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लाउडस्पीकर विवाद: दुबई से कुछ सीखने की जरुरत

लाउडस्पीकर विवाद: दुबई से कुछ सीखने की जरुरत

by हिंदी विवेक
in ट्रेंडींग, देश-विदेश, सामाजिक
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मस्जिद के लाउडस्पीकर का मुद्दा आज कल पूरे देश में गर्माया हुआ है और इसे मुस्लिमों के विरोध के रूप में दर्शाया जा रहा है जबकि ऐसा नहीं है यह मुद्दा सिर्फ लाउडस्पीकर का है इसका नमाज या किसी धर्म के विरोध से कोई संबंध नहीं है। अजान की आवाज से बाकी लोगों को परेशानी होती है इसलिए इसकी आवाज कम करने की मांग हो रही है। मस्जिद के पास रहने वाले लोगों के लिए यह बहुत ही बुरा अनुभव रहा है उन्हें दिन में 5 बार नमाज के ध्वनि प्रदूषण से परेशान होना पड़ता है ऐसे में गर्भवती महिलाएं, परीक्षा देने वाले छात्र और बुजुर्गों को ज्यादा परेशानी होती है।

वैसे इस मुद्दे को लेकर कोई विवाद नहीं होना चाहिए क्योंकि इसका समाधान सिर्फ इतना है कि लाउडस्पीकर को हटा दिया जाए या फिर आवाज कम कर दी जाए जिससे किसी और को परेशानी ना हो। 2017 लाउडस्पीकर को लेकर गायक सोनू निगम ने आवाज उठाई थी और प्रेस कांफ्रेंस कर यह कहा था कि वह स्टूडियो से रात 3 बजे तक घर आते है लेकिन अजान की वजह से उन्हें सुबह 5 बजे ही जगना पड़ता है। सोनू के इस बयान के बाद से उनके खिलाफ फतवा जारी कर दिया गया और उन्हें तमाम दिक्कतों के बाद अपना सिर तक मुंडवाना पड़ा था। 

महाराष्ट्र से लाउडस्पीकर का मुद्दा अब बाकी राज्यों तक भी पहुंच गया है और लोग पार्टी से ऊपर उठ हिन्दू के नाम पर राज ठाकरे का समर्थन कर रहे हैं। महाराष्ट्र के बाद यह उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान और बिहार तक पहुंच चुका है और लोग लाउडस्पीकर पर हनुमान चालीसा बजाना शुरू भी कर दिए हैं। राज ठाकरे के बयान के बाद यह साफ हो गया है कि हिन्दू अब एक जुट हो रहा है और वह हिन्दू के लिए बयान देने वाले किसी भी नेता का स्वागत करने को तैयार है अन्यथा राज ठाकरे का इतिहास ऐसा रहा है कि वह उत्तर प्रदेश जाने की सोच भी नहीं सकते थे।

राजनीतिक दलों के साथ साथ तमाम हिंदू संगठन भी मस्जिद के लाउडस्पीकर की आवाज को हमेशा के लिए खत्म करना चाहते हैं। जबकि कुछ राजनीतिक दल इस मौके का पूरा फायदा उठाना चाहते हैं और मस्जिद पर लगे लाउडस्पीकर को बचाने का प्रयास भी कर रहें हैं। कांग्रेस, एनसीपी, सपा और शिवसेना सहित तमाम दल राज ठाकरे को बीजेपी का एजेंट बता रहे हैं हालांकि यह कोई पहली बार नहीं है जब इन पार्टियों ने मुस्लिम समुदाय का खुला समर्थन किया है इससे पहले भी ऐसे बयान और कारनामें देखे गये हैं लेकिन इन सभी पार्टियों से सवाल यह है कि क्या किसी की नींद खराब कर के अल्लाह को याद करना कहां तक ठीक है?     

दुबई एक इस्लामिक देश है और वहां हर एक किमी पर एक मस्जिद है लेकिन वहां पर ध्वनि प्रदूषण नहीं होता है क्योंकि वहां मस्जिद पर लगे लाउडस्पीकर से अजान की आवाज नहीं आती है वजह है लाउडस्पीकर की आवाज बिल्कुल कम होती है क्योंकि भारत की मस्जिदों से आने वाली आवाज के जितना आवाज वहां होगी तो ध्वनि प्रदूषण का स्तर उच्चतम स्तर पर पहुंच जायेगा। दुबई में लाउडस्पीकर की आवाज ना होने से मरीज, छात्र और आम जनता को कोई परेशानी नहीं होती है। भारत के मुस्लिम धर्म गुरुओं को दुबई से सीख लेनी चाहिए क्योंकि कोई भी धर्म किसी दूसरे को परेशानी करने की इजाजत नहीं देता है। मुस्लिम समाज हजरत मुहम्मद को मानता तो जरुर है लेकिन राजनीतिक द्वेष की वजह से उनके दिखाए मार्ग पर नहीं चल पाता है।     

देश की सर्वोच्च अदालत ने भी ध्वनि प्रदूषण को लेकर गाइडलाइन जारी किया है लेकिन मुस्लिम समुदाय ने उसे नकार दिया और राजनीतिक लाभ की वजह से किसी भी नेता ने इसका पालन कराने की जहमत नहीं उठाई क्योंकि वोट बैंक सभी को प्यारा है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में ध्वनि की एक सीमा तय की और सभी से इसका पालन करने को कहा है लेकिन राज्य सरकार के दबाव की वजह से प्रशासन इस पर कार्रवाई नहीं कर पाता है। सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक- 

 

      क्षेत्र                                       दिन                           रात 

आवासीय क्षेत्र –                          55 डेसीबल           45 डेसीबल 

औद्योगिक क्षेत्र-                          75 डेसीबल           70 डेसीबल

व्यावसायिक क्षेत्र-                       65 डेसीबल           55 डेसीबल

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Tags: dubaihindi vivekillegal speakers on mosquesloudspeakersound pollutionsupreme court

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