कलिकाल में हनुमान जी की भक्ति का महत्व

रामायण युग में दिव्य शक्तियों से परिपूर्ण होकर अवतरित रामभक्त हनुमान जी को कौन नहीं जानता और कौन नहीं मानता ? रामभक्त हनुमान जी सर्वगुण सम्पन्न,बाल ब्रह्मचारी और प्रभु राम तथा उनके भक्तों के कठिन से कठिन कार्य करने के लिए सदा तत्पर हैं । हनुमान जी आज कलयुग के निराशावादी जीवन में भी उत्साह का संचार करते हुए आदर्श  जीवन जीने की प्रेरणा प्रदान करते हैं।

हनुमान जी के जन्म का उल्लेख अगस्त्य संहिता में हुआ है। उनके जन्म की तिथि कई स्थानों पर चैत्र मास की एकादसी और कई स्थानों पर  पूर्णिमा मानी जाती  है। हनुमान जी को अंजनीपुत्र, पवनसुत, शंकरसुवन, केसरीनंदन, बजरंग, आदि नामों से भी जाना जाता है। इसके अतिरिक्त उन्हें महाबल, रामदूत, फाल्गुनसखा (अर्जुन के मित्र), पिगांक्ष, अमितविक्रम, उदधिक्रमण (समुद्र को अतिक्रमण करने वाले), सीता शोक विनाशक ,लक्ष्मण प्राणदाता और दशग्रीवदर्पदा (रावण के घमंड को दूर करने वाला) भी कहा जाता है। हनुमान जी के ये बारह नाम उनके गुणों के द्योतक हैं।

श्री हनुमान चरित्र एक जीवन दर्शन है। हनुमान जी के चरित्र में शक्ति संचय और उसका सदुपयोग, भगवान की भक्ति आदि का पूर्ण विकास होने के कारण व उनकी आराधना से भक्तों में इन गुणों  की उपलब्धि । यदि आज के युवा हनुमान जी के जीवन चरित्र को अच्छी तरह से समझें तो समाज की तमाम बुराईयों व निराशावादी वातावरण का सहज अंत हो जायेगा। हनुमान जी आज के युग के लिए एक श्रेष्ठ प्रबंधक गुरू भी साबित हो सकते है।

उसका कारण है कि हनुमान जी अपने स्वामी श्रीराम जी के काम को समय पूरा करके दिखा दे देते थे फिर चाहे उनके मार्ग में जितनी कठिन समस्यायें ही क्यों न आयें। यही कारण है कि भगवान श्रीराम को हनुमान जी के प्रति विशेष लगाव हो गया था। भगवान श्रीराम हनुमान जी के प्रति विशेष कृपादृष्टि रखने लग गये थे। वे अपना हर कठिन से कठिन काम हनुमान जी को सौंपते थे और ऐसा करके वे निश्चिन्त होकर आगे की कार्ययोजना बनाने लग जाते थे।

मान्यता है कि हनुमान जी कलियुग के जाग्रत देव हैं जो भक्तों को बल, बुद्धि, विवेक  प्रदान करके भक्तों की रक्षा करते हैं। हनुमान जी के स्मरण से रोग, शोक  व कष्टों का निवारण होता है। मानसिक कमजोरी व दुर्बलता के दौर में हनुमान जी का स्मरण करने मात्र से जीवन में नये उत्साह का संचार होता है। हनुमाजी के चरित्र की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उनमें अहंकार रंचमात्र नहीं था वे सदा श्रीराम व उनके परिवार के सभी सदस्यों सहित अपने गुरू, माता- पिता तथा साधु -संतो के प्रति नतमस्तक रहते थे।

हनुमान जी ने जब माता सीता की खोज के लिए रावण के अंतःपुर में प्रवेष किया और रावण की स्त्रियों और उनकी सुंदरता को देखा तब भी उनका मन  व विचार स्खलित नहीं हुआ। हनुमान जन्मोत्सव के दिन हनुमान जी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। जिससे कई गुना लाभ सभी भक्तों को मिलता है। हनुमान जन्मोत्सव के अवसर पर हनुमान जी के सभी मंदिरों को बेहद भव्य तरीके से सजाया जाता है। हनुमान जन्मोत्सव  पर उनका षोडशोपचार पूजन तथा श्रृंगार किया जाता है।

समकालिक समाज को हनुमान जी के गुणों को जीवन में उतरने का प्रयास करने की महती आवश्यकता है। आज का समाज स्वार्थ लिप्त होकर भौतिक सुखों के पीछे भाग रहा है,  युवा  वर्ग पश्चिमी सभ्यता के संस्कारों से ओतप्रोत होकर अपनी ओजस्विता को समाप्त कर रहा है। नारी असम्मान की घटनाएँ सामान्य हो गयी हैं ऐसे में हनुमान जी के जीवन के प्रेरक प्रसंगों के माध्यम से प्रेरणा लेकर इन बुराईयों से बचा जा सकता है।

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