संघ की प्रारम्भिक प्रचारकों में एक श्री वसंतराव कृष्णराव ओक का जन्म 13 मई, 1914 को नाचणगांव (वर्धा, महाराष्ट्र) में हुआ था। जब वे पढ़ने के लिए अपने बड़े भाई मनोहरराव के साथ नागपुर आये, तो बाबासाहब आप्टे द्वारा संचालित टाइपिंग केन्द्र के माध्यम से दोनों का सम्पर्क संघ से हुआ।
डा. हेडगेवार के सुझाव पर वसंतराव 1936 में कक्षा 12 उत्तीर्ण कर शाखा खोलने के लिए दिल्ली आ गये। उनके रहने की व्यवस्था ‘हिन्दू महासभा भवन’ में थी। यहां रहकर वसंतराव ने एम.ए. तक की पढ़ाई की और दिल्ली प्रांत में शाखाओं का जाल भी फैलाया। आज का दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, अलवर और पश्चिमी उत्तर प्रदेश उस समय दिल्ली प्रांत में ही था। वसंतराव के परिश्रम से इस क्षेत्र में शाखाओं का अच्छा तंत्र खड़ा हो गया।
वसंतराव के संपर्क का दायरा बहुत विशाल था। 1942 के आंदोलन में उनकी सक्रिय भूमिका रही। गांधी जी, सरदार पटेल, लालबहादुर शास्त्री, पुरुषोत्तमदास टंडन से लेकर हिन्दू महासभा, सनातन धर्म और आर्य समाज के बड़े नेताओं से उनके मधुर संबंध थे। कांग्रेस वालों को भी उन पर इतना विश्वास था कि मंदिर मार्ग पर स्थित वाल्मीकि मंदिर में होने वाली गांधी जी की प्रार्थना सभा की सुरक्षा स्वयंसेवकों को ही दी गयी थी।
10 सितम्बर, 1947 को कांग्रेस के सब बड़े नेताओं की हत्याकर लालकिले पर पाकिस्तानी झंडा फहराने का षड्यन्त्र मुस्लिम लीग ने किया था; पर दिल्ली के स्वयंसेवकों ने इसकी सूचना शासन तक पहुंचा दी, जिससे यह षड्यन्त्र विफल हो गया।
आगे चलकर वसंतराव ने श्री गुरुजी और गांधी जी की भेंट कराई। उन दिनों वसंतराव का दिल्ली में इतना प्रभाव था कि उनके मित्र उन्हें ‘दिल्लीश्वर’ कहने लगे। संघ पर लगे पहले प्रतिबंध की समाप्ति के बाद उनके कुछ विषयों पर संघ के वरिष्ठ लोगों से मतभेद हो गये। अतः गृहस्थ जीवन में प्रवेश कर वे दिल्ली में ही व्यापार करने लगे; पर संघ से उनका प्रेम सदा बना रहा और उन्हें जो भी कार्य दिया गया, उसे उन्होंने पूर्ण मनोयोग से किया।
गोवा आंदोलन में एक जत्थे का नेतृत्व करते हुए उनके पैर में एक गोली लगी, जो जीवन भर वहीं फंसी रही। 1857 के स्वाधीनता संग्राम की शताब्दी पर दिल्ली के विशाल कार्यक्रम में वीर सावरकर का प्रेरक उद्बोधन हुआ। उन्होंने वसंतराव के संगठन कौशल की प्रशंसा कर उन्हें ‘वसंतराय’ की उपाधि दी। 1946 में उन्होंने ‘भारत प्रकाशन’ की स्थापना कर उसके द्वारा ‘भारतवर्ष’ और ‘आर्गनाइजर’ समाचार पत्र प्रारम्भ किये। विभाजन के बाद पंजाब से आये विस्थापितों की सहायतार्थ ‘हिन्दू सहायता समिति’ का गठन किया था।
वसंतराव के भाषण काफी प्रभावी होते थे। मराठीभाषी होते हुए भी उन्हें हिन्दी से बहुत प्रेम था। 1955 में ‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ उन्हीं की प्रेरणा से प्रारम्भ हुआ। इसके लिए शास्त्री जी और टंडन जी ने भी सहयोग दिया। इसकी ओर से प्रतिवर्ष लालकिले पर एक राष्ट्रीय कवि सम्मेलन कराया जाता था, जो अब शासकीय कार्यक्रम बन गया है।
1957 में उन्होंने दिल्ली में चांदनी चौक से लोकसभा का चुनाव जनसंघ के टिकट पर लड़ा; पर कुछ मतों के अंतर से वे हार गये। 1966 के गोरक्षा आंदोलन में भी उन्होंने काफी सक्रियता से भाग लिया। बाबरी ढांचे के विध्वंस के बाद कांग्रेस और साम्यवादियों ने संघ के विरुद्ध बहुत बावेला मचाया। ऐसे में वसंतराव ने दिल्ली के प्रतिष्ठित लोगों से मिलकर उनके सामने पूरा विषय ठीक से रखा। इससे वातावरण बदल गया।
अप्रतिम संगठन क्षमता के धनी और साहस की प्रतिमूर्ति वसंतराव का नौ अगस्त, 2000 को 86 वर्ष की आयु में देहांत हुआ।
(संदर्भ : राष्ट्रसाधना भाग दो तथा पांचजन्य 27.8.2000)
– विजय कुमार