‘द कश्मीर फाइल्स’ वामपंथी एजेंडे पर काम करने वाले बॉलीवुड के मुंह पर करारा तमाचा है। अब दर्शक एक तरफा नैरेटिव बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं हैं। ये उन फिल्म निर्माताओं, जो अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर अपना एजेंडा सेट करते हैं, को चेतावनी भी है कि अब बदलते भारत के तेवरों का ध्यान रखें।
अतीत के स्याह पन्नों को रोशनी में लाती फिल्म निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री की ‘द कश्मीर फाइल्स’ कश्मीर से पलायन करने वाले हिंदुओं के उस कष्ट और दर्द को सामने लाती है जो वजह बना उनके अपने घरों को छोड़ने का। कश्मीर से हिंदूओं का पलायन स्वतंत्र भारत की त्रासदी है। साल 1947 में धर्म के नाम पर देश का बंटवारा स्वीकार करने वाले उस शासन तंत्र की भी नाकामयाबी है, जिसने कश्मीर में ऐसे हालात पैदा होने दिए जिससे धर्म के नाम पर ही हिंदू परिवारों पर अकल्पनीय अत्याचार होने दिए। साथ ही ये हमारे समाज की भी नाकामयाबी है कि हमने ये पलायन सहज स्वीकार कर लिया। वहां से आए हिंदू परिवार बरसों तक अभिशिप्त जीवन जीने के लिए मजबूर हो गए और देश के बाकी हिस्सों में उनके प्रति संवेदना भी नहीं जगी। गंगा-जमुनी तहज़ीब की आड़ में हम अपने ही भाई-बहनों के दुख दर्द को समझने के लायक भी नहीं रहे। देश के शासकों ने भी वोट बैंक को सहेजने के चक्कर में उस दर्दनाक घटनाक्रम को देश के लोगों के सामने आने नहीं दिया। विवेक रंजन अग्निहोत्री की ‘द कश्मीर फाइल्स’ ने आज उस स्याह रात के घटनाक्रम से पर्दा हटा दिया है। एक ऐसा कड़वा सच लोगों के सामने रखा है जिसका सामना करने से हम आज तक बचते थे।
कश्मीर फाइल्स ने रचा इतिहास
‘द कश्मीर फाइल्स’ ने सफलता का इतिहास रच दिया है। ये सफलता इस मायने में महत्त्वपूर्ण है कि इसने सोए हुए देश को जगा दिया है। आज हर देश वासी अपने को कश्मीरी हिंदुओं के विस्थापन के कारण जानकर क्रोध में है। शर्मिंदा है कि वह उस समय क्यों नहीं जागा? जब ये लोग विस्थापन का दर्द झेल रहे थे। आज वह ये सोचने पर मजबूर हुआ है कि क्यों हर बार सेकुलरिज्म के नाम पर उसके ही हितों की बलि दी गई। आखिर क्या वजह है कि कश्मीर के मुसलमानों ने अपने हिंदू भाई-बहनों के साथ ये सब होने दिया? आखिर कोई इतना असंवेदनशील हो सकता है कि अपने बरसों पुराने साथ एवं पहचान को भुलाकर अपने पड़ोसी के साथ ये सब करे।
इस फिल्म की सफलता को देखकर एक बार फिर तथाकथित सेक्युलर तंत्र जाग्रत हो गया है। वह कह रहा है, जो हुआ सो हुआ, अब अतीत के घाव कुरेदने से क्या होगा? इससे अब सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ रहा है लेकिन इस सवाल का उसके पास कोई जवाब नहीं है कि ये कैसा सांप्रदायिक सौहार्द था, जिसके चलते कश्मीर के हिंदुओं के साथ ये सब अत्याचार हुआ। ये कौन-सी गंगा-जमुनी तहजीब है, जो हिन्दुओं के नरसंहार पर तो मौन है लेकिन उसके खिलाफ जब वह आवाज़ उठाता है, तो उस पर इस तहज़ीब को खतरे में डालने का आरोप मढ़ दिया जाता है। बरसों से हिंदू समाज ये लांछन झेल रहा है। उसे टुकड़ों में बांट कर वोटों के लिए मुस्लिम समाज का तुष्टिकरण वाले नेताओं ने कभी भी कश्मीर का सच सामने नहीं आने दिया है लेकिन जब विवेक रंजन अग्निहोत्री ने ‘द कश्मीर फाइल्स’ के माध्यम से ये सच लाने का प्रयास किया तो ये गैंग ओछे हथकंडो पर उतर आया, फिल्म को रोकने के प्रयास किए गए और जब उसमें असफल रहे तो उसे फ्लॉप करने के जो प्रयास किए गए वह सिने दर्शकों ने अपनी ताकत से विफल कर दिए।
