने अपने विचारधारा के अनुसार ही बस्तर को कसाईखाना (अब भी कसाईयत जारी ही है)में बदल दिया था। लगातार गरीब और वंचित आदिवासियों, निम्न-मध्य वर्ग, देश भर के गरीब किसान-मजदूर परिवार से आने वाले सुरक्षा बलों कीवे लगातार…

जे.एन.यू. की बौद्धिक संस्कृति

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जब एक संवाददाता ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की चार दशक की उपलब्धियों के बारे में प्रश्न पूछा, तो वहाँ के रेक्टर का प्रमुख उत्तर था कि अब तक सिविल सर्विस में इतने छात्र वहाँ से चुने गए। दूसरी कोई महत्वपूर्ण उपलब्धि वे गिना नहीं पाए जो समाचार में स्थान…

ध्वस्त होता गणन शास्त्र और एलीट इंटलेक्चुअल

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उप्र के चुनाव परिणाम केवल राजनीतिक विश्लेषण का विषय भर नही हैं।यह बहुजन राजनीति के ध्वस्त होने का निर्णायक पड़ाव भी हैं।यह जातियों के गणन शास्त्र की विदाई भी है जो पस्चिमी समाजशास्त्र से किराए पर लेकर भारत के ज्ञानजगत में स्थापित की गई। और लंबे समय तक इस ज्ञान…

आस्तीन के सांप और इंडिया के “यूज़फुल इडियट्स”

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  जुनैद , पहलु खान , अख़लाक़ , गौरी लंकेश तो महीनो भर सुर्ख़ियों में छाते हैं लेकिन प्रशांत पुजारी को कोई नहीं पूछता। अब आपको पता चला कि कठुआ और हाथरस पर फ़िल्मी अदाकाराओं के पेट में दर्द क्यों होता है मंदसौर और बाड़मेर पर क्यों नहीं होता ?…

देश की सुरक्षा के लिए खतरा बनता किसान आंदोलन!

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केंद्र सरकार के नए कृषि आंदोलन पर चर्चा तो बहुत हो चुकी है जिसके बाद इन कानूनों फायदे और नुकसान दोनों ही सामने आ चुके हैं। वैसे हर सिक्के के दो पहलू होते ही हैं वह चाहे कोई भी कानून रहा हो उसका फायदा और नुकसान दोनों होता है। किसानों…

नक्सली चक्रव्यूह में भटकती राजसत्ता

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25 मई 2013 को दक्षिणी छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में दरभा की जीरम घाटी में वाम चरमपंथी द्वारा विस्फोट को एक महीना हो गया है, परन्तु उसकी भयावहता यथावत बनी हुई है।

नक्सलवाद के आगे समर्पण की मुद्रा में सरकार

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नक्सलवाद अपना सिर फिर से उठाने लगा है। इस बार वह संगठित रूप में अधिक शक्तिशाली होकर उभर रहा है, जब केन्द्र सरकार सहित राज्य सरकारें समर्पण की मुद्रा में हैं। इस खतरनाक स्थिति का विश्लेषण कर रहे हैं उमेश सिंह

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