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सरसेनापति मार्तण्डराव जोग

सरसेनापति मार्तण्डराव जोग

by हिंदी विवेक
in विशेष, व्यक्तित्व, संघ
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नागपुर के डोके मठ में 9-10 नवम्बर, 1929 को हुई एक महत्वपूर्ण बैठक में डा. हेडगेवार को आद्य सरसंघचालक, श्री बालासाहब हुद्दार को सरकार्यवाह तथा श्री मार्तंडराव जोग को सरसेनापति घोषित किया गया था। 1899 में एक उद्योगपति परिवार में जन्मे श्री जोग नागपुर में शुक्रवार पेठ स्थित ‘जोगबाड़ा’ के निवासी थे। उन्होंने प्रथम विश्वयुद्ध में भाग लिया था। कैंसर जैसे भीषण रोग को उन्होंने अपने मनोबल से परास्त कर दिया था। इस कारण लोग उन्हें ‘डाॅक्टर ऑफ़ दि कैंसर’ भी कहते थे। यद्यपि वे इसका श्रेय अपने बाड़े के विशाल पीपल के वृक्ष और मारुति मंदिर को देते थे।

श्री जोग की संघ और कांग्रेस के प्रति समान निष्ठा थी। वे नागपुर में कांग्रेस सेवा दल के प्रमुख थे। हिन्दू महासभा तथा कांग्रेस के तत्कालीन सभी प्रमुख नेता उनके पास जाते रहते थे। 1930 में वे कारावास में भी रहे। भगवा पगड़ी बांधने वाले श्री जोग कांग्रेस के कार्यक्रमों में सफेद खादी की गांधी टोपी तथा संघ के कार्यक्रम में सगर्व गणवेश की काली टोपी पहनते थे।

हिन्दुत्वप्रेमी होने के कारण श्री जोग की डा. हेडगेवार से गहरी मित्रता थी। संघ की स्थापना वाली बैठक में वे किसी कारण उपस्थित नहीं हो सके; पर अगले दिन उन्होंने डा. जी से मिलकर इस कार्य को समर्थन और सहयोग का आश्वासन दिया। डा. जी उनसे कुछ अधिक सक्रियता की आशा करते थे; पर वे अपने कारोबार तथा अन्य सामाजिक कामों में व्यस्त रहते थे।

एक बार शरद पूर्णिमा की रात में साढ़े ग्यारह बजे डा. हेडगेवार ने उन्हें किसी काम से आवाज दी; पर उन्होंने आने से साफ मना कर दिया। डा. जी लौट गये; पर श्री जोग सारी रात पछतावे की आग में जलते रहे। अगले दिन उन्होंने डा. जी से अपनी इस भूल के लिए क्षमा मांगी और फिर वे आजीवन डा. हेडगेवार के अनुगामी बने रहे। वे डा. जी के साथ घर-घर जाकर शाखा के लिए बाल और तरुणों को जुटाते थे। संघ शिक्षा वर्ग की व्यवस्था में भी वे लगातार सक्रिय रहते थे।

यद्यपि वे निष्ठावान कांग्रेसी थे; पर साथ ही गर्वीले हिन्दू भी थे। अतः नागपुर के विजयादशमी पथ संचलन में वे घोड़े पर सवार होकर एक हाथ में तलवार तथा दूसरे में भगवा झंडा लेकर चलते थे। नागपुर के सार्वजनिक गणेशोत्सव में भी उनके परिवार की बड़ी भूमिका रहती थी। श्री गुरुजी तथा श्री बालासाहब देवरस उनके घर जाकर प्रायः उनसे परामर्श करते थे। संघ शिक्षा वर्ग के अंतिम दिन सब शिक्षार्थी उनके बाड़े में भोजन पर आमन्त्रित रहते थे।

1948 में गांधी जी की हत्या के बाद कांग्रेसियों ने उनके गुब्बारे के कारखाने को जला दिया। आग घर तक पहुंचने से पूर्व ही आजाद हिन्द सेना के मेजर जोशी ने यह षड्यन्त्र विफल कर दिया। जब दुबारा यह प्रयास हुआ, तो श्री जोग स्वयं बंदूक लेकर आ गये। इससे डरकर गुंडे भाग गये।

कृषि विशेषज्ञ श्री जोग के घर में गाय, भैंस और कुत्तों के साथ एक चीते का बच्चा भी पलता था। उनका विशाल पुस्तकालय साहित्यप्रेमियों का मंदिर था। 1975 के प्रतिबंध काल में जब सभी प्रमुख कार्यकर्ता जेल चले गये, तो डा0 हेडगेवार की समाधि की दुर्दशा होने लगी। इस पर श्री जोग ने विनोबा भावे और मुख्यमंत्री श्री चह्नाण से मिलकर उसकी देखभाल की व्यवस्था कराई।

चार मई, 1981 को अनेक प्रतिभाओं के धनी, संघ के पहले और एकमात्र सरसेनापति श्री मार्तंडराव जोग का निधन हुआ।

 – विजय कुमार 

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Tags: agriculturedr hedgewarhindi vivekrashtriya swayamsevak sanghsarsenapati martandrao jog

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