जख्मों को कुरेदने का आरोप
तथाकथित बुद्धिजीवी समीक्षकों ने इस फिल्म के बारे में या तो नकारात्मक लिखा या फिर नहीं लिखा। लेकिन इस फिल्म को देख कर निकले हर दर्शक ने इस फिल्म के बारे में सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। आज सोशल मीडिया पर जिस तरह से दर्शक इस फिल्म का समर्थन कर रहें है ऐसा लगता है कि ये फिल्म विवेक रंजन अग्निहोत्री की नहीं आम जनता की है। फिल्म जिन थियेटर पर रिलीज़ हुई वहां वह ठीक से दिखाई जा रही है या नहीं इसकी भी चिंता दर्शक कर रहे हैं। कई ऐसे दृश्य दिखाई दिए जहां दर्शक सिनेमा संचालकों से फिल्म को ठीक से दिखाने की बात कर रहे हैं।
कश्मीर छोड़कर भागने को मजबूर कश्मीरी हिंदुओं के जख्मों को हरा करने का आरोप लगाने वाले लोग शायद ये नहीं समझते कि उन हिंदुओं के ज़ख्म तो अभी तक भरे नहीं हैं। वह प्रतिदिन अपनों को खोने के दुःख से दुखी हैं, अपने घर से दूर होकर दु:खी हैं। हां! इस फिल्म ने उनके दुख से देश के लोगों को परिचित कराया है। आज पलायन के इतने वर्षों बाद उनके दुख को ना केवल आवाज़ मिली है वरन देश की जनता के सामने भी ये सच आया है। देश की जनता आज कश्मीरी हिंदुओं के दुख में शामिल है।
कश्मीर को मिला सरकार का समर्थन
आज ‘द कश्मीर फाइल्स’ को देश की सरकार भी अपना समर्थन दे रही हैं। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने फिल्म के निर्माता-निर्देशक के साथ मुलाकात करके उन्हें प्रोत्साहित किया। सबसे पहले हरियाणा के मुख्य मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने फिल्म को टैक्स फ्री घोषित किया, उसके बाद गुजरात और मध्य प्रदेश सरकार ने फिल्म को टैक्स फ्री कर दिया।
आज हम कह सकते हैं कि जिस तरह से भाजपा नीत सरकारों के साथ देश का हिंदू खड़ा है, उसी तरह से वह ‘द कश्मीर फाइल्स’ के साथ खड़ा है। ये वामपंथी एजेंडे पर काम करने वाले बॉलीवुड के मुंह पर करारा तमाचा है। अब दर्शक एक तरफा नैरेटिव बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं हैं। ये उन फिल्म निर्माताओं, जो अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर अपना एजेंडा सेट करते हैं, को चेतावनी भी है कि अब बदलते भारत के तेवरों का ध्यान रखें। ‘द कश्मीर फाइल्स’ की सफलता उन निर्माताओं के लिए इस बात की प्रेरणा भी है कि अगर वह देश हित में सिनेमा का निर्माण करते हैं तो उनकी फिल्म भी सौ करोड़ का कारोबार कर सकती है। ये बदलते भारत की आवाज़ है इसे अनसुना करना महंगा पड़ सकता है। विवेक रंजन अग्निहोत्री को धन्यवाद की उन्होंने कश्मीरी पंडितों के दर्द को आवाज़ दी। ‘द कश्मीर फाइल्स’ के बाद अभी भी बहुत-सी फाइल्स बाकी हैं। इंतजार कीजिए, सत्य अधिक समय तक छुपाया नहीं जा सकता।