श्री गंगाराम का जन्म 13 अप्रैल, 1851 को मंगटानवाला (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। वे बचपन से ही होनहार विद्यार्थी थे। अपनी सभी परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर वे पंजाब के सार्वजनिक निर्माण विभाग (पी.डब्ल्यू.डी.) में अभियन्ता के रूप में काम करने लगे।
इस दौरान पूर्ण निष्ठा एवं परिश्रम से काम करते हुए उन्होंने शासन-प्रशासन के कार्यों में अच्छी दक्षता प्राप्त की। नगर और ग्रामीण क्षेत्र में लागू की गयी उनकी योजनाएं पूरे देश में आदर्श मानी जाती थीं। उनकी देखरेख और नेतृत्व में निर्मित रेनाला जल विद्युतगृह आज भी पाकिस्तान की सेवा कर रहा है।
एक अभियन्ता होते हुए भी उनका सर्वाधिक योगदान कृषि क्षेत्र के लिए है। उनकी मान्यता थी कि भारत मूलतः कृषि प्रधान देश है, अतः खेती की उन्नति से ही भारत उन्नति कर सकता है। उन्होंने अपनी योजना एवं प्रयोगों को अविभाजित पंजाब में लागू किया। जिस प्रयोग के लिए शासन-प्रशासन ने उन्हें अनुमति नहीं दी, उसमें उन्होंने व्यक्तिगत रूप से रुचि ली और उसे सफल करके दिखाया। इससे शासन भी उनकी बातें मानने को विवश हुआ।
पंजाब के सूखे क्षेत्रों में श्री गंगाराम ने नहरों का जाल बिछाकर सिंचाई का समुचित प्रबन्ध किया। उन्होंने शासन से मिंटगुमरी जिले में 50,000 एकड़ (200 वर्ग कि.मी.) बंजर एवं असिंचित भूमि पट्टे पर लेकर उसमें अथक परिश्रम किया।
खेती एवं सिंचाई की आधुनिक विधियों के प्रयोग से वहां तीन वर्ष में फसल लहलहाने लगी। आज देश में सर्वाधिक औसत आय पंजाब की ही है। इसका श्रेय बहुत मात्रा में श्री गंगाराम जी को ही है। उनकी उपलब्धियों को देखते हुए अंग्रेज शासन ने उन्हें ‘सर’ की उपाधि से सम्मानित किया।
आर्थिक क्षेत्र में सफल होने के बाद सर गंगाराम ने सामाजिक क्षेत्रों में सुधार के प्रयास किये। उन्होंने भारत और विशेषकर पंजाब में फैली हर कुरीति एवं सामाजिक रूढ़ी का प्रखर विरोध किया। कोढ़ की तरह समाज को खा रही दहेज प्रथा और बाल-विवाह के विरुद्ध उन्होंने आवाज उठाई। वह विधवा विवाह के प्रबल समर्थक थे। साक्षरता के लिए भी उनके प्रयास सराहनीय हैं।
श्री गंगाराम किसी एक क्षेत्र, धर्म या जाति की बजाय संपूर्ण मानवता के प्रेमी थे। खेती से प्राप्त प्रचुर धन उन्होंने समाजहित में खर्च किया। वे अपने वेतन का अधिकांश भाग धर्मार्थ और सामाजिक संस्थाओं को दे देते थे। इसीलिए जनता उन्हें ‘दानवीर’ कहती थी।
लाहौर का गंगाराम अस्पताल जनता की सेवा में अग्रणी है। उन्होंने लाहौर में माॅडल टाउन का विकास किया, जहां रहने में लोग गर्व का अनुभव करते हैं। पठानकोट और अमृतसर के बीच रेल लाइन, लाहौर का मुख्य डाकघर, संग्रहालय तथा कई अन्य महत्वपूर्ण भवनों का निर्माण उन्होंने ही किया। लाहौर के माल रोड पर उनकी मूर्ति स्थापित की गयी थी।
उन्होंने सेवा कार्यों के लिए ‘गंगाराम न्यास’ स्थापित कर इसके माध्यम से छात्र एवं छात्राओं के लिए अनेक विद्यालय तथा अनाथ बच्चों के लिए आवास बनवाये। पंजाब के तत्कालीन गवर्नर सर मेल्कम हेली ने कहा था कि उन्होंने एक नायक की तरह धन कमाया और संत की तरह उसे दान कर किया। 1947 में देश विभाजन के बाद उनके परिजनों ने दिल्ली में उनकी स्मृति में गंगाराम न्यास बनाया, जो सर गंगाराम अस्पताल का संचालन करता है।
इस महान विद्वान वैज्ञानिक एवं समाजसेवी का लन्दन में 10 जुलाई, 1927 को देहान्त हुआ। अंतिम संस्कार के बाद उनके भस्मावशेष गंगा और उनकी कर्मभूमि लाहौर के पास रावी नदी में विसर्जित कर दिये गये।
– विजय कुमार