मुसलमान अपने अपने पूर्वजों को याद करने लगे हैं

आगामी 15 वर्ष के भीतर मुस्लिम तेज़ी से हिंदुत्व की तरफ़ झुकेंगे। इसमें पसमांदा और राजपूत मुसलमान सबसे आगे होंगे। सनातन को उनके आत्मसार व पुनर्स्थापन के लिए तैयार रहना होगा। यह काम अभी से शुरू होता हुआ, मुझे प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा है। लेकिन आने वाले इस दुविधा में हैं कि उन्हें फिर से कितने उदारता के साथ स्वीकार किया जाएगा।

पूर्व में इस देश में क्षत्रिय बनने के लिए मारकाट मची थी और आज के समय में दलित और पिछड़ा। भारत का समाज एक ऐसा भीरु समाज रहा है, जो पूरी तरह लाभ केंद्रित रहा है। जो बनने में लाभ मिलेगा, वह बनने को तैयार हैं।

जिस दिन मुसलमानों को आर्थिक दबाव के चलते सनातन एकजुटता से मुसलमान रहना हिंदू रहने से अधिक कठिन हो जाएगा, वह उसी क्षण हिंदू बनने के लिए लालायित होंगे।

क्या किसी मलिक सरनेम वाले मुसलमान ने सोचा कि कोई उनसे प्रश्न करें कि उनके वो पूर्वज जो हिंदू जाट रहे होंगे, क्या उन्होंने कभी सोचा होगा कि उनके बच्चे मुसलमान बन जाएंगे और उनसे कोई मुसलमान उस समय कहता की तुम भले जाट हो पर तुम्हारा बच्चा मुसलमान होगा, तो क्या वह स्वीकार कर पाते?? कतई न कर पाते।

भारत के मुसलमानों को मध्य एशिया के कबीलों की तरह मत देखिए जिन्होंने इस्लाम की क्रूरता से खुश होकर उसे अपना मजहब स्वीकार कर लिया। भारत के मुसलमान तो इस्लाम के आर्थिक, सामाजिक और जीवन के भय से उसे स्वीकार किया है। इनके चाहने से इनका DNA नहीं बदलेगा। यह रहेंगे हमेशा लाभ केंद्रित ही।

हिंदू धैर्य रखें, हिंदुत्व के पक्ष में खड़े रहें, जो पूरी दुनिया में नहीं हुआ वह भारत में होगा। इधर पाँच वर्षों के भीतर भीतर राजपूत मुसलमान अपने अपने पूर्वजों को याद करने लगे हैं और पसमांदा अपनी मूल जाति।

भारतीय मुसलमानों के 95% पूर्वज हिन्दू थे, जो कि इस्लामी साम्राज्य से पीड़ित थे। ये सांस्कृतिक और मानव विज्ञानीय दृष्टिकोण से पूर्णतः भारतीय हैं। उन पर इस्लाम की विदेशी अरबी संस्कृति एवं कुरानी विचारधारा कट्टरता से थोपी जाने के कारण उनकी वफादारी वैश्विक इस्लामी समस्याओं के साथ रहती है क्योंकि वे दुर्भाग्य से अपने पूर्वजों के बलात धर्म परिवर्तन के निर्मम इतिहास को नहीं जानते हैं।

इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति और अज्ञानता के कारण उनके अन्दर एक अलग पहचान के संकट की स्थिति पैदा कर दी गई है और उनको सांस्कृतिक दृष्टि से जड़हीन और विरोधी जैसे लोगों में परिवर्तित कर दिया गया है।

इस्लाम में परिवर्तित होते ही उन्हें अरबी नाम, अरबी संस्कृति और अरबी रीति-रिवाज अपनाना पड़ता है। यहां तक कि उन्हें मक्का की ओर 5 बार मुंह करके ईश्वर की प्रार्थना करते हुए उस देश के प्रति श्रद्धा प्रकट करनी होती है। संक्षेप में, धर्मान्तरण के साथ-साथ राष्ट्रान्तरण भी हो जाता है।

मुसलमानों और इस्लाम के बीच के अंतर को समझना आवश्यकता है। दोनों एक जैसे नहीं हैं। वास्तव में सामान्य मुसलमान कट्टरवादी कुरानी विचारधारा के शिकार हैं।

हिन्दू पूर्वजों के मतांतरित भारतीय मुसलमान इस धर्म संकट के जाल से इस्लाम की प्रकृति पर स्वतंत्र, उचित और स्पष्ट बहस के द्वारा ही बाहर निकल सकते हैं, अन्यथा नहीं। लेकिन गांधी-नेहरू-कांग्रेस की मिथ्या तुष्टिकरण और धिम्मीपन के सहारे कभी नहीं।

हिंदुत्व का दबाव बना रहा तो इस्लाम का ढांचा भरभरा कर टूट जाएगा। हिंदू उस टूटे मलबे से अपना घर कैसे मजबूत करें, इसके बारे में सोचना शुरू कर दें, समय बहुत कम रह गया है।

